बुधवार, 7 दिसंबर 2016

नमस्कार। सर्दी के मौसम में आपका स्वागत। इस वक़्त हमारे देश में काफी हलचल मची हुई है पैसों के लिए। शायद हर भारत वासी का अपना सोच होगा इस विषय में। कुछ उस तरह जैसे कि मैंने अपने पिछले महीने के लेख में लिखा था -sully नामक पायलट के विषय में। क्या उसके पास हवाई जहाज को हडसन नदी पर उतारने के अलावा कोई विकल्प नही था ? क्या sully विमान को सबसे नजदीक के हवाई अड्डे पर नहीं उतार सकता था ? कुछ लोगों के लिए sully हीरो था और कुछ लोगों का विचार था कि उसने यात्रियों के ज़िन्दगी को खतरे में डाला था। कुछ अभी सर्वचर्चित निर्णय के विषय में इसी तरह के भावनाएं प्रदर्शित किए जा रहें हैं।
जाँच करने वाले कमीशन ने sully और उनके सह पायलट की काफी पूछताछ की। अंत में निर्णय किया गया कि कंप्यूटर की सहायता से उस दिन के उड़ान को simulate किया जाएगा। जो पाठक इस लेख को पहली बार पढ़ रहें हैं ,उनसे निवेदन करूँगा कि इस लेख को आगे पढ़ने से पहले ७ नवंबर को लिखा पिछले किश्त को ज़रूर पढ़े।
निर्णय के दिन मौजूद हर इंसान अपना सांस थाम कर simulation का परिणाम देखने के लिए तैयार था। पहला ,दूसरा ,तीसरा simulation -हर simulation अलग angle से कोर्टरूम में वीडियो स्क्रीन पर दिखाया गया। तीनो का एक ही संकर्ष -हवाई जहाज को नजदीकी हवाई अड्डे पर सही सलामत उतारा जा सकता था !sully और उनके सह पायलट का चेहरा क्या बता रहा था ? कोई परेशानी उनके चेहरे पे नहीं नज़र आई। उन्होंने केवल इतना कहा कि सिमुलेशन में चिड़ियों का झुंड हवाई जहाज के इंजन में घुसने के साथ ही पायलट जहाज को नजदीकी एयरपोर्ट पर उतारने के लिए तैयार हो जाता है। उसको सोचने में एक सेकंड का वक़्त भी नहीं लगता है। वास्तव में ऐसा नहीं हो सकता है। तीन से पाँच सेकंड का वक़्त देना पड़ेगा सोचने के लिए। तीन सेकंड का समय देने का निर्णय लिया जाता  है और दुबारा simulation को इस तीन सेकंड के अतिरिक्त समय के साथ बनाने का निर्देश दिया जाता है। कुछ समय बाद नए simulation को देखने के लिए फिर लोग एकत्रित होते हैं। फिर तीन angle .परिणाम तीनो बार हवाई जहाज नजदीकी हवाई अड्डे में उतरने में असफल होता है। sully का निर्णय सही साबित होता है। जज sully के प्रशंसा में एक भाषण दे देता है। sully सब सुनने के बाद एक ही बात करता है -इस विमान को सही तरह से उतारने में केवल उनकी तारीफ ही क्यों की जा रही है ?प्रशंसा विमान के हर कर्मी दल को प्राप्त है !यही है एक सही कप्तान का परिचय !टीम आगे। सफलता का श्रेय टीम को। केवल खुद का नहीं।
इसी गुण के अधिकारी हैं हमारे एक दिवसीय क्रिकेट टीम के कप्तान। आपने शायद गौर किया होगा कि ट्रॉफी जितने के बाद कप्तान टीम के हाथ में ट्रॉफी देकर पीछे चला जाता है। उनके जीवन पर आधारित फिल्म से हमें काफी सारी सीख मिलती हैं। सीख से पहले मैं तारीफ करना चाहता हूँ उस अभिनेता का जिन्होंने फिल्म में कप्तान का भूमिका निभाया है। चुकी हमने कप्तान को टीवी पर खेलते हुए इतनी बार देखा है इसलिए उनका किरदार निभाने वाले अभिनेता को उनको गौर से  देखना और समझना जरूरी है ताकि दर्शक को यह महसूस हो कि कप्तान खुद फिल्म में अभिनय कर रहें हैं। एक तरह से अभिनेता ने कप्तान का ज़िन्दगी जिया है। इस फिल्म में। ऐसा संकल्प और तैयारी ज़रुरत होती है इस तरह के सफलता के लिए।
कई सारी चीज़ें सीखने को मिलती है इस फिल्म से। मैं तीन सीख का ज़िक्र करूँगा।
पहली सीख है अपने गुरु या शिक्षक की बातों को सुनना -कप्तान फ़ुटबॉल खेलते थे बचपन में। क्रिकेट नहीं। उनके स्कूल के गेम्स टीचर ने कुछ हद तक ज़बरदस्ती ही उनको क्रिकेट खेलने पर मजबूर किया।  अगर कप्तान ने अपने टीचर की बात नहीं सुनी होती तो आज शायद मेरे इस लेख का विषय कुछ और होता।
दूसरी सीख है उनका रेलवेज का नौकरी छोड़ देना -जैसा फिल्म में दर्शाया गया है उन्होंने अपने पिताजी को नौकरी छोड़ने करने का कारण यह बताया कि उनको और तरक्की करने के लिए केवल क्रिकेट खेलना चाहिए और क्रिकेट के आय पर ही निर्भर हो जाना चाहिए ताकि उनका सुरक्षित नौकरी का सहारा ना रहे और उनमे सर्वश्रेष्ठ बनने की चाह हर वक़्त बरक़रार रहे। जो करना उसमे पूरी तरह डूबे बिना आप सर्वश्रेष्ठ नहीं बन सकते हो।
तीसरा सीख है उनके जीवन में परिवार , दोस्त , स्कूल के टीचर, प्रिंसिपल और ऑफिस के साथियों का योगदान। सबसे बड़ी बात यह है कि इतनी सफलता पाने के बाद भी कप्तान के ज़िन्दगी में इन सब लोगों का महत्व बरकरार है और अभी भी कप्तान उनको उतना ही सम्मान करते हैं। चाहे आपको कितनी भी सफलता मिले अपनों को मत भूल जाईयेगा कभी। उनका प्यार निःस्वार्थ है और रहेगा।
कैसा लगा आज का यह लेख। जरूर फेसबुक के माध्यम से बताइयेगा। इंतज़ार करूँगा। फिर मुलाकात होगी नए साल में। नए साल का अग्रिम शुभेच्छा ग्रहन कीजिएगा। 

रविवार, 6 नवंबर 2016

त्यौहारों का मौसम कैसा रहा आपके और आपके चाहने वालों के लिए ? दीपावली का त्योहार मुझे बेहद पसंद है। चारो तरफ रोशनी एक खुशी का माहोल तैयार करती है। अभी शब्द प्रदुषण पर पाबन्दी के कारण दिवाली का आनंद और भी ज़्यादा हो गया है। एक और महत्वपूर्ण कारण जिसके लिए हर साल मैं इंतज़ार करता हूँ दिवाली का -नई हिंदी फिल्मों का रिलीज़ , दिवाली के अवसर पर।
इस साल भी कई फिल्में रिलीज़ हुई। वितर्क और समालोचना भी हुआ। लेकिन मैं आज और अगले महीने दिवाली से पहले प्रदर्शित हुई दो फिल्मों का जिक्र करूँगा। एक अंग्रेजी और एक हिंदी।
पहले अंग्रेजी। फिल्म का नाम है Sully. आपने देखा है। नहीं देखा है तो अवश्य देखिये। जिन्होंने देखा है दूसरों को देखने के लिए जरूर प्रोत्साहित कीजिये।
जिन्होंने नही देखा है -उनके लिए संछिप्त में फिल्म की कहानी। Sully एक पायलट है। अमेरिका में एक  दिन न्यू यॉर्क शहर से अमेरिका के एक और शहर तक एक US Airways विमान का पायलट। चालिस साल का तजुर्बा ,पायलट की हैसियत से। स्पॉटलेस कैरियर रेकॉर्ड। हर कोई उनके काबिलियत से मोहित।
विमान के take off के तुरंत बाद उड़ते हुए पँछियों का एरोप्लेन के इंजन के साथ टकराना ;दोनों इंजन ख़राब हो जाना ; काफी कोशिश के बाद हवाई जहाज को सही सलामत न्यू योर्क शहर के हडसन नदी में उतारना। सब यात्री और हवाई जहाज के कर्मचारियों का सही सलामत रहना। एक हीरो का जन्म। अमेरिका के राष्ट्रपति का बधाई के साथ सन्देश। Sully का जवाब "मैंने अपने कर्तव्य का पालन किया है। "
गज़ब की कहानी। कहानी नहीं। एक घटना 2009 साल का जिसको फिल्म में दर्शाया गया है। कहानी का यह अंत नहीं। शुरुआत है। हर संवाद माध्यम के लिए Sullyहीरो है। परंतु Sully और उनके co pilot का इन्वेस्टीगेशन शुरू हो जाता है। क्या हवाई जहाज को नदी पर उतारना ज़रूरी था ?क्या घुमा एयरपोर्ट वापस नहीं लाया जा सकता था ? कई प्रश्नों का जवाब ढूंढा जा रहा था। मीडिया ने रुख बदल लिया। क्या इतने यात्रियों के ज़िन्दगी को खतरे में डाल कर Sully ने सही निर्णय लिया हवाई जहाज को नदी पर उतारने का ?अचानक एक हीरो ,खलनायक में परिणत होने लगा। एक बार सोचिये Sully के बारे में। क्या गुज़र रही होगी उनके मन के अंदर ?
enquiry commission ने computer simulation का सहारा लेने का निर्णय लिया। यह समझने के लिए कि हवाई जहाज को वापस निकटतम हवाई अड्डे तक वापस लाया जा सकता था या नहीं ? इसके लिए कुछ दिनों का समय लगेगा। क्या रहा अंतिम निष्कर्ष ?बताऊंगा फिल्म की तरह अंत में।
उसके पहले फ्लैशबैक। क्या हुआ था उस सुबह जब Sully के नेतृत्व में उनके हवाई जहाज ने उड़ान शुरू किया था ?Sully के चालीस साल के कैरियर में उस दिन का सुबह भी किसी और दिन के तरह ही था। यात्री छुट्टियों में जा रहे थे। महिला ,पुरुष , बच्चे , बुजुर्ग। उड़ान भरने के तुरंत बाद पक्षीयों का झुंड हवाई जहाज के दोनों इंजन के अंदर घुस जाता है। तुरंत Sully का चेहरा बदल जाता है। किसी भी उड़ान में यह तय रहता है कि उस दिन जहाज उड़ाने की जिम्मेवारी किस पर है -कप्तान या co pilot पर। उस उड़ान के संचालन की जिम्मेवारी co pilot पर था।
इसके बाद के घटनाओं से मुझे कई सारी सीख मिली है जो मैं आपके लिए पेश कर रहा हूँ।

  1. दुर्घटना कभी भी ,कहीं भी हो सकता है। अगर आप पर और लोगों की जिम्मेवारी है तो पहली बात यह है कि आपको घटना का बागडोर अपने आप पर लेना होगा और यह घोषित करना होगा। 
  2. दिमाग ठंडा रखना पड़ेगा और छोटे -छोटे निर्देश जारी करने पड़ेंगे। जैसा Sully ने किया। हर हवाई जहाज में एक निर्देश पत्रिका रहता है। तरह -तरह के परिस्थितियों का मुकाबला करने के लिए। 
  3. पहले Sully ने इस निर्देश पत्रिका के अनुसार एयर ट्रैफिक कंट्रोलर को विमान का लोकेशन बताया ; इमरजेंसी की घोषणा की ; और नजदीक के हवाई अड्डे को एलर्ट करने का निर्देश दिया। इस वक़्त Sully एयर ट्रैफिक कंट्रोल को भी नेतृत्व देना शुरू किया। क्योंकि उसे जितना पता था ;एयर ट्रैफिक कंट्रोलर को केवल अंदाज़ मात्र था। यह है हमारी दूसरी सीख। पूरा कण्ट्रोल लीजिये ,इमरजेंसी के समय। 
  4. उसके तुरंत बाद उसने अपने सह कप्तान को एक -एक इंस्ट्रक्शन जोर -जोर से बोलने को कहा। Sully ने इंस्ट्रक्शन निभाया और उसे दोहराया। इसका दो मकसद है जो की हमारी अगली सीख है। जोर से दोहराना इंस्ट्रक्शन को निभाने का कन्फर्मेशन है। इसके अलावा एक दूसरे से बात करने से भय दूर होता है और कॉनसन्ट्रेशन बरक़रार रहता है। कठिन सर्जरी के समय सर्जन भी यही करते हैं। 
  5. एयर ट्रैफिक के साथ बातचीत के कुछ समय बाद , Sully यह निर्णय लेता है कि वह हवाई अड्डे तक हवाई जहाज को नहीं पहुंचा पाएगा और उसका एक मात्र उपाय है विमान को हडसन नदी पर उतारना पड़ेगा। यह निर्णय उसने खुद लिया। सह कप्तान के साथ कोई सलाह नहीं किया। क्योंकि समय नहीं था। समय पर निर्णय लेना ज़रूरी है। सलाह हर बार नहीं लिया जा सकता है। 
  6. उसने इसके बाद दो निर्देश दिया। एक यात्रियों को -इमरजेंसी अवतरण के लिए तैयार हो जाइए। दूसरा एयर ट्रैफिक कंट्रोलर को यह बताते हुए कि वह विमान को हडसन नदी पर उतारने का निर्णय ले चुका है। इसके तुरंत बाद वह एयर ट्रैफिक कण्ट्रोल के साथ अपना संपर्क बंद कर देता है। इसमें एक बेहतरीन सीख है। उसे पता था कि एयर ट्रैफिक कण्ट्रोल उसके साथ बहस करेगा विमान को पानी पर ना उतारने का। इससे उसके कॉनसन्ट्रेशन पर प्रभाव पड़ेगा लेकिन उसका निर्णय तो नहीं बदलेगा। क्यों बेकार की बहस में समय और एनर्जी बरबाद करें ?
  7. विमान में इमरजेंसी के घोषणा के बाद विमान सेविकाओं का हर यात्री को ठन्डे दिमाग से समझाना कि कैसे इमरजेंसी लैंडिंग के लिए उन्हें बैठना है। जब तक विमान का अवतरण नहीं हुआ तब तक सेविकाओं ने केवल एक शब्द को जोर -जोर से दोहराया -brace -जिसका अर्थ है सीट पर बैठे हुए आप अपने सामने वाले सीट को पकड़िए ओर अपने सर को अपने हाथों के बीच झुक कर रखिए। एक कप्तान तभी सफल होता है जब कि उसका टीम का हर सदस्य अपना कर्त्तव्य निभाता है। एक बात का ख्याल कीजिएगा कप्तान ने केवल इमरजेंसी डिक्लेअर किया ;एक बार भी यह नहीं बताया कि हवाई जहाज पानी पर उतरेगा। इमरजेंसी का घोषणा कीजिए ;पैनिक मत फैलाइए। 
  8. एयर ट्रैफिक कन्ट्रोलर ने क्या किया ? समपर्क विच्छिन होने पर उसने आगे की सोची। अगर हवाई जहाज सही सलामत नदी पर उतर गया तो यात्रियों को पानी से निकलना पड़ेगा। उसने क्या किया ? उसने हडसन नदी पर विराजमान लॉन्च को इस हवाई जहाज के उतरने के बारे में सूचित किया। यह सीख है एक टीम का दूसरे टीम की सहायता करना ;आशावादी रहना ;और आगे की सोचना। 
  9. आपको फिल्म देखना पड़ेगा कप्तान के चेहरे को समझने के लिए जब विमान आखिर पानी पर उतरना शुरू करता है। कॉकपिट में दोनों पायलट एक बार एक दूसरे से हाथ मिलाते हैं और एक दृष्टि से सामने नदी की ओर देखते हैं। पार्टनरशीप का कोई विकल्प नहीं है। लेकिन लीडर एक ही है। 
  10. विमान के पानी पर उतरने के एक -एक यात्री को विमान से निकालने के बाद ,Sully विमान के अंत तक जाता है यह चिल्लाते हुए कि कोई अंदर तो नहीं है। लीडर अपनी बात अंत में सोचता है। 

कितना समय मिला था Sully को -इंजन के चोट पहुँचने से लेकर पानी में विमान को उतारने तक? 256 seconds . इन्वेस्टीगेशन का नतीजा क्या रहा ? अगले महीने बताऊँगा। क्योंकि आप में से कुछ लोग शायद इस फिल्म को देखने का कोशिश करो। मैं कहूँगा ,ज़रूर देखो।
अगले महीने हमारे एक प्रिय हीरो के बारे में लिखुंगा। कौन है यह हीरो?फेसबुक पर मुझे बताईये। तब तक खुश रहिए। छट पूजा पर आप सबको बधाई। सूर्य भगवान से प्रेरित होकर औरों की ज़िन्दगी में रोशनी फैलाइए। इसका आनंद कुछ और ही है।


सोमवार, 3 अक्तूबर 2016

कल आपने राष्ट्र पिता के जन्मदिन पर क्या किया ? शायद ज्यादा कुछ नहीं। हर साल २ अक्टूबर को छुट्टी होने के कारण हम बापूजी को याद करतें हैं।  इस साल रविवार होने की वजह से शायद कई लोगों को २ अक्टूबर पर बापूजी के जन्मदिन का एहसास भी ना हुआ हो। आज हम स्वाधीन भारत में जिंदगी गुज़ार रहें हैं। इसके लिए हमें बापूजी के साथ कई और महान स्वाधीनता संग्रामीयों का आभारी होना चाहिए।  हर संग्रामी का अपना अलग विश्वास था और अपना संग्राम का तरीका था। बापूजी ने अहिंसा का पथ चुना। कई लोगों ने उनका साथ निभाया। कई लोगों ने अलग मार्ग का चयन किया। एक ही गंतव्य के लिए। भारत माता की आज़ादी। एक ही मंज़िल तक पहुँचने के लिए अलग -अलग राहें।
अगर हम अपनी ज़िन्दगी को देखें तो यही अभी भी सत्य है। किसी का मंज़िल है अमीर बनना ; किसी का खिलाड़ी ; किसी का पैसा कमाना या प्रसिद्द होना। लोग अनेक , रास्ते अनेक। लेकिन सफलता पाने के लिए खुद पर और खुद के तरीके पर विश्वास का कोई विकल्प नहीं। चाहे वह तरीका गलत ही क्यों ना हो। एक जेब कतरे को पैसा बनाने का एक ही रास्ता दिखता है। दूसरों का जेब काटना। और खुद पर विश्वास ना पकड़े जाने का। चाहे आपका रास्ता सही हो या गलत ; आपको अपने आप पर और अपने काबिलियत पर भरोसा रखना पड़ेगा।
बापूजी ने अपने अहिंसा के मार्ग को और भी मजबूत बनाया सत्य का साथ लेकर। एक प्रसिद्द अंग्रेजी साहित्यिक ने बखूबी लिखा था -मैं सच बोलता हूँ ,ताकि मुझे यह याद ना रखना पड़े कि मैंने क्या बोला था -ज़रा ध्यान से सोचिये। झूठ को याद रखना सच बोलने से कहीं अधिक कठिन है। कहा जाता है कि एक झूठ के लिए हमें कई झूठ और बोलने परते हैं। फिर हम झूठ बोलते क्यों हैं ?क्योंकि हम सच का साथ नहीं निभा सकते हैं। क्या मैं कभी झूठ नहीं बोलता हूँ ?मैं बापूजी नहीं हूँ।  मैं झूठ बोलता हूँ। केवल दो चीजों का ख्याल रखता हूँ। ऐसा कोई झूठ का सहारा नहीं लेता हूँ जो कि मैं चाहता हूँ कभी सच ना बने। मीटिंग में देर से पहुँचने का बहाना कभी भी अपनी गाड़ी का टायर पंक्चर नहीं होगा। क्योंकि मैं कभी यह नहीं चाहता हूँ कि मेरी गाड़ी का टायर पंक्चर हो जिसके कारण मुझे असुविधा हो।  आपने जरूर उस राखाल बालक का कहानी सुना होगा जो कि शेर आने का एलान करता था। लोग मदत के लिए आते थे और राखाल उनको बेवकूफ बनाकर आनंद लेता था। एक दिन सच में शेर आ गया। राखाल मदत के लिए लोगों को पुकारा। कोई नहीं आया। उसका झूठ सच बन गया था।
दूसरी बात का जो मैं ख्याल रखता हूँ वह है कि मेरे झूठ बोलने के वज़ह किसी का नुकसान नहीं होना चाहिए। इस कारण मुझे कई बार अप्रिय होना पड़ा है। कई समय आपका जिससे करीब का रिश्ता है उम्मीद करता है कि आप उनका समर्थन करें। परन्तु ऐसा करने के लिए आपको अगर सच का साथ छोड़ना पड़े तो हर्गिज़ ना करें। कुछ दिन पहले इसी कॉलम के एक पाठक ने मेरे साथ फेसबुक के माध्यम से मुझसे बात करने का ईरादा व्यक्त किया। बात करने पर झारखंड के एक मशहूर कॉलेज के इस छात्रा ने मुझे अपना समस्या बताया। कॉलेज के किसी घटना की वह साक्षी थी। उनकी गवाही के कारण कुछ अन्य छात्राओं को सजा हुई।इनमे से कुछ उनके मित्र थे। एक शिक्षक को भी सजा सुनाया गया। बेचारी डर गई और प्रतिशोध के भय से कॉलेज जाना बंद कर दी। और डिप्रेशन में चली गई। उन्होंने उस कॉलेज को छोड़ने का निर्णय भी कर लिया था। उनके पिताजी भी मेरा यह कॉलम पढ़ते हैं। उन्होंने अपनी बेटी को मुझसे बात करने की सलाह दी। मैंने केवल एक ही प्रश्न किया। क्या वह सच बोल रही थी ? चूँकि वह सच बोल रही थी , उसका कॉलेज ना जाना या कॉलेज को छोड़कर चले जाना उसी के सच को झूठ साबित कर देता। अगर कोई इंसान यह समझ जाए कि आप उनसे डरते हो , तो वह आपके भावनाओं के साथ खिलवाड़ करेगा। आपके ज़िन्दगी का रिमोट उनके हातों में चला जाएगा और आप उसके हात का कठपुतली बन जाओगे। मैंने उस छात्रा को निडरता के साथ वापस कॉलेज जाने को कहा। अगर उनके दोस्त उनके सच बोलने के कारण नाराज़ हैं और दोस्ती बरक़रार नहीं रखना चाहते हैं तो वह दोस्त बनने लायक ही नहीं हैं।  दो दिन बाद उस छात्रा और उनके परिवार ने मुझे अपना हार्दिक धन्यवाद भेजा क्योंकि ना ही वह कॉलेज वापस गई है ; उनका कॉन्फिडेंस में भी बढ़ोतरी हुई है।
इससे बेहतर क्या तोहफा हो सकता है मेरे लिए , इस त्योहार के मौसम में। देवी के आगमन के साथ कई सारी घटनाएं जुड़ी हुई हैं। अंत में सत्य की जीत होती है। अमेरिका के एक राष्ट्रपति ने अपने बच्चे के स्कूल शिक्षक को एक बेहतरीन अनुरोध किया था। उन्होंने कहा था -'मेरे बच्चे में यह विश्वास जगाओ ताकि उसमे यह क्षमता हो कि सच के समर्थन में वह अकेला खड़ा हो सके चाहे पूरी दुनिया क्यों ना उनके विरुद्ध हो।'
सच -सच बोलिए क्या आप में यह विश्वास है ? फेसबुक पर आपके जवाब का इंतज़ार करूँगा। दशहरा ,धनतेरस और दिवाली के बाद फिर मिलेंगे। तब तक आनंद लीजिये त्योहारों का। केवल इतना ख्याल रखिएगा कि आपका आनंद किसी और के दुख का कारण ना बन जाए।

सोमवार, 5 सितंबर 2016

नमस्कार। आपको शिक्षक दिवस पर प्रणाम। हर कोई जो इस वक्त मेरे साथ है  , मेरे लिए एक शिक्षक हो। आप हर किसी से मुझे बहुत कुछ सीखना है। मेरा शिक्षक बनना चाहेंगे आप ? फेसबुक के माध्यम से मुझे सिखाईये।  मैं सीखने के लिए व्याकुल हूँ।  आप से। और यही मेरा शिक्षक दिवस पर आपके लिए मूल सन्देश है।
अगर आप सोचो हर इंसान से हम कुछ न कुछ सीख सकते हैं। और यही कठिन है। क्योंकि हम अपने मन में तय कर लेते हैं कि किससे हम सीख सकते हैं , किससे नहीं। इसी संकीर्ण सोच के कारण हम अकसर सीखने का अवसर खो देते हैं।
अगर आप सोचिये शिक्षक के विषय में सोचते वक़्त  हम स्कूल , कॉलेज , यूनिवर्सिटी , गुरु , ट्यूटर, ट्रेनिंग या कोच को याद करते हैं। इन लोगों का हमारे ज़िन्दगी में अलग स्थान है। रहेगा।
एक बार सोचिये स्कूल , कॉलेज के बाद क्या आपको और कुछ नहीं सीखना है ? किससे सीखेंगे आप ? बुजुर्गों से ? सीनियर से ? या किसी से भी ?
यह तभी हो सकता जब कि आप यह स्वीकार करो कि आप को सब कुछ नहीं आता है। दूसरों से आप सीख सकते हैं और आप से भी दुसरे सीख सकते हैं।
कहा जाता है कि  इस दुनिया में मौजूद नॉलेज या ज्ञान को आप अपने लिए तीन अंश में विभाजित कर सकते हैं।
मैं इस विभाजन को अपने अंदाज़ में व्यक्त करना चाहता हूँ :

  • मुझे पता है कि मैं क्या जानता हूँ।  जैसे मैं हिंदी लिख सकता हूँ। 
  • मुझे यह भी पता है कि क्या मैं नहीं जानता हूँ। जैसे मुझे हवाई जहाज उड़ाना नहीं आता है। 
  • मुझे यह नहीं पता है कि मैं क्या नहीं जानता हूँ। कहा जाता है कि इस ब्रह्मांड में ९९ प्रतिशत से अधिक नॉलेज इस विभाजन के अन्तर्गत है। 
आप क्या मेरे विभाजन से सहमत हैं ? अगर सहमत हैं तो आपको हर वक़्त सजग रहना पड़ेगा सीखने के लिए। कहीं भी। किसी से भी। कैसे सीख सकते हैं किसी से भी ? मैं अंग्रेजी भाषा एक शब्द का प्रयोग करता हूँ- TORCH. टोर्च हमें अंधेरे में रोशनी देकर आगे बढ़ने में मदत करता है। जरा सोचिये , जितना हमारा  ज्ञान बढ़ता है , उतना हमारे मन का अँधेरा दूर होता है। याद रखने के लिए मैंने TORCH शब्द के हर एक अक्षर को एक अंग्रेजी शब्द के जरिये समझाया है। 
T - Try : सीखने के लिए प्रयास करना पड़ेगा। ऐसे काम करने पड़ेंगे जो आपने पहले कभी नहीं किया होगा। तभी आप कुछ नया सीख पाएंगे। अगर हमें तैरना सीखना है , हमें पानी में उतरना पड़ेगा चाहे हमे पानी से कितना भी डर लगता हो। अकसर असफल होने के डर से हम नई चीजों को करना नहीं चाहते हैं। और यही हमारे ज्ञान के वृद्धि में एक महत्वपूर्ण बाधा है। 
O - Observe : जो दिखता है , हमें सिखाता है।  परन्तु तभी, अगर हम देखते वक्त सोचते हैं और समझने की कोशिश करते हैं। कभी आपने टीवी पर उन चैनलस को देखा है , जहाँ जानवरों के ज़िंदगी को बेहतरीन तरीके से दर्शाया जाता है।  क्या जानवर अभिनय करते हैं ? या चैनल के फोटोग्राफर घंटो इंतज़ार और observe करता है। मैं बहुत कुछ सीखता हूँ।  जानवरों से।  उनकी ज़िन्दगी के जीने के तरीकों से हमें काफी सारी सीखें मिलती हैं। 
R - Read : पढ़ने का कोई विकल्प नहीं है। जितना पढोगे , उतना सीखोगे। अगर ध्यान से पढ़ो तो।  अगर पढ़ने में आनंद आए , तभी आप याद रख पाओगे। अन्यथा नही। कुछ भी पढ़ो।  लेकिन रोज पढ़ो। अभी तो फ़ोन में भी हम पढ़ सकते हैं। लेकिन हम पढ़ते हैं क्या ?
C- Correct: इस दुनिया में कोई भी इंसान परफेक्ट नहीं है। परफेक्शन एक illusion है जिसके पीछे सफल इंसान हमेशा भागते हैं। कभी perfection मिलता नहीं है। लेकिन तरक्की हमेशा करता है।  हम तभी खुद को ठीक करके बेहतर बन सकते हैं , जब हमारे ज्ञान में बरोहत्तरी हो। 1992 से भारतीय ब्रैंड्स को ग्लोबल कॉमपीटीशन से काफी नए मापदण्डों को स्वीकार करना पड़ा और कॉमपीटीशन में बरक़रार रहने के लिए काफी सारी चीज़ें ठीक करनी पड़ी। 
H : Humility to learn : जिस दिन आप सोचोगे कि आपको सब कुछ आता है , आपका पतन शुरू हो जाता है।  एक इंटरव्यू में हमारे बॉलीवुड के बादशाह ने स्वीकार किया था कि set पर कभी वह नहीं कहते हैं कि उनको सब  कुछ आता है।  प्रोड्यूसर , डायरेक्टर, costar , स्पॉट बॉयज , किसीसे भी वह सीखते हैं ताकि और बेहतर अभिनय कर पाएँ। निरहंकार का इससे उमदा उदाहरण नहीं हो सकता है। सचिन ने 100 टेस्ट मैच के अवसर पर कहा था कि उन्होंने थोड़ा बहुत क्रिकेट खेलना सीखा है। इतने सालों के बाद भी उनको इनिंग्स के शुरुआत में उतना ही टेंशन रहता है , जितना कि अपने पहले टेस्ट पाड़ी खेलते हुए महसूस हुआ था। क्या सीखते  हैं आप इन महान लोगों की ज़िन्दगी से ?
आज का दिन मेरे लिए एक और कारण महत्वपूर्ण है। मेरे जीवन का पहला शिक्षक -मेरी माँ -बारह साल पहले इसी दिन मुझे और मेरे परिवार वालों को छोड़कर चली गई थी। मैं उनके मार्ग दर्शन पर चलने की कोशिश करता हूँ। उन्होंने केवल एक ही मंत्र दिया था -जिस दिन सीखना बंद कर दोगे , ज़िन्दगी से आनंद कम हो जाएगा।
मैं ज़िन्दगी आनंद सहित जीना चाहता हूँ।  और आप ?

रविवार, 7 अगस्त 2016

जुलाई -साल का सातवाँ महीना। भारतीय एक दिवसीय क्रिकेट कप्तान के  जर्सी का नंबर -सात। एक हफ्ते में दिन -सात। हमारी ज़िन्दगी में सात नंबर का एक अलग ही महत्व है। इसी सिलसिले को बरक़रार रखते हुए आज हम उन सात मन्त्रों का ज़िक्र करेंगे जो अधिकतर सफल लोगों में देखा जाता है।

  1. उन्होंने अपने पेशा का चयन सही किया। जिसमे मेहनत करने पर आनंद मिलता है और जिसका सहज प्रतिभा उनमे मौजूद है। काश सचिन के पिता ने उनको अपनी तरह साहित्यिक बनने पर मजबूर नहीं किया। शायद हमने एक कवि या लेखक को खो दिया लेकिन एक कलाकार को ज़रूर अनुभव किया। हर किसी को उन पर और उनके कारनामो पर गर्व है।
  2. अनुशाषण या डिसिप्लिन किसी भी सफल इंसान का एक महत्वपूर्ण लगाम है। डिसिप्लिन होने के लिए कई इच्छाओं को त्याग करना पड़ता है। कठिन परिक्षाओं का सामना करना पड़ता है।  क्या आप तैयार हैं ? किस चीज़ को क़ुर्बान कीजियेगा अपनी सफलता के लिए ? कोई भी गायक सुबह का रिवाज़ और आइसक्रीम से दूर रहने का अनुशाषण के बिना सफल हो सका है कभी ?
  3. मंज़िल का सही निर्णय करना पहला कदम है। सफलता की ओर। अपने मंज़िल को तय करने के लिए अपनी खूबियों और ख़ामियों को समझना ज़रूरी है। मंज़िल के विषय में फोकस होना अति आवश्यक है। मंज़िल तक कैसे पहुचेंगे उससे भी कहीं अधिक आवश्यक है। मुकाम तक पहुँचने का सफर कैसा होगा यह जानना पड़ेगा क्योंकि इसका कोई विकल्प नहीं है। आज के युवा को मंजिल का सपना आसानी से आता है। मंज़िल तक पहुचने के सफर की कठिन मेहनत, लगन और रास्ते की कठिनता का अनुमान अक्सर ज़रुरत से कम होता है। 
  4. हम खुद अपने ज़िन्दगी को कठिन बना देतें हैं। आसान बनाइये।  दोस्तों और परिवार  के साथ ज़िन्दगी का आनंद लीजिये। इसके लिए ज़िन्दगी को सहज अंदाज़ से जीने का कोशिश कीजिये।  इसी में आपका और आपके चाहने वाले का ज़िन्दगी जीने का राज़ छुपा है। इस सफर में आपके रिश्ते जितने आसान होंगे , उतनी सुविधा होगी आपको ज़िन्दगी जीने में। 
  5. अगर हम अपने इर्द गिर्द देखें तो कई चीज़ें नज़र आयेंगी जो कि कुछ समय पहले नामुमकिन समझी जाती थी। अपने हाथ में इस वक़्त जो मोबाइल फ़ोन है , क्या आप सोच भी सकते थे इस आसानी के साथ आप कहीं से भी , कभी भी दूसरों के साथ संपर्क रख सकते हैं ? जिसने इसे अविष्कार किया है अगर वह इंसान इसे नामुमकिन समझता  तब  क्या हमें कभी भी मोबाइल मिलता ? कल जो नामुमकिन था -आज इक खिलौने का दर्ज़ा पा चुका है । क्या आप अपनी चेष्टा के द्वारा किसी नामुमकिन को मुमकिन बनाना चाहते हैं ?इसके लिए पहला कदम है खुद पर और अपनी काविलियत पर विश्वास।
  6. कल गुज़र गया है। आने वाला कल किसीने देखा नहीं है। आज आपका है। क्या किया है  आपने आज , अपने गंत्व्यय के एक कदम नज़दीक पहुँचने के लिए ? हमारा दिमाग बीते हुए समय को कोसता है और आने वाले कल की उम्मीद में खोया रहता। आज का ख्याल कौन रखेगा ? जो आज में वीराजते वही ज़्यादा सफल होतें हैं।  उनके लिए जीत या हार उनको अपने फोकस से हिला नहीं  सकती हैं।
  7. हमारे हाथ में केवल अपने प्रयास पर नियंत्रण है। और किसी पर नही। प्रयास का आनंद उठाना जरूरी है ताकि प्रयास के क़्वालिटी में कोई संदेह ना रहे। इसी में आपका मंगल है। आज भारत का विराट पुरे विष्व में किसी भी क्रिकेट प्रेमी देश के दिलों में एक 'विराट ' जगह बनाने में कामयाब हुआ है। किस वज़ह से ? अपने निरंतर प्रयास ,लगन और अनुशाशन के कारन। इनका कोई विकल्प नहीं है। किसी के लिए। 
बादशाह ने अपने एक फिल्म में अपने अंदाज़ से कहा था "अगर किसी चीज़ को अपने पुरे दिल से चाहो तो सारी कायनात उसे तुम्हे मिलाने की साज़िश में लग जाती हैं। अंत में इंसान के साथ जो भी होता है अच्छे के लिए होता है। अगर वह अच्छा नहीं है , तो वह अंत नहीं है। पिक्चर अभी बाकि है मेरे दोस्त।"
मिलेंगे अगले महीने। अपने देश के 69  स्वाधीनता दिवस के बाद। सत्तर में एक साल बाकी। सात दशक देश की आज़ादी के बाद। फिर सात का आंकड़ा। 'साथ' रहिएगा फेसबुक के माध्यम से।

शुक्रवार, 29 जुलाई 2016

बारिश का मौसम का आनंद ही कुछ और है। इस मौसम की खूबी है ज़्यादा या कम दोनों नापसंद हैं। हर कोई बारिश को अपने अंदाज़ से चाहता है। काम पर जाते वक्त नहीं क्योंकि कपड़े भीग जायेंगे। घर लौटने के बाद ताकि एक गरम प्याला चाय का आनंद लिया जाय। परंतु अक्सर ऐसा नहीं होता है जैसा कि हम चाहते हैं। कुछ अपने कैरियर की तरह। हम लोगों से सलाह लेतें हैं कैरियर के विषय में। कोशिश करते हैं। कुछ लोगों को सफलता भी मिलती है। लेकिन कुछ दिनों के बाद एक प्रश्न उभरता है -क्या मैंने सही निर्णय लिया है ? बस शुरू हो जाता है दिल और दिमाग का द्वन्द -दिल कुछ चाहता है ;दिमाग कुछ और ही बताता है।
पिछले महीने मुझे करीब १००० से ज्यादा युवा और उनके अभिभावकों के साथ कैरियर के विषय में चर्चा करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। मैंने कई बातें बताई जो कि उनको अच्छा लगा और उन्होंने मुझे प्रोत्साहित किया आप लोगों के साथ भी उन बातों का ज़िक्र करूँ इस माध्यम से।
जिसका कैरियर , जीवन उसका - कैरियर का चयन युवा को खुद करना चाहिए। सलाह चाहे किसी से भी ले। ज़िन्दगी उसको जीना है, सलाहकार को नहीं। अभिभावक अपना असम्पूर्ण सपने को अपने बच्चे के माध्यम से परिपूर्ण करने का प्रयास ना करे। ज़िंदगी में कभी भी यह ना बोल सके कि मैंने किया चूँकि आपने कहा था या नहीं किया क्योंकि आपने नहीं करने दिया। मैं सलाम करता हूँ उन माता -पिता को जिन्होंने अपनी बेटिओं को फाइटर पायलट बनने से नहीं रोका क्योंकि कोई महिला इसके पहले फाइटर पायलट नहीं बनी थी।
कैरियर उसे बनाओ जो कि आपकी दिलचस्पी हो -फिर आप कभी काम पर नहीं जाओगे क्योंकि वही आपका पैशन है। 'प्यार करता है जानवरों से , और शादी करने चला है मशीनों से। 'एक हिट फिल्म का यह डायलाग इस बात को सहज तरीके से पेश करता है।
क्या आपको पता है कि आपकी ख़ुशी किस कैरियर में है ?इस प्रश्न का सही जवाब आपके लिए बहुत महत्व्पूर्ण है। यह समय और ज़िन्दगी के सफर के दौरान बदल सकता है। ज़िन्दगी में अग्रसर होने के दौरान इसका समझ जरूरी है। इसी के जरिये आपका चयन सही रहेगा।
कौआ कभी भी हंस की चाल नहीं चल सकता है -आप केवल एक बेहतर आप बन सकते हो। कोई दूसरा नहीं। अगर किसी से आप को प्रेरणा मिलती है तो उनका अनुकरण करो , नक़ल नहीं। अपने प्रतिभा और काबिलियत पर गौर करो और उसी के बल पर अपने कैरियर का निर्धारण करो।
सफलता और प्रसिध्धता में फर्क है -प्रसिद्द होने के लिए आपको अच्छे काम ही करने पड़ेंगे , ऐसी कोई मजबूरी नहीं है। गलत काम करने के वजह से भी कई इंसान प्रसिद्द हुए हैं। आपके परिवार में , समाज में , मित्रों में आप कई लोगों को जानते होंगे जो कि सफल हैं , प्रसिद्द नहीं। कैरियर में सफल होना कहीं अधिक महत्वपूर्ण है। सफलता आपको एक दिन प्रसिद्द भी बना सकती है।
दिल की सुनो , दिमाग से सफर तय करो - अकसर हम अपनी दिल की बात को दबा देतें हैं -खास कर जब हमारा कैरियर का चयन unconventional होता है। दो कारन मैंने देखा है इसके लिए -लोगों का ना प्रोत्साहन करना और इसके कारण मन में असफल होने का डर -fear of failure- किसी भी इंसान का प्रगति के पथ पर सबसे कठिन बाधा। कोई भी अपनी ज़िन्दगी डरते हुए या मरने के डर से नहीं जी सकता है। डरिये मत अपने कैरियर के चयन में। ज़रा सोचिये उस शेफ के बारे में जो कि टीवी पर खाना खज़ाना के माध्यम से लोगों का दिल जीत लिया है। करीब तीस साल पहले जब उन्होंने इस कैरियर का चयन किया उस वक़्त और आज भी हमारे घरों में खाना घर की महिलाएं ही बनाती हैं।
हमारा competition हम खुद हैं -अपने दिमाग में हम निर्णय कर लेते हैं क्या संभव है और क्या असंभव। अकसर बिना कोशिश किए हुए। और यहीं हम हार जातें हैं , अपने आप से। हमारा एक कम्फर्ट जोन होता है। उसके बाहर निकलना जरूरी है ,खुद के औकात को परखने के लिए। वही फ़ैल करने का डर हमारे दिमाग का सबसे कठिन बाधा है।
निडरता के साथ ज़िन्दगी का आनंद लीजिए। आज का मज़ा लीजिए। कल किसीने नहीं देखा है। बारिश में भींगने में मज़ा आता है तो जी भर कर भीगें ,जुकाम होने की चिंता में बारिश को ना गवां दीजिये।
अगले महीने सफल वयक्तिओं के जीवन से मिली सात मन्त्रों का ज़िक्र करूँगा कैरियर के संधर्व में।  तब तक खुश रहिए और मानसून के रोमांस का आनंद लीजिए। 

शुक्रवार, 3 जून 2016

नमस्कार। पिछले महीनें में आपने टेलीविज़न पर कई सारे अवार्ड्स का आनंद उठाया होगा। 2015 हिंदी फिल्मों के लिए एक बहुत ही सफल साल रहा। कई तरह के फिल्मों को दर्शको ने पसंद किया और प्रोत्साहित किया। फिल्म कम्युनिकेशन का एक अनोखा मिसाल है। मैंने पिछले महीने आँखों से सुनने का ज़िक्र किया था। फिल्में इस 'आँखों से सुनने 'का एक माध्यम है। ज़रा सोचिये -हम फिल्मों में परदे पर वही देखते हैं जो फिल्म का डायरेक्टर दर्शकों को कैमरा के ज़रिये दिखाता है। कैमरा का एंगल , वस्तु या इंसान से उसकी दुरी या नज़दीकी दर्शकों के लिए अलग -अलग भावनाओं का कारण बन जाता है। इसके साथ अभिनेता या अभिनेत्री का चेहरा और बोलने का अंदाज़ दर्शकों का सम्पूर्ण मनोरंजन करता है।
बॉलीवुड के सहनशाह का उनकी बेटी के साथ अपने कब्ज़ को लेकर चिंता और वार्तालाप ने एक बहुत ही सेंसिटिव टॉपिक को बखूबी दर्शाया है। उनका कम्युनिकेशन का अंदाज़ इस फिल्म में उनके किसी और फिल्म से काफी हटके है। यही एडजस्टमेंट, उनके कम्युनिकेशन में, उनको तरह -तरह के रोल में मदत करता है।
2015 , परंतु एक 'मुन्नी 'का है। भाईजान के कंधे पर सवार होकर उन्होंने सब का दिल जीत लिया है। मुन्नी फिल्म के चरित्र में बोल नहीं सकती है। आपने अगर फिल्म देखी होगी (अगर नहीं देखा है तो ज़रूर देखिये ) तो आपने भाईजान के फ़्रस्ट्रेशन को ज़रूर महसूस किया होगा जब वो फिल्म के शुरू में मुन्नी से बात कर रहें हैं लेकिन वह यह नहीं समझ पा रहे थे कि मुन्नी उनका बात समझ पा रही है या नही। कम्युनिकेशन में सुनने वाले का फीडबैक कम्युनिकेशन को सम्पूर्ण करता है। जैसा मैंने पिछले महीने ज़िक्र किया था -लोग अपनी आँखों से और अपने चेहरे से यह फीडबैक देते हैं। इसलिए कम्युनिकेशन के वक़्त दुसरो के आँखों में देखना -जिसे हम eye contact कहते हैं -एकदम ज़रूरी है। अक्सर हम किसी को अप्रिय बात बताते वक़्त उनकी आँखों से अपना नज़र हटा लेते हैं।  यह गलत है। कम्युनिकेशन का प्रभाव कम हो जाता है।
फिल्म में एक समय के बाद मुन्नी कम्यूनिकेट करना शुरू कर देती है। कैसे ? अपने इशारो से और अपने चेहरे के माध्यम से। उन्होंने  कितनी बखूबी से कई भावनाओं को दर्शाया है। बिना एक शब्द बोल कर। मैं इस फिल्म के निर्देशक को सलाम करता हूँ उनकी समझ पर।  कम्युनिकेशन की बारीकियों का और उनके प्रयोग का। उन्होंने मुन्नी के ज़रिये कम्युनिकेशन में response के महत्व को पेश किया है। रेस्पोंस सफल कम्युनिकेशन के लिए अत्यंत ज़रूरी है। इसके बिना आप सफल नहीं हो सकते हैं। समझाता हूँ। विस्तार में।
कभी आपने दोस्तों के बीच बातचीत के दौरान यह सुना है -"अच्छा तू बोल ले ,फिर मैं react करता हूँ "? जब विचार नहीं मिलते हैं और किसी विषय पर उत्तेजक चर्चा होती है ,तब हम रिएक्ट करते हैं ,रेस्पोंड नहीं। और इसी कारण कभी -कभी रिश्तों में तनाव पैदा हो जाता है। और रिश्ते से क्या बनता है ? आपका ब्रैंड !
response और react में फर्क क्या है ? फर्क आपके अंदर के भावनाओं का है। जो कि बोलते वक़्त आपके कम्युनिकेशन के प्रभाव का 93 प्रतिशत  है। याद है ना ५५-३८-७ का फार्मूला। जो पहली बार मुझसे मिल रहे हैं उनके लिए यह बताना चाहूंगा कि कम्युनिकेशन का प्रभाव ५५%निर्भर करता है कम्यूनिकेटर के बॉडी लैंगुएज पर ; ३८% बोलने के अंदाज़ या टोन पर और शब्दों का असर केवल ७ % है।
जब कोई रिएक्ट करता है तो उनमे एक नेगेटिव फीलिंग होती है जिसके कारण उनका बॉडी लैंगुएज और टोन बिगड़ जाता है और कम्युनिकेशन receive करने वाले को बुरा लगता है। रेस्पोंस में यह नेगेटिव फीलिंग्स नहीं रहता है जो कि कम्युनिकेशन को प्रोत्साहित करता है और आगे बढ़ाने में मदत करता है। आप रेस्पोंड करना चाहते हैं तो इन चीजों का ख्याल अवश्य रखें।
पहली बात -सुनिए -एक्टिव लिसनिंग (जिसके विषय में मैंने पिछले महीने चर्चा की थी )के ज़रिये।
दूसरी बात -समझिए -बोलने वाला क्या बोलना चाहता है। क्या आप वह सुन पा रहे हो जो वह नहीं बोल रहा है ? इसके लिए बोलने वाले का बॉडी  लैंगुएज और बोलने के टोन पर गौर करना पड़ेगा।
तीसरी बात -अगर ज़रुरत हो  तो प्रश्न पूछिए ताकि आपकी समझ में कोई गलती ना हो। अक्सर बोलने वाला कुछ बोलना चाहता है और समझने वाला कुछ और समझता है। और इसी कारन रेस्पोंड के वजाय रिएक्ट कर जाता है।
चौथी बात -भावनाओं को समझिए। बोलने वाले का। किस परिस्थिति या संधर्व में बातचीत हो रही है इसका ख्याल रखना बहुत महत्वपूर्ण है।
पांचवी और अंतिम बात -अपने भावनाओं को वश में रख कर ; सही शब्दों का चयन के साथ (याद है दो महीने पहले मैंने इसकी चर्चा की थी ) आपको रेस्पोंड करना पड़ेगा। अगर आप उनकी भावनाओं की समझ को अपने कम्युनिकेशन में प्रदर्शित कर सको तो आप एक अव्वल दर्जे का कम्यूनिकेटर बन सकते हो।
ज़िन्दगी में रिश्तों को , और उसके माध्यम से ,अपने ब्रैंड को आगे बढ़ाने के लिए रेस्पोंस का कोई विकल्प नहीं है। जो पाठक मेरे साथ पहली बार मिल रहें हैं , और मेरे ज़िक्रे किये हुए कुछ पिछले लेख को पढ़ना चाहते हैं उनके लिए मैं सूचित करना चाहता हूँ की आप पिछले कई महीनों के inextlive के प्रथम सोमवार का संस्करण  में आपको doc -u -mantra मिल सकता है।
आपके 'रेस्पोंस 'के इंतज़ार में रहूंगा। रिएक्ट मत कीजिये। ज़िंदगी से और आनंद उठाइये। रिश्ते बनाकर ;सवँरकर और ब्रैंड को आगे बढ़ा कर। फिर मिलेंगे।  अगले महीने पहले सोमवार को। खुश रहिये। 

रविवार, 10 अप्रैल 2016

मेरे ज़िंदगी में दो बॉस हैं।  एक अपनी बीवी जो कि घर में बॉस है और एक दूसरे की बीवी, मेरे ऑफिस की सीनियर कोलीग , नीना , जो कि ऑफिस में मेरा  बॉस है। मेरे दोनो बॉस मेरी गलतियाँ ढूढ़ने में माहिर हैं। कुछ दिन पहले मैं सुबह ऑफिस पहुँचने पर नीना ने मुझे किसी इ मेल के विषय में अवगत कराया।  मुझे याद नहीं कि मैंने क्या बोला या नही बोला । अचानक मुझे महसूस हुआ कि नीना शायद किसी कारण उदास या नाराज़ है। पूछने पर मुझे अपनी गलती का अहसास हुआ। मैंने  सुबह में उनकी बात को ठीक से नहीं सुना था। जिसके कारण वह मेरे रेस्पोंस से खुश नही थी।
इस घटना का ज़िक्र मैंने कम्युनिकेशन के सबसे महत्वपूर्ण स्किल के उदाहरण स्वरुप किया -'listening' स्किल। आपको अगर अपने कम्युनिकेशन के ज़रिये अपना ब्रैंड को आगे बढ़ाना है तो आपको अपना लिसनिंग स्किल को विकसित करना पड़ेगा। जो वयक्ति बेहतर सुनता है वह सदा  बोलने वाले से बेहतर कम्यूनिकेटर होता है। ऊपर वाले ने हर इंसान को एक ज़ुबान और दो कान दिया है। इफेक्टिव कम्यूनिकेटर बनने के लिए जितना बोलो उसका दुगना सुनो। यही सफलता का गोलडेन नियम या रूल है।
अंग्रेजी भाषा में दो शब्दों का एक ही हिंदी अनुवाद है -सुनना। ये दो अंग्रेजी शब्द हैं -hearing और listening . फिर हम hearing स्किल की बात क्यों नहीं कर रहे हैं ? listening स्किल की बात क्यों कर रहे हैं ? क्योंकि hearing और listening में सुनते वक्त अपने दिमाग के 'ना प्रयोग' और 'प्रयोग' करने का फ़र्क है। मैंने शुरुआत में जिस घटना का ज़िक्र किया उसमें मैंने hearing किया था , लिसनिंग नहीं। क्योंकि नीना को यह महसूस हुआ कि मैंने उसकी बात ध्यान के साथ नहीं सुना। यही तात्पर्य वाली बात है -जब भी आप listen करोगे आप के साथ कम्यूनिकेट करने वाला आपका listening महसूस करेगा।
ना कुछ बोलने से ही लिसनिंग नहीं होता है। आपने अकसर लोगों को यह कहते हुए सुना होगा -एक कान से सुनना और दूसरे से निकाल देना ! hearing हम अपने कानों से करते हैं। listening- कान ,आँख ,चेहरा ,ज़ुबान और सबसे महत्वपूर्ण, अपने दिमाग से करते हैं।
विस्तार में बात करते हैं। listening का सर्वश्रेष्ठ तकनीक active listening के नाम से जाना जाता है। इसका मतलब यह है कि बोलने वाले को यह समझ में आता है कि सुनने वाला उसको ध्यान से सुन रहा है। आप कैसे अपना active listening स्किल को विकसित करोगे ?

  1. आँखों से सुनो , केवल कानों से नहीं। जो बोल रहा है , सुनते वक़्त उसके साथ eye contact बरकरार रखो। उनके चेहरे पर ध्यान दो। उनके चेहरे पर नज़र रखो। चेहरा शब्दों से ज़्यादा बोलता है। आपको याद होगा -शब्दों का प्रभाव केवल ७ % है। body language का ५५ %. 
  2. बोलने वाला क्या बोल रहा है , महत्वपूर्ण है।  कैसे बोल रहा है , उससे कहीं अधिक महत्वपूर्ण है। आपको याद होगा बोलने का अंदाज़ पर ३८ % प्रभाव निर्भर करता है। ध्यान से सुनो। 
  3. दिमाग को alert रखो। जैसे वक्ता बोल रहा है ,दिमाग के ज़रिये उनकी बातों को सुनो। समझने का कोशिश करो। बोलने वाले के  भावनाओं को अनुभव करो। 
  4. अपने चेहरे के माध्यम से बोलने वालो को समझाओ कि आप उनके बोलने के साथ हो। अपने सर का हलके से हिलाना यह समझाता है कि आप उनकी बात समझ रहे हो। बोलने वाले के बातों को सुन कर आपकी प्रसन्नता, उदासी अथवा नाराज़गी आपके चेहरे के ज़रिये बोलने वाले को समझाइये। इफेक्टिव कम्यूनिकेटर आपके चेहरे के active listening के ज़रिये आपके दिल की बात को सुन और समझ पाएगा। 
  5. अकसर सुनते वक़्त हम बोलने वाले को प्रोत्साहित करते हैं कुछ छोटे छोटे शब्दों के ज़रिये या कुछ आवाज़ के माध्यम से। 'हूँ ','अच्छा ','और ','फिर '-इस तरह के कुछ शब्द और आवाज़ हैँ। इनके कारण बोलने वाला प्रोत्साहित होता है क्योंकि आप उनको यह बता रहे हो कि आप  उनकी बातों को सुन रहे हो।Listening के माध्यम से आप बोलने वाले का सम्मान करते हो। उनके महत्व को समझाते हो। उनको एक फीडबैक देते हो जो कि किसी भी इफेक्टिव कम्युनिकेशन के लिए आवश्यक है। बिना फीडबैक के कारण बोलने वाले को यह नहीं पता चलता है कि सुनने वाला सुन रहा है या नहीं। आप खुद कम्यूनिकेट करते वक़्त सुनने वाले से फीडबैक चाहते हो या नहीं ? कम्यूनिकेट करते वक़्त सुनो ज़्यादा। बोलो कम। तब ही बोलो जब ज़रूरत हो। उतना ही बोलो , जितना की पर्याप्त हो। यही इफेक्टिव कम्युनिकेशन का मूल तकनीक है। कभी आपने सोचा है कि आप बोलते वक़्त वही बोल सकते हो , जो कि आप जानते हो। सुनोगे ध्यान के साथ तो शायद कुछ सीख सकते हो जो कि आप नही जानते हो। जो बोल रहा है ,वह जानता है। listening में ही फायदा है। एक नहीं अनेक। मैं आपसे सुनने का इंतज़ार करूँगा। फेसबुक के माध्यम से। आप मेरे साथ twitter के ज़रिये भी वार्तालाप कर सकते हैं। मैं एक 'active ' listener हूँ। इंतज़ार करूँगा।   

बुधवार, 9 मार्च 2016

"बड़े बड़े देशों में छोटी छोटी बातें होती रहती हैं। "कभी कभी कुछ जीतने के लिए कुछ हारना पड़ता है और कुछ हार कर जीतने वाले को बाज़ीगर कहते हैं। "हम शरीफ क्या हुए पूरी दुनिया ही बदमाश बन गयी। "
हमारे बॉलीवुड के बादशाह ने इन डायलॉग्स को अमर बना दिया। शब्दों का चयन और उनके बोलने के अंदाज़ ने इन डायलॉग्स को इतना स्मरणीय बनाया। कोई भारी भरकम शब्दों का प्रयोग नहीं है किसी भी डायलाग  में। सुनने वालों को उनकी बातों को समझने में कोई असुविधा नहीं होंगी। तीन 'V' का कमाल है -Verbal , Vocal और Visual
किसी भी कम्युनिकेशन का इम्पैक्ट इन तीन 'V ' पर निर्भर करता है। इन पर थोड़ा चर्चा करते हैं।
Verbal - यह है शब्दों का चयन और प्रयोग। आपके चुने हुए शब्द सुनने वालों को दुःख या ठेस पहुंचाता है या सुकून ? एक उदाहरण लीजिये। अगर कोई आपको झूठ बोल रहा है और आपको उसको यह बताना चाहते हो  तो आप दो तरह से बोल सकते हो। एक -"आप झूठ बोल रहे हो। " दो -"आप सच नहीं बोल रहे हो। "एक ही सन्देश है , सुनने का प्रभाव अलग होगा।
प्रभाव शब्द से एक प्रश्न दिमाग में आया है। क्या आप यह बता सकते हैं की कम्युनिकेशन ग्रहण करने वाले पर शब्दों का प्रभाव या इम्पैक्ट कितना प्रतिशत होता है ? शत प्रतिशत? पचास प्रतिशत? या उससे ज़्यादा या कम ? सही जवाब सुन कर आप अचम्भित हो जायेंगे। ....... केवल ७ प्रतिशत !जी हाँ , आपने सही पढ़ा है। केवल सात प्रतिशत। जब हम किसीको हाथ के इशारे से अपने पास बुलाते हैं और वह व्यक्ति हमारे पास आ जाता है तो शब्दों का तो प्रयोग ही नहीं होता है !
इसी हाथ हिलाकर पुकारने के ऊपर और थोड़ा गौर फरमाये। आपने ख्याल किया होगा कि आप अपना हाथ उतने ज़ोर से हिलाते हैं जितना जल्दी आप उनको आपके पास आने का सन्देश पहुँचाना चाहते हैं। वह वयक्ति आपके हाथ के इशारे पर जल्दी या समय लेकर आपके पास पहुँचता है। आपका कम्युनिकेशन केवल Visual माध्यम से है।
Visual अर्थात जो दिखता है। कितना प्रतिशत है इसका प्रभाव? ५५  प्रतिशत। सबसे अधिक। इसके अंतर्गत काफी चीजें आती हैं। सहज भाषा में आपका वेशभूषा; खड़े होने का या बैठने का अंदाज; चेहरे पर जो दिखता है आपके कम्युनिकेशन का  ५५  % इम्पैक्ट बनाता है। शोले में आपको वह दृश्य याद है? जय भैंस पर सवार होकर मस्ती करते हुए अचानक राधा को उसकी ओर देखते हुए देख लेता है। राधा मुस्कुराती है और जय लज्जा के कारन भैंस से तुरंत उतर जाता है। अपने चेहरे के जरिये जय जिस तरह अपनी चाहत का ज़िक्र करता है वह visual कम्युनिकेशन का एक बेहतरीन मिसाल है। आप चाहो तो अपने याददाश्त को ताज़ा करने के लिए एक बार you tube में फिर इस सीन को देख सकते हो। ज़रूर देखिये। बहुत कुछ सीखिएगा।
अपने बाहों को फैलाकर हमारे बादशाह एक निमंत्रण सा करते हैं उनमे समां जाने के लिए। इसी visual कम्युनिकेशन  के ज़रिये उन्होंने कितने के दिलों में अपना स्थान बना लिया है। ८ से ८० तक के उम्र का। यह बाहें फैलाना उनका एक सिग्नेचर बन गया है।
हम वापस चले जाते हैं इस लेख के शुरू के डायलॉग पर। अनुरोध करूँगा एक बार फिर देख लीजिये। राहुल, विकी और  काली को देखिये और सुनिए। उनके बोलने के अंदाज़ पर गौर कीजिये। यही अंदाज़ कम्युनिकेशन का vocal अंश है जिस पर कम्युनिकेशन का ३८ %इम्पैक्ट है।
किसी गलती के लिए माफी माँगते वक़्त आप किस अंदाज़ में सॉरी बोलते हैं आपके प्रायश्चित के गहराई को प्रदर्शित करता है। इस संदर्भ में मै एक बहुत आवश्यक तथ्य का ज़िक्र करना चाहता हूँ। मैंने यह देखा है कि कुछ लोग अपने कम्युनिकेशन का अंदाज़  किससे कम्यूनिकेट कर रहें हैं ,उसके ऊपर निर्धारित करते हैं। यह ठीक नहीं है। बच्चा ,बूढ़ा ,अमीर ,गरीब ,मर्द ,औरत ,मालिक ,नौकर -आप किसके साथ बात कर रहें हैं उस पर आप तय नहीं कर सकते हैं कि आपके बोलने का अंदाज़ क्या होगा।
हर इंसान चाहता है कि उसके साथ लोग इज्जत के साथ पेश आएं। इज्जत के साथ कम्यूनिकेट कीजिये; लोग आपके साथ इज्जत से पेश आएंगे। 'इज्जत पाने के लिए ,इज्जत करना पड़ेगा ' शायद भविष्य में किसी फिल्म में आप बादशाह से सुनिएगा। इंतज़ार मत कीजिये, तब तक। शुरू कर दीजिये कम्युनिकेशन का ५५ -३८ -७ का फॉर्मूला। फिर देखिये आपका ब्रैंड कैसे तेजी से रिश्ता बनाता जाता है। याद है ना -ब्रैंड का परिभाषा ?रिश्ता , चॉइस का।
आनंद लीजिये अपने कम्युनिकेशन के क्षमता का। मुझे जरूर लिखिएगा आपके कम्युनिकेशन के सफलता के विषय में। मुझे बेहद ख़ुशी होगी। इंतज़ार करूँगा।

बुधवार, 2 मार्च 2016

"मेरे पास बिल्डिंगें हैं ,मकानें  हैं  ,गाड़ियाँ हैं ,तुम्हारे पास क्या है ?"कुछ क्षणों के बाद इस प्रश्न का उत्तर मिलता है। "मेरे पास माँ है। "
१९७५ साल में बनी दीवार फिल्म ने कम्युनिकेशन को एक नया दर्ज़ा दिया। सलीम -जावेद के लाजबाब डायलाग को ऐतिहासिक बनाने का श्रेय बॉलीवुड के सहनशाह के अभिनय क्षमता और कम्युनिकेशन स्किल्स , दोनों को प्राप्त है। अपने 'सहनशाह 'के ब्रैंडिंग तक पहुँचने में उनके कम्युनिकेशन का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। आज और अगले कुछ मुलाकातों  में, मैं आपके साथ कम्युनिकेशन और उसका आपके अपने ब्रैंडिंग पर प्रभाव के बारे में चर्चा करूँगा । जैसा कि मैंने आपको पहले वादा किया था।
पिछले हफ्ते सहनशाह ने एक इंटरव्यू में आनंद फिल्म के शूटिंग के दरमयान डायरेक्टर हृषीकेश मुखेर्जी के एक सलाह का ज़िक्र किया है। कम्युनिकेशन में ठहराव का महत्व। 'मेरे पास माँ है ' के पहले कुछ क्षणों की ख़ामोशी के बिना कम्युनिकेशन का इम्पैक्ट नहीं बनता। ना कुछ बोलना कभी -कभी बहुत कुछ बोलने से भी ज़्यादा प्रभावशाली हो सकता है। अपने ब्रैंड को आगे बढ़ाने के लिए अपने कम्युनिकेशन में ठहराव को स्थान दीजिये और उसका प्रभावशाली उपयोग  कीजिये।
कम्युनिकेशन आखिर है क्या ? आज शुरू से हम कम्युनिकेशन , जो कि एक अंग्रेजी शब्द है , उसका प्रयोग क्यों कर रहें हैं ? हम उसकी जगह 'बातचीत' शब्द का इस्तेमाल क्यों नहीं कर रहें हैं ? क्यूँकि सिर्फ बातें करना कम्युनिकेशन नहीं है।
कम्युनिकेशन को आप अच्छा या ख़राब नहीं बोल सकते हैं। कम्युनिकेशन या तो  'इफेक्टिव' है अथवा नहीं। कम्युनिकेशन तभी सार्थक या सफल होता है जब जिसके उद्देष्य से कम्युनिकेशन किया गया है ,वह इंसान या जानवर उसे उसी तरह से समझे जो कि कम्यूनिकेट करने वाले का मकसद है। घर में लोग पालतू कुत्ते को बुलाने के लिए अपने मुँह से कुछ आवाज़ करते  हैं  और कुत्ता अपना दुम हिलाता हुआ चला आता है। इस उदाहरण से यह प्रमाणित होता है कि कम्यूनिकेट करने के लिए आपको उस भाषा का साथ लेना पड़ेगा जो कि वह समझ सकता है जिसके साथ आप कम्यूनिकेट करना चाहते हैं।
भाषा के विषय में चर्चा करते हुए मुझे एक अनुभव  का ज़िक्र करना ज़रूरी है। एक अरबपति व्यापसायी ने मुझे एक बार उनकी कम्युनिकेशन को बेहतर बनाने में मदत करने के लिए बुलाया था। उनकी समस्या थी कि उन्होंने कभी ज़िंदगी में अंग्रेजी नहीं सीखी थी। जिसके कारण वाणिज्यिक सभा में उन्हें भाषण देने में हिचकिचाहट होती थी। मैंने उन्हें केवल यही समझाया कि सभा में लोग उनको उनकी व्यापसायिक सफलता के विषय में सुनने के लिए एकत्रित होते थे ना कि उनके भाषा के ज्ञान को सुनने के लिए। मैंने उन्हें हिंदी में भाषण देने में प्रोत्साहित किया। उसके अलावा मैंने उन्हें 'बोलने 'और 'कम्यूनिकेट 'करने के बीच क्या फर्क है समझाया। आज उनको एक प्रतिष्ठित वक्ता के हैसियत से लोग उनका सम्मान करते हैं। उनका अपना एक ब्रैंड बन गया है।
हमने इस उदाहरण से क्या सीखा है ? पहली बात आप अपना भाषण उस भाषा में रखो जिसमे आप सक्षम हो। दूसरी बात सरल शब्दों का प्रयोग करो। तीसरी बात अपने बोलने के रफ़्तार पर ध्यान रखो। इतना तेज़ मत बोलो कि आपके श्रोता को आपके साथ रहने में असुविधा हो या इतने धीरे मत बोलो कि आपको सुनने वालों को नींद आ जाये !चौथी बात सही भावनाओँ के साथ बोलो। नहीं तो लोग आपके साथ नहीं रहेंगे। और सबसे महत्वपूर्ण है कि आप उतना ही बोलो जितना ज़रूरत है। आपके भाषण के लिए निर्धारित समय में अपना व्यक्तव्य ख़तम करना एक अच्छे भाषण दाता का परिचय है।
कम्युनिकेशन का मूल मंत्र है कि आप जो बोल रहे हो ,वह महत्वपूर्ण है ;उससे कहीं अधिक महत्वपूर्ण है आप उसे किस तरह या अंदाज़ से बोल रहे हो !
'कितने आदमी थे ?'- बोलने के अंदाज़ ने हमें गब्बर का चरित्र से मोहित किया। इसके आगे मैं क्या मिसाल दूँ आपको सचेतन करने के लिए ?
अपने बोलने के अंदाज़ पर गौर कीजिये। बोलते वक़्त भावनाओं का ख्याल रखिये। यह आपके ब्रैंड को आगे बढ़ाने के लिए आवश्यक कदम है। अगर गब्बर अपना ब्रैंड बनाने में सफल हो सका है ;आप कैसे सफल नहीं होगे?गब्बर तो विलेन था , आप तो हीरो हो !
खुश रहिये। अगले महीने फिर मुलाकात होगी आपके साथ  कम्यूनिकेट करने के लिए।
कैसा लगा ?मेरे साथ फेसबुक पर ज़रूर कम्यूनिकेट कीजिये। इंतज़ार करूंगा।