रविवार, 10 अप्रैल 2016

मेरे ज़िंदगी में दो बॉस हैं।  एक अपनी बीवी जो कि घर में बॉस है और एक दूसरे की बीवी, मेरे ऑफिस की सीनियर कोलीग , नीना , जो कि ऑफिस में मेरा  बॉस है। मेरे दोनो बॉस मेरी गलतियाँ ढूढ़ने में माहिर हैं। कुछ दिन पहले मैं सुबह ऑफिस पहुँचने पर नीना ने मुझे किसी इ मेल के विषय में अवगत कराया।  मुझे याद नहीं कि मैंने क्या बोला या नही बोला । अचानक मुझे महसूस हुआ कि नीना शायद किसी कारण उदास या नाराज़ है। पूछने पर मुझे अपनी गलती का अहसास हुआ। मैंने  सुबह में उनकी बात को ठीक से नहीं सुना था। जिसके कारण वह मेरे रेस्पोंस से खुश नही थी।
इस घटना का ज़िक्र मैंने कम्युनिकेशन के सबसे महत्वपूर्ण स्किल के उदाहरण स्वरुप किया -'listening' स्किल। आपको अगर अपने कम्युनिकेशन के ज़रिये अपना ब्रैंड को आगे बढ़ाना है तो आपको अपना लिसनिंग स्किल को विकसित करना पड़ेगा। जो वयक्ति बेहतर सुनता है वह सदा  बोलने वाले से बेहतर कम्यूनिकेटर होता है। ऊपर वाले ने हर इंसान को एक ज़ुबान और दो कान दिया है। इफेक्टिव कम्यूनिकेटर बनने के लिए जितना बोलो उसका दुगना सुनो। यही सफलता का गोलडेन नियम या रूल है।
अंग्रेजी भाषा में दो शब्दों का एक ही हिंदी अनुवाद है -सुनना। ये दो अंग्रेजी शब्द हैं -hearing और listening . फिर हम hearing स्किल की बात क्यों नहीं कर रहे हैं ? listening स्किल की बात क्यों कर रहे हैं ? क्योंकि hearing और listening में सुनते वक्त अपने दिमाग के 'ना प्रयोग' और 'प्रयोग' करने का फ़र्क है। मैंने शुरुआत में जिस घटना का ज़िक्र किया उसमें मैंने hearing किया था , लिसनिंग नहीं। क्योंकि नीना को यह महसूस हुआ कि मैंने उसकी बात ध्यान के साथ नहीं सुना। यही तात्पर्य वाली बात है -जब भी आप listen करोगे आप के साथ कम्यूनिकेट करने वाला आपका listening महसूस करेगा।
ना कुछ बोलने से ही लिसनिंग नहीं होता है। आपने अकसर लोगों को यह कहते हुए सुना होगा -एक कान से सुनना और दूसरे से निकाल देना ! hearing हम अपने कानों से करते हैं। listening- कान ,आँख ,चेहरा ,ज़ुबान और सबसे महत्वपूर्ण, अपने दिमाग से करते हैं।
विस्तार में बात करते हैं। listening का सर्वश्रेष्ठ तकनीक active listening के नाम से जाना जाता है। इसका मतलब यह है कि बोलने वाले को यह समझ में आता है कि सुनने वाला उसको ध्यान से सुन रहा है। आप कैसे अपना active listening स्किल को विकसित करोगे ?

  1. आँखों से सुनो , केवल कानों से नहीं। जो बोल रहा है , सुनते वक़्त उसके साथ eye contact बरकरार रखो। उनके चेहरे पर ध्यान दो। उनके चेहरे पर नज़र रखो। चेहरा शब्दों से ज़्यादा बोलता है। आपको याद होगा -शब्दों का प्रभाव केवल ७ % है। body language का ५५ %. 
  2. बोलने वाला क्या बोल रहा है , महत्वपूर्ण है।  कैसे बोल रहा है , उससे कहीं अधिक महत्वपूर्ण है। आपको याद होगा बोलने का अंदाज़ पर ३८ % प्रभाव निर्भर करता है। ध्यान से सुनो। 
  3. दिमाग को alert रखो। जैसे वक्ता बोल रहा है ,दिमाग के ज़रिये उनकी बातों को सुनो। समझने का कोशिश करो। बोलने वाले के  भावनाओं को अनुभव करो। 
  4. अपने चेहरे के माध्यम से बोलने वालो को समझाओ कि आप उनके बोलने के साथ हो। अपने सर का हलके से हिलाना यह समझाता है कि आप उनकी बात समझ रहे हो। बोलने वाले के बातों को सुन कर आपकी प्रसन्नता, उदासी अथवा नाराज़गी आपके चेहरे के ज़रिये बोलने वाले को समझाइये। इफेक्टिव कम्यूनिकेटर आपके चेहरे के active listening के ज़रिये आपके दिल की बात को सुन और समझ पाएगा। 
  5. अकसर सुनते वक़्त हम बोलने वाले को प्रोत्साहित करते हैं कुछ छोटे छोटे शब्दों के ज़रिये या कुछ आवाज़ के माध्यम से। 'हूँ ','अच्छा ','और ','फिर '-इस तरह के कुछ शब्द और आवाज़ हैँ। इनके कारण बोलने वाला प्रोत्साहित होता है क्योंकि आप उनको यह बता रहे हो कि आप  उनकी बातों को सुन रहे हो।Listening के माध्यम से आप बोलने वाले का सम्मान करते हो। उनके महत्व को समझाते हो। उनको एक फीडबैक देते हो जो कि किसी भी इफेक्टिव कम्युनिकेशन के लिए आवश्यक है। बिना फीडबैक के कारण बोलने वाले को यह नहीं पता चलता है कि सुनने वाला सुन रहा है या नहीं। आप खुद कम्यूनिकेट करते वक़्त सुनने वाले से फीडबैक चाहते हो या नहीं ? कम्यूनिकेट करते वक़्त सुनो ज़्यादा। बोलो कम। तब ही बोलो जब ज़रूरत हो। उतना ही बोलो , जितना की पर्याप्त हो। यही इफेक्टिव कम्युनिकेशन का मूल तकनीक है। कभी आपने सोचा है कि आप बोलते वक़्त वही बोल सकते हो , जो कि आप जानते हो। सुनोगे ध्यान के साथ तो शायद कुछ सीख सकते हो जो कि आप नही जानते हो। जो बोल रहा है ,वह जानता है। listening में ही फायदा है। एक नहीं अनेक। मैं आपसे सुनने का इंतज़ार करूँगा। फेसबुक के माध्यम से। आप मेरे साथ twitter के ज़रिये भी वार्तालाप कर सकते हैं। मैं एक 'active ' listener हूँ। इंतज़ार करूँगा।