शुक्रवार, 30 नवंबर 2018

नमस्कार। साल का बेहतरीन मौसम आ गया है। साल का आखरी महीना भी। पालक झपकने के पहले ही हर कोई अपने २०१९ के जन्मदिन की और कदम बढ़ा रहा है।
इसी जन्मदिन के सिलसिले में एक बात याद आ गया। तीन -चार दिन पहले फेसबुक में एक मित्र ने एक वीडियो पोस्ट किया -एक छोटा सा बच्चा अपना पहला कदम ले रहा है और परिवार वाले उसको प्रोत्साहित कर रहे हैं तालियां बजा कर। बच्चे को दो हातों से पकड़ कर कोई उसके पहले कदम को लेने में मदत कर रहा है। परिवार वाले उस बच्चे से दौड़ने की उम्मीद क्यों नहीं रखते हैं ?क्योंकि जब तक शिशु चलना नहीं सीख लेता है ;दौड़ना संभव नहीं है।
हम कभी अपने ज़िन्दगी को छोटी -छोटी मंजिल में विभाजित ना करने की गलती कर बैठते हैं। हम बहुत आगे की सोच कर अपना प्रयास करते हैं। और कभी -कभी असफल हो जाने के बाद अपना हौसला खो बैठते हैं। यह हम गलत करते हैं। माउंट एवेरेस्ट के चोटी पर पहुँचने के लिए पहले बेस कैंप तक पहुँचना पहली सफलता है। शुरू के क़दमों को इस बेस कैंप को गंतव्य बना कर चलना होगा। एवरेस्ट के चोटी को ध्यान में रखना होगा ,परन्तु कदम बेस कैंप तक पहुँचने के ईरादे से लेना पड़ेगा। बेस कैंप पहुँच कर खुद को मन ही मन प्रोत्साहित करना जरूरी है। और एनर्जी एवं हौसला बढ़ाने के लिए। अक्सर हम खुद को ऐसे छोटे विजय हासिल करने पर शाबाशी नहीं देते हैं। हमने लोगों को यह कहते हुए सुना है कि अभी मंजिल बहुत दूर है। सही बात है। परन्तु पहले पड़ाव का महत्वा अंतिम पड़ाव और गंतव्य से किसी भी मायने में कम नहीं है।
कहा जाता है कि शेर जब सोच समझ कर दो कदम पीछे हटता है ;वह और लंबी छलांग लेने की तैयारी कर रहा है। शेर क्यों ऐसा करता है ? अपने आप को तैयार करने के लिए। उस वक़्त शेर केवल अपने छलांग पर फोकस करता है। और किसी विषय पर नहीं। हमें भी ज़िन्दगी में ,शेर की तरह ,लंबी छलांग लगाने के लिए जान बुझ कर दो कदम पीछे हटना पड़ेगा। परंतु कभी -कभी हमारा अहंकार हमारे इस प्रस्तुति करने में बाधा बन जाता है।
हमारी सफलता का नीव हमारे दिमाग में है। और इस के लिए छोटी -छोटी सफलता जरूरी है। हम मंजिल तक पहले अपने दिमाग में पहुँचते हैं और फिर मंजिल की ओर कदम बढ़ाते हैं।
ज़िन्दगी के सफर में उतार -चढ़ाव एक ही सिक्के के दो पहलु हैं। जब हमें किसी कारन सफलता नहीं मिलती है जहाँ की हमें उसके सफलता मिल चुकी है ;हम विचलित हो जाते हैं और असफलता की वजह से मेहनत बढ़ा देते हैं। परन्तु शेर की तरह दो कदम पीछे हटने की बात नहीं सोचते हैं। एक उदाहरण पेश करते हैं इस विषय को और विस्तार से समझाने के लिए। क्रिकेट में जो खिलाड़ी टेस्ट क्रिकेट में सफलता हासिल कर चुके हैं ;अगर उन्हें चंद मैचों में असफल हो जाता है ;तो उसे रणजी ट्रॉफी प्रतियोगिता में खेलने की सलाह दी जाती है। यह शेर की तरह एक कदम पीछे हटना है। आशा की जाती है कि एक टेस्ट मैच का सफल खिलाड़ी रणजी ट्रॉफी में सफलता  प्राप्त करके अपने आप का विश्वास वापस अर्जित कर पाएगा।
मैंने आज इस विषय पर लिखने के लिए क्यों सोचा ? अपनी कंपनी में पिछले दिनों मुझे महसूस हुआ कि मैं और हमारी टीम हर हफ्ते का मंजिल तय कर काम करने की कोशिश कर रहा था। परन्तु हमें अपनी उम्मीद से कहीं कम सफलता मिल रही थी। अब हमने दो से तीन दिन का मंजिल बनाना शुरू किया है। उससे भी महत्वपूर्ण निर्णय हमने यह लिया है कि हर बढ़ते हुए कदम का आनंद लेंगे और अपनी टीम के साथ सेलिब्रेट करेंगे। अचानक हमारी टीम का एनर्जी एकदम से बढ़ गया है। आशा करता हूँ कि हम अपनी उम्मीद पर खड़े उतरेंगे।
तो क्या रहेगा आपका वर्ष के अंत में हासिल करने का मंजिल? छोटे -छोटे कदम लीजिए। आनंद लीजिए ज़िन्दगी के सफर का। इस साल का अंत मंगलमय हो सबके लिए। और नए साल की शुरुआत हर किसी के ज़िन्दगी का सबसे बेहतरीन हो ,यही प्रार्थना करता हूँ परमात्मा से। खुश रहिए और याद रखिए कि हम सब में एक शेर मौजूद है। जरूरत पर दो कदम पीछे हट कर एक लम्बी छलांग ले कर देखिये कैसा लगता है। अपने अंदर के शेर को जागरूक कीजिए। आगे की ज़िन्दगी शेर जैसा बिताना है। लिखियेगा जरूर फेसबुक के माध्यम से। मुलाकात होगी २०१९ में। एक नए साल में। नई उम्मीदों के साथ। 

शनिवार, 3 नवंबर 2018

4 . 5 /9 . 0 क्या हो सकता है यह नंबर का तात्पर्य ? ५० प्रतिशत ? किसी विषय का आंकड़ा ? यह था सर्व निम्न पास मार्क्स मेरे पोस्ट ग्रेजुएट के प्रथम वर्ष से द्वितीय वर्ष में उत्तीर्ण होने के लिए। और मुझे उतने ही मिले थे। मेरे सात साथी को इससे कम मार्क्स मिलने के कारन एक सेमेस्टर की पढ़ाई दोहरानी परी थी। मैं गर्व के साथ एलान करता हूँ कि मैं अपने क्लास का पास करने वाले विद्यार्थिओं का अंतिम स्थान पर था। परन्तु मैंने ज़िन्दगी में आगे जाते हुए काफी सफलता अर्जन की है। आप इस वक़्त मेरा यह लेख पढ़ रहे हो , इतनी सफलता कितने लास्ट रैंक पाने वाले स्टूडेंट को नसीब होता है ?
मुझे क्या हो गया है कि मैं अपनी असफलता (अंतिम रैंक क्यूंकि लोग अपने प्रथम रैंक की चर्चा करते हैं ) की चर्चा कर रहा हूँ। दरअसल मैं एक पाठक का अनुरोध पर आज का चर्चा कर रहा हूँ।
नमस्कार। आप सब को दशहरे की बधाई। उम्मीद करता हूँ की नवरात्रि ,दुर्गा पूजा और दशहरा अपने ,अपनों के साथ धूम धाम से मनाया है। फेसबुक के माध्यम से इस विशेष पाठक ने मुझे परीक्षा में अच्छे और बुरे मार्क्स पर चर्चा करने का ज़िक्र किया। यह दूसरी बार इस पाठक के फरमाईश पर मैं इस लेख को पेश कर रहा हूँ। अगर आपकी कोई फरमाईश हो तो जरूर फेसबुक के जरिए मुझे बताए।
अच्छे और बुरे मार्क्स के सन्दर्भ में मैं पहली बात यह बताना चाहता हूँ कि आपका परीक्षा का मार्क्स परीक्षा के वक़्त आपका ज्ञान प्रदर्शित करता है। आपका उस विषय पर ज्ञान आपके परीक्षा में मिले मार्क्स के वनिस्पत बेहतर या बदतर भी हो सकता है।
दूसरी बात है कि विद्यार्थी के मार्क्स टीचर पर भी निर्भर करता है। कुछ टीचर अपने स्टूडेंट्स को यह अहसास कराना चाहते हैं की उनकी ज्ञान स्टूडेंट्स से कहीं अधिक है ,जो की अधिकतर विद्यार्थी के कम मार्क्स से प्रमाणित होता है। दूसरी ओर ऐसे भी शिक्षक हैं जो स्टूडेंट्स को सब्जेक्ट को और चाहने के लिए अच्छे मार्क्स द्वारा प्रोत्साहित करते हैं।
तीसरी बात है अभिभावकों का। मैंने हमेशा अभिभावकों को बच्चों को केवल यही पूछते सुना है -तुम्हे कितने नंबर मिले ? कभी यह नहीं सुना है पूछते हुए कि तुमने सीखा क्या है ? दरअसल माहोल ही अच्छे नंबर पाने वाले विद्यार्थी को बेहतर समझा है।
चौथी बात जो की हानिकारक है विद्यार्थी के लिए। अपने औकात के विषय में ज़्यादा समझ लेना केवल परीक्षा में मिले नंबर के कारन। ज़िन्दगी में आगे मैंने ऐसे कई ज़्यादा नंबर पाने वाले विद्यार्थी को काफी संघर्ष करते हुए देखा है अपने जीवन में। और मजे वाली बात है इनकी ईर्ष्या उन सहपाठी के विषय में जिन्होंने नंबर तो परीक्षा में कम पाया था लेकिन ज़िन्दगी में अधिक सफलता पाया है।
कुछ विद्यार्थी हैं जिनको पढ़ने में दिलचस्पी होती है और अपने सच्चे ज्ञान के कारन उनको हर परीक्षा में अच्छे नंबर प्राप्त होते हैं। कभी कभार किसी एक परीक्षा में नहीं। इस तरह के विद्यार्थी रिसर्च और पढ़ाने के कैरियर को ज़्यादा पसंद करते हैं। यह लेख उनके लिए नहीं है।
एक समय करीब २० -३० साल पहले जिस वक़्त स्कूल के बाद अच्छे कॉलेज में दाखिल होने के लिए बारहवीं क्लास का मार्क्स बहुत महत्वपूर्ण होता था। अभी भी है कुछ कॉलेज में दाखिल होने के लिए। फर्क इतना है कि पिछले शतक में कैरियर ऑप्शंस आज की तुलना में काफी कम थे।
क्या करना चाहिए विद्यार्थी को ? जिस परीक्षा के मार्क्स के जरिए आगे की पढ़ाई के लिए अच्छे कैरियर चॉइस मिलेंगे उन परीक्षा में अपने सच्चे ज्ञान के लायक मार्क्स लाने पड़ेंगे। हर विद्यार्थी को ९० प्रतिशत या उससे ज़्यादा मार्क्स नहीं मिलेंगे। मजे वाली बात यह है कि ९० प्रतिशत विद्यार्थी को ९० प्रतिशत से कम मार्क्स हासिल होंगे। मेरे दोनों बेटों को भी नहीं मिला है कभी। परन्तु दोनों बच्चों ने अपने इंटरेस्ट के अनुसार एक विषय को चुन लिया था , स्कूल में। और इस चुने हुए विषय पर उन्होंने हमेशा परीक्षा में अच्छे मार्क्स अर्जन किए। दोनों अभी विदेश में अच्छे यूनिवर्सिटीज में पढ़ रहे हैं।
विदेश में पढ़ाने के तरीके अलग होते हैं। परीक्षा से ज़्यादा असेसमेंट होता है जिससे विद्यार्थी की समझ का अनुमान मिलता है , रट कर किताबी ज्ञान को याद रखने का नहीं। आपको थ्री इडियट्स फिल्म का वह दृश्य जरूर याद होगा जिसमे प्रोफेसर ने क्लास को पूछा था -मशीन क्या है ? और रैंचो का जवाब था वह सब जो कि इंसान का समय बचाये या ज़िन्दगी को बेहतर जीने में मदत करे। उसके बाद क्या हुआ था आप सबको याद होगा। अगर आपने फिल्म नहीं देखी हो तो ,ज़रूर देखें। मार्क्स महत्वपूर्ण जरूर हैं लेकिन कम मार्क्स पा कर भी सफलता मिली है अधिकतर लोगों को जब उन्होंने उस विषय को चुना जिसमे उनकी दिलचस्पी हो। फिर किताबें परीक्षा के लिए नहीं बल्कि नॉलेज के लिए पढ़ा जाता है।
धन्यवाद एक बार फिर क्लास के इस लास्ट रैंक प्राप्त किये हुए स्टूडेंट के लेख को पढ़ने के लिए। मैं आपके प्रोत्साहन का आभारी हूँ और रहूँगा भी। दीपावली और धनतेरस की शुभकामनायें। आनंद लीजिये और अपना और अपनो का ख्याल रखिए। 

शुक्रवार, 28 सितंबर 2018

नमस्कार। पिछले महीने मैंने ५० -५० पर मैंने चर्चा किया था। हम सब लोगों का किसमत ५० -५० होता है। जब सहायक होता है हम भूल जाते हैं कि किसमत साथ नहीं भी दे सकता था। प्रश्न यह होता है कि इस सन्दर्भ में इंसान क्या कर सकता है?
मैं उदाहरण स्वरुप इस साल दुबई में आयोजित एशिया कप क्रिकेट के विषय में चर्चा करूँगा। दो मैचों के विषय में बातचीत करूँगा -भारत बनाम अफगानिस्तान और फाइनल में भारत बनाम बांगलादेश। दोनों मैचों में कई आंकड़ें एक जैसे थे और एक महत्वपूर्ण फर्क था। दोनों मैच में भारत अपने प्रतिद्वंदी से क्रिकेट के विश्व रैंक में बहुत आगे था। दोनों मैच में प्रतिद्वंदी टीम ने पहले बल्लेबाज़ी की। और दोनों टीम ने ऐसा कोई स्कोर का टारगेट नहीं खड़ा किया जो की भारत के लिए मुश्किल हो। फर्क इतना था कि अफगानिस्तान के खिलाफ भारत ने अधिकतर सीनियर खिलाड़ी और कप्तान को विश्राम दिया। परन्तु फाइनल में पूरी टीम बांगलादेश के विरुद्ध मैदान में मुकाबला कर रही थी।
अफगानिस्तान का मैच टाई हो गया -यानि दोनों टीम के स्कोर बराबर थे ,मैच के अंत में। और इस मैच में करीब दो सालों के बाद भारत के सबसे सफल कप्तान टीम का नेतृत्व कर रहे थे। जिनके विषय में कई बार कहा जाता था कि वह सौभाग्य का सबसे प्यारा सुपुत्र है। हमारे पहले विश्व कप विजेता अधिनायक ने भारत के पहले टी -२० विश्व कप विजय के बाद मजाक में कहा था -मैंने भी १९८६ में शारजाह में आयोजित क्रिकेट टूर्नामेंट के फाइनल में पाकिस्तान के विरुद्ध आखरी ओवर एक शर्मा को डालने के लिए दिया था जहाँ आखरी गेंद पर पाकिस्तान के बल्लेबाज़ ने छक्का मारा था और आज इस टी -२० फाइनल में पाकिस्तान के विरुद्ध आखरी ओवर भी एक शर्मा ने डाला। आज के कप्तान खुश किस्मत हैं कि पाकिस्तान का बल्लेबाज़ छक्का मारने के प्रयास में भारतीय खिलाड़ी को कैच दे डाला। -तो क्या हमारे क्रिकेट के इतिहास के सबसे सफल कप्तान केवल अपनी खुश -किस्मती के कारन सफल थे ? उन्हें कप्तान 'कूल ' का विशेषण क्यों दिया गया था ? कठिन परिस्थितिओं में वह विचलित क्यों नहीं होते थे ? हार या जीत हो मैच के अंत में वह मीडिया के सामने सदा मुस्कुराते हुए क्यों नज़र आते थे ? मेरा विश्लेषण उनके विषय में एक ही सिद्धांत की ओर ले जाता है -हमारे कप्तान कूल हारने से कभी नहीं डरते थे। उन्हें पता है कि हार -जीत खेल का एक अभिन्न अंग है। इसी लिए ना ही जीतने के बाद उन्हें किसी ने जरूरत से ज़्यादा सेलिब्रेट करते हुए देखा है ,ना ही बुरी तरह हारने के बाद उनके चेहरे पर मायूसी देखी है। अगर आपने गौर किया होगा हमारे कप्तान कूल विश्व कप जीतने के बाद टीम के हाथ में ट्रॉफी सौंप कर गायब से हो गए ! इस बार भी उन्होंने अफगानिस्तान की भरपूर प्रशंसा की उनके उमदा प्रयास के लिए। अगर भारत यह मैच हार भी जाता हमारा कप्तान विचलित नहीं होता। क्यूँकि उन्होंने ५० -५० के मूल चिंता को अपना लिया है।
अब चर्चा करते हैं फाइनल के विषय में। जब भारत ने अपनी पारी शुरू की बांगलादेश के विरुद्ध भारत को जीत के लिए प्रति ओवर पाँच रन से कम की गति से रन बटोरने थे। जो कि आज के टी -२० के युग में इस भारतीय टीम के लिए बाँये हात का खेल था। परन्तु बीच में भारत की पारी लरखरा गयी और अंत में भारत ने आखरी गेंद पर विजय हासिल किया। भारत के कप्तान ने राहत की साँस ली होगी। परन्तु भारत अंत में सफल क्यों हुआ ?क्या केवल भाग्य ने साथ निभाया ? जरूर निभाया।  परन्तु क्या भाग्य साथ निभा सकता अगर एक बल्लेबाज़ जो कि चोट के कारन पारी के बीच में मैदान छोर कर चला गया था , वापस अपने चोट के बावजूद वापस नहीं आ जाता अपने टीम की ज़रुरत के लिए ? हो सकता है कि इस कारन इस खिलाड़ी को पूरी तरह फिट होने में कहीं अधिक समय लग जाए। अगर यह बात सच हो जाए तो इस खिलाड़ी अपने भाग्य को कोसेगा या फाइनल जीतने के लिए धन्यवाद करेगा ? इस उदाहरण से मैं इस निष्कर्ष पर पहुँचा हूँ कि हमें इंसान की हैसियत से तब तक बिना निराश हुए मेहनत करते रहना चाहिए। भाग्य को फिर हम हमें सहायता करने का मौका दे रहे हैं। नहीं तो भाग्य भी क्या करेगा।
कल हमारे राष्ट्र पिता का जन्मदिन है। आज हम एक स्वतंत्र देश के नागरिक हैं। इसके लिए उनका और अनेक स्वतंत्रता सेनानी को सश्रद्ध प्रणाम।  उनके तरीके अलग हो सकते थे , लेकिन गोल एक ही था। और उन्होंने ५० -५० पर शायद भरोसा किया होगा। दशहरा का महीना।  आप सब को अग्रिम बधाई। खुश रहें। 

सोमवार, 3 सितंबर 2018

नमस्कार। इस वक़्त अख़बारों में चर्चा हो रही है हमारे देश की सफलता एशियाई खेलों में जो कि इंडोनेशिया में संपन्न हुआ। इतिहास में इस साल भारत ने अपने लिए सर्वाधिक पदक जीता। बेहद निराशा हुई जब पुरुषों और महिलाओं की हॉकी टीम पराजित हो गई। जब कि उन्हें मालूम था कि एशियाई खेल में स्वर्ण पदक हासिल करने पर ओलिंपिक खेलों में स्थान सुनिश्चित था। यह क्या भाग्य का विषय है। या नहीं।
इस सन्दर्भ में मैं आज थोड़ा चर्चा करना चाहता हूँ। इसी एशियाई खेलों में पहली बार ताश का खेल 'ब्रिज ' को अन्तर्युक्त किया गया। भारत के पुरुष और मिक्स्ड टीम्स ने ब्रिज में कांस्य पदक हासिल किया।  हमारे माननीय प्रधान मंत्री ने भी ट्विटर के माध्यम से टीम को मुबारकबाद किया। मैं भी ब्रिज में बेहद दिलचस्पी रखता हूँ। मेरे ब्रिज के कोच श्री सुमन सेनगुप्ता जी ने भाग्य के विषय में उम्दा एक बात कही है जो की मैं आपके लिए पेश करना चाहता हूँ। उनका कहना है कि भाग्य या किस्मत का साथ निभाना या ना निभाना हमेशा 50 -50 होता है। दरअसल जब किस्मत साथ होता है तब हम दूसरी संभावना (किस्मत साथ नहीं भी दे सकता था ) को नज़रअंदाज़ कर देते हैं। परन्तु जब भाग्य साथ नहीं देता है तो हम अपने भाग्य को कोसते हैं और दूसरों के अच्छे भाग्य को ईर्ष्या करते हैं। मुझे यह अंदाज़ भाग्य का ,बेहतरीन लगा है और मैंने उस वक़्त से इसको अपना लिया है। इस दृष्टिकोण का सबसे महत्वपूर्ण विषय है ५०-५० का एहसास जो कि 'सहायक ' भाग्य के समय याद दिलाता है कि भाग्य सहायक नहीं भी हो सकता है। और भाग्य सहायक नहीं तो कभी भी सहायक हो सकता है। एक ही सिक्के के दो पहलु। अगर शोले फिल्म का खोटा सिक्का (याद है आपको ) ना हो तो सम्भावना वही ५० -५० होता है।
इस संदर्भ में एक छोटी सी कहानी आपके लिए पेश कर रहा हूँ जो कि मुझे व्हाट्स अप के माध्यम से मिला है। एक व्यक्ति एक फ्रीजर प्लांट में नौकरी करता था। दिन के अंत में वह एक तकनिकी  खराबी को ठीक करने के लिए फैक्ट्री के अंदर जाता है। काम में मग्न हो जाने के कारण समय का अंदाज़ खो बैठता है। उनके अन्य सहकर्मी काम ख़त्म होने पर घर के लिए रवाना हो जाते हैं। इस व्यक्ति को यह बात तब महसूस होता है जब अंदर की बत्ती बुझ जाती है और दरवाज़ा बाहर से बंद हो जाता है। फ्रीजर प्लांट के अंदर उसके लिए बर्फ का एक कब्र बन चुका था। सुबह तक जीवित रहने की सम्भावना ना के बराबर थी। ना के बराबर ना कि ५० -५० ? भाग्य उसका साथ देगा या नहीं ? दो -तीन घंटों के बाद उसे किसीके चलने का आवाज़ सुनाई पड़ा। उसे कुछ उम्मीद नज़र आई। कौन आ रहा था इस वक़्त ? चंद मिनटों के बाद प्लांट का गार्ड उसके सामने खड़ा था उसको बहार ले जाने के लिए ! ५० -५० प्रमाणित हो गया। इस व्यक्ति ने पहले ऊपर वाले को याद किया ,धन्यवाद कहा और फिर इस गार्ड से पूछा -"तुम्हे कैसे पता चला की मैं अंदर हूँ ?किसने तुम्हे मेरे विषय में बताया ?" गार्ड ने जवाब दिया -"किसी ने नहीं बताया। इस प्लांट में करीब पचास लोग काम करते हैं। केवल आप ही एकमात्र ऐसे हो जो कि सुबह मुझे गुड मॉर्निंग हो और निकलते वक़्त गुड बाई बोलते हो। आज सुबह आपने गुड मॉर्निंग तो बोला था परन्तु मैंने गुड बाई तो नहीं सुना था। जिसके कारण मुझे संदेह हुआ और मैं आपको ढूंढने निकला। " जैसे बादशाह ने अपनी किसी फिल्म कहा था -ऐसी बड़े -बड़े शहरों ऐसी छोटी -छोटी बातें होती रहती हैं। ज़िन्दगी में दरअसल ऐसी छोटी -छोटी बातें ही बड़ी -बड़ी घटना को प्रभावित करती हैं !
आपको यह लेख पसंद आयेगा या नहीं ५० -५० चांस है मेरे लिए। आप मेरे साथ फेसबुक के माध्यम से मिलेंगे या नहीं ; वह भी ५० -५० है। आज नहीं तो कल आप मिलेंगे यही ५० -५० का मजा है। खुश रहिए और ५० -५० को अपना लीजिए। जीने का अंदाज़ बदल जाएगा। मेरा बदल गया है। 

शुक्रवार, 3 अगस्त 2018

नमस्कार। कैसे हैं आप ? ब्लड प्रेशर कम हो सका दयालु बन कर ?याद है पिछले महीने हमने ज़िक्र किया था kindness के विषय में ? आज kindness के विषय में आगे चर्चा करूँगा जैसा मैंने वादा किया था। 
"Kindness is education of the heart "- कहना है दलाई लामा का। बहुत बड़ी बात कही है उन्होंने। दयालु बन कर हम अपने दिल को शिक्षा देते हैं। क्यूँकि दयालु बनना दिल से होता है। 
अजह्न ब्रह्म जो कि एक बुद्धिस्ट साधु हैं अपनी किताब "Kindfulness " में लिखा कि mindfulness और kindness किसी भी इंसान के लिए दो पंख हैं जो कि उसे शांति और आनंद का उड़ान भरने में मदत करते हैं। mindfulness -यानि की दूसरों के विषय में सजग रहना दयालु बनने में मदत करता है ?
क्या kindness सीखा या सिखाया जा सकता है ? University of Wisconsin के Dr Ritchie Davidson का रिसर्च प्रमाण करता है कि weight training की तरह किसी भी व्यक्ति का "compassion muscle " बढ़ाया जा सकता है। गजब कहा है उन्होंने। अगर आपको muscle बढ़ाना हो तो आप क्या करते हो ? कठिन परिश्रम जिम में जहाँ आप तरह -तरह के वज़न लगातार उठाते हो। उसी तरह आप अगर compassion के साथ दूसरों के साथ पेश आओगे तो आपका दूसरों के दर्द को समझ कर उनके साथ व्यवहार में बदलाव आएगा। 
दयालु बनने के लिए आपको दूसरों का ध्यान रखना आवश्यक है। जब हम दयालु बनते हैं तो हम दूसरों को महसूस करवाते हैं की वह हमारे लिए महत्वपूर्ण है। 
हम अपने दैनिक जीवन में क्या कर सकते हैं कि लोगों को एहसास हो कि वह हमारे लिए महत्वपूर्ण है। अगर आप एक लिफ्ट में सवार हो। लिफ्ट एक मंजिल पर रुकती है। एक अनजान व्यक्ति लिफ्ट के अंदर आता है। उनको wish करो। आपके हेलो बोलने से उनको और आपको दोनों को अच्छा लगेगा। 
कोई रास्ते में भटकता हुआ दिख रहा है। आगे बढ़कर उनकी मदत कीजिए। कोई कुछ कहने की कोशिश कर रहा है ;बिना टोके उन्हें बोलने दीजिए। आप एक लम्बे कतार में खड़े हैं। कोई भागता हुआ आता है और अनुरोध करता है आगे निकलने के लिए क्यूँकि उसका फ्लाइट आपसे पहले है ;जाने दीजिए। आप कहीं गलत हो। सॉरी बोलो चाहे जिसको आप सॉरी बोल रहे हो आपका अनुज हो। ऑफिस में ,जीवन में उन लोगों से उनका नाम पूछो ,जिनको कोई नहीं पूछता है। बिल्डिंग का सिक्यूरिटी ; कचरा साफ़ करने वाला ; रिक्शा वाला -उन्हें महसूस होगा कोई तो उसको पूछता है। लोग दूसरों की निंदा और चर्चा करने में मशगुल हैं ; चुप रहिए। किसी को अगर आपने क्षमा किया है तो भूल जाईये ,दोबारा उसका ज़िक्र मत कीजिए। 
दयालु बनते वक़्त वापसी उम्मीद रखना इंसान को दयालु बनने से रोकता है। जब आप दूसरों को यह सन्देश देते हो अपने व्यवहार से कि आप हमारे लिए मायने रखते हो ,तब ऐसी उम्मीद करना कि वह भी आपके विषय में उसी तरह पेश आएंगे गलत होगा। 
गीता में लिखी बात याद आ जाती है -कर्म किए जा फल की इच्छा मत कर इंसान -यही मूल मंत्र है दयालु बनने का। बन कर देखिए। ज़िन्दगी आपको कहीं अधिक से ज़्यादा वापस देगी। खुश रहिये। अपनों और सबका ख्याल रखिये। दयालु बन कर ज़िन्दगी का आनंद लीजिए। मेरे साथ फेसबुक पर वार्तालाप करके मुझे आनंद दीजिए। 

नमस्कार। जून के महीने में मैंने आपके साथ सेल्फिशनेस की चर्चा की थी। हमने आम को छुपा कर खाने का ज़िक्र किया था =selfishness के विषय में चर्चा करने के लिए। इस लेख का निष्कर्ष था कि सेलफिश या स्वार्थी होना एक इंसान के लिए स्वाभाविक है। स्वार्थी होना ,अर्थात अपने और अपनों के विषय में सोचना और उसको ज़्यादा महत्व देना। इस स्वार्थ का परिधि अगर हम बढ़ाकर और लोगों को अपनालें तो स्वार्थी होने के बावजूद हम दुनिया में अपना एक अच्छा प्रभाव छोड़ सकेंगे। i next पत्रिका में इस लेख के प्रकाशित होने के ठीक एक हफ्ते बाद एक अंग्रेजी दैनिक में मैंने एक लेख पढ़ा kindness के विषय में। उस लेख को मैंने संभाल के रखा है ,आपके लिए। क्योंकि उस लेख का मूल सन्देश हमारे selfish होने के लेख का अगला कदम है। आज और अगले महीने मैं उस अंग्रेजी अख़बार में प्रकाशित kindness के विषय में लेख से मिले सन्देश को आपके लिए पेश करूँगा।
बारिश का मौसम है। आप घर से बाहर रास्ते पे हो। ज़बरदस्त बारिश हो रही है। आपके पास रेनकोट और छतरी दोनों है क्योंकि आप बारिश के लिए प्रस्तुत हो। रास्ते में एक गरीब इंसान बारिश में भींगकर कांप रहा है। आपको उसको देखकर और उसके हालत को समझकर भी नज़र अंदाज़ करते हो -यह सेल्फिश व्यवहार है। आप उसको अपना छतरी दे देते हो -यह kindness है। kindness- यानि दूसरों को अपना समझ कर निर्णय लेना। है ना पिछले लेख का अगला कदम ?
kindness का हिंदी अनुवाद है दयालु। मेरी परिभाषा है हर इंसान की इज़्ज़त करना और उनके साथ वैसा व्यवहार करना जो कि आप औरों से खुद उम्मीद करते हो।
पूरी दुनिया में इस विषय में काफी चर्चा हो रही है। कहा जा रहा है कि लंबी उम्र जीने के लिए अपने जीवन में kindness का मिश्रण जरूर करें। कुछ दिन पहले मुंबई में छोटे हवाई जहाज का एक्सीडेंट हो गया। हवाई जहाज में सवार चार व्यक्ति और एक बनती हुई बिल्डिंग में काम करता हुआ मजदूर इस हादसे में मारा गया। मुझे इस विषय में सूचना मिली व्हाट्स एप्प के माध्यम से जिसमे किसी ने उस जलते हुए मजदूर के दर्दनाक दृश्य को वीडियो रिकॉर्डिंग किया। जिस इंसान ने यह वीडियो रिकॉर्डिंग किया उसको मैं धिक्कारता हूँ। एक इंसान की हैसियत से आप कैसे के दुसरे इंसान को जलते देखते हुए उनका वीडियो बना सकते हो ?कितना निष्ठुर हो गए हैं हम ? मैं शत -प्रतिशत दावे के साथ कह सकता हूँ कि यह व्यक्ति जिसने यह वीडियो बनाया है अपने आप पर गर्व कर रहा होगा कि उसने दुनिया को इस हादसे का वीडियो दिखाया। सोचिये अगर उस मजदूर की जगह वह विमान इस व्यक्ति पर गिरता तब क्या वह चाहता की दुसरे लोग जो वहाँ उस वक़्त मौजूद थे उनका वीडियो बनाये ?हरगिज़ नहीं। आज टेक्नोलॉजी हाथ में आ जाने के कारण हमारी मानविकता को हमने अपने दिमाग के पीछे धकेल दिया है जिसके कारन हम काफी हद तक नृशंष बन गए हैं।
डॉ डेविड हैमिलटन ने अपनी किताब "five side effects of kindness "ने चर्चा किया है charles darwin के प्रसिद्द सत्य  के विषय में -"survival of the fittest ". डॉ हैमिलटन का सुझाव है कि इस को थोड़ा सा बदल कर हम आगे के लिए विश्वास करें -"survival of the kindest "डॉ हैमिलटन का रिसर्च कहता है कि kindness का प्रभाव इंसान के ब्रेन में एक नशे जैसा प्रभाव करता है जिसको उन्होंने "helpers high "का नाम दिया है। इसके कारन ब्रेन में dopamine की मात्रा बढ़ जाती है और इंसान को अधिक ख़ुशी मिलती है। डॉ हैमिलटन का कहना है कि kindness एक ऐसी दवा है जो कि इंसान का ब्लड प्रेशर घटाने में मदत करती है। अगर आप जवानी बरकरार रखना चाहते मायने हो और सदा अपने चेहरे पर जवानी का एक खुशी ज़ाहिर रखना चाहते हो तो kindness का सहारा लो -यह डॉ हैमिलटन का सुझाव है -आपके और हमारे लिए।
क्या kindness सिखाया जा सकता है ? हम क्या कर सकते हैं इस सन्दर्भ में ?यह चर्चा करेंगे हम अगले महीने। तब तक केवल इतना ख्याल रखिये कि kind होना अर्थात दूसरों को समझाना कि आप मेरे लिए महत्वपूर्ण हो। जैसा कि आप सब पाठक मेरे लिए !

शुक्रवार, 1 जून 2018

नमस्कार। आम का मौसम कैसा चल रहा है ?कभी आपने आम छुपा रखा है अकेले में खाने के लिए ? ऐसा करने से क्या आप स्वार्थी कहे जाएंगे ? आज का विषय है स्वार्थी यानि selfish -एक पाठक के अनुरोध पर। जिस पाठक ने मुझे स्वार्थी के विषय पर लिखने का अनुरोध किया है ,क्या यह एक स्वार्थी इंसान का परिचय है ? शुरू करते हैं परिभाषा के साथ।
selfish शब्द को तोड़ देते हैं -self और ish -ish को अगर हम ईश्वर का ईश समझे तो संधि विच्छेद कहता है कि जो इंसान self यानि खुद को ईश्वर (ish )समझता है , selfish है। इसका तात्पर्य होता है कि मैं अपनी बात पहले सोचूंगा ,फिर दुनिया के विषय में। अंग्रेजी में कहते हैं -i ,me और myself के बाद और कोई।
स्वार्थी होना हर इंसान का प्राकृतिक या नेचुरल स्वभाव होता है। इसमें कोई गलती नहीं है। सोचिये जन्म के बाद कोई भी बच्चा अपनी माँ को पाने के लिए कुछ भी करता है। है ना ?क्या वह स्वार्थी नहीं है ? उसे अपने माँ की हालत की कोई परवाह नहीं। जब भूख लगे माँ का दूध चाहिए ;चाहे माँ किसी भी परिस्थिति में हो। तो हम जन्म से स्वार्थी हैं। तो फिर स्वार्थी होना अच्छा है या बुरा ? हम क्यों स्वार्थी लोगों को नीचा दिखाने का कोशिश करते हैं ?
मैं समझता हूँ कि इंसान को स्वार्थी होना जरूरी है। अच्छा है। मैं विश्वास करता हूँ कि स्वार्थ हमें सफलता हासिल करने में मदत करता है। एक उदाहरण देता हूँ। एक विद्यार्थी अपने पढ़ाई को आगे बढ़ाने के लिए अपने आप को घर एक कमरे में बंद कर लेता है। यह स्वार्थ का विषय है। परंतु इससे विद्यार्थी को सुविधा होती है अपने पढ़ाई को मनयोग के साथ करने में।
आपने Agnes Gonxha Bojaxhiu का नाम सुना है ? Macedonia में 1910 इनका जन्म हुआ। 1928 में इन्होने अपना घर छोड़ दिया। इनके पिताजी जो कि एक छोटे से दुकान के मालिक थे और उनके परिवार के अन्य सदस्य पूरी तरह निराश हो गए और उन्हें गहरा दुःख पहुँचा। क्या इस 18 वर्ष के उम्र वाली बच्ची ने स्वार्थी इंसान का परिचय नहीं दिया ? जरूर दिया। काश उन्होंने स्वार्थ का सहारा लिया अपने घर को छोड़ने का। नहीं तो यह दुनिया वंचित हो जाती मदर टरेसा को ना पा कर !
हम स्वार्थी बनते हैं अपने लिए ,अपनों के लिए। इसमें कोई गलती नहीं है। मैं समझता हूँ कोई भी इंसान स्वार्थी बनता है परिस्थितिओं के कारन। केवल ख्याल रखना है एक विषय का। मेरा स्वार्थ किसी दूसरे का नुकसान तो नहीं कर रहा है ? अपने बचपन का एक घटना याद आ गया। स्कूल में मेरी टक्कर अपने तीन सहपाठी के साथ था क्लास में प्रथम स्थान के लिए। हम चार में एक कभी अपना क्लास नोट्स दूसरों को नहीं देता था। कारन उसका क्लास नोट्स सर्वश्रेष्ठ माना जाता था। क्या यह स्वार्थी होने का परिचय है। नहीं। यह कॉम्पिटिटिव होने का अंदाज़ है। कई लोग इसे स्वार्थ की परिभाषा देंगे। यह गलत है। 
तो क्या स्वार्थी होना अच्छा है या बुरा ? मुझे एक लेक्चर याद आ रहा है जो कि एक इंजीनियरिंग गुरु ने दिया था हमारे रोटरी क्लब में। रोटरी का कहना है -service above self -गुरु ने इस सन्दर्भ में बताया कि यह संभव नहीं है क्योंकि इंसान का जन्मगत व्यवहार है स्वार्थी होना। तो फिर इंसान -service above self -करेगा कैसे ? फिर उन्होंने एक फार्मूला बताया जो कि मेरे ज़हन में सदा के लिए जगह बना लिया है। गुरु जी ने कहा कि हम स्वार्थी होते हैं अपने और अपनों के विषय में। इसमें कोई दो राय नहीं है। उनका कहना अपने इस स्वार्थ के परिधि को विस्तृत करो। ताकि और लोग इसमें समां जाए। फलस्वरूप आप और अधिक लोगों के लिए स्वार्थी बनोगे। अगर हर इंसान इस अंदाज़ में सोचे तो दुनिया बदल सकती है। है ना ?
आपका क्या ख्याल है? निःस्वार्थ के साथ शेयर कीजिए फेसबुक के माध्यम से। आखिर हम सब स्वार्थी हैं ;रहेंगे ;केवल कितनो को अपना लेते हैं अपने स्वार्थ के परिधि में ; यही फर्क है हममे और मदर टेरेसा में। उन्होंने लाखों इंसान का ज़िन्दगी बदल दिया स्वार्थी बन कर। हम क्या करेंगे ? निर्णय केवल हम ही ले सकते हैं। 

शुक्रवार, 4 मई 2018

नमस्कार। देखते ना देखते नए आर्थिक साल का एक महीना गुज़र गया है। समय कभी -कभी ज़्यादा ही जल्दी भागता रहता है। ज़्यादा जब आपको दिन में २४ घण्टे से ज़्यादा समय ज़रुरत हो। कब ज़रुरत होता है अधिक समय ?जब कि आप के पास अधिक मौके हो। अधिक मौके कब होते हैं जब कि आपके पास कॉन्फिडेंस हो। आज मैं ,अपने एक पाठक के फरमाइश पर अपने कॉन्फिडेंस को कैसे बढ़ा सकते हैं ,उस विषय पर चर्चा करूँगा। विशेष रूप से आज के युवा पीढ़ी का। जो कि ज़िन्दगी के दौर में जल्दी उलझ जा रही है। मैं अपना कॉन्फिडेंस बढ़ाने के लिए तीन मंत्रो पर विश्वास रखता हूँ।
पहला -हम किसी से कम नहीं -इस दुनिया मुझसे ज़्यादा काबिल और बेहतर इंसान ज़रूर मौजूद हैं। यह भी सच है कि मुझसे कम काबिल और बदतर इंसान भी जरूर मौजूद हैं। कितने लोग हमसे बेहतर हैं और कितने बदतर ,किसी को भी नहीं पता। परन्तु हमारी ज़िन्दगी बीत जाती है अपनी तुलना दूसरों के साथ करके। और हमारा कॉन्फिडेंस कमजोर बन जाता जब हम अपने आप को किसी के तुलना में बदतर समझते हैं। हम उनसे ईर्ष्या करते हैं। कभी यह सोचने का प्रयास नहीं करते हैं कि अगर कोई हमसे बेहतर है तो क्यों है ? हम इससे जितना चिंतित होते हैं ;किसी ऐसे इंसान से मिलकर जिनसे हम खुद मिलते हैं ; हम आनंदित नहीं होते हैं। एक उदाहरण लीजिए। हमारे बॉलीवुड के बादशाह ने कई बार इंटरव्यू में कहा है कि उनसे ज़्यादा लम्बा ;ज़्यादा ख़ूबसूरत ;ज़्यादा काबिल बॉलीवुड में विरजमान हैं ;लेकिन कई लोगों को उनके जैसा सफलता नहीं मिली है। उनके सफलता के केवल दो कारन हैं -खुद पर विश्वास और कड़ी मेहनत करने की क्षमता।
दूसरा -कोई भी परफेक्ट नहीं है। हो भी नहीं सकता है। हर इंसान में कोई न कोई प्रतिभा है ;कोई न कोई खामी है और ज़रूर कोई मजबूरी है। मेरा तजुर्बा यह कहता है कि लोग दूसरों की प्रतिभा और अपनी खामिओं से ज़्यादा वाकिफ हैं। दूसरों की प्रतिभा से अपनी तुलना कर अपना कॉन्फिडेंस कम कर लेते हैं। हर कोई विद्वान नहीं बन सकता है। क्लास का फर्स्ट बॉय का तात्पर्य यह नहीं है कि बाकी के ज़िन्दगी में भी वह फर्स्ट आएगा या क्लास के नीचे रैंक करने वाले उनसे ज़्यादा सफल नहीं होंगे। मैं अपने क्लास का लास्ट बॉय हूँ। जो लोग मुझे काम के सिलसिले में मिले हैं ;सोचते हैं कि मैं मजाक कर रहा हूँ ;जब मैं यह बात छेड़ता हूँ। क्यों ?क्यूंकि मेरे कॉन्फिडेंस को देखकर उनको यह विश्वास नहीं होता है। मैंने क्या किया ?एक ऐसा विषय चुना जो कि मेरे दिल के करीब है। जिस विषय पर चर्चा करना या काम करने में मुझे आनंद मिलता है। और जिस विषय को  मेरा अपना प्रतिभा मदत करता है। मेरे दोनों बेटों ने भी अपने दिलचस्पी वाले विषय को अपने करियर में बदलने का निर्णय लिया है। मूल बात है कि अपना कॉन्फिडेंस बढ़ाने के लिए अपना प्रतिभा और दिलचस्पी वाले विषय को अपना बनाइए। आप जो भी कर रहे हो उससे अगर आपको आनंद मिले ;तो आपका कॉन्फिडेंस खुद ब खुद बढ़ जायेगा।
तीसरा -असफलता से डरना -ऐसा कोई इंसान नहीं है जो कि ज़िन्दगी में असफल ना रहा हो। यही ज़िन्दगी की रीत है। और उसी से हम डरते हैं। हमारा कॉन्फिडेंस इसी डर के कारन कमजोर बन जाता है। हम ज़िन्दगी में कोई नए काम को हासिल करते हैं तो हमारा अपने आप पर कॉन्फिडेंस बढ़ता है या नहीं ? जरूर बढ़ता है। लेकिन हम प्रयास नहीं करते हैं। क्यों ?अगर असफल हो गए तो लोग क्या कहेंगे ?यही हमारी चिंता रहती है। इससे अपना कॉन्फिडेंस घटता है और हम अपना कॉन्फिडेंस बढ़ाने का मौका गवां देते हैं। छोटा सा उदाहरण -पब्लिक स्पीकिंग -यानि कुछ लोगों के सामने अपना विचार रखना। कभी न कभी तो पहला बार होगा। आप शायद स्टेज पर नर्वस भी होंगे। लेकिन एक बार आप सफल हो गए तो आपको कैसा महसूस होगा? खुद पर विश्वास बढ़ेगा या घटेगा ? मुझमे भी यही प्रोब्लेम था -असफलता से डर लगता था। लोग क्या कहेंगे। इस पर ज़्यादा ध्यान रहता था। ना कि अपनी काबिलियत पर। एक दिन किसी अनुभवी इंसान ने मुझे समझाया। मैंने कोशिश की। और मैं बदल गया। मैं ज़िन्दगी भर उनका आभारी रहूँगा क्योंकि मुझे अपने आप में इस बदलाव को लाने के बाद ज़िन्दगी से कई गुना ज़्यादा आनंद मिलने लगा है। नए विषय पर विजय पा कर अपना कॉन्फिडेंस लगातार बढ़ाता रहता हूँ। मैंने बहुत असफलताओं का सामना किया है। परन्तु हर असफलता ने मुझे ज़िन्दगी में सफलता से ज़्यादा सीख दिया है -मैं अब असफलता से डरता नहीं हूँ। और यही मेरे कॉन्फिडेंस का मूल मंत्र है।
मैं इस लेख में अपने आप को सफल तभी समझूंगा जब आप मुझे फेसबुक के जरिये अपना विचार व्यक्त करेंगे इस लेख के विषय में। आप मुझे किसी विषय पर लेख लिखने का फरमाइश कर सकते हैं। जैसा किसी पाठक ने किया है -जो कि मेरा अगले महीने का विषय रहेगा -selfishness
इंतज़ार करूँगा आपके विचारों का। 

बुधवार, 11 अप्रैल 2018

नमस्कार। एक और नया साल -आर्थिक यानि financial साल की शुरुआत। इनकम टैक्स का रिटर्न और कई सारे आर्थिक निर्णय का समय। साल के शुरू में प्लानिंग। लेकिन हम शुरुआत करेंगे इस साल का किसी अलग अंदाज़ के साथ -आप जैसे एक पाठक के अनुरोध पर मैं character कैसे बेहतर कर सकते हैं ,उस पर चर्चा करूँगा। मेरा विश्वास है कि character एक वक़्ति का परिचय है जो कि उसके सफलता या असफलता के सफर को दर्शाता है। एक उदाहरण लीजिए - किसी डॉन का -क्या नहीं होता उनके पास -दौलत , क्षमता , लोगों का उनसे डरना ,कई डॉन के लिए राजनीति के साथ संपर्क। लेकिन लोग क्या कहते हैं -डॉन -शब्द के साथ ही एक नेगेटिव character का सोच। एक दूसरा उदाहरण लीजिए -एक शिक्षक का -ज़्यादातर पॉजिटिव character का सोच। है ना ?
शुरू करते हैं character की परिभाषा से। हिंदी भाषा में character का पर्यायवाची शब्द है चरित्र। चरित्र शब्द का प्रयोग फिल्म और नाटक के चर्चे पर भी किया जाता है। और इस विषय में शायद आप मुझसे सहमत होंगे कि हम जैसे दर्शकों की सहानुभूति कभी फिल्म के विलन के प्रति भी होती है। और विलन ही हीरो बन जाता है। यद्यपि जो हरकतें वो फिल्म में करता है ,वह चरित्र के मूल्यांकन पर नेगेटिव है। डॉन ,दर ,खलनायक ऐसे कई फिल्मों के उदाहरण हैं। हमारा ऐसा डबल स्टैण्डर्ड क्यों ? जो चरित्र को हम नेगेटिव समझते हैं उसको हीरो क्यों बना देते हैं ?
मेरी चर्चा यहाँ से शुरू होती है। किसी भी फिल्म की सफलता के पीछे विलेन का किरदार हीरो से कम नहीं होता। गब्बर के बिना शोले नहीं बनता। गब्बर ने क्या किया ? एक नृशंष इंसान का चरित्र निभाया। लेकिन उस चरित्र को निभाने के लिए उन्हें खुद को विश्वास दिलाना पड़ा कि वो इतने निष्ठुर हैं। तभी जाकर उनके किरदार को इतना सवाँरा गया। मेरे लिए हमारा चरित्र हमारे विश्वास का अभिव्यक्ति है। अगर हमें अपना चरित्र बेहतर करना है ,तो हमें अपने विश्वास पर अटूट रहना पड़ेगा और उसकी अभिव्यक्ति करनी पड़ेगी चाहे कितनी बाधा आए। हमारे जितने स्वतंत्रता संग्रामी ने अपना प्राण न्योछावर किया उनमे यह विश्वास थी। हमारे लिए वो हीरो थे ,ब्रिटिश सरकार के लिए विलेन। उनमे भी किसी ने गाँधी जी का दिखाया हुआ मार्ग चुना ;कई लोगों ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस का दर्शाया हुआ पथ चुना।
शुरू कीजिए अपने विश्वास के साथ। यह निर्णय आपका है। इस विषय में किसी का नक़ल ना करें। ऐसा कोई ना बनने की कोशिश करे जो कि आपकी असलियत नहीं है। अगर ऐसा पथ चुनोगे तो आपको सर्वदा अभिनय करनी पड़ेगी। और वह संभव नहीं है। इस सिलसिले में मैं कुछ महीने पहले राहुल द्रविड़ के एक मंतव्य का ज़िक्र करूँगा जिसको मीडिया ने गलत समझा था। राहुल ने चिंता व्यक्त की थी कि आजके उभरते क्रिकेटर विराट कोहली के अग्रेशन को नक़ल कर रहें हैं। जो कि उनका स्वाभाविक चरित्र नहीं है। जो कि विराट का चरित्र है। ऐसा करने से कोई विराट कोहली नहीं बन जाएगा। करना हो तो विराट का अनुशाषन और त्याग का चरित्र अनुकरण करो ;तब शायद आप बेहतर क्रिकेटर जरूर बन सकते हो।
एक और दिलचस्प अनुभव का जिक्र बनता है चरित्र के इस चर्चे के सन्दर्भ में। मध्य रात्रि का समय। रास्ते का सिगनल लाल। एक मोटरसाइकिल सवारी इंतेज़ार करता हुआ सिगनल हरा होने का। एक जनप्रिय टीवी प्रोग्राम के विज्ञापन के लिए ऐसे कई दृश्यों को दर्शाया गया था। याद है आपको। चरित्र दूसरों के लिए नहीं अपने लिए होता है। हमारा चरित्र कोई देख रहा है या नहीं उस पर निर्भर नहीं कड़ेगा। मुझे किसी के पास कुछ प्रमाण नहीं करना है अपने चरित्र के माध्यम से।
इस लेख का अंतिम उदाहरण। इस वर्ष भारत की under 19 क्रिकेट टीम विश्व कप जीतने में सफल हुई। टीम के कोच राहुल द्रविड़ के लिए भारतीय क्रिकेट कण्ट्रोल बोर्ड ने पचास लाख रुपयों के इनाम की घोषणा की। अन्य कोचिंग स्टाफ के लिए इनाम की रकम काफी कम थी। द्रविड़ ने बोर्ड के कार्यकर्ताओं को समझाया कि टीम के सफलता के पीछे अन्य कोचिंग स्टाफ का अवदान उनसे किसी अंश में कम नहीं है। और इसके कारन उनके इनाम के रकम को बढ़ाना पड़ेगा। इसके लिए राहुल ने अपनी रकम आधी कर दी। इतना ही नहीं ,एक कोचिंग स्टाफ जिनका इस दरम्यान निधन हो गया था ,उनके परिवार को उतनी ही रकम मिली जितना कि औरों को। यह है एक चरित्र जिसकी मैं श्रद्धा करता हूँ। करता रहूँगा। इसी तरह के चरित्र महान इंसान है। हमें इनसे प्रेरणा लेनी चाहिए। क्या आप इस तरह के चरित्र पर विश्वास रखते हैं ? क्या आपने अपने विश्वास का निर्णय कर लिया है ?जिस पर आप अपना चरित्र बनाएँगे ?जरूर लिखिएगा फेसबुक के माध्यम से। इंतज़ार करूँगा।

मंगलवार, 27 मार्च 2018

मार्च का महीना। बसंत ऋतु। होली का त्योहार। और स्कूल में बच्चो का टेंशन -परीक्षा का समय। ज़िन्दगी एक तेज़ रफ़्तार से गुज़रती हुई। कई अभिभावक बेहद चिंतित बच्चों के लिए। इस तनाव पूर्ण वातावरण में मुझे बिल गेट्स -माइक्रोसॉफ्ट के प्रतिष्ठाता का एक भाषण याद आ गया जो कि उन्होंने स्कूल के बच्चो को दिया था। आज उसी भाषण से कुछ सीख पेश कर रहा हूँ -आपके लिए।
ज़िन्दगी हर वक़्त आपके लिए निष्पक्ष नहीं होती है। कभी कभी ऐसा महसूस होता है कि ज़िन्दगी कहीं ज़्यादा निष्ठुर है आपके प्रति। समय और परिस्थितियाँ जब अपना साथ निभाती हैं तो हम खुश रहते हैं। चाहते हैं कि ज़िन्दगी ऐसे ही गुजरे। लेकिन ज़िन्दगी में उतार -चड़ाव एक ही सिक्के के दो पहलु हैं। हमें बच्चो को ज़िन्दगी के इस निष्ठुरता से वाकिफ कराना है और उन्हें समय से जूझने के लिए तैयार करना है जब कि ऐसा महसूस होता है कि उनके साथ अन्याय रहा है। यही वास्तव है जो शायद किसी स्कूल में सिखाया नहीं जाता है।
आप कितने काबिल हो और अपने विषय में क्या सोचते हो इससे दुनिया में किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता है। जब तक आप कुछ हासिल करके खुद को प्रमाणित नहीं करते हो तब तक कोई आपको पूछेगा तक नहीं। मजे वाली बात यह है कि आप कुछ हासिल करोगे तो आपको खुद अच्छा लगेगा और आपके चाहने वालों को भी। सफलता हर किसी को अनुप्राणित करती है और कोशिश करने के लिए नए मंज़िलों पर विजय पाने के लिए। लेकिन ऐसा भी समय आएगा जब सफलता पास आकर भी आपके हाथ नहीं आएगी। तभी आपको लगेगा कि ज़िन्दगी आपके साथ अन्याय कर रही है। कई जाने माने क्रिकेट खिलाड़ी ऐसे उतार -चड़ाव से अक्सर गुजरते हैं। तब आपको सुनने को मिलता है -फॉर्म इज़ टेम्पोररी ,क्लास इज़ परमानेन्ट।
स्कूल से निकल कर ही कोई करोड़पति नहीं बन जाता है और ना ही हर स्कूल ड्राप आउट बिल गेट्स बन जाता है। सब कुछ के लिए एक समय चाहिए ,और चाहिए मेहनत। अगर आपने स्कूल में अपना मौका गवां दिया है , इसका दोष आप अपने माता -पिता या अभिभावक को नहीं दे सकते हैं। अगर अपने गलतियां की है तो उन्हें justify करने का बहाना ना ढूंढें -उनसे सीखें और ज़िन्दगी में नई शुरुआत करे -नए जोश और संकल्प के साथ।
स्कूल में शिक्षक मदत करते हैं आपको परीक्षा में उत्तीर्ण होने के लिए। क्योंकि कि उन्हें पता है आपको परीक्षा में किस तरह के प्रश्नो का सामना करना पड़ेगा। ज़िन्दगी लेकिन ऐसी नहीं है। क्या परीक्षा लेगी ,किसीको नहीं पता। किसी भी और किसी भी तरह के परीक्षा को जो इंसान हिम्मत और हौसले के साथ सामना करता है वही मुक़द्दर का सिकंदर कहलाता है।
कैसा लग रहा है बिल गेट्स का ज्ञान ? फेसबुक के माध्यम से ज़रूर बताईएगा मुझे। अगर आपको पसंद है तो अगले महीने इस चर्चा को आगे बढ़ाऊँगा।
उम्मीद करता हूँ कि आपके लिए होली आनंदमय रहा। दुवा करता हूँ कि आपका  आगे का सफर भी रंगीन और खुशियों से परिपूर्ण  हो। मिलते रहिएगा हर महीने के पहले सोमवार को। मेरी ख़ुशी आपसे मिल कर होती है।

गुरुवार, 1 फ़रवरी 2018

नमस्कार। देखते -देखते नए साल का एक महीना गुज़र गया। सर्दियों का मौसम विदाई के द्वार पे खड़ा है। फ़रवरी का महीना सर्दी और गर्मी के मौसम को जोड़ने वाला सेतु है। मार्च के महीने में होली के उत्सव के माध्यम से हम गर्मी के मौसम की तैयारी करते हैं। फ़रवरी का महीना रोमांस का दिन -'वैलेंटाइन' दिवस -के लिए मशहूर है। इस दिन हम अपना प्यार ज़ाहिर करते हैं एक दुसरे के लिए। कई लोग वैलेंटाइन दिवस केवल युवा लोगों के लिए है सोचते हैं। यह गलत चिंता भावना है। प्यार कोई भी कर सकता है ,किसीसे भी। अक्सर हम प्यार की परिभाषा को बहुत ही संकीर्ण बना देते हैं। मेरा तजुर्बा यह बताता है कि कई लोग अपने प्यार की अभिव्यक्ति करने में झिझकते हैं।
आज हम प्यार या LOVE के मूल विषय पर चर्चा करेंगे आपके साथ -जिनको मैं प्यार करता हूँ ,बेहद ,क्योंकि आप हर महीने के पहले सोमवार को मिलते हो मुझसे , Doc -U -Mantra के माध्यम से। आप में से कुछ लोग मुझसे फेसबुक  पर भी मिलते रहते हो। ऐसे लोगों के साथ मेरा प्यार का रिश्ता और भी गहरा है।
LOVE या प्यार का नीव छुपा है LOVE शब्द में ही। कैसे ?समझाता हूँ आपको। प्यार के किसी भी रिश्ते में LOVE जरूरी है।
L-Listen actively  -प्यार में एक दुसरे को सुन्ना बहुत जरूरी है। क्या आप सुन पाते हो जो कि शब्दों के ज़रिए नहीं व्यक्त किया जा रहा है ?आप सुन रहे हो ,यही काफी नहीं है। आप अपने चाहने वाले को ध्यान से सुन रहे हो ,यह समझाना भी जरूरी है।
O- Observe carefully -एक दुसरे पर गौर कीजिए और ध्यान दीजिए। ऑब्जरवेशन के माध्यम से ही आप समझ पाईएगा उस सन्देश को , जो की शब्दों से नहीं बताया जा रहा है। व्यवहार में परिवर्तन, अभिमान, रूठना ,अचानक चुप हो जाना इस किस्म के कई संकेत हैं।
V -Value sentiments- sentiments यानि भावनाओं का कदर कीजिए। हर प्रकार का भावना महत्वपूर्ण है किसी भी प्यार के रिश्ते के लिए। गुस्सा ,अहंकार ,मज़ाक, दुःख -सब कुछ इस भावनाओ के और रिश्ते के अहम् अंग हैं। इन भावनाओं का इज़्ज़त करना और उनको सही तरीके से deal करना प्यार के रिश्ते को और भी मजबूत बनाता है।
E -Express your emotions - अक्सर हम प्यार के रिश्ते में अपने emotions या मन की बात को नहीं पेश करते हैं इस भय के कारन कि उनको चोट पहुंचेगी या दुःख होगा। यह गलत है। वह कैसा प्यार का रिश्ता है जिसमे 'मैं ',मैं नहीं रह सकता हूँ। अगर समझदारी नहीं है ;अपनी भावनाओं को व्यक्त करने की स्वाधीनता नहीं है तोः वह प्यार क्या है ? emotions को express करना गलत नहीं है किसी भी प्यार के रिश्ते में। किस तरह हम एक्सप्रेस कर रहें हैं अपने emotions को ,वह अधिक महत्वपूर्ण है। याद है , मैंने कई महीनो पहले लिखा था ऐसे किसी लेख में -हम जो कहते हैं महत्वपूर्ण है ,कैसे कहतें हैं ,उससे कहीं अधिक महत्वपूर्ण है।
LOVE के इस फार्मूला को तुरंत अपना लीजिए। इसके जरिए आप किसी के साथ अपने प्यार के रिश्ते में सबसे बड़ी ज़रुरत को हासिल कर पाएँगे -विश्वास -जिसके बिना कोई भी रिश्ता ,'रिश्ता 'नहीं बनता। प्यार भी एक पवित्र रिश्ता है।
तो इस वैलेंटाइन दिवस पर बेझिझक कह डालिए उन सब को जिनसे आप प्यार करते हैं -I LOVE YOU !जैसे कि मैं कह रहा हूँ ,बेझिझक -I LOVE YOU -आप सब का प्यार बना रहे ,बढ़ता रहे और परिपूर्ण हो यही दुवा है मेरी। याद रखिएगा -जितना आप प्यार करेंगे उससे कहीं ज़्यादा आपको प्यार मिलेगा अगर आपका प्यार सच्चा ,पवित्र और निःस्वार्थ हो। आपके प्यार का इंतेज़ार करूँगा फेसबुक के माध्यम से। यह लेख मैं उनको समर्पित करता हूँ जिन्होंने फेसबुक के जरिए मुझे अनुरोध किया था उनके लिए कुछ लिखने के लिए Doc -U -Mantra में. उम्मीद कर रहा हूँ कि आप पढ़ रही हो इस लेख को। बताइएगा जरूर। 

शुक्रवार, 12 जनवरी 2018

नमस्कार। बधाई नए साल का। बधाई बाकि ज़िन्दगी के पहले दिन का। हर दिन हम लोगों के लिए बचे हुए ज़िन्दगी का पहला दिन होता है। फिर हम साल के शुरुआत को अलग अंदाज़ से क्यों देखते हैं ? नया साल। नए संकल्प। कितने दिनों के लिए ? मैंने भी संकल्प किया है इस नए साल पर। पेश करता हूँ आपके लिए।
जो बीत गई सो बात गई। अकसर मैं सोचता था कि पिछले साल अगर मैंने ऐसा किया होता या कोई घटना किसी और तरह से होती तो शायद बेहतर होता। यह सोचना कोई मतलब नहीं रखता है। इस नए साल में अतीत पर सोचने का समय बर्बाद नहीं करूँगा। क्योंकि अतीत को मैं बदल नहीं सकता हूँ। यह है मेरा पहला संकल्प। 
हर किसी का ज़िन्दगी का सफर अपना होता है। दूसरों की सफलता पर हम ईर्ष्या करते हैं। कभी दूसरों की कठिनाईओं के समय ऊपर वाले को अपने लिए धन्यवाद नहीं देते हैं। खुद कठिनाई में होते हैं तो अपने भाग्य को कोसते हैं। यह नहीं अनुभव करते हैं कि अन्य लोग हमसे कितना ज़्यादा और गंभीर कठिनाई का सामना कर रहे होंगे। अपनी ज़िन्दगी खुद को जीना है। मंजिल अपना मुझे तय करना है। और मंजिल तक पहुँचने का सफर मुझे खुद ढूढ़ना है। सबसे महत्वपूर्ण चिंता है कि इस सफर आनंद लेने की जिम्मेवारी मेरी है ,किसी और की नहीं। यह है मेरा दूसरा संकल्प। 
समय के साथ ज़िन्दगी बेहतर होती जाती है। ज़िन्दगी में उतार चराओ होता ही रहेगा। इस पर किसी का कोई कण्ट्रोल नहीं है। ऐसा कोई इंसान नहीं है जिसके ज़िन्दगी में असुविधा या कठिनाई ना हुई हो। विजेता वही है जो कि कठिन समय को दिमाग के साथ मुस्कुरा कर सामना करता है। अंग्रेजी में एक कहावत है -tough times do not last ;tough people do -कठिन समय सदा नहीं बरक़रार रहता है ; कठिनाई से जूझने वाले इंसान बरक़रार रहते हैं। मेरे काम के छेत्र में २०१७ एक कठिन साल रहा है। मैं अपने टीम को केवल एक ही दिशा की ओर प्रभावित कर रहा हूँ कि इस कठिन वक़्त को एक opportunity के अंदाज़ से देखो। निराश होने पर समय बेहतर नहीं बन जाएगा। कठिनाई कम नहीं हो जाएगी। टीम और खुद को ऐसी परिस्थितिओं से बेहतर जूझने के लिए तैयार करूँगा। 
समय और जीवन के इस सफर में लोग मेरे विषय में कुछ सोचेंगे ,बोलेंगे ,अपना विचार व्यक्त करेंगे। इस पर मेरा कोई कण्ट्रोल नहीं है। "कुछ तो लोग कहेंगे ,लोगों का काम है कहना "-अमर प्रेम का अमर गाना। छोड़ो बेकार की बातों में बीत ना जाए रैना। ऐसा कुछ नहीं करना है जिससे लोग आपके विषय ऐसा ना सोचे जो कि आप नहीं चाहते हो। आप लोगों के सोच को रोक नहीं सकते हो। क्या लोग सोच रहे हैं मेरे विषय में इस पर चिंता और समय बिताने का कोई मतलब ही नहीं होता है। सफलता और असफलता दोनों पर लोगों का मंतव्य है और रहेगा। मुझे इस साल इससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा। यही है मेरा नए साल का एक और संकल्प। 
अंतिम संकल्प मेरे लिए ज़िन्दगी का एक दर्शन है। खेल तब तक जारी है जब आखरी गेंद नहीं फेका गया है। हम तब तक सफल होने का संभावना रखते हैं जब तक हम हाल नहीं छोड़ देते हैं। प्रयास हमारे हाथ में है। परिणाम नहीं। तब तक मैदान नहीं छोड़ना है जब तक संभावना है। तब तक हम असफल नहीं हुए हैं। ऐसा ही चल रहा है मेरे व्यवसाय में। देखता हूँ मैं इस संकल्प के जरिए सफल हो पाता हूँ या नहीं। 
क्या आप सहमत हो मुझसे ?अपना ख्याल व्यक्त करो फेसबुक के माध्यम से। मैं आपसे रोज फेसबुक पर वार्तालाप करूँगा। यह है मेरे नए साल का सबसे महत्वपूर्ण संकल्प। आपके साथ नए साल में नया रिश्ता बनाने का। प्रार्थना करता हूँ कि आपका , मेरा ,सबका ,२०१८ अब तक ज़िन्दगी का सबसे बेहतरीन साल हो। उम्मीद पे ही जीवन और ज़िन्दगी निर्भर है।