शुक्रवार, 1 जून 2018

नमस्कार। आम का मौसम कैसा चल रहा है ?कभी आपने आम छुपा रखा है अकेले में खाने के लिए ? ऐसा करने से क्या आप स्वार्थी कहे जाएंगे ? आज का विषय है स्वार्थी यानि selfish -एक पाठक के अनुरोध पर। जिस पाठक ने मुझे स्वार्थी के विषय पर लिखने का अनुरोध किया है ,क्या यह एक स्वार्थी इंसान का परिचय है ? शुरू करते हैं परिभाषा के साथ।
selfish शब्द को तोड़ देते हैं -self और ish -ish को अगर हम ईश्वर का ईश समझे तो संधि विच्छेद कहता है कि जो इंसान self यानि खुद को ईश्वर (ish )समझता है , selfish है। इसका तात्पर्य होता है कि मैं अपनी बात पहले सोचूंगा ,फिर दुनिया के विषय में। अंग्रेजी में कहते हैं -i ,me और myself के बाद और कोई।
स्वार्थी होना हर इंसान का प्राकृतिक या नेचुरल स्वभाव होता है। इसमें कोई गलती नहीं है। सोचिये जन्म के बाद कोई भी बच्चा अपनी माँ को पाने के लिए कुछ भी करता है। है ना ?क्या वह स्वार्थी नहीं है ? उसे अपने माँ की हालत की कोई परवाह नहीं। जब भूख लगे माँ का दूध चाहिए ;चाहे माँ किसी भी परिस्थिति में हो। तो हम जन्म से स्वार्थी हैं। तो फिर स्वार्थी होना अच्छा है या बुरा ? हम क्यों स्वार्थी लोगों को नीचा दिखाने का कोशिश करते हैं ?
मैं समझता हूँ कि इंसान को स्वार्थी होना जरूरी है। अच्छा है। मैं विश्वास करता हूँ कि स्वार्थ हमें सफलता हासिल करने में मदत करता है। एक उदाहरण देता हूँ। एक विद्यार्थी अपने पढ़ाई को आगे बढ़ाने के लिए अपने आप को घर एक कमरे में बंद कर लेता है। यह स्वार्थ का विषय है। परंतु इससे विद्यार्थी को सुविधा होती है अपने पढ़ाई को मनयोग के साथ करने में।
आपने Agnes Gonxha Bojaxhiu का नाम सुना है ? Macedonia में 1910 इनका जन्म हुआ। 1928 में इन्होने अपना घर छोड़ दिया। इनके पिताजी जो कि एक छोटे से दुकान के मालिक थे और उनके परिवार के अन्य सदस्य पूरी तरह निराश हो गए और उन्हें गहरा दुःख पहुँचा। क्या इस 18 वर्ष के उम्र वाली बच्ची ने स्वार्थी इंसान का परिचय नहीं दिया ? जरूर दिया। काश उन्होंने स्वार्थ का सहारा लिया अपने घर को छोड़ने का। नहीं तो यह दुनिया वंचित हो जाती मदर टरेसा को ना पा कर !
हम स्वार्थी बनते हैं अपने लिए ,अपनों के लिए। इसमें कोई गलती नहीं है। मैं समझता हूँ कोई भी इंसान स्वार्थी बनता है परिस्थितिओं के कारन। केवल ख्याल रखना है एक विषय का। मेरा स्वार्थ किसी दूसरे का नुकसान तो नहीं कर रहा है ? अपने बचपन का एक घटना याद आ गया। स्कूल में मेरी टक्कर अपने तीन सहपाठी के साथ था क्लास में प्रथम स्थान के लिए। हम चार में एक कभी अपना क्लास नोट्स दूसरों को नहीं देता था। कारन उसका क्लास नोट्स सर्वश्रेष्ठ माना जाता था। क्या यह स्वार्थी होने का परिचय है। नहीं। यह कॉम्पिटिटिव होने का अंदाज़ है। कई लोग इसे स्वार्थ की परिभाषा देंगे। यह गलत है। 
तो क्या स्वार्थी होना अच्छा है या बुरा ? मुझे एक लेक्चर याद आ रहा है जो कि एक इंजीनियरिंग गुरु ने दिया था हमारे रोटरी क्लब में। रोटरी का कहना है -service above self -गुरु ने इस सन्दर्भ में बताया कि यह संभव नहीं है क्योंकि इंसान का जन्मगत व्यवहार है स्वार्थी होना। तो फिर इंसान -service above self -करेगा कैसे ? फिर उन्होंने एक फार्मूला बताया जो कि मेरे ज़हन में सदा के लिए जगह बना लिया है। गुरु जी ने कहा कि हम स्वार्थी होते हैं अपने और अपनों के विषय में। इसमें कोई दो राय नहीं है। उनका कहना अपने इस स्वार्थ के परिधि को विस्तृत करो। ताकि और लोग इसमें समां जाए। फलस्वरूप आप और अधिक लोगों के लिए स्वार्थी बनोगे। अगर हर इंसान इस अंदाज़ में सोचे तो दुनिया बदल सकती है। है ना ?
आपका क्या ख्याल है? निःस्वार्थ के साथ शेयर कीजिए फेसबुक के माध्यम से। आखिर हम सब स्वार्थी हैं ;रहेंगे ;केवल कितनो को अपना लेते हैं अपने स्वार्थ के परिधि में ; यही फर्क है हममे और मदर टेरेसा में। उन्होंने लाखों इंसान का ज़िन्दगी बदल दिया स्वार्थी बन कर। हम क्या करेंगे ? निर्णय केवल हम ही ले सकते हैं।