शुक्रवार, 1 फ़रवरी 2019

नमस्कार। क्या आप सब मुझसे नाराज़ हैं किसी कारण ? अगर कोई नाराज़गी है तो ज़रूर व्यक्त कीजिए। किसी भी रिश्ते में नाराज़गी को व्यक्त ना करने से रिश्ते में दरार बनने की संभावना बढ़ जाती है। क्यों मुझे महसूस हो रहा है कि आप नाराज़ हो ?पिछले महीने के लेख के अंत में मैंने आप से प्रश्न पूछा था -अगर कुछ दोस्त एक साथ हो जाएँ तब क्या एक टीम बन जाती है ? किसी ने मेरे प्रश्न का जवाब नहीं दिया।
प्रश्न का जवाब है -नहीं। कुछ दोस्त इकट्ठे होने पर टीम नही बनती। मैं एक व्यक्तिगत अभिज्ञता के वजह से इस निष्कर्ष पर पहुँचा हूँ। कई सीख मेरे सामने उभर कर पेश हुई। जो कि टीम बनने और काम करने के विज्ञान को कुछ हद तक गलत साबित करती है। मैं तीन मुख्य सीख को आपके लिए पेश कर रहा हूँ। दिसंबर के महीने में मैं और मेरी अर्धांग्नी दो दोस्त और उनके पत्निओ के संग विदेश के सफर पर गए थे। एक दोस्त मेरा  P G  पाठ्यक्रम कॉलेज का सहपाठी था और दूसरा दोस्त उसका U G पाठ्यक्रम का साथी। हमने करीब छह -साथ महीनों तक तैयारी की थी इस सफर के लिए। इस तैयारी में सबसे ज़्यादा अहम् भूमिका मेरे दोस्त के दोस्त ने निभाया। हमने  करीब १५ दिन एक साथ सफर किया। भूमिका के बाद तीन सीख।
टीम बनने के लिए टीम के सदस्यों को एक दूसरे के साथ परिचित होने पर टीम जल्दी बनती है। सही बात है। परंतु हर टीम में कोई टीम लीडर नियुक्त होता है या अपने काबिलियत के बल पर टीम लीडर बनने का हकदार बन जाता है। टीम के अन्य सदस्य अक्सर यह स्वीकार कर लेते हैं और इस वजह से टीम के संचालन में सुविधा होती है। दोस्तों की मंडली में यह नेतृत्व वाली कहानी इतनी आसान नहीं होती। क्यूँकि हर दोस्त का सोच दोस्ती के कारण होता है -हम किसीसे कम नहीं। इसका नतीजा -जितने लोग उतने विचार और हर कोई अपने विचार पर अटल।
दूसरी सीख है मैं अपनी तरह से आगे बढूँगा। साथ में मेरे दोस्त हैं। वह अपनी बात समझ लेंगे। टीम को सफल संचालन के लिए हर सदस्य को टीम की सफलता के लिए कुछ एडजस्टमेंट करने परते हैं। यह एडजस्टमेंट बहुत महत्वपूर्ण है टीम स्पिरिट को बनाने और बरक़रार रखने में। दोस्तों की टीम में हम एक दूसरे से यह उम्मीद रखते हैं कि यह तो उसे पता है ;तो फिर क्यों एडजस्ट करना। दोस्ती वाले महफ़िल में जो एडजस्टमेंट ज़रुरत नहीं परता ;दोस्तों के टीम में उसके बिना टीम नहीं चलता।
तीसरी और सबसे महत्वपूर्ण सीख है सेंटीमेंट्स। दोस्त होने के नाते हम अक्सर कोई चीज़ अच्छे ना लगने पर भी कुछ नहीं बोल पाते हैं भावनाओं को कदर करते हुए। शायद हम ही कमजोर पर जाते हैं उस वक़्त। बोल नहीं पाते हैं जो बोलना जरूरी है। और इसी में चिढ़ और तनाव बढ़ जाता है क्रमशः। टीम में विभाजन हो जाता है। कानाफूसी शुरू हो जाती है। और हम अपना असली भावनाओं का दमन कर देते हैं। किसी भी रिश्ते का आनंद उठाने के लिए यह बाधा पहुँचाती है। स्पष्ट बातचीत का कोई विकल्प नहीं होता है किसी भी टीम के सफलता के लिए। दोस्तों के टीम में यह एक कमजोरी बन जाती है।
क्या आप सहमत है मेरे विचारों के साथ ?जरूर लिखिएगा और आपका विचार व्यक्त कीजिएगा। उम्मीद रखूँगा आपके विचारों का फेसबुक के माध्यम से। दोस्तों के साथ दोस्ती का आनंद लीजिए। टीम बनाना हो तो दुबारा सोचिए। खुश रहिए।