शुक्रवार, 29 जनवरी 2021

नमस्कार। इकीसवीं सदी के  इकीसवीं साल के लिए आपको बधाई। पूरी दुनिया में हम सब इस उम्मीद के साथ जी रहें हैं कि २०२१ गत वर्ष की तुलना में बेहतर साल होगा। इग्यारह महीनों के पश्चात् हम जान जायेंगे की हमारी यह उम्मीद सही थी या गलत। वैक्सीन की उपलब्धि ने हम सब का मनोबल बढ़ा दिया है। परन्तु वायरस अभी भी बरकरार है। पश्चिम के देशों में स्तिथि बिगड़ती जा रही है। मरीजों की संख्या में बढ़ोतरी के कारण कई देशों ने फिर से लोकडाउन का एलान किया है। हमारे देश में सौभाग्यवश स्तिथि बेहतर है। हम सब अगर सावधानी बनाये रखें तो हमारे परिस्थिति में और सुधार आएगा। 

भारत के २०२१ का शुरुआत जबरदस्त रहा। भारतीय क्रिकेट टीम ने दोबारा ऑस्ट्रेलिया पर सीरीज विजय हासिल किया। और वह भी कठिन परिस्थितिओं का सामना करके। जहाँ अधिकतर सीनियर खिलाड़ी किसी ना किसी वजह से टीम के बहार थे। इस जीत ने मुझे कई सीख दिया। 

कहा जाता है कि चलते हुए गिर जाने में कोई लज्जा नहीं है। गिर कर उठना और फिर चलना प्रशंशनीय होता है। पहले टेस्ट के दूसरी पारी में सर्वनिम्न स्कोर के बाद भारतीय टीम ने यह कर के दिखाया। और जब कि टीम का कप्तान व्यक्तिगत कारन से घर वापस आ गया। उप कप्तान जिन्होंने कप्तानी संभाली अपने खुद के फॉर्म से जूझ रहा था। और उसके ऊपर कप्तानी की जिम्मेवारी। क्या कारन रहा उनके सफलता का। श्रंखला के अंत में उन्होंने यह बताया कि उनके कप्तान ने उनको सदा समर्थन किया जब उप कप्तान का फॉर्म ख़राब था। उनको टीम में अपनी जगह के लिए कभी भी सोचना नहीं पड़ा। कप्तान के इस आस्था ने उप कप्तान का मनोबल बढ़ाया। अगर किसी इंसान को टीम में अपने स्थान के लिए चिंता ना करना पड़े, तो वह बेहतर प्रदर्शन करता है। एक तरह से देखिये तो उप कप्तान ने अपने कप्तान को रिटर्न गिफ्ट दिया -उनके आस्था और समर्थन का। यही किसी टीम के सफलता का नीव है। एक दूसरे पर आस्था और भरोसा। 

इस उप कप्तान के कप्तानी की बहुत प्रशंसा हुई है इस जीत के बाद। कई विशेषज्ञों ने तो यह भी सलाह दिया है कि उन्हें परमानेंट कप्तान बना दिया जाय। इसके जवाब में उपकप्तान ने स्पष्ट कहा है कि यह टीम कप्तान का है और कप्तान के वापसी पर वह उप कप्तान की हैसियत में उनको समर्थन करते रहेंगे। यह उप कप्तान इतना सफल क्यों हुआ ? उन्होंने अपने अंदाज़ में टीम को नेतृत्व दिया। उन्होंने किसी को नक़ल करने की कोशिश नहीं की। यह बहुत जरूरी है किसी के भी सफलता के लिए। हर इंसान अलग है और उसको खुद को पहचानना जरूरी है। कौआ कभी हंस की चाल नहीं चल सकता है। यह स्वीकार करना आवश्यक है। 

उन्होंने अन्य चुने खिलाड़िओं को अपने क्षेत्र का कप्तान बनाया और उनको स्वाधीनता दी अपने अंदाज में दूसरों को प्रोत्साहित करने के लिए और गाइड करने के लिए। उनका एक वार्ता था -परिणाम हमारे हाथ में नहीं है -अपनी पूरी काबिलियत के अनुसार मैदान में प्रदर्शन करना एक मात्र फोकस होना चाहिए। इस के कारन हर खिलाड़ी के दिमाग से डर गायब हो गया और वह खेल का आनंद उठा सके। 

नयी पीढ़ी के खिलाड़िओं ने इस जीत में अहम् भूमिका निभाई। यह कई साल के कोशिश का परिणाम है। युवा खिलाड़िओं का सठिक प्रशिक्षण और उनको तरह तरह की परिस्थितिओं में अनुभव दिलाना इस सफलता का मूल मंत्र है। जिस भूतपूर्व महान खिलाड़ी उनको कोच कर रहें हैं उनको भी काफी प्रशंषा मिली है। यद्यपि उन्होंने यह कहा है कि पूरा श्रेय खिलाड़िओं को प्राप्त है , उनको अन्यथा तारीफ मिल रहा है। 

आखरी सीख है उप कप्तान के सठिक निर्णय का। जब कुछ दर्शक ने हमारे एक युवा खिलाड़ी को वर्ण विद्वेष के मंतव्य से आक्रमण किया , अंपायर ने भारतीय कप्तान को टीम को लेकर मैदान से निकल जाने की सलाह दी। हमारे कप्तान ने इंकार कर दिया। उनका कहना था कि हम क्रिकेट खेलने के लिए आये हैं।  क्रिकेट खेलेंगे। दर्शक खेल का आनंद लेने के लिए आएं हैं। चंद दर्शकों के कारन और लोग अच्छे खेल के आनंद से क्यों वंचित होंगे। आप उन दर्शकों को स्टेडियम से निकाल दीजिये जिन्होंने वर्ण विद्वेष का नारा उठाया है। यह होता है सही निर्णय और फोकस। हमारे अस्तित्व का कारन जो भी है , उस पर टिके रहना ही उचित होता है। 

हम इस साल के दूसरे महीने में आज प्रवेश कर रहें हैं। यह महीना वैलेंटाइन का महीना है।  यानि रोमांस का महीना। खुद से पहले रोमांस कीजिये। खुद को प्यार कीजिये। ऊपर वाले ने हम सब को यूनिक बनाया है। इसका आनंद लीजिये। फिर किसी और से रोमांस कीजियेगा। खुश रहिये। पिक्चर अभी बाकी है मेरे दोस्त।