शुक्रवार, 4 सितंबर 2020

नमस्कार। इस वित्तीय वर्ष का छठा महीना आ गया है। समय तेज रफ़्तार के साथ अग्रसर हो रहा है। हम सब इस वायरस की वजह से अपने जीने के तरीके को एडजस्ट करते जा रहें हैं। समय के साथ हम सीख रहें हैं और निरंतर प्रयास कर रहें हैं कि हम जितना हो सके स्वाभाविक जीवन जी सके। यह जो हम सीख रहें हैं , हमारा शिक्षक कौन है ? कभी आपने सोचा है इस विषय पर। हम ज्ञान अर्जन करने के लिए सप्रतिभ हैं क्योंकि हम वायरस से बच कर रहना चाहते हैं। ऐसे कुछ लोग भी हैं जो कि सुनकर , जान कर भी सावधानी नहीं बरत रहें हैं। ऐसे सीख का लाभ ही क्या है जो कि हम प्रयोग ना करे ,अपनी ज़िन्दगी में। अपने लिए। 

इस महीने पाँच सितम्बर को हम सब ने शिक्षक दिवस के अवसर पर अपने शिक्षक को श्रद्धा के साथ याद किया या अपना प्रणाम व्यक्त किया। आप अपने जीवन में किस शिक्षक से सबसे ज़्यादा प्रभावित हुए हैं। और क्यों ? मुझे फेसबुक के माध्यम से जरूर बताईये। मैं अपने अगले महीने के लेख में उसके विषय में चर्चा करूँगा। 

मेरे ज़िन्दगी में सबसे प्रभाव मेरी माँ का रहा है। उन्होंने कभी मुझे स्कूल के पाठ्यक्रम को सीखने में मदत नहीं किया है। उन्होंने मुझे प्रभावित किया है उनके अपने कर्मों और कर्तव्य से। आज मैं अपनी माँ को श्रद्धांजलि अर्पण कर रहा हूँ आप के साथ उनसे सीखी हुई बातों को आपके साथ शेयर करके। सोलह साल पहले शिक्षक दिवस के दिन वह हमें छोड़ कर इस दुनिया से चल बसी। शिक्षक दिवस के दिन मैंने अपने सबसे प्रभावशाली शिक्षक को खो दिया। 

मैंने अपने माँ से पहली बात जो सीखा कि हर इंसान दुसरे से मिले स्नेह का अत्याधिक कदर करता है और उसे कभी भूल नहीं सकता है। मेरा हर मित्र जो कि मेरी माँ से मिला है पहली बात उनके विषय में यही कहता है।  मेरी माँ एक नर्स थी। मैंने अपनी आँखों से उनको दर्द से कतराते हुए मरीज़ के सर पर स्नेह के साथ हाथ फेरने का प्रभाव देखा है। मरीज़ का कतराना रुकते हुए देखा है। 

दूसरी बात जो मैंने उनसे सीखा है कि अपनों को साथ ले कर चलो। अपनापन उसी से महसूस होता है। मैंने अपने मामा से सुना है कि मेरी माँ अपनी बड़ी बहन और अपने दो छोटे भाई को लेकर रिफ्यूजी बनकर इस देश में आई थी जब वह आठवीं कक्षा में पढ़ती थी। उन्होंने यह निर्णय किया था कि उन्हे ऐसे प्रोफेशन के लिए खुद को तैयार करना पड़ेगा जिसके जरिए वह एक सम्मानजनक ज़िन्दगी जी सके और अपने परिवार को साथ रख सके। इस बात को ध्यान में रख कर उन्होंने नर्सिंग की पढ़ाई की और अपने क्लास में प्रथम स्थान अर्जन किया ताकि उनको उसी मेडिकल कॉलेज में नौकरी मिल जाए जहाँ से उन्होंने पढ़ाई की। तब तक उन्होंने शादी नहीं कि जब तक उनके दोनों भाई ने अपनी पढ़ाई खत्म ना कर ली। रिष्तेदारों के ना चाहने पर भी उन्होंने एक भाई को सरकारी आर्ट कॉलेज में पढ़ने में मदत की क्योंकि उनको आर्ट में दिलचस्पी थी। उन दिनों के लिए यह बहुत साहसी कदम था। फोकस हमारे सब के लिए जरूरी है। दुनिया से अलग सोचना साहस का परिचय है। इस सन्दर्भ में यह बताना आवश्यक है की मेरे मामा एक सफल कमर्शियल आर्टिस्ट बन सके थे। मेरी माँ की वजह से। 

जब मैं चौथी कक्षा में था , मेरी माँ ने BA पढ़ने का निर्णय लिया।  क्योँ ? क्योंकि उनको अपने करियर में तरक्की करने के लिए ग्रेजुएट बनना था। उन्होंने डिस्टिंक्शन सहित BA पास किया अपने काम और परिवार को सँभालते हुए।  सीखने का कोई उम्र नहीं होता है , यह मैंने अपनी माँ से सीखा है। केवल खुद पर भरोसा और हिम्मत चाहिए। 

जब वह अपने कैरियर के शिखर पर पहुँच गई उन्होंने अंग्रेजी भाषा में पब्लिक स्पीकिंग के महत्व का एहसास किया। उन्होंने अपने टीम के लोगों को प्रोत्साहित किया इस विषय में।  एक ट्रेनर खोज कर निकाला और अपने जूनियर लोगों के साथ मिल कर अंग्रेजी भाषा में पब्लिक स्पीकिंग का ट्रेनिंग लिया।  उन्हें कभी ऐसा महसूस नहीं हुआ कि अपनी एक कमजोरी को अपने जूनियर के सामने स्वीकार करने में कोई असुविधा है। उनसे सीख कर मैं नहीं जानता हूँ स्वीकार करने में नहीं हिचकिचाता हूँ। 

मैंने अपनी माँ को सुबह चार बजे हॉस्पिटल जाते हुए देखा है। उनका कहना था कि अगर वह नहीं जाएगी तो उनकी टीम को कैसे पता चलेगा कि वह ड्यूटी पर ना रह कर भी , सतर्क रहती है। मैंने सुना है कि लोग नाईट ड्यूटी में ना झपकी लेकर सदा सतर्क रहते थे , उनके इस आकस्मिक विजिट के कारण।  अगर टीम कठिन काम कर रही है , मुझे भी उनका साथ निभाना है , यह मैंने उनसे सीखा है। 

और कई सीख है जो कि मुझे बहुत प्रभावित की है। अगर आप लोग चाहोगे तो अगले महीने पेश करूँगा।  फेसबुक के माध्यम से मुझे जरूर बताईये। सावधान रहें।  यही मूल सीख है इस वक़्त।