गुरुवार, 23 नवंबर 2023

नमस्कार। नवंबर का महीना। धनतेरस ,दिवाली और बाल दिवस का महीना। सर्दी के मौसम  को स्वागत। अच्छी सब्जियों का मौसम। और कुछ रुकावट के बाद शादी की तारिखियाँ। हर दृष्टिकोण से खुश मिजाज रहने का निमंत्रण। क्या आप खुश हैं ? आपका समय कैसा गुजर रहा है। क्या आपने धनतेरस में खरीदारी की ? क्या आपने दिवाली में पटाखे का आनंद उठाया। दिया और रौशनी को उपभोग किया है ?

मेरा मानना है कि कई इंसान अपने आप को इन छोटी छोटी आनंद से वंचित करते हैं। इसका प्राथमिक वजह है अपने अंदर विराजमान बच्चे को अस्वीकार करना और उस बच्चे को अपने मस्तिष्क में प्रोत्साहित नहीं करना। आपने अक्सर सुना होगा कि पटाखों के साथ खेलना बच्चों का खेल है। हम क्यों अपने आप को रोकते हैं ?

मूल वजह है कि हम हर वक़्त अपने आप का मूल्यांकन करते रहते हैं। जो कि हम बचपन में नहीं करते थे। हम ज़्यादा निडर थे। हमें असफल होने का डर नहीं था। लोग क्या कहेंगे यह चिंता दिमाग में नहीं आता था। कभी भी। अभी हम खुद भी नहीं करते हैं और बच्चों को भी रोकते हैं इसी डर से। 

अगर आप मेरे सोच से सहमत हो और इस विषय में अपने लिए कुछ करना चाहते हो तो आपके पास दो उपाय हैं। पहला विकल्प है ऐसा कुछ करना जो कि आप बचपन में करते थे और उससे आपको आनंद मिलता था। उदाहरण स्वरुप हम जैसे काफी लोग बचपन में अपने गली या मोहल्ले में क्रिकेट खेलना पसंद करते थे। अभी शायद हम लोगों का गली या मोहल्ला बदल चूका है। परन्तु आस पास जरूर बच्चे क्रिकेट खेलते होंगे। उनके साथ खेलने का प्रयास कीजिये। इस बात का परवाह मत कीजिए कि आप कितना रन बना पाते हैं ,कैच पकड़ पायेंगे या नहीं या गेंदबाज़ी में आपका प्रदर्शन कैसा रहेगा। जब तक आप इन चिंताओं से अपने आप को मुक्त नहीं कर सकेंगे आप अपने बचपन में वापस नहीं जा सकेंगे। 

दूसरा उपाय है कि ऐसा कुछ कीजिये जिसका आपका बचपन से शौक था परन्तु किसी वजह से कर नहीं पाए हैं। मेरा एक मित्र एक सफल कैंसर सर्जन है। इस कारन ज़्यादा मरीज़ उनके पास चिकित्सा के लिए संपर्क करते हैं। और कैंसर में ज़्यादा मरीजों का देहांत होना स्वाभाविक होता है। मेरा यह मित्र जितना अपने काम और कला से आनंद लेता था ,उतनी ही उसे उदासी होती थी जब कोई मरीज गुज़र जाता था। और यह उसको बहुत सता रहा था। एक करीब के दोस्त के नाते मुझे भी उसकी उदासी खल रही थी। एक दिन बातचीत के दौरान यह उभर कर आया कि मेरे दोस्त का एक सपना था पियानो बजाना सीखना। परन्तु पियानो महँगा होने के कारन यह सपना साकार नहीं हुआ। वह इस बचपन के सपने को अब साकार कर रहा है ,कितना अच्छा बजा रहा है महत्वपूर्ण नहीं है , परन्तु अपने बचपन के शौक के माध्यम से हर शाम वह रिलैक्स करता है। कुछ समय तक अपने बचपन का सैर करके। 

इस महीनें दिवाली दो बार मनाया जाता अगर भारतीय क्रिकेट टीम विश्व चैंपियन बन जाती। तरह तरह के विचार व्यक्त किये जा रहें हैं इस असफलता के विश्लेषण में। इसका कोई फायदा नहीं है सिवाय समय नष्ट करने का। परन्तु इस प्रतियोगिता में हमारी टीम ने दस लगातार मैच जीत कर एक नया रिकॉर्ड कायम किया है। पर उससे भी ज़्यादा अहम् बात है दर्शकों को जो आनंद मिला है इस टीम के खेल को देख कर। और यह संभव हुआ है केवल एक निर्णय से जो कप्तान और कोच ने लिया था -हर खिलाड़ी को स्वाधीनता दिया गया था अपने प्रतिभा का प्रदर्शन करके खुद का आनंद लेने का -बिना किसी चिंता के फेल होने का। उनकी जगह टीम में सुरक्षित थी अगर वह असफल भी हो गए तो। निडर होकर क्रिकेट खेलो -यही था मूल संदेश। 

अपनी ज़िन्दगी से आनंद लीजिये। यही है जीने का एक मात्र फार्मूला। और इसके लिए अपने बचपन से जुड़े रहिये। मुलाकात होगी आपके साथ इस साल के आखरी महीनें में। तब तक खुश रहिये। स्वस्थ रहिए।