शुक्रवार, 29 नवंबर 2019

नमस्कार। देखते देखते एक और साल के आखिरी महीने में हम पहुँच गए हैं। कैसा रहा अब तक का सफर ,इस साल ?दावे के साथ कह सकता हूँ कि सफलता ,असफलता और निराशा हर व्यक्ति के सफर का अभिन्न हिस्सा रहा होगा। खुशियाँ और गम दोनों ने अपना किरदार निभाया होगा। एक क्षण के लिए अपनी आँखें बंद कीजिये और गत इग्यारह महीनों के घटनाओं के विषय में सोचिए। कौन सी बात पहले दिमाग में आती है ?बहुत आनंददायक या निराशा वाली घटना ? मैंने एक रिसर्च किया था इस विषय पर। पचास में छत्तीस वक़्ति के मन में निराशा के घटना ने पहला अभिर्भाव किया। बाकि चौदह लोगों के ज़िन्दगी में कुछ ऐसी घटनाएँ हुई थी जो कि बहुत खुशी वाली थी और जो कि कभी -कभी होती है। एक वक़्ति का पाँच साल के बाद नौकरी में प्रोमोशन मिला जिसके कारण वह मैनेजर बन गया। एक बुजुर्ग पहली बार दादा बनने का आनंद अनुभव किया।
साल के इस अंतिम लेख का विषय है हमारे सोच के विषय में , खुद के लिए। शुरुआत में चर्चा करते हैं अपने संकल्प के विषय में जो हमने किया था इस वर्ष के शुरू में। कितना सफल हुए हम ? सोचने पर असफलता पहले दिमाग में आता है, सफलता शायद ख्याल में उतनी जल्दी नहीं आता है। हम अपने भाग्य को कोसते हैं। दूसरों के सौभाग्य पर जलते हैं। और इसी वजह से और भी मायूस हो जाते हैं। मेरी पहली सलाह -इस साल जितनी भी सफलता आपने हासिल की है ;उसको अपने दिमाग में ज़्यादा जगह दीजिये। इस सफलता का आनंद लीजिए। जहाँ सफलता नहीं मिली उसका कारण निकालिए। असफलता के लिए हम अकसर हम अपने किसमत को दोष देते हैं। खुद को नही। सफलता का कारण मैं हूँ। असफलता के लिए मैं जिम्मेवार नहीं हूँ। मेरा भाग्य या कोई और जिम्मेवार है। इस सोच को बदलना पड़ेगा। मेरी सफलता या असफलता के लिए मैं ही जिम्मेवार हूँ। और कोई नहीं। जिस दिन आप अपने आप को इस विषय पर राज़ी करवा लोगे ;आपकी ज़िन्दगी बदल जाएगी। मैंने किया है काफी प्रयास के बाद। पहले अपने किसमत को कोसता था ;अब खुद को प्रोतसाहित करता हूँ। सबसे बड़ा फायदा है अपने आप पर विश्वास बढ़ गया है।
पिछले कई लेख में मैंने बॉलीवुड के फिल्मों से सीखी हुई बातों का ज़िक्र किया है। इस बार भी करूँगा। एक फिल्म पिछले महीने काफी हिट हुई है। इस फ्लिम के मुख्य अभिनेता के ज़िन्दगी में एक ही समस्या जो कि उनके कॉन्फिडेंस को हिला देती है -उनके झड़ते हुए बाल और उसके कारण हुई गंजापन। उनको अहँकार था अपने केश पर। सावंली लड़कियों पर हँसता था। खुद को हीरो समझता था। झड़ते हुए बालों ने उनका मनोबल पूरा तोड़ डाला। परंतु वह सावंली लड़की का खुद पर विश्वास कोई नहीं हिला सका। हर कोई उसके ना गोरे होने पर ताना देता था।
कई सीख इस छोटे से उदाहरण से हमें मिलती है। पहली सीख अहँकार का कोई स्थान नहीं है। आज का अहँकार कल कमजोरी बन सकती है। अच्छे समय बुरे समय में बदल सकता है। उस वक़्त अपना मनोबल बरक़रार रखना महत्वपूर्ण है।
दूसरी सीख यह है कि मेरा मनोबल मेरे सावंलेपन  या सर पर बाल कम होने से प्रभावित नहीं होगा। इसे हम अंग्रेजी भाषा में हैंडीकैप कहते हैं। क्या कोई भी एक उम्र के बाद अपनी लंबाई बढ़ा सकता है ? नहीं। नाटा व्यक्ति क्यों किसी लम्बे इन्सान से अपने आप को कम काबिल सोचेगा ? सर पर बाल कम है तो क्या हुआ ? हम अपने हैंडीकैप से इतना हौसला खो देते हैं कि अपनी काबिलियत को भूल जाते हैं। और इसी कारण हमें टेंशन और स्ट्रेस हो जाता है जिसके कारण हम पहले ही हार जाते हैं।
तीसरी सीख आती है मुख्य किरदार के पिता के चरित्र से। अपने बेटे का हौंसला बढ़ाने के लिए ; एक विग खरीद कर अपने बेटे को भेंट करता है। विग पहन कर बेटे का हौंसला वापस आ जाता है। परंतु एक वक़्त आता है , जब उसे अपने गंजेपन को स्वीकार करना परता है ,किसी मजबूरी के कारण। तब उसे एहसास होता है कि विग का कोई जरूरत नहीं हैं। क्योंकि उसे लोग प्यार करते हैं उसके बालों के लिए नहीं।  वह जैसा इंसान है , उसके लिए। इस साल के अंत में आपसे विनती करूँगा कि अपने हैंडीकैप पर विजय हासिल कीजिए और अपने आप पर विश्वास कीजिए -आप सफल या असफल खुद के लिए होते हैं। देखिए आपका मनोबल कैसे बढ़ जाता है।
अगली मुलाकात २०२० में होगी। जब तक आपने अपने लिए नए संकल्प बना लिए होंगे। २०२० के लिए अग्रिम मुबारक। फेसबुक के माध्यम से आपके फीडबैक का इंतज़ार करूँगा। खुश रहिए।  

गुरुवार, 31 अक्तूबर 2019

नमस्कार। आप सब को दिवाली की शुभकामनायें। उम्मीद करता हूँ कि आपने दिवाली सावधानी और प्रदुषण का ख्याल रख कर मनाया होगा। बधाई छट पूजा के लिए। छट पूजा में हम सूर्य भगवान की पूजा करते हैं। और सूर्य स्वास्थ का प्रतिक है।
एक नियमित पाठक ने मुझे स्वास्थ्य के महत्व के विषय पर लिखने का अनुरोध किया है। आज का लेख स्वास्थय पर है। मेरे अपने अंदाज में।
हम सब को गर्व होनी चाहिए कि हमारे प्राचीन रीति रिवाज़ से  स्वास्थ का गहरा संबंध है। शुरू करते हैं सूर्य भगवान के आशीर्वाद से। बचपन से मैंने देखा है माँ को नवजात शिशु का तेल मालिश कर के धूप में रख देना। एकदम प्राकृतिक उपाय विटामिन डी के लिए। इससे हमारी पहली सीख। हम कितना समय धुप का आनंद लेते हैं ? मुझे तो लगता है कि हम 'वातानुकूल ' से गिरफ़्तार हो गए हैं। धुप में निकलने से डरते हैं। और देखिये विदेशी पर्यटक को। भारत का सफर करते हैं धुप सेकने के लिए।
दूसरी सीख के लिए मैं उदाहरण लूँगा हाल में रिलीज़ हुई एक हिंदी फिल्म से। यह इस फिल्म के टाइटल का चौथा संस्करण है। कॉमेडी का आनंद के लिए फिल्म देखने गया। वातानुकूल सिनेमा हॉल में सोने का आनंद लिया। क्यों फिल्म अच्छी नहीं लगी। एक कारण। सब तरह के मसाले डाल देने पर खाना स्वादिष्ट नहीं बनता है। दरअसल खाने लायक नहीं रहता है। यही होता कई लोगों के लिए उनके स्वास्थ्य चर्चा के लिए। बहुत करना चाहते हैं। कुछ नहीं कर पाते हैं। एक दो चीज़ करने का प्रयास कीजिए। आदत बना लीजिये। फिर आगे बढ़िए।
तीसरी सीख है संयम। खानाहै हम पहले आँखों से खाते हैं। फिर मुँह से। आपने शायद अनुभव किया होगा कि जो खाना आपके सेहत के लिए मना है ; उस खाने को देखकर लालच ज़्यादा बनता है। मुँह में पानी आ जाता है। और हम कोई ना कोई बहाना ढूंढ लेते हैं 'इस बार खा लेने का '; अगली बार कतई नहीं। हमारे भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान ने कई सालों से मिठाई का एक भी टुकड़ा अपने मुँह में नहीं डाला। जितना शारीरिक परिश्रम वो करते हैं ; एक आध टुकड़ा मिठाई से कुछ फर्क नहीं पड़ेगा। परन्तु , नहीं।  यही होता है संयम।
चौथी सीख तीसरे सीख से जुड़ी हुई है। अनुशाषन या डिसिप्लिन। संयम उन चीज़ों पर रखना है जो कि नहीं करना चाहिए। अनुशाषन उन विषय पर होना चाहिए जो कि करना है। उदाहरण के तौर पर आप दिन में कितना कदम चलते हैं। कुछ लोग तो अपने दिन भर के चलने का हिसाब रखते हैं अपनी घड़ी या फिटबिट के माध्यम से। हिसाब रखना तब ही मतलब रखता है जब कि उस पर अमल करें और अनुशाषन के साथ उसका प्रयोग करें। एक दूसरे तरह का अनुशाषण भी महत्वपूर्ण है। मैं अपने एक अनुभव के जरिए समझाता हूँ। मैंने समय पर अपने ऑफिस का एक काम नहीं किया। महीनों तक टालता रहा। अचानक उस काम को सबमिट करने का दिन आ गया। दो दिन मुझे केवल उस काम के लिए देना पड़ा। दरअसल अगर मैं अनुशाषन के जरिए अपना काम हर महीने करता रहता , तो मुझे काफी कम समय लगता। इसके अलावा मुझमें जो मानसिक तनाव बना , उसका एक अलग प्रभाव बना मेरे स्वास्थ पर। और यही मुझे अपने आज के लेख के अंतिम सीख पर ले जाता है।
मानसिक स्वास्थ। यह सबसे ज़्यादा हानिकारक है हमारे लिए। इसका कारण अकसर हम खुद हैं। जैसा मैंने अभी आपको समझाया है। पिछले दशक में इंटरनेट ने हमारी ज़िन्दगी बदल डाली है। काफी फायदे हुए हैं। नुकसान भी। सबसे ज़्यादा नुकसान का वजह है बिना किसी वजह का कम्पीटीशन। फेसबुक में मेरे सेल्फी को कितने लाइक या कमेंट्स मिले मेरे लिए महत्वपूर्ण है। उससे भी ज़्यादा महत्वपूर्ण है मेरे 'प्रतिद्वंदी ' को कितना मिला है। इससे हमें मानसिक अशांति होती है। एक और प्रचलित वजह मानसिक तनाव का है -परीक्षा का रिजल्ट्स। अभिवावक खुद टेंशन करते हैं और अपने बच्चों का टेंशन बढ़ाते हैं। प्रथम स्थान प्राप्त करने वाला विद्यार्थी ज़िन्दगी में हमेशा सफल नहीं होता है। ना ही कम नंबर प्राप्त करने वाला , असफल। हमें अपनी ज़िन्दगी जिनी चाहिए और उसका आनंद लेना चाहिए। ऐसा करने से खुद पर मानसिक तनाव कम होता है। छोटी -छोटी बातों का आनंद लीजिए। ज़िन्दगी भरपूर जीने का प्रयास कीजिये। यही स्वास्थ का राज है।
आनंद लीजिए और मुझे जरूर लिखिए इस लेख के विषय में ,फेसबुक के माध्यम से। 

शुक्रवार, 4 अक्तूबर 2019

नमस्कार। पिछले महीने का लेख गणेश चतुर्थी के दिन प्रकाशित हुआ था। आज का लेख नवमी के दिन। माँ दुर्गा हम सबका मंगल करे यही दुआ करता हूँ। विजया दशमी और दशेहरा के लिए अग्रिम शुभकामनाएँ। पिछले महीने के लेख मैंने मंगल पर लिखा था -मंगल मिशन। क्या आपने खुद अनुभव किया उन भावनाओँ को ६ सितम्बर के रात को ?चंद्रयान के साथ। इतने करीब। परन्तु असफल। गर्व है उन लोगों पर जिन्होंने हमें इतना करीब पहुँचा दिया। निराशा हम सब को है। हम तो केवल दर्शक की भूमिका में हैं। उनकी बात सोचिये और महसूस कीजिए जिन्होंने कई सालों का कठिन परिश्रम को मंजिल के इतने करीब असफल होते हुए देखा। इस मायूसी से वापस आना आसान नहीं है। मेरा विश्वास है कि चंद्रयान अगले सफर में जरूर चाँद पर दक्षिण दिशा से पहुँचने में सफल होगा जो कि बहुत कठिन माना जाता है। मिशन मंगल में भी असफलता को इतिहास बना दिया था उस वक़्त के ISRO के टीम ने।
मिशन मंगल फिल्म पर वापस आते हैं कुछ सीख के लिए। पिछले लेख में मैंने दो मुख्य किरदार -राकेश धवन और तारा शिंदे के कुछ घटना के विषय में चर्चा की थी। इस लेख में अन्य किरदारों के विषय में चर्चा करूँगा और किस तरह से तरह तरह के इंसान को लेकर टीम का संचालन किया जा सकता है ,उस पर अलोकपात करूँगा। एका गाँधी -अमेरिका में पढ़ी हुई मॉडर्न लड़की। अमेरिका में जीने के तौर तरीके के साथ ज़्यादा परिचित। उनका विशेष प्रतिभा -innovation -अटक जाती है एक हद तक पहुँच कर। समाधान नहीं ढूंढ पाती है। हौसला छोड़ने की स्थिति में पहुँच जाती है। झटका देता है राकेश धवन। अपना गुस्सा ज़ाहिर करके। एका का ईगो यह 'अपमान 'सह नहीं पाता है। फिर क्या ? दिन -रात भूल जाती है। समाधान जो ढूढ़ना है। मिल जाता है। इस कठिन क्षण में साथ निभाता है उस का टीम का परमेश्वर नायडू -जो वैज्ञानिक है परन्तु ज्योतिष के द्वारा नियंत्रित है। ईश्वर में अत्याधिक विश्वास रखता है। महिलाओं से शर्माता है। परन्तु दोस्ती भी करना चाहता है। एका गाँधी उसके लिए एक अद्भुत नारी है जिसका वह फैन बन जाता है। उसे खुद नहीं पता कैसे एक कठिन समय में वह एका गाँधी का मानसिक सहारा बन जाता है। अनजाने में। हमारे लिए सीख -गुस्सा अच्छा होता है। समय पर और सही तरीके से पेश करने पर। दूसरी सीख टीम में एक दुसरे को हम कब ,किस तरह सहारा दे सकते हैं ,हमें खुद नहीं पता।
कृतिका अगरवाल -मिशन से गायब हो जाती है अपने पति की सेवा करने के लिए जो सरहद पर जंग लड़ते हुए ज़ख्म हो जाता है। वापस आती है अपने पति के कहने पर। घर में उन्हें एक सीख मिलती है। अगर कोई मशीन चलते वक़्त अचानक रुक जाये तो मशीन को एक बार on -off कीजिये जैसा कि हम अकसर घर में करते हैं। यही तकनीक का प्रयोग कृतिका करती है जब कि यान के साथ सम्पर्क टूट जाता है। on - off भगवान का नाम लेकर। संपर्क जुड़ जाता है। विज्ञान ,भगवान ,भाग्यवान और घर का साधारण तौर -तरीके -सब साथ देते हैं अगर इरादा पक्का होता है।
अंतिम सीख मिशन मंगल से। अपने कार्य स्थान को आप एक नौकरी के अंदाज़ से देखोगे तो आपको कुछ हद तक सफलता प्राप्त होगी। अपना बना लो तो समय अपना ;अंदाज़ अपना ; हार और जीत अपनी। हम खुद के लिए काम करना शुरू कर देते हैं ; कंपनी की बजैह। तारा शिंदे यह एहसास दिलाती है ऑफिस में 'पुनर्जन्म 'सेलिब्रेट कर के। वर्षा पिल्लई जो कि मिशन के वक़्त गर्भवती होती है निश्चित होकर काम करती रहती है क्यूंकि उसके लिए ऑफिस ही घर बन जाता है।
सब संभव है अगर हम विश्वास करें और सफलता या असफलता का जिम्मेवारी अगर खुद पर ले सके तो। टीम ही सर्वोपरी है।
फिर मुलाकात होगी। अगले महीने। दिवाली के बाद। अपना और अपनों ख्याल रखिये। सावधानी के साथ आतिशबाजी का आनंद लीजिये। फेसबुक के माध्यम से मुझे अपना विचार भेजिए । इंतेज़ार करूँगा 

शुक्रवार, 30 अगस्त 2019

नमस्कार। मँगल कामना करता हूँ हम सब के लिए गणेश चतुर्थी के पवित्र अवसर पर। गणेश भगवान का आशिर्वाद जरूरत है हम सब को मंगलमय ज़िन्दगी के लिए। आज शुरू से मंगल की बात क्यों कर रहा हूँ ?दरअसल मैं बहुत प्रभावित हुआ हूँ फिल्म मिशन मंगल से। बॉलीवुड से प्रभावित हूँ क्यूँकि मैं उनसे सीखता हूँ। आज का लेख समर्पित करता हूँ ISRO के उन वैज्ञानिक को जिन्होंने हमारे देश को मंगल ग्रह तक पहुँचने में सफलता अर्जन की थी।
कहानी के दो मुख्य किरदार हैं -राकेश धवन और तारा शिंदे। एक बैचेलर तो दूसरी पति और दो बच्चों के साथ एक अद्भुत माहोल के साथ घर चलाने वाली। सब कुछ करती है तारा शिंदे -खाना बनाना ;पूजा करना ; बगीचे का ख्याल रखना और विज्ञान और home science का समिश्रण करना। तारा शिंदे का किरदार मुझे पहली सीख देती है। हम अक्सर वर्क-लाइफ बैलेंस के विषय में चर्चा करते हैं। और निराश हो जाते हैं कि हम बैलेंस बरक़रार नहीं रख पाते हैं। मुख्यत अपने पारिवारिक जीवन में जितना समय देने के विषय में सोचते हैं ,नहीं दे पाते हैं। अपने में एक अपराध बोध होता है। यहीं पर हमें तारा सिखाती है कि हमें बैलेंस नहीं पैशन का सहारा लेना चाहिए। बैलेंस में कोम्प्रोमाईज़ होता है ;पैशन में कमिटमेंट और आनंद। जो भी कीजिये ;जितने समय के लिए कीजिये ;पैशन के साथ कीजिये ;और करने का आनंद लीजिये।;कभी भी थकान नहीं महसूस कीजियेगा।
तारा के परिवार से दूसरी सीख जो मिलती है एक परिवार में एक दूसरे को जगह देना और हर किसी को अपनी ज़िन्दगी अपनी तरह से जीने का स्वाधीनता देना चाहिए। तारा के पति अपने बच्चों को शुरू में अपने विचारों और भावनाओं के अनुसार चलाने का प्रयत्न करता है। तारा की वजह से एक घटना के माध्यम से खुद महसूस करता है कि वह अपनी ज़िन्दगी अपनी तरह नहीं जी रहा है। उसके लिए यह एहसास और ज़िन्दगी को अपनी अंदाज़ से देखने के साथ ही बच्चों को पिता के करीब आने में मदत करता है। जिओ अपनी तरह से ;जीने दो परिवार के अन्य सदस्यों को उनके अंदाज़ से। यही है एक ख़ुशी परिवार का नीव।
"किसी ने कभी कहा है कि लड्डू केवल ख़ुशी के अवसर पर ही खाया जा सकता है ?" यही प्रश्न मुस्कुराते हुए राकेश धवन ने मीडिया के प्रतिनिधियों को किया था लड्डू खाते हुए जब उन्होंने एलान किया कि प्रथम प्रयास असफल रहा। असफलता को मुस्कुराते हुए स्वीकार करना एक प्रतिभा है। जो कि कुछ लोगों के लिए संभव है। यही लोग असफलता को सफल होने का ज़िद बना लेते हैं।
राकेश फिल्म में तारा का बॉस है। पहले असफल प्रयास का एक कारण तारा का एक गलत निर्णय होता है। दुनिया की आँखों में यह निर्णय राकेश ने लिया था। तारा ने नहीं। टीम तभी बनता है जब सदस्यों को निर्णय लेने का अधिकार देता है बॉस। निडरता के साथ निर्णय लेने का। सफलता टीम का। असफलता के लिए जिम्मेवार ,बॉस।
बहुत सारी सीख अर्जन किया है मैंने इस फिल्म से। आज का लेख समाप्त करना चाहता हूँ एक लाजवाब सीख के साथ। मैनेजमेंट की भाषा में हम इसे connecting the dots कहते हैं। dots यानि बिंदु। अर्थात बिंदु अपने आप में कुछ कहता है। सही तरह से जुड़ जाने पर कुछ और कहता है। तारा पूरी तलने के वक़्त यह समझती है कि उबलता हुआ तेल एक तापमात्रा पर पहुँच जाने के बाद गैस का चुल्हा बंद कर देने के बाद भी कई और पूरी तली जा सकती है। यही concept का प्रयोग उसने अन्तरिक्ष यान के लिए सोचा। यान का वजन कम इंधन के कारण कम हो जाएगा जिसके कई फायदे हैं। गृह विज्ञान से अंतरिक्ष यान। यह एक मिसाल है हम सबके लिए। छोटी -छोटी अवलोकन हमें बहुत सिखाती है अगर हम जो देख या महसूस करते हैं उसके विषय में अगर हम सोचते हैं और अलग अलग बिंदु को कनेक्ट कर दें ,तो ज़िन्दगी बदल सकती है। यही पूरी के तलने से सीख मिशन मंगल का भीत बन जाता है।
अपनी ज़िन्दगी में dots कनेक्ट कीजिए और ज़िन्दगी से ज़्यादा आनंद लीजिए। मुझे फेसबुक के माध्यम से बताइये। अगले महीने के लेख में बाकी सीख को पेश करूँगा। मंगल। मंगल। 

शुक्रवार, 2 अगस्त 2019

नमस्कार। पिछले महीने के लेख में हमने क्रिकेट विश्व कप का जिक्र किया था। हमारी टीम का सेमि फ़ाइनल में जिस टीम ने पराजित किया ,वह टीम फ़ाइनल में हार कर भी जीत गई। उस टीम के कप्तान के प्रति पुरे विश्व क्रिकेट का श्रद्धा जरूर बढ़ गया होगा। उन्होंने केवल एक ही बात कही -उन्हें नियम पता था परन्तु किसी ने कभी सपने में भी सोचा था कि उस नियम को प्रयोग करना पड़ेगा ,विजेता को चुनने के लिए !कभी आपने सोचा है कि क्या होता अगर यह हार भारतीय क्रिकेट टीम को मिलती विश्व कप के फाइनल में ?मैं सोचने का प्रयास भी नहीं कर रहा हूँ।
आज मैं नियम प्रयोग नहीं। तोड़ने के विषय में चर्चा करूँगा। चर्चा करूँगा बचपन में स्कूल में सिखाया गया एक विषय पर -moral science- क्या आपने भी पढ़ा यह विषय स्कूल में। इस विषय में जो मैंने पढ़ा था , उसमे तीन बातें हमें याद है -परमात्मा (चाहे आप किसी भी रूप में उन्हें स्मरण करो )को दो वक़्त की रोटी के लिए धन्यवाद कहो ; ज़िन्दगी में सुख और दुःख एक ही सिक्के के दो पहलु हैं -परमात्मा को याद धन्यवाद देने के लिए कीजिये ज़्यादा ना कि दुःख के समय केवल मदत माँगने के समय ; किसी भी इन्सान का असली परिचय मिलता है जब उसका पीठ कठिनाईयों के कारण दीवार के साथ सट जाता है या ऐसा कोई मौका सामने आता है जो कि लोभ और लालसा बढ़ा देता है। छोटे दो उदाहरण -सड़क पर आपको काफी सारे रुपए गिरे हुए मिलते हैं। आप क्या करोगे आप का परिचय है। आपने एक ऐसी गलती की है जिसे स्वीकार करने पर आपकी बेइज्जती होगी। क्या आप इंकार करोगे ?
मूल बात यह है कि moral science हमें बताता है क्या गलत है और क्या सही। मालूम हर किसी को है। इसके बावजूद परिस्थितिओं का सामना करते वक़्त हम क्या निर्णय लेते हैं ,हमारा परिचय बन जाता है।
कुछ दिन पहले एक मशहूर कॉफ़ी चेन के प्रतिष्ठाता ने आत्महत्या कर लिया। हमारे कॉलेज के व्हाट्स ऑप ग्रुप में हम लोग विभाजित हैं -कुछ उन्हें ऊँचे कदर का व्यपसायी मानता है ; कुछ लोग उनके व्यवसाय को बढ़ाने के तरीके को धिक्कार रहा है। कई सीख छुपे हुए हैं इस उदाहरण में। मैं अपने जीवन कुछ नियम कभी नही तोड़ता हूँ। अभी तक मुझे इन नियमों के कारण फायदा मिला है जिस वजह आपके लिए पेश कर रहा हूँ। ये नियम मेरे लिए moral science है।
१) ज़िन्दगी में रिस्क लेना जरूरी है। परन्तु अपने रिस्क लेने की क्षमता को ख्याल रखना महत्वपूर्ण है। लक्ष्मण रेखा का होना आवश्यक है। नहीं तो हम लोभ के दलदल में फँस जायेंगे।
२) कभी ऐसा कुछ मत करो जिससे किसी को मानसिक चोट पहुँचे। ज़रा मेरे शब्दों के चयन पर गौर कीजिए। कभी कभी ज़िन्दगी में आपको किसी की तरक्की या किसी को सही मार्ग दिखाने के लिए कठिन होना पड़ता है जिसके कारण उस व्यक्ति को दुःख होता है -इसमें कोई असुविधा नहीं है। क्यूँकि यह उसके हित के लिए है। मूल बात यह है कि आपके आनंद का कारण किसी के लिए दुःख का कारण नहीं बन सकता है।
३) कभी ऐसा कभी मत करो ,किसीके साथ भी ,जो आप नहीं चाहते हो कभी भी ,कोई भी, आपके साथ करे।
४) झूठ हम सब कोई बोलते हैं। परन्तु कभी ऐसे झूठ का सहारा ना लीजिये जो कि आप नहीं चाहते हो कि सच हो जाए। देर से पहुँचने का बहाना कभी भी अपने वाहन का पहिए का पंक्चर मत बनाइये अगर वह सच नहीं हो।
५) कभी भी किसी के कमजोड़ी या बुरे वक़्त का फायदा मत उठाइये। हम सभी को यह ख्याल रखना चाहिए की हमारी भी कमजोड़ियाँ हैं और बुड़ा वक़्त हर किसी के जीवन में आता ही है। हमारे बॉलीवुड के शहेंशाह को भी बूड़े समय से गुजरना पड़ा था।
अंत में यही कहना चाहूँगा कि दिल और दिमाग ,दोनों की सुनिए। हम सबके लिए वही moral science है। अगर आपका दिल और दिमाग दोनों ने चाहा तो मुझे फेसबुक के माध्यम से आपके विचार ,इस लेख के विषय में जरूर बताइए। इंतेज़ार करूँगा। खुश रहिए। 

शुक्रवार, 28 जून 2019

नमस्कार। बारिश का इंतेज़ार ने गर्मी को और ज़्यादा असहनीय बना दिया है। कष्ट होता है जब किसीको पानी बर्बाद करते हुए देखता हूँ। हमारे देश में कई जगहों पर लोग पानी के लिए तरस रहें हैं। कोशिश कीजिये पानी बचाने का। मुझे तजुर्बा है दिन में केवल एक बालटी पानी से दिन चलाने का। करीब चालीस साल पहले इस एक बालटी पानी ने मुझे एक जबरदस्त सीख दिया था -जो हमें आसानी से मिल जाती है उसका हम कदर नहीं करते हैं। जब मजबूरी होती है ,तब हम समझते हैं कि हम कितना बरबाद करते हैं।
आज मैं दो विषय पर लिखुँगा -बोर्ड परीक्षा के मार्क्स और विश्व कप क्रिकेट का दिलचस्प विश्लेषण। आप सोच रहे होंगे कि ये दोनों विषय एक दूसरे से कैसे जुड़े हुए हैं। एक अंग्रेजी शब्द दोनों विषय को जोड़ता है -performance
पहले चर्चा करता हूँ बोर्ड परीक्षा के मार्क्स के विषय में। मेरे मित्र की बेटी ISC परीक्षा में पुरे भारत में चौथा स्थान हासिल कर पाई है ९९ प्रतिशत से ज़्यादा मार्क्स पा कर। परन्तु यह बच्ची नाखुश थी। अपने परफॉरमेंस पर। चूँकि उन्हें गणित में १०० प्रतिशत नंबर नहीं मिले। ९७ प्रतिशत मार्क्स ही मिले। एक प्रसिद्द कॉलेज में उनको economics में जगह नहीं मिली। इतनी अच्छी बच्ची क्रमशः मायूसी के कारण डिप्रेशन की ओर अग्रसर हो रही थी। मेरे मित्र ने मुझे उससे बात करने के लिए अनुरोध किया। करीब तीन घण्टे की बातचीत के दौरान कई पहलु उभर कर सामने आये। गणित इस बच्ची का favourite subject नही है। इस कारण उसको अच्छे नंबर नहीं प्राप्त होते थे। उन्होंने ठान लिया था कि गणित पर वह विजय हासिल करेगी। उन्होंने गणित सीखने का एक मात्र तरीका अपनाया -practice इतनी मेहनत की उन्होंने कि बीमार हो गई। उसका खेद इस बात का था कि उसने तीन नंबर अपनी लापरवाही के कारण गँवाया ,ना जानने के कारण नहीं। मैंने केवल एक सलाह दी -९७ प्रतिशत का आनंद लो। तुमहारे मार्क्स जो है वही रहेंगे। दूसरी बात आगे की पढ़ाई में ऐसे subjects का चयन करो जिसमें गणित का प्रभाव और जरूरत कम है। उन्होंने कहा नहीं यह संभव नहीं है। मैंने पूछा क्यों। तब एक चिंता जो उनको परेशान कर रही है उभर कर आई। मैं अचंभित हो गया उसकी बातों को सुन कर। ICSE के परीक्षा में भी इस बच्ची को ९७ प्रतिशत से ज्यादा मार्क्स प्राप्त हुए थे। परन्तु उसने विज्ञान के subjects को नहीं चुना। humanities के subjects का चयन किया। और इसी बात पर उनके रिश्तेदार ,पारिवारिक मित्र और अन्य लोगों ने उनको धिक्कार दिया। और यही इस बच्ची के लिए भारी पर गया। उसने अपने लिए नहीं ,दूसरों के लिए जीना शुरू कर दिया। और यही उनकी गलती थी। अगर कोई अभिभावक इस लेख को पढ़ रहा हो ,उनसे केवल निवेदन करूँगा अपने बच्चों को उनका subjects का चयन खुद करने दीजिए। अभी विज्ञान पढ़ना जरूरी नहीं है। अभी कैरियर के अनगिनत चॉइस हैं। बच्चों को उनका जिंदगी उनकी तरह से जीने दीजिये। इसी में हम सब का मंगल है। इस बच्ची को हमारे देश के एक टॉप कॉलेज में economics पढ़ने का मौका मिल गया है। शायद उसने गलत निर्णय लिया है क्योंकि गणित का एक महत्वपूर्ण भूमिका होता है इस विषय पर। सफलता जरूर हासिल करेगी क्योंकि उसमे प्रतिभा और ज़िद दोनों पर्याप्त हैं। परन्तु किसी और subject पर उसका दखल कहीं ज़्यादा है। परन्तु वह अपने रिश्तेदारों को दुबारा ताने मारने का मौका देना नहीं चाहती है।
अब चर्चा करते हैं क्रिकेट विश्व कप का। अब तक हमारी टीम ने एक भी मैच नहीं हारा है। बहुत अच्छा खेल रही है हमारी टीम। परन्तु हमारे कप्तान कूल का मीडिया और समालोचक ने बड़ी निंदा और चर्चा की है। एक मैच में मंथर बैटिंग के कारन। क्या वह नहीं प्रयास करना चाहते हैं जल्द रन बटोरने का। जरूर प्रयास कर रहे होंगे। कभी -कभी आपकी चेष्टा का फल नहीं मिलता है। इसका मतलब यह नहीं होता है कि आपकी काबिलियत कम हो गयी है। ऐसी परिस्थितिओं में आपको सहानुभूति चाहिए , धिक्कार नहीं। हम यहीं गलत हो जाते हैं। एक मिसाल पर आधारित हो कर हम मंतव्य कर देते हैं। समालोचक को चुप हो जाना पड़ा क्योंकि हमारे कप्तान कूल ने कड़ा जवाब दिया अगले मैच में ही जबरदस्त बैटिंग कर के। मैं खुश हूँ क्योंकि हमारे कप्तान कूल का सबसे महत्वपूर्ण गुण है कि विजय पाने पर वह ज्यादा उत्तेजित नहीं होते। ना ही हारने पर मायूस। सर्वदा मुस्कुराते रहते हैं। खेलते हैं जीतने के लिए। यह जानते हुए कि खेल के दो ही परिणाम हैं -हार या जीत। इसी लिए अपने स्नायु पर काबू रख पाते हैं मैच के कठिन परिस्थितिओं के समय। उनसे बहुत कुछ सीखना है हम सब को। मुझे विश्वास है कि जिस दिन उनको महसूस होगा कि बहुत हो गया है। और आनंद नहीं मिल रहा है खुद अवसर लेने का घोषणा करेंगे। शायद वह दिन ज़्यादा दूर नहीं है। मैं आपको सलाम करता हूँ -कप्तान कूल। आपसे हमने बहुत कुछ सीखा है अब तक। आगे भी सीखता रहूँगा। दुआ करता हूँ की विश्व कप आपके हातों में देखूंगा। १२ ० करोड़ से अधिक भारतवासिओं का दुआ विफल नहीं होगा।
अपना ख्याल रखिये। पानी बचाने का प्रयत्न कीजिए। और अपने performance से निराश मत हो जाईएगा। गौतम बुद्ध को याद कीजिये -Success consists of going from failure to failure without loss of enthusiasm. फेसबुक के माध्यम से जरूर फीडबैक दीजिएगा मुझे। 

शुक्रवार, 31 मई 2019

नमस्कार। गर्मी का मौसम हमारी एनर्जी को घटा देता है। एनर्जी घट जाने के कारण हमारा प्रयास कमजोर बन जा सकता है। और यही हमारी असफलता का वजह हो सकता है। पिछले महीने से मैंने असफलता या फेलियर के विषय पर चर्चा शुरू किया है। जिन्होंने पिछले महीने का लेख नहीं पढ़ा है उनके लिए मैंने दो सीख के विषय में अवगत कराना चाहता हूँ. पहली सीख थी कि असफलता की परिभाषा आपके लिए क्या है ? दूसरी सलाह यह थी कि हमें अपने काबिलियत के 'अंदर 'रहते हुए अपने  कम्फर्ट जोन के 'बहार 'निकलने का प्रयास करना पड़ेगा।
मेरे पिछले महीने के लेख को पढ़कर एक पाठक ने फेसबुक के माध्यम से एक दिलचस्प प्रश्न किया है -"जब हम अपने से बेहतर और काबिल किसी भी इंसान से मिलते हैं ,तब हमें मोटिवेशन तो मिलता है परन्तु उनकी तुलना में अपने आप को छोटा लगता है जिसके कारण अपना कॉन्फिडेंस घट जाता है और हम फेलियर की ओर कदम रखते हैं। " धन्यवाद आपको इस प्रश्न के लिए। आपके प्रश्न से तीन बातें उभर कर आती हैं। पहली आप अपने से बेहतर और काबिल इंसान से मिलते हो ,तो आपको मोटिवेशन मिलता है। दूसरी बात -जब आप खुद को उनसे तुलना करते हो ,तो आपको ऐसा लगता है कि आप कुछ भी नहीं हो। और तीसरी बात -आपका कॉन्फिडेंस कम हो जाता है और फेलियर की ओर अग्रसर हो जाते हो। मूल कारण है अपने को किसी और से तुलना करना। अगर तुलना ही करना हो , तो तुलना कीजिए अपनी मेहनत का /प्रयास का उस कामयाब इंसान के प्रयत्न के साथ। फर्क इसी जगह पर होता है। उनकी कामयाबी के पीछे मेहनत का एक अहम भूमिका जरूर रहेगा। आपको अगर तुलना करना है ;खुद के साथ कीजिये। मैं जिनसे बहुत ही ज़्यादा प्रभावित हूँ ,राहुल द्राविड़ ,ने एक चर्चा के दौरान कहा था कि हर सुबह उनका एक ही प्रश्न रहता है खुद से -क्या मैं आज कल के तुलना में एक बेहतर इंसान बन पाया हूँ ? उनका कहना है कि इंसान केवल अपना बेहतर अवतार बनने की प्रयास कर सकता है। कोई और इंसान नहीं बन सकता। दूसरों के साथ तुलना एक खुद को कमजोर करने का तरीका है। इस आदत को त्याग कीजिये जिंदगी बदल जाएगी। आपकी।
मैंने चर्चा की थी कि आपके लिए असफलता की परिभाषा क्या है और आप उसे किस अंदाज़ से देखते हैं। एक बेहतरीन उदाहरण पेश कर रहा हूँ आपके लिए। आप सब लोगों ने तो थॉमस अलवा एडिसन का नाम जरूर सुना होगा। उन्होंने हमारे ज़िन्दगी में रौशनी दी है ,इलेक्ट्रिक बल्ब के आविष्कार के जरिये। हम लोग क्या इस बल्ब के बिना ज़िन्दगी सोच भी सकते हैं ? जब एडिसन आविष्कार का प्रयास कर रहे थे तब उनके पास केवल एक विश्वास था। क्यूंकि दुनिया ने उनके  पहले कभी बल्ब नामक वस्तु के विषय में ना सोचा था और ना ही किसी को इसका कोई अनुभव था। इतिहास गवाह है कि एडिसन को इलेक्ट्रिक बल्ब के आविष्कार करने में हज़ार बार कोशिश करनी पड़ी थी। पत्रकार ने उन्हें पूछा था एडिसन को -"आपको हज़ार बार असफल होने पर क्या महसूस हुआ ?" एडिसन का जवाब लाजवाब था -" हमने हज़ार बार असफलता नहीं पाई। इलेक्ट्रिक बल्ब के आविष्कार के लिए मुझे हज़ार कदम चलने पड़े !" उनके पास एक ही परिभाषा थी -खुद पर विश्वास और अपना जूनून। 
Albert Einstein ने इसी तरह की सोच पेश की थी। "Success is failure in progress ." इसी सन्दर्भ में मुझे प्रसिद्ध पेंटर Vincent Van Gogh , जिनको इतिहास सबसे ऊँचे दर्जे के पेंटर की हैसीयत से देखती है , उनकी ज़िन्दगी के एक विचार को याद दिलाती है -"If you hear a voice within you say ‘you cannot paint,’ then by all means paint, and that voice will be silenced." सफलता और असफलता का संघर्ष हमें अपने मन के अंदर जितना पड़ेगा क्यूँकि जब हम अपने आप से बात करते हैं तब हम खुद तय कर लेते हैं कि हम सफल हो पाएँगे या नहीं। सफल होने का ज़िद हमें अपनी पहली कदम को लेने में  हमारी मदत  करता है। 
क्या आप Van Gogh की तरह अपने अंदर  पल रहे उस आवाज़ को हमेशा के लिए चुप करा सकते हैं जो कि आपको  कह रहा है कि आप नहीं कर पाओगे। आप जरूर कर पाओगे। मेरी दुआ आपके साथ है। यही अपनी ख़ुशी का पहला कदम है। खुश रहिए। 

शुक्रवार, 3 मई 2019

नमस्कार। इस लेख के शुरू में मैं उन लोगों को सलाम करता हूँ जिन्होंने सम्मिलित चेष्टा के जरिए भयंकर 'फनी ' नामक तूफान के क्षति को कम से कम रखने में सफलता पाई। धन्यवाद आप सब को। आपकी सफलता के वजह से कई लोग निरापद स्थान में पहुँच कर तूफान के प्रकोप से खुद को बचाया। आँकड़े बताते हैं की पूर्व अभिज्ञता से सीख कर हम लोगों ने यह सफलता अर्जन किया है। यही मेरे लेख का विषय रहेगा कुछ महीनों के लिए। असफलता को कैसे हम सफलता में बदल सकते हैं। इस सन्दर्भ में मैं अपने आत्म जीवनी का जिक्र कर सकता था क्यूँकि मैंने अपनी ज़िन्दगी में अनगिनत असफलता का सामना किया है। परन्तु हार नहीं माना है। आपके लिए मैंने अपनी कहानी का सहारा ना लेने का तय किया है। क्यूँकि आपके के साथ मेरा रिश्ता इस लेख के माध्यम से है। मैं प्रसिद्द नहीं हूँ कि आपको इंस्पायर करूँ अपने जीवनी से। मैंने इस लिए काफी रिसर्च किया गूगल पर। सफल इंसानो के विषय में। और सफलता एवं असफलता के विषय। इस कारण मैंने भी नई बातें सीखी। उनका समिश्रण आपके पेश कर रहा हूँ। धन्यवाद उन लोगों को जिन्होंने गूगल के माध्यम से अपना ज्ञान और अनुभव शेयर किया जिससे यह लेख और आगे के लेख भी प्रेरित होंगे।
शुरू करता हूँ एक व्यक्तिगत अनुभव के जरिए। साल १९९२ । मैं एक फार्मास्यूटिकल कम्पनी में काम कर रहा था। काम के सिलसिले में  अहमदाबाद टूर पर गया हूँ। दिन के अंत में अहमदाबाद के डिस्ट्रिक्ट मैनेजर सिंह साहब के घर गया हूँ उनसे मिलने। एक एक्सीडेंट के कारण उनकी टाँग टूट गई थी। जिस कारण वह ऑफिस नहीं आ पा रहे थे। मैं उनसे पहली बार जिंदगी में मिल रहा था। सुना था बहुत ही मजेदार इंसान हैं। इस बात का प्रमाण मुझे उस दिन प्राप्त हुआ। उनके घर पहुँचने पर उनकी बीवी ,जिनको हम भाभी जी कह कर संबोधन कर रहे थे ,हमें मिठाई खिलाया इस ख़ुशी में कि उनके बेटे ने दसवीं क्लास के बोर्ड परीक्षा में ८९ प्रतिशत नंबर हासिल किया है। शायद आज ज़माने के पाठकों को यह बताना जरूरी कि उन दिनों ८९ प्रतिशत नंबर बहुत कम बच्चों को मिलते थे। हमने उनके को शाबाशी दी और ज़िन्दगी में और सफलता हासिल करने की दुआ माँगी। हम सिंह साहब से बातचीत में मशगुल हो गए लेकिन भाभी जी का असंतोष दूर नहीं हो रहा था। उनका बार बार यही कहना था कि अगर उनके बेटे को संस्कृत में ९५ प्रतिशत के जगह अगर ९८ प्रतिशत मिल जाता तो उसका परसेंटेज ८९ से बढ़कर ९० प्रतिशत हो जाता। उनके बेटे ने परीक्षा लिखने के बाद ९८ प्रतिशत की उम्मीद की थी संस्कृत में। बार बार भाभी जी यही एक बात दोहराये जा रही थी। अचानक सिंह साहब ने एक मजेदार टिप्पणी की। "अरे जाने भी इस बात को ,नहीं तो लोग सरदार का नहीं पंडित का बेटा समझेंगे " इस उदाहरण से यह बात उभर कर आती है कि असफलता की परिभाषा क्या है आपके लिए ? इस असंतोष आपको प्रोत्साहित कर सकती है अपने आप को और कोशिश करने के लिए।
रैल्फ हीथ जिन्होंने एक बेहतरीन किताब लिखी है - Celebrating Failure: The Power of Taking Risks, Making Mistakes and Thinking Big.- ने एक जबरदस्त बात कही है जो कि मैं मानता हूँ हर किसी के लिए मायने रखता है - “One of the biggest secrets to success is operating inside your strength zone but outside of your comfort zone.”
मुश्किल इस बात का है कि हम अक्सर अपने स्ट्रेंथ पर फोकस ना करके दूसरों के स्ट्रेंथ पर ईर्ष्या करते हैं। हमें अगर अपने कंफर्ट से बाहर निकलना है तब पहली चीज़ हमें जो ज़रुरत है वह है खुद पर भरोसा। इसके बिना हम रिस्क नहीं ले सकते हैं। 
आप सब लोगों ने तो थॉमस अलवा एडिसन का नाम जरूर सुना होगा। उन्होंने हमारे ज़िन्दगी में रौशनी दी है ,इलेक्ट्रिक बल्ब के आविष्कार के जरिये। हम लोग क्या इस बल्ब के बिना ज़िन्दगी सोच भी सकते हैं ? जब एडिसन आविष्कार का प्रयास कर रहे थे तब उनके पास केवल एक विश्वास था। क्यूंकि दुनिया ने उनके  पहले कभी बल्ब नामक वस्तु के विषय में ना सोचा था और ना ही किसी को इसका कोई अनुभव था। इतिहास गवाह है कि एडिसन को इलेक्ट्रिक बल्ब के आविष्कार करने में हज़ार बार कोशिश करनी पड़ी थी। पत्रकार ने उन्हें पूछा था एडिसन को -"आपको हज़ार बार असफल होने पर क्या महसूस हुआ ?" एडिसन का जवाब लाजवाब था -" हमने हज़ार बार असफलता नहीं पाई। इलेक्ट्रिक बल्ब के आविष्कार के लिए मुझे हज़ार कदम चलने पड़े !"
कुछ अंदाज़ मिल रहा है सफलता और असफलता के विषय में ? मैं अध्धयन कर रहा हूँ आपके यह सीखने के लिए कि हम सब असफलता से कैसे जूझें और ज़िन्दगी से अधिक आनंद प्राप्त करें। अगले महीने इसी विषय की अगली किश्त पेश करूँगा। क्या मैनेआपको सोचने परसफलता हासिल की है ?जरूर बताईए फेसबुक के माध्यम से। इंतेज़ार करूँगा आपके विचारों का। धन्यवाद धैर्य के साथ पढ़ने के लिए. 


शुक्रवार, 29 मार्च 2019

नमस्कार। २०१९ का तीसरा महीना। वित्तीय साल का पहला दिन। समय कैसे गुज़र जाता है। पता ही नही चलता। आप के साथ इस लेख के माध्यम से मिलने का सिलसिला अपने चौथे साल में कदम रख रहा है। इस वक़्त भी आप मेरा लेख पढ़ रहें हैं ,मैं इस लिए आपका आभारी हूँ और रहूँगा। मैं इस पत्रिका के एडिटर का भी आभारी हूँ जिन्होंने मुझे आपके लायक समझा। और परमात्मा को धन्यवाद करता हूँ कि उन्होंने हम सबको एक नए वित्तीय वर्ष में कदम रखने के लिए आशिर्वाद किया।
नया साल। नई उम्मीदें। नौकरी करने वाले को इन्क्रीमेंट और प्रोमोशन की चिंता। छात्रों को नए क्लास की उत्सुकता। व्यवसायी लोगों को व्यवसाय बढ़ाने का सोच। गृहबधु को परिवार के खर्चों को कम करने की सोच या बढ़ते हुए खर्चे को जुगाड़ करने की रणनीति। हम इतना चिंतित रहते हैं आगे की सोच कर कि वर्तमान का आनंद उठाना भूल जाते हैं। चैन से ज़िन्दगी के अब तक के सफर के लिए किस किस के आभारी हैं उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने में शायद चूक जाते हैं। और ऐसे लोग कई लोग होते हैं।
आपने कभी रोहन भसीन का नाम सुना है। मैंने भी नहीं सुना था। परन्तु किसी अख़बार में उनका एक फोटो ने मेरा दिल छू लिया। इस फोटो में रोहन एक बुजुर्ग महिला को आलिंगन में पकड़ कर रखा है। और दोनों के आँखों में भरपुर आँसू। आनंद का। कृतज्ञता का। यह फोटो एक हवाई जहाज के अन्दर लिया गया है। रोहन उस हवाई जहाज का कमाण्डर और उनके आलिंगन में उनके नर्सरी स्कूल की टीचर। और हवाई जहाज आसमान में भारत से अमरिका की ओर। और रोहन का एलान -'आज मैं इस हवाई जहाज का कमाण्डर ने सीखने का पहला कदम इनके साथ लिया था। 'और उनके टीचर ने क्या बताया। पहले दिन नर्सरी स्कूल में जब उन्होंने पूछा -बेटा तुम्हारा नाम क्या है ? पायलट रोहन भसीन। कौन कृतज्ञ था किसके प्रति ? दोनों एक दूसरे के प्रति। अक्सर हम अनेक रिश्ते में इस कृतज्ञता को भूल जाते हैं। नहीं भूल जाते हैं शायद , पर जाहिर नहीं करते हैं। और यही रिश्ता और मजबूत करने का मौका खो देते हैं। जरा याद कीजिए कब आपने रिक्शा चलाने वाले को धन्यवाद बोला है।
मैं कृतज्ञता या gratitude के विषय में काफी अध्यन कर रहा हूँ। मेरा दृढ़ विश्वास है कि कृतज्ञता हमें बेहतर ज़िन्दगी जीने में मदत करता है।

“Be thankful for what you have; you’ll end up having more. If you concentrate on what you don’t have, you will never, ever have enough.” —Oprah Winfrey

Oprah Winfrey के इस विचार ने मुझे जबरदस्त प्रभावित किया है। बचपन की याद आ जाती है। कॉन्वेंट स्कूल में दोपहर के भोजन के ब्रेक के पहले प्रार्थना -ऊपर वाले को धन्यवाद कहना रोटी के लिए। उस वक्त इसका महत्व नहीं समझता था। आज बात समझ में आती है। 
पूरी दुनिया में काफी अध्यन और रिसर्च चल रहा है कृतज्ञता पर। अमेरिका के एक प्रसिद्द यूनिवर्सिटी का अध्यन एक गज़ब निष्कर्ष पर पहुँचा है। जो इंसान में कृतज्ञता बोध है और जो उसको व्यक्त करने में नहीं हिचकिचाता है ,वह ज़िन्दगी में ज़्यादा सुखी है। क्यूँकि अभी तक ज़िन्दगी से वह खुश और संतुष्ट है। इसका तात्पर्य हरगिज़ यह नहीं है कि आप भविष्य में और तरक्की करने का प्रयास ना करो। जरूर करो। परन्तु अब तक के सफर के लिए मन ही मन सही ;किसी को तो धन्यवाद तो बोलो। ज़िन्दगी में हम हर किसी ने जब शुरुआत की थी ,अकेले नहीं की थी। कुछ हमसे आगे निकल गए ,कुछ पीछे रह गए। इसके लिए तो thank you बनता है। है ना। 
थोड़ा सोचिए और कोशिश कीजिए अपने आप को और अपनों को धन्यवाद बोलने का। सकून मिलेगा। मेरी बात मानिए। और यही सकून आपको इस नए वित्तीय वर्ष में नई उचाईओं को हासिल करने में मदत और प्रोत्साहित कीजिएगा। 
अगर आपको हमारा यह लेख पसंद आया हो तो फेसबुक के माध्यम से जरूर बताईएगा। तहे दिल से धन्यवाद कहूँगा आपको। Happy New Financial Year आप सब को। 

शुक्रवार, 1 मार्च 2019

नमस्कार। पलक झपकने के पहले ही हम इस वर्ष के तृतीय महीने में पहुँच गए हैं। अगले महीने वित्तीय साल का पहला महीना होगा। नई शुरुआत होगी व्यावसायिक वर्ष का। और स्कूल में नए क्लास का। स्कूल की बात छेड़ने पर पहली बात जो दिमाग में आती है- अनुशाषन यानि डिसिप्लिन। क्या अनुशाषन केवल बच्चों के लिए है ? आज चर्चा करेंगे अनुशाषन के विषय में।
आगे चर्चा बढ़ाने से पहले हमे नियम और अनुशाषन के बीच फर्क को समझना पड़ेगा। सूरज  सुबह पूर्व से ही उदय होगा और पश्चिम में अस्त होगा। यह प्रकृति का नियम है। इसमें कुछ नहीं बदलेगा कभी भी। परन्तु हम इन्सान ज़िन्दगी में कई नियम बनाते हैं और उस नियम को नहीं मानते हैं। बनाये हुए नियम को मानना और नहीं तोड़ना  अनुशाषन कहलाता है। उस वक़्त जब कोई आपको देख नहीं रहा है और आप फिर भी आप कानून नहीं तोड़ते हो ,स्वशाशन या सेल्फ डिसिप्लिन कहलाता है।
एक छोटा उदाहरण लीजिए। अगर पुलिस ने स्कूटर या मोटरसाइकिल सवारी के लिए हेलमेट पहनने का नियम बनाया है तो अधिकतर लोग तब तक हेलमेट का प्रयोग तब तक नहीं करते हैं जब तक पुलिस पकड़ कर जुर्माना नहीं करती है। पड़ोस में जब हम स्कूटर चला कर जाते हैं ,हम हेलमेट नहीं पहनते हैं क्योंकि हम 'नजदीक ' जा रहे हैं। दुर्घटना को क्या यह पता है कि आपकी सवारी नज़दीक की थी या मीलों की। अनुशाषन होना चाहिए कि मुझे अपने सर को किसी दुर्घटना से बचाने के लिए स्कूटर या मोटरसाइकिल का सवारी करते वक़्त हेलमेट जरूर पहनना चाहिए चाहे हम ५० मीटर का सवारी करें या ५०० मीलों का। पुलिस नियम जारी करने या ना करने पर हमारा निर्णय और वर्ताव एक ही रहेगा।
अकसर हमने ऐसे लोगों को अनुशाषन भंग करते हुए देखा है जो की दूसरे से सीनियर या पावरफुल समझता है अपने आपको। पुलिस की गाड़ी कई बार मुझे रास्ते में उलटी दिशा में आती हुई मिली है। ऑफिस में बॉस देर से आते हैं। छोटे मोटे वी आई पी अकसर किसी सेवा के लिए अन्य लोगों के साथ पंक्ति में खड़े नहीं होते हैं। बुजुर्ग बच्चों को ज्ञान देते हैं कि 'हमने बचपन में ऐसा किया या नहीं किया है ' आपने बचपन में क्या किया या नहीं किया उससे आपके बच्चे को कोई फ़र्क नहीं पड़ता है क्योंकि वह इस वक़्त जो आपको करते हुए देखता है उसे सीख उसी से मिलती है।
मैं अनुशाषन का भक्त हूँ और उसके महत्व को समझता हूँ। ऐसा नहीं है कि मैं अनुशाषन को नहीं तोड़ता हूँ। परन्तु कुछ विषय और मामले में मैं कभी अनुशाषन को कभी नहीं तोड़ने की कोशिश करता हूँ। जैसे सफर के समय सावधानी बरतना। मैं गाड़ी के पिछले सीट पर बैठने के वक़्त सीट बेल्ट जरूर बांधता हूँ हाईवे के सफर के दौरान। ऑफिस में पहुँचने अगर किसी कारण देर हो जाए तो मैं अपने टीम के सदस्यों को पहले से ही इतिल्ला कर देता हूँ। इस सन्दर्भ में यह बताना जरूरी है कि समय पर ऑफिस पहुँचना अनुशाषन है। किसी कारण वश देरी हो जाने पर आगाम बतला देना भी एक अनुशाषन है। किस जगह मैं अनुशाषन तोड़ता हूँ ? खाने के विषय में। ऐसा खाना खा लेता हूँ जो कि सेहत के लिए सही नहीं है या खाना ठीक है तो जरूरत से ज़्यादा खा लेता हूँ।
पिछले हफ्ते मैं जयपुर में राजस्थान का नंबर एक पोजीशन प्राप्त प्राइवेट एम् बी ए कॉलेज के बच्चोँ को ज़िन्दगी में सफलता पाने के फार्मूला के विषय में समझा रहा था। मैं उनके अनुशाषन से मुग्ध हो गया और उन्हें यह समझाया कि अगर वो इस अनुशाषन को बरक़रार रखे तो उनको अपने मंजिल तक पहुँचने से कोई नहीं रोक पायेगा। इरादें और अनुशाषन दोनों जरूरत है सफलता के लिए। एक इंजन है तो दूसरा इंधन। एक दूसरे के बिना असम्पूर्ण हैं। सबसे चमकता उदाहरण हमारे भारतीय क्रिकेट टीम का वर्तमान कप्तान। क्यों ये बच्चे इतने अनुशाषित हैं जो कि आज अधिकतर कॉलेजों में नहीं देखा जाता है ? पूरा श्रेय कॉलेज के प्रिंसिपल डॉ मंजु नायर और उनकी टीम को जाता है। इस टीम के अनुशाषन से हम सब प्रेरणा ले सकते हैं और सीख सखते हैं।
ज़िन्दगी में अनुशाषन लाना चाहते हैं ? छोटी -छोटी चीजों से शुरू कीजिये। अपनी और परिवार की सावधानी के लिए जो अनुशाषन जरूरत है , उसी से शुरू कीजिए। उम्मीद करता इसका महत्व आप समझते हैं। अगली बार जब मिलूंगा वित्तीय या पढ़ाई के नए साल में।  जहाँ आप अपने दिन का सबसे ज़्यादा समय बिताते हैं ,वहाँ तो अनुशाषन को अपना अभिन्न अंग जरूर बनाइये। सफलता आपकी होगी। यही दुआ करता हूँ। स्वस्थ रहिये और सावधानी के साथ ज़िन्दगी गुज़ारिए। इसी में हम सबका मंगल है।

शुक्रवार, 1 फ़रवरी 2019

नमस्कार। क्या आप सब मुझसे नाराज़ हैं किसी कारण ? अगर कोई नाराज़गी है तो ज़रूर व्यक्त कीजिए। किसी भी रिश्ते में नाराज़गी को व्यक्त ना करने से रिश्ते में दरार बनने की संभावना बढ़ जाती है। क्यों मुझे महसूस हो रहा है कि आप नाराज़ हो ?पिछले महीने के लेख के अंत में मैंने आप से प्रश्न पूछा था -अगर कुछ दोस्त एक साथ हो जाएँ तब क्या एक टीम बन जाती है ? किसी ने मेरे प्रश्न का जवाब नहीं दिया।
प्रश्न का जवाब है -नहीं। कुछ दोस्त इकट्ठे होने पर टीम नही बनती। मैं एक व्यक्तिगत अभिज्ञता के वजह से इस निष्कर्ष पर पहुँचा हूँ। कई सीख मेरे सामने उभर कर पेश हुई। जो कि टीम बनने और काम करने के विज्ञान को कुछ हद तक गलत साबित करती है। मैं तीन मुख्य सीख को आपके लिए पेश कर रहा हूँ। दिसंबर के महीने में मैं और मेरी अर्धांग्नी दो दोस्त और उनके पत्निओ के संग विदेश के सफर पर गए थे। एक दोस्त मेरा  P G  पाठ्यक्रम कॉलेज का सहपाठी था और दूसरा दोस्त उसका U G पाठ्यक्रम का साथी। हमने करीब छह -साथ महीनों तक तैयारी की थी इस सफर के लिए। इस तैयारी में सबसे ज़्यादा अहम् भूमिका मेरे दोस्त के दोस्त ने निभाया। हमने  करीब १५ दिन एक साथ सफर किया। भूमिका के बाद तीन सीख।
टीम बनने के लिए टीम के सदस्यों को एक दूसरे के साथ परिचित होने पर टीम जल्दी बनती है। सही बात है। परंतु हर टीम में कोई टीम लीडर नियुक्त होता है या अपने काबिलियत के बल पर टीम लीडर बनने का हकदार बन जाता है। टीम के अन्य सदस्य अक्सर यह स्वीकार कर लेते हैं और इस वजह से टीम के संचालन में सुविधा होती है। दोस्तों की मंडली में यह नेतृत्व वाली कहानी इतनी आसान नहीं होती। क्यूँकि हर दोस्त का सोच दोस्ती के कारण होता है -हम किसीसे कम नहीं। इसका नतीजा -जितने लोग उतने विचार और हर कोई अपने विचार पर अटल।
दूसरी सीख है मैं अपनी तरह से आगे बढूँगा। साथ में मेरे दोस्त हैं। वह अपनी बात समझ लेंगे। टीम को सफल संचालन के लिए हर सदस्य को टीम की सफलता के लिए कुछ एडजस्टमेंट करने परते हैं। यह एडजस्टमेंट बहुत महत्वपूर्ण है टीम स्पिरिट को बनाने और बरक़रार रखने में। दोस्तों की टीम में हम एक दूसरे से यह उम्मीद रखते हैं कि यह तो उसे पता है ;तो फिर क्यों एडजस्ट करना। दोस्ती वाले महफ़िल में जो एडजस्टमेंट ज़रुरत नहीं परता ;दोस्तों के टीम में उसके बिना टीम नहीं चलता।
तीसरी और सबसे महत्वपूर्ण सीख है सेंटीमेंट्स। दोस्त होने के नाते हम अक्सर कोई चीज़ अच्छे ना लगने पर भी कुछ नहीं बोल पाते हैं भावनाओं को कदर करते हुए। शायद हम ही कमजोर पर जाते हैं उस वक़्त। बोल नहीं पाते हैं जो बोलना जरूरी है। और इसी में चिढ़ और तनाव बढ़ जाता है क्रमशः। टीम में विभाजन हो जाता है। कानाफूसी शुरू हो जाती है। और हम अपना असली भावनाओं का दमन कर देते हैं। किसी भी रिश्ते का आनंद उठाने के लिए यह बाधा पहुँचाती है। स्पष्ट बातचीत का कोई विकल्प नहीं होता है किसी भी टीम के सफलता के लिए। दोस्तों के टीम में यह एक कमजोरी बन जाती है।
क्या आप सहमत है मेरे विचारों के साथ ?जरूर लिखिएगा और आपका विचार व्यक्त कीजिएगा। उम्मीद रखूँगा आपके विचारों का फेसबुक के माध्यम से। दोस्तों के साथ दोस्ती का आनंद लीजिए। टीम बनाना हो तो दुबारा सोचिए। खुश रहिए। 

शुक्रवार, 4 जनवरी 2019

भावना ,कुशी ,श्रद्धा , बॉबी, हिमांशी , देवयानी। क्या है यह ?क्यों ज़िक्र कर रहा हूँ। नाम हैं। छह इंसान का। इनके साथ जोड़ता हूँ तीन और नाम -साजिद ,सँचिता और प्रीतम। छह से नौ हो गए। क्या हो गया है मुझे ? बिना किसी कारन मैं क्यों कुछ नाम आपके सामने पेश कर रहा हूँ ? कारन एक है -कुछ समय पहले यह लोग एक दूसरे के अजनबी थे। आज एक सफल team बन गए हैं। कैसे बना यह टीम ? क्या सीखा हमने इस प्रयोग से ? यही है आज चर्चा का विषय आपके साथ।
नमस्कार। और अभिवादन आप सब को नए साल का। आज नए साल का सातवाँ दिन। ५२ में एक हफ्ता गुज़र गया है पलक झपकने के पहले ही। इसी तरह समय दौड़ता चला जाएगा। रुकेगा नहीं। किसी के लिए। अगर समय का सही सदुपयोग करना है तो टीम बनाए या सही टीम से जुड़े। क्योंकि अगर आप अंग्रेजी भाषा में टीम शब्द को लिखें -TEAM - Together Everyone Achieves More -हम अकेले जितना हासिल कर सकते हैं ; मिल कर,  टीम बना कर उससे कहीं ज़्यादा हासिल कर सकते हैं। टीम काम के स्थान पर या खेल के मैदान में ही केवल नहीं बनता है ,निजी जीवन में भी इसका अहम् भूमिका है -इसकी चर्चा कभी और। हमारे टीवी पर दिखाए गए पारिवारिक सीरियल में आपने तो परिवार के सदस्यों के बीच गठबंधन तो जरूर देखा होगा। वह लेकिन टीम नहीं है। इस सिलसिले में कभी और बात करेंगे। आज चर्चा करेंगे टीम कैसे बनता है , चलता कैसे है और कैसे जीत हासिल करता है।  आज का यह लेख मैं उन नौ टीम के सदस्यों को उत्सर्ग करता हूँ जिनके नाम मैंने इस लेख के शुरू में किया है। टीम और teamwork का एक मिसाल बनने के कारन। मैं इस टीम पर गर्वित हूँ।
किसी भी टीम की सफलता का पहला कदम और सफलता की नींव टीम बनाते वक़्त बनती है। क्यों। एक कदम पीछे हट कर हम यह समझे की टीम की परिभाषा क्या है ?जब दो या उससे अधिक इंसान एक किसी मंजिल या गोल को हासिल करने के लिए एक साथ जुड़ते हैं तो एक टीम बनती है। परिभाषा सहज है। इसका प्रयोग कठिन। जो व्यक्ति टीम बनाने के लिए सदस्योँ का चयन करता है और उन्हें टीम में शामिल होने के लिए मोटीवेट करता है , उनका भूमिका महत्वपूर्ण होता है। कृपया गौर कीजिएगा -मैंने मोटीवेट करने की बात कही है ,मजबूर करने की नहीं। जो टीम का सदस्य बन रहा है उसका ऐसा महसूस होना जरूरी है कि इस टीम में काम करके मुझे आनंद मिलेगा। मेरा निजी तरक्की होगा -किसी भी सन्दर्भ में -ज्ञान , अच्छे लोगों के साथ जुड़ना या कमाई- मोटिवेशन कुछ या कई हो सकते हैं। । कैसे मोटीवेट होते हैं लोग एक अनजान टीम में जुड़ने के लिए ? ट्रांसपेरेंसी या क्लियर कट समझ इसका नीव है। टीम में मेरा रोल क्या है ? मुझसे क्या उम्मीद की जा रही है ? मुझे कितना समय देना पड़ेगा ? मेरी कमाई कितनी और कैसी होगी ?और सदस्य किस तरह के हैं ? जो मुझे टीम के लिए चयन कर रहा है उससे बात करके , मिल कर मुझे कैसा महसूस हो रहा है ? क्या मैं इस व्यक्ति या संस्था पर भरोसा कर सकता हूँ ? यहीं पर साजिद और सँचिता ने अपने व्यवहार और कम्युनिकेशन के जड़िये नए सदस्यों का दिल जीत लिया। एक बार दिल ने तय कर लिया , तो दिमाग भी साथ देता है।  और यही हुआ।
टीम तो बन गया। परन्तु सफलता के लिए टीम का संचालन कैसे होगा इसकी समझ हर सदस्य के लिए जरूरी है। तरह- तरह के तरीके अपनाते हैं लोग इस विषय पर। यह एक अलग विषय है चर्चा का। मेरे तजुर्बे में संचालन का तरीका कैसा भी हो , दो विषय पर ध्यान रखना आवश्यक है -टीम लीडर पहले टीम का सदस्य है और फिर लीडर है। दूसरी बात यह टीम के संचालन के नियम -कानून यानि की डिसिप्लिन की समझ हर सदस्य के लिए आवश्यक है । यह हर सदस्य पर प्रयोग होता है। टीम लीडर के लिए भी।
टीम बन गया है , टीम के संचालन के विषय में चर्चा भी हो चुकी है परन्तु टीम को गंतव्य या मंजिल को हासिल करने के लिए क्या चाहिए ? एक शब्द -कमिटमेंट -अर्थात टीम और टीम के मकसद के प्रति विश्वास और जूनून सफल होने का। बेहतरीन कमिटमेंट का प्रदर्शन किया है इस टीम ने। कई बाधा का सामना करना पड़ा टीम को , परन्तु उन्होंने परिस्तिथितिओं और बधाओं पर विजय प्राप्त किया। कहीं अधिक समय देकर ; ध्यैर्य के साथ पेश आ कर ; काम करने के तरीके को बदल कर, लम्बा सफर कर काम के स्थान तक पहुँच कर। परन्तु टीम ने समय पर और समय के अंदर काम को ख़त्म किया। कमिटमेंट के लिए क्या जरूरी है -flexibility यानि की परिस्थिति के अनुसार अपने आप को बदलना और दृढ़ निश्चय के साथ डटे रहना। यहाँ मैं तारिफ करूँगा प्रीतम का। यह टीम उनकी कम्पनी के काम के लिए बनाया गया था। उसने कंधे से कंधा मिला कर काम किया। और प्रतिकूल समय पर उसने टीम का हौसला बढ़ाया और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि उसने प्रतिकूल समय पर टीम की ओर ऊँगली नहीं उठाई या  इलज़ाम नहीं लगाया। टीम का वह अहम् हिस्सा बन गया। इसी लिए टीम ने उसके और उसके काम के सफलता के लिए जी जान लगा कर अपने कमिटमेंट का परिचय दिया। अक्सर कठिन समय पर इंसान दूसरों पर इलज़ाम का सहारा लेता है जो कि गलत होता है और टीम का मनोबल कमजोर कर देता है।
आप किसी टीम के सदस्य हैं या टीम बनाना चाहते हैं ? आप कुछ बताना चाहते हैं टीम के विषय में ? जरूर बता दीजिए मुझे फेसबुक के माध्यम से। मेरे लिए जो बात नई सीख होगी , मैं अपनी अगले लेख में शामिल करूँगा आपके नाम के साथ। यह वादा रहा। अगले महीने चर्चा करूँगा एक इंटरेस्टिंग विषय पर -अगर दोस्त एक साथ मिल जाते हैं तो क्या अपने आप टीम बन जाती है ? आपके विचार इस प्रश्न पर आमंत्रित करता हूँ। 2019 जो कि इस शतक का अंतिम वर्ष है एक teenager की हैसियत से, आपके और अपनों के लिए बेहतरीन हो , यही प्रार्थना करता हूँ परमात्मा से। खुश रहिए और जिंदगी का आनंद लीजिये। हैप्पी न्यू ईयर। आप सब को।