शुक्रवार, 1 दिसंबर 2023

नमस्कार। साल का आखरी महीना। हर कोई चाहता है कि यह महीना अच्छे से गुज़र जाय और हम नए साल में बिना किसी बाधा या असुविधा के साथ प्रवेश करें। जरा सोचिए उस मजदूरों और उनके परिवार के विषय में जो की एक सुरंग में अटक गए थे। ४१ मजदूर और उनके परिवार पर क्या गुजरी होगी। उन सबको सलाम जिन्होंने अनहोनी को होनी कर दिखाया। सबसे ज़्यादा हौसला बढाती है मजदूरों का साहस और वापस उसी काम में जाने का निर्णय। उन्होंने प्रमाण कर दिखाया है कि डर के आगे जीत है। और यही सोच उनको विश्वास दिला रहा था जब तक वह अंदर थे। कैसे संभव  हुआ यह अभियान ? यही आज के लेख का विषय है। 

पहली बात है टीम वर्क। जो अंदर थे और जो बाहर से मदत कर रहे थे ,उनमें ताल मेल बेहतरीन रहा। अंदर -बाहर दोनों टीम के सदस्यों ने एक दूसरे का साथ निभाया और नेतृत्व की बात सुनी। चूँकि कठिन था उद्धार कार्य तरह तरह के विशेषज्ञ जुड़ रहे थे इस अभियान में। इसका मतलब है कि लीडर बदल रहा था जरूरत के अनुसार। और टीम के सदस्य इस परिस्थिति पर निर्भर अलग अलग लीडर को स्वीकार किया और उनके निर्देशों का पालन किया। यह बहुत महत्वपूर्ण है हमारे हर किसी के जीवन में। इसे कहते हैं विशेषज्ञ का नेतृत्व जो कि उम्र में कम या जूनियर हो सकता है। दबे हुए लोगों में दो लीडर थे और उनकी बात सब लोगों ने सुना। काम करते वक़्त अगर उनमें कोई मतभेद होता भी होगा , उन्होंने संकट के समय ऐसे विचारों को अपने बीच दरार करने नहीं दिया। 

दूसरी बात है संचार बरक़रार रखना दोनों टीम के बीच। और सबसे महत्वपूर्ण सीख है कि जब संचार बरक़रार रखने के लिए वार्तालाप संभव नहीं हो रहा तब इशारों के माध्यम से संचार बनाए रखना है। दबे हुए टीम के लीडर ने दिमाग लगा कर पानी के सप्लाई को चालु और बंद किया बीच -बीच में ताकि बाहर के टीम को यह समझ में आए कि अंदर लोग जिन्दा हैं और दिमाग के साथ काम कर रहें हैं। इसी लिए कहा जाता है कि समझने वालों के लिए इशारा ही काफी है !

तीसरी बात है डर और स्ट्रेस का सामना करना। कोई भी ऐसी परिस्थिति में घबड़ा जाएगा। यही स्वाभाविक है। परन्तु परिस्थितिओं का मूल्याङ्कन करने के बाद इस डर से जूझने का रणनीति सोच कर प्रयोग करना ही एक मात्र उपाय होता है। और घबराहट को दूर करने का एक उपाय है अपने अंदर के बच्चे को प्रोत्साहन देना। बच्चे कम डरते हैं। यही दबे हुए टीम ने किया। बचपन में जो खेल सब ने खेला है ,उसमें मशगूल रहे। दिमाग व्यस्त रहा और टेंशन भी कम हुआ। 

चौथी सीख है शीर्ष स्थानीय नेतृत्व का हर वक़्त वहाँ मौजूद रहना और लगातार निर्णय लेना बिना किसी विलम्ब के। मशीन लाए गए। विशेषज्ञ देश -विदेश से बुलाए गए और अंत में एक ऐसे टीम को बुलाया गया जिन्हें 'रैट माइनर्स ' के नाम से सम्बोधित किया जाता है और जो अपने हातों से खुदाई करते हैं। दो -तीन निर्णय ऐसे लिए गए जिसमे रिस्क या खतरा था , परन्तु शीर्ष नेतृत्व ने ऐसे फैसले लिए बिना विलम्ब के जो कि फायदेमंद रहे। इसी लिए कहा जाता है कि ज़िन्दगी में रिस्क ना लेना ही ज़िन्दगी का सबसे बड़ा रिस्क होता है। 

अंतिम सीख है विश्वास करना और उम्मीद के साथ मुक़ाबला करना की हमें विजय प्राप्त होगा। अपने आप पर और पूरी टीम पर भरोसा रखना अति आवश्यक है। बाहर निकलने के बाद दो में से एक लीडर ने सामवादिक सम्मेलन में गर्व के यह बोला कि हमारे देश ने विदेश से भारतीय नागरिकों को कठिन परिस्थितिओं से बचाव किया और सुरक्षित उनके परिवार वालों से मिलाया है। हम तो अपने देश में ही थे !

४१ परिवारों को बधाई और सलाम आपके धैर्य और अधिकारिओं पर भरोसा रखने के लिए। और सादर प्रणाम टीम के हर सदस्य को इतने जान को सुरक्षित उद्धार करने के लिए। मेरा अटूट विश्वास है कि इस घटना पर फिल्म जरूर बनेगी। जो भी यह फिल्म बनाएगा उनसे सविनय निवेदन है कि उस फिल्म के अभिनेता इन्हे ही बनाइये क्योंकि यही असल हीरो हैं !

आप सब को नए साल की अग्रिम बधाई। स्वस्थ रहिए और ख़ुश रहिए। फिर मुलाकात होगी नए साल में।