गुरुवार, 3 दिसंबर 2020

Doc U Mantra- December 2020

नमस्कार।  साल का आखरी महीना। कई जगह हमने पढ़ा है कि २०२० को हमारी ज़िन्दगी में एक विशेष स्थान प्राप्त है जिसका कारण हम सब को पता है। कुछ लोग तो यह भी कह रहें हैं कि २०२० को गिनती में ही नहीं लाना चाहिए। हम कुछ कर ही नहीं पाए। मेरा सोच थोड़ा अलग है। आप जो यह लेख आज पढ़ पा रहें हैं और मैं यह लेख आपके लिए पेश कर पा रहा हूँ , यह हम दोनों के लिए खुशकिस्मती है। जिसके लिए हमें आभारी रहना चाहिए ऊपर वाले पर। कितने परिवार को इस वायरस ने कष्ट पहुँचाया है। आज का विषय आभार और आभारी होना कितना महत्वपूर्ण है हमारे लिए , इस पर मैं अपना सोच पेश करूँगा। 

अमेरिका में नवंबर महीने का चौथा गुरुवार एक राष्ट्रीय छुट्टी होता है। यह दिवस thanks giving दिवस के तौर पर मनाया जाता है। इस प्रथा का शुरुआत १६२१ में बताया जाता है जब कुछ यूरोपियन समुदाय के लोग अमेरिका में पहली बार अच्छे फसल के लिए इसकी शुरुआत की थी ईश्वर को धन्यवाद करने के लिए।  अभी यह अमेरिका के वासियों के लिए  स्वतंत्रता दिवस के अलावा सबसे महत्वपूर्ण दिवस है जिसका धर्म या धार्मिक प्रथाओं के साथ कोई संयोग नहीं है। इस दिन हर व्यक्ति कोशिश करता है दूसरों के प्रति अपना आभार व्यक्त करने का। कुछ इंसान गरीब लोगों के लिए भोजन का आयोजन करते हैं , एक दूसरे को भेंट या तोहफा देते हैं। क्यों जरूरी है आभार व्यक्त करना ?

हार्वर्ड विश्वविद्यालय के प्रोफेसर फ्रांसेस्का गिनो ने २०१३ में इस विषय पर काफी प्रयोग किया है जिससे कुछ निष्कर्ष सामने आए हैं। उनका कहना है कि हर इंसान को कई मौके मिलते हैं अपने कर्मक्षेत्र में और पारिवारिक जीवन में अपना आभार व्यक्त करने का , परन्तु हम करते नहीं हैं। कर्मस्थल पर हम और भी काम मौकों पर आभार व्यक्त करते हैं। २००० लोगों के बीच अमेरिका में किया गया एक रिसर्च में देखा है कि अपनी नौकरी के बरक़रार रहने के विषय में भी आभारी नहीं हैं। ज़रा सोचिये कितने लोगों ने इस वायरस के कारण गत कई महीनों में अपना नौकरी खो दिया है। शायद इस के कारण कुछ लोग अभी अपनी नौकरी बरक़रार रहने पर ईश्वर के पास अपना आभार व्यक्त किया होगा। 

ना आभार व्यक्त कर के हम दो फायदों से खुद को वंचित करते हैं। आभार करने से खुद में एक पॉजिटिव एहसास होता है , कठिन समय पर विजय पाने में मदत करता है ,स्ट्रेस सँभालने में सहायता मिलती है और सामाजिक रिश्ते मजबूत होते हैं। इन वजह से हमारे मानसिक और शारीरिक स्वास्थ पर पॉजिटिव प्रभाव पड़ता है। 

दूसरा फायदा आभार व्यक्त करने का यह होता है कि जिस के पास हम आभार व्यक्त करते हैं , उन पर हम एक प्रभावशाली और दीर्घ समय तक बने रहने वाला गुडविल बनाते हैं। इसके कारण हर इंसान का निजी सम्मान और वैल्यू का बढ़ोतरी होता है जिसके वजह से वह हमको और दूसरों की मदत ज़्यादा पैमाने पर करता है। 

मेरा अपना सोच कहता है कि हमारी ईर्ष्या और उससे जुड़ा हुआ असंतोष हमें आभार प्रकट करने से रोकता है। हम अपनी उन लोगों के साथ करके निराश हो जाते हैं जिनको शायद ज़िन्दगी ने हमसे ज़्यादा दिया है। हम यह भूल जाते हैं कि हमें अनगिनत लोगों से ज़्यादा ज़िन्दगी ने आशीर्वाद किया जिसके लिए हमें शुक्रगुज़ार होना चाहिए , परन्तु हम तो अपने किस्मत को कोसने में ज़्यादा व्यस्त रहते हैं। 

मैं आप सब पाठाकों का आभारी हूँ जो कि हर महीने मेरा लेख पढ़कर मुझे प्रोत्साहित करते हैं। यह लेख मेरा आपके लिए thanks giving है। कुछ नए पाठकों ने मुझे पुराने लेखों को पढ़ने का इरादा प्रकट किया है। उनके लिए मैं हर सोमवार को एक पूर्व प्रकाशित लेख फेसबुक में पेश करूँगा। 

स्वस्थ रहिए। सावधानी के साथ कोई समझौता मत कीजिये ,मुलाकात होगी अगले साल के पहले महीने में। उसके लिए अग्रिम शुभेच्छा आप सब के लिए। 

शुक्रवार, 30 अक्तूबर 2020

 नमस्कार। विजया दशमी और दूर्गा पूजा के लिए शुभकामनाएँ। उम्मीद करता हूँ कि आप सब ने सावधानी के साथ त्यौहार का आनंद लिया होगा। पूरे विश्व में वायरस का दूसरा उत्थान नज़र आ रहा है। हमारे देश में यही उम्मीद की जा रही है। सावधानी का कोई विकल्प नहीं है। अगले दिनों में दिवाली और छट पूजा का त्यौहार आने वाला है। उसके लिए अग्रिम शुभेच्छा। 

मैंने विजया दशमी के अवसर पर कई लोगों को मेसेज भेजा sms या whats app के माध्यम से। एक छवि उभर कर मेरे सामने आई है। इस विषय पर मैं थोड़ा चिंतित हूँ। मैंने महसूस किया है कि मैंने कुछ ऐसे लोगों को मेसेज भेजा है जिसके साथ मेरा कुछ स्वार्थ जुड़ा हुआ है। ऐसे कुछ लोग ने मुझे मेसेज भेजा है कई वर्षों के बाद क्यूँकि उनका स्वार्थ जुड़ा हुआ है। इतने सालों के बाद उनको मेरी  जरूरत है। क्या स्वार्थी होना गलत है ? 

नहीं। यह मेरा सोच है। परंतु अपने स्वार्थ के लिए हम कौन सा कदम उठाते हैं , वह मेरे लिए ज़्यादा महत्वपूर्ण है। मेरा सोच है कि इंसान जन्म से ही स्वार्थी होता है। एक नवजात शिशु भूख लगने पर रोता है। थोड़ी समझ हो जाने पर बच्चा यह समझ जाता है कि अपने स्वार्थ को पूरा करने के लिए उसके लिए रो पड़ना एक प्रभावशाली हथियार है। फर्क बच्चों के साथ वयस्कों के साथ केवल एक है -नादानी और मतलब का। जैसे हमारी उम्र बढ़ती जाती है ,हम मतलबी हो जाते हैं और हम स्वार्थ भावनाओं के साथ कई ऐसे कदम उठाते हैं , जो अनुचित या अनैतिक होता है। 

कुछ दिनों पहले एक लोकप्रिय सीरीज का दूसरा सीजन शुरू हुआ है। यह काल्पनिक कहानी उत्तर प्रदेश के एक शहर के बेताज बादशाह और बाहुबली के विषय में है। उनके परिवार , उनके प्रतिद्वंदी , राजनीती , पुलिस और उस शहर के लोगों पर उनके प्रभाव को बाखूबी दर्शाया गया है। शायद आपने  अंदाज लगा लिया है मैं किस सीरीज के विषय में टिप्पणी कर रहा हूँ। अभिनेता ,निर्देशक एवं अन्य सब लोगों को , जिन्होंने इतना वास्तविक ढंग से कहानी को पेश किया है , उनको मैं मुबारकबाद करता हूँ उनकी मेहनत , प्रतिभा और निष्ठा के लिए। इस सीरीज का मूल भावना है ,स्वार्थ। हर किरदार ने स्वार्थ के लिए क्या नहीं किया है इस सीरीज में। पूरी कहानी स्वार्थ और उसके कारण किये गए  घिनौने करतूतो की कहानी है। अंत में कोई नहीं जीत पाता है। परन्तु कुछ न कुछ गवांता जरूर है। लेकिन यही कहानी है इस दुनिया की। 

अगर हम रामायण या महाभारत का जिक्र करें तब भी स्वार्थ , ईर्ष्या , लालच , अहंकार , छल कपट यही पट भूमिका है इन महाकाव्यों का। कैसे कई चरित्रों ने दूसरों के भावनाओं के साथ छेड़खानी की और लोगों को हेरफेर किया अपने स्वार्थ की वजह से इसका ज्ञान हम सब को है। इसके ऊपर मंतव्य करने का मेरा कोई हक़ या ज्ञान नहीं है। परन्तु यह स्वीकार कर लेना की दुनिया और हर इंसान स्वार्थी है और इसी कारण मैं भी अपने स्वार्थ को सर्वोच्च प्राथमिकता दूँगा सही नहीं है। एक वास्तविक उदाहरण देता हूँ। जो कि मैंने अक्सर देखा है। पति और पत्नी  दोनों नौकरी करते हैं। पति का स्थानांतरण हो जाता है अपने नौकरी में। पत्नी को भी पति के साथ जाना पड़ेगा चाहे उसके कारण पत्नी के कैरियर में क्योँ ना हानि हो। पत्नी के कारण मैंने शायद ही किसी पति को ऐसा कदम उठाते देखा है। अगर पति का कैरियर इम्पोर्टेन्ट है , तो पत्नी का भी कैरियर उतना ही महत्वपूर्ण है। शादी में बंधने के वक़्त अगर कोई पति यह त्याग करने के लिए तैयार नहीं है , तो उसे कोई हक़ नहीं है किसी ऐसे इंसान से शादी करने का जिनके लिए उनका कैरियर अपने पारिवारिक जीवन के तरह महत्वपूर्ण है। 

मैं अगर किसी के साथ अपने स्वार्थ के कारण बहुत अर्सों के बाद मिल रहा हूँ , मैं यह बात शुरू में ही स्पष्ट बता देता हूँ। ताकि उनको ऐसा ना महसूस हो कि मुँह पर कुछ बोल रहा हूँ , परन्तु मकसद कुछ और है। इस वजह से गलतफहमी की कोई गुंजाइश नहीं बनती है। दूसरी बात जो भी निर्णय मैं अपने स्वार्थ के लिए ले रहा हूँ , उस वक़्त केवल इतना ख्याल रखता हूँ कि मेरा  निर्णय किसी के दुःख या हानि का कारण ना बन जाए। इसमें किसी का मंगल नहीं है। लेकिन कम्बख्त यह दुनिया और ज़िन्दगी हमें निरपेक्ष ना रहने पर सदा मजबूर करती है। या कि ललकारती है ? हम क्या करेंगे अपने और अपनों के स्वार्थ के लिए यह आखिर हमारा खुद का निर्णय है। 

फिलहाल अपने और अपनों के स्वार्थ के लिए सावधानी के साथ पेश आईये। यह वायरस किसी के हित के लिए नहीं है।  खुद को और अपनों को सुरक्षित रखने के स्वार्थ में अगर किसी का दिल दुखाना परे तो दुखा दीजिए। यही इस वक़्त की माँग है। दिवाली में सावधानी के साथ आतिशबाजी और प्रदीप जलाएं। मुलाकात होगी फिर २०२० के आखरी महीने में। 

शुक्रवार, 2 अक्तूबर 2020

 नमस्कार। इस साल के अंतिम तीन महीने में हम पहुँच गए हैं। यह वर्ष हर कोई के लिए एक अनोखा अनुभव रहा है। पूरे विश्व में ऐसा कोई नहीं है जो कि इस वायरस के प्रकोप से प्रभावित नहीं हुआ है। इस वायरस ने बिना किसी भेद भाव के हम सब को झंझोड़ के रख दिया है। इंसान का जीवन कितना असुरक्षित है ,इसका एहसास हम सभी को हो गया है। शायद हम सब को धर्म ,जात -पात ,ऊंच -नीच ,गरीब -अमिर से हट कर इंसानियत पर ध्यान देना चाहिए जिस तरह से हमारे राष्ट्र पिता ने कोशिश की थी। 

इस महीने बापूजी के जन्मदिन के अवसर पर मुझे  i next पत्रिका से एक सन्देश मिला। हमारे राष्ट्र पिता के एक प्रवचन की यादें उन्होंने ताज़ा कर दी - Be the change you wish to see in the world - अर्थात जो भी परिवर्तन हम दुनिया में देखना चाहते हैं ,वह खुद से शुरू होता है। यह सन्देश आज के सन्दर्भ में और ज़्यादा महत्व रखता है। क्यों ? आज का लेख इसी विषय पर है। 

पहली बात हमे अपने आप को संक्रमित होने से बचने के लिए मास्क पहनना , कम से कम एक मीटर की दूरी बरक़रार रखना , भीड़ से दूर रहना ,बिना प्रयोजन के घर के बाहर ना निकलना -इन सब नियमों को खुद और अपनों के लिए पालन करना जरूरी है। कुछ पल के लिए सोचिए -अगर हर इंसान इन नियमों का उलंघन ना करे तब क्या वायरस का फैलने में रुकावट आएगा या नहीं ? मेरा पड़ोसी तो कुछ नियम नहीं मान रहा है और उसको कुछ नहीं हुआ है तो मैं क्यों नियम मानू , यह सही सोच नहीं है। दुनिया चाहे कुछ भी करे , मैं नियम नहीं तोड़ूंगा यह एक कठिन निर्णय है। अकसर रात में सुनसान रास्तो पर लोग ट्रैफिक सिगनल का उलंघन करते हैं। गिने चुने लोग उस वक़्त भी सिगनल पर रुकते हैं। ऐसे लोग इस दुनिया में अलग मिसाल कायम करते हैं। 

दूसरी बात यह है कि हमारे हर किसी के पेशे पर इस वायरस का प्रभाव जरूर हुआ है। चाहे वह स्कूल या कॉलेज का विद्यार्थी हो , गृहबधु हो , नौकरी या बिज़नेस हो , या रिटायर किया हुआ इंसान हो, पेशेदार स्पोर्ट्समैन हो  -हर किसी का चौबीस घंटा , दिन का बदल चुका है। घर से काम करना , बच्चों का ऑनलाइन क्लास , बाहर ना निकलने का मौका -ऐसे कई परिवर्तन ने ज़िन्दगी पर एक नया तनाव और चुनौती खड़ा कर दिया है। इस वक़्त अगर बुजुर्ग या बच्चे अपने में परिवर्तन किए बिना दुसरे परिवार वाले से परिवर्तन की उम्मीद लेकर बैठे रहेंगे , तो गाँधी जी का सन्देश कामयाब नहीं होगा। 

तीसरी महत्वपूर्ण परिवर्तन है काम के सिलसिले में -चाहे आप नौकरी कर रहे हो या बिजनेस। ग्राहक का व्यवहार बदल चुका है। कोरोना से पूर्व की स्थिति , अभी की स्थिति और कोरोना पर विजय हासिल करने के बाद की स्थिति , एक ही तरफ हमें ले जा रही है -परिवर्तन खुद में -एकदम मजबूरी है। अगर हम खुद को नही बदल सकेंगे तब हम अपना अस्तित्व खो देंगे। हमने अब तक जो सफलता पाई है , वह आगे बरक़रार रहेगा , इसका कोई गारंटी नही दे सकता है।  और परिवर्तन खुद से शुरू होता है। आपकी कंपनी आपको परिवर्तन करने में सहायता नही भी कर सकती है। परन्तु आप को बदलना पड़ेगा। नहीं तो दुनिया बदल जाएगी और आप देखते रह जायेंगे। 

हमारे भूतपूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादूर शास्त्री जी का जन्मदिन भी २ अक्टूबर को है। लेकिन हर कोई उस दिन को गाँधी जयंती के नाम से जानते और याद करते हैं। ऐसा ज़िन्दगी में होता है। जहाँ आपको उतनी पब्लिसिटी नहीं मिलती है जितना वाजिफ है। निराश मत हो जाइएगा। अनगिनत लोग इस वक़्त कोरोना से पीड़ित मरीजों का सेवा कर रहें है जिनका परिचय हमारे पास नही है। लेकिन गाँधी जी के सन्देश के अनुसार हर व्यक्ति ने अपने में बदलाव लाया है कोरोना से लड़ने के लिए। उन सब को मेरा प्रणाम। 

नवरात्री और दशहरा के लिए अग्रिम शुभेच्छा आप सब के लिए। खुद क्या और क्यों बदलेंगे थोड़ा सोच लीजिये और परिवर्तन शुरू कीजिए। सावधान रहिए। स्वस्थ रहिए। 


शुक्रवार, 4 सितंबर 2020

नमस्कार। इस वित्तीय वर्ष का छठा महीना आ गया है। समय तेज रफ़्तार के साथ अग्रसर हो रहा है। हम सब इस वायरस की वजह से अपने जीने के तरीके को एडजस्ट करते जा रहें हैं। समय के साथ हम सीख रहें हैं और निरंतर प्रयास कर रहें हैं कि हम जितना हो सके स्वाभाविक जीवन जी सके। यह जो हम सीख रहें हैं , हमारा शिक्षक कौन है ? कभी आपने सोचा है इस विषय पर। हम ज्ञान अर्जन करने के लिए सप्रतिभ हैं क्योंकि हम वायरस से बच कर रहना चाहते हैं। ऐसे कुछ लोग भी हैं जो कि सुनकर , जान कर भी सावधानी नहीं बरत रहें हैं। ऐसे सीख का लाभ ही क्या है जो कि हम प्रयोग ना करे ,अपनी ज़िन्दगी में। अपने लिए। 

इस महीने पाँच सितम्बर को हम सब ने शिक्षक दिवस के अवसर पर अपने शिक्षक को श्रद्धा के साथ याद किया या अपना प्रणाम व्यक्त किया। आप अपने जीवन में किस शिक्षक से सबसे ज़्यादा प्रभावित हुए हैं। और क्यों ? मुझे फेसबुक के माध्यम से जरूर बताईये। मैं अपने अगले महीने के लेख में उसके विषय में चर्चा करूँगा। 

मेरे ज़िन्दगी में सबसे प्रभाव मेरी माँ का रहा है। उन्होंने कभी मुझे स्कूल के पाठ्यक्रम को सीखने में मदत नहीं किया है। उन्होंने मुझे प्रभावित किया है उनके अपने कर्मों और कर्तव्य से। आज मैं अपनी माँ को श्रद्धांजलि अर्पण कर रहा हूँ आप के साथ उनसे सीखी हुई बातों को आपके साथ शेयर करके। सोलह साल पहले शिक्षक दिवस के दिन वह हमें छोड़ कर इस दुनिया से चल बसी। शिक्षक दिवस के दिन मैंने अपने सबसे प्रभावशाली शिक्षक को खो दिया। 

मैंने अपने माँ से पहली बात जो सीखा कि हर इंसान दुसरे से मिले स्नेह का अत्याधिक कदर करता है और उसे कभी भूल नहीं सकता है। मेरा हर मित्र जो कि मेरी माँ से मिला है पहली बात उनके विषय में यही कहता है।  मेरी माँ एक नर्स थी। मैंने अपनी आँखों से उनको दर्द से कतराते हुए मरीज़ के सर पर स्नेह के साथ हाथ फेरने का प्रभाव देखा है। मरीज़ का कतराना रुकते हुए देखा है। 

दूसरी बात जो मैंने उनसे सीखा है कि अपनों को साथ ले कर चलो। अपनापन उसी से महसूस होता है। मैंने अपने मामा से सुना है कि मेरी माँ अपनी बड़ी बहन और अपने दो छोटे भाई को लेकर रिफ्यूजी बनकर इस देश में आई थी जब वह आठवीं कक्षा में पढ़ती थी। उन्होंने यह निर्णय किया था कि उन्हे ऐसे प्रोफेशन के लिए खुद को तैयार करना पड़ेगा जिसके जरिए वह एक सम्मानजनक ज़िन्दगी जी सके और अपने परिवार को साथ रख सके। इस बात को ध्यान में रख कर उन्होंने नर्सिंग की पढ़ाई की और अपने क्लास में प्रथम स्थान अर्जन किया ताकि उनको उसी मेडिकल कॉलेज में नौकरी मिल जाए जहाँ से उन्होंने पढ़ाई की। तब तक उन्होंने शादी नहीं कि जब तक उनके दोनों भाई ने अपनी पढ़ाई खत्म ना कर ली। रिष्तेदारों के ना चाहने पर भी उन्होंने एक भाई को सरकारी आर्ट कॉलेज में पढ़ने में मदत की क्योंकि उनको आर्ट में दिलचस्पी थी। उन दिनों के लिए यह बहुत साहसी कदम था। फोकस हमारे सब के लिए जरूरी है। दुनिया से अलग सोचना साहस का परिचय है। इस सन्दर्भ में यह बताना आवश्यक है की मेरे मामा एक सफल कमर्शियल आर्टिस्ट बन सके थे। मेरी माँ की वजह से। 

जब मैं चौथी कक्षा में था , मेरी माँ ने BA पढ़ने का निर्णय लिया।  क्योँ ? क्योंकि उनको अपने करियर में तरक्की करने के लिए ग्रेजुएट बनना था। उन्होंने डिस्टिंक्शन सहित BA पास किया अपने काम और परिवार को सँभालते हुए।  सीखने का कोई उम्र नहीं होता है , यह मैंने अपनी माँ से सीखा है। केवल खुद पर भरोसा और हिम्मत चाहिए। 

जब वह अपने कैरियर के शिखर पर पहुँच गई उन्होंने अंग्रेजी भाषा में पब्लिक स्पीकिंग के महत्व का एहसास किया। उन्होंने अपने टीम के लोगों को प्रोत्साहित किया इस विषय में।  एक ट्रेनर खोज कर निकाला और अपने जूनियर लोगों के साथ मिल कर अंग्रेजी भाषा में पब्लिक स्पीकिंग का ट्रेनिंग लिया।  उन्हें कभी ऐसा महसूस नहीं हुआ कि अपनी एक कमजोरी को अपने जूनियर के सामने स्वीकार करने में कोई असुविधा है। उनसे सीख कर मैं नहीं जानता हूँ स्वीकार करने में नहीं हिचकिचाता हूँ। 

मैंने अपनी माँ को सुबह चार बजे हॉस्पिटल जाते हुए देखा है। उनका कहना था कि अगर वह नहीं जाएगी तो उनकी टीम को कैसे पता चलेगा कि वह ड्यूटी पर ना रह कर भी , सतर्क रहती है। मैंने सुना है कि लोग नाईट ड्यूटी में ना झपकी लेकर सदा सतर्क रहते थे , उनके इस आकस्मिक विजिट के कारण।  अगर टीम कठिन काम कर रही है , मुझे भी उनका साथ निभाना है , यह मैंने उनसे सीखा है। 

और कई सीख है जो कि मुझे बहुत प्रभावित की है। अगर आप लोग चाहोगे तो अगले महीने पेश करूँगा।  फेसबुक के माध्यम से मुझे जरूर बताईये। सावधान रहें।  यही मूल सीख है इस वक़्त। 

शुक्रवार, 3 जुलाई 2020

नमस्कार। देखते देखते इस साल के छह महीने बीत गए। लोकडाउन के बाद तीन महीने गुज़र गए। हर महीने हम उम्मीद करते हैं कि अगले महीने से ज़िन्दगी स्वाभाविक हो जाएगी। परन्तु ऐसा नहीं हो रहा है। कई विश्वविद्यालय के अध्यन ने जून के महीने के अंदर परिस्थिति नियंत्रण में आ जाने का पूर्वाभास किया था। नियंत्रण में आने के विपरित परिस्तिथि बिगड़ रही है। कब ज़िन्दगी स्वाभाविक होगी कुछ पता नहीं। लेकिन ज़िन्दगी को आगे बढ़ाना है। हर देश की सरकार डट कर मुक़ाबला कर रही है। बिज़नेस प्रतिष्ठान खुल रहें हैं। लोगों का मनोबल क्रमश बढ़ रहा है। इन हालातों में बिज़नेस के मालिक दो सवालों से जूझ रहे हैं। इस समय बिज़नेस के लिए क्या करना चाहिए और आगे क्या करना चाहिए।
हमारे पेशे में हम बिज़नेस संस्थाओं को सलाह देते हैं व्यवसाय को किस तरीके से बढ़ाया जाय और मुनाफा की बढ़ोतरी कैसे हो। इन तीन महीनों में हमने चार  सीख अर्जन की है। इसकी चर्चा आज के लेख का विषय है।
पहली सीख आज के लिए जिओ। व्यावसायिक निर्णय आज की परिस्थिति के आधार पर लो। आगे की सोचो परन्तु निर्णय आज के वास्तव पर लो। एक संस्था सरकार के स्किल डेवलपमेंट के प्रयास से जुड़ी हुई है। सौ से अधिक सेंटर के माध्यम से बच्चों को प्रशिक्षण दे कर नौकरी दिलवाती है। सेंटर बंद परे थे। क्या करती यह संस्था। उन्होंने वास्तव का सहारा लिया। अपने कर्मचारियों को नौकरी से नहीं निकाला। बिना तनख्वा के छुट्टी पर भेज दिया। लोग समझते है इस मज़बूरी को। इस महीने से सरकार ने सेंटर खोलने का निर्देश जारी किया है। इस वक़्त यह कम्पनी केवल इतना सोच रही है कि कैसे सेंटर को शुरू करना है और बच्चोँ को कैसे वापस लाना है। इसके लिए कितने कर्मचारियों को काम पर बुलाना है। और कुछ नहीं। सेंटर खुलने के बाद आगे का सोचा जाएगा। अनिश्चयता के दौरान आज के लिए जिओ। कल के लिए कल सोचेंगे।
दूसरी सीख है ब्रैंड का महत्व। हमारा गत १६ सालों से एक शहर के एक नंबर ज्वेलर के साथ ब्रैंडिंग बढ़ाने के सलाह देने का काम चल रहा है। यह ब्रैंड धनतेरस के अलावा साल में कभी भी डिस्काउंट नहीं देता है। शादी का गहना सबसे बड़ा मार्केट है ज्वेलर के लिए। चूँकि काफी परिवार ने शादी स्थगित कर दिया है और सोने का दाम क्रमश बढ़ रहा है ;जून के महीने में इस संस्थान ने पहली बार अपने ८० साल के इतिहास में डिस्कॉउंट ऑफर का एलान किया है। लकडाउन के कारण बंद रहने के बाद इस ऑफर के माध्यम से इस संस्था को उम्मीद से कहीं ज़्यादा सफलता मिली है। हमने एक नया फार्मूला बनाया है ब्रैंडिंग को बेहतर बनाने का। इस फार्मूला का प्रयोग इस उदाहरण में झलकता है।
तीसरी सीख है कि कठिन समय अपने साथ कुछ मौका भी लाता है। एक अस्पताल जो कि १६ वर्षों से हमारा क्लाइंट है करीब आठ साल पहले पूर्वोत्तर भारत में एक आधुनिक अस्पताल का निर्माण किया है। अस्पताल अच्छा चल रहा था। परन्तु उम्मीद ज़्यादा थी। लकडाउन के दौरान ट्रेन और फ्लाइट्स बंद हो जाने के ठीक पहले हमने सही अनुमान लगाया कि मरीज़ जो उस शहर के बाहर बड़े शहरों में चिकित्सा के लिए चले जाते थे मजबूरन इस अस्पताल में आएंगे। पहले से डॉक्टर और स्टाफ उस शहर में बढ़ा दिए हमने। हमारा अनुमान सही रहा। बिज़नेस लगभग दुगना हो गया है। इस वक़्त प्रयास यही है कि मरीजों का आस्था जीत लिया जाय ताकि आगे भी वह शहर से बाहर अपनी चिकित्सा के लिए नहीं जायें।
चौथी सीख है कि इस कठिन समय में किसी भी बिज़नेस का सबसे महत्वपूर्ण समपद है उस बिज़नेस के कर्मचारी। कई बिज़नेस ने मजबूरन थोड़ी बहुत छटाई की है। लेकिन जिनको रखा है उनसे और कैसे प्रोडक्टिविटी बढ़ाए यही जरूरी है। हमने एक संस्था के मैनेजर लोगों की ट्रेनिंग ली। इस बदलते हुए परिस्थितिओं में हम कैसे खुद को बदलेंगे और हमारे टीम के सदस्यों को बदलने में मदत करेंगे। बिज़नेस के नए अवसर को कैसे ढूंढ कर निकालेंगे और उसका फायदा उठाएँगे। मुझे यह बताते हुए प्रसन्नता हो रही है कि इस कंपनी ने जल्द नए बिज़नेस को पहचाना और उसका भरपूर फायदा उठा रहें हैं।
आपके इस प्रिय पत्रिका INEXT के साथ मिलकर हम आपके बिज़नेस की बढ़ोत्तरी के लिए एक बेहतरीन उपाय ला रहें हैं। इसका भरपूर फायदा लेने के लिए INEXT ऑफिस में excelerate प्रोग्राम की जानकारी के लिए संपर्क कीजिए। आपका बिज़नेस और आपकी सफलता का जिक्र मैं इस लेख के माध्यम से लाखोँ पाठकों तक पहुँचाना चाहता हूँ। मेरे साथ आप फेसबुक के माध्यम से भी बातचीत कर सकते हैं। सावधान रहिये। अभी ज़िन्दगी को नॉर्मल होने में समय लगेगा। 

गुरुवार, 28 मई 2020

नमस्कार। उम्मीद करता हूँ कि आप हर कोई स्वस्थ और सुरक्षित हैं। कठिन समय पीछा छोड़ने का नाम ही नहीं ले रही है। हमारे देश में कॅरोना वायरस से संक्रमित लोगों की सँख्या बढ़ती ही जा रही है। पूरी दुनिया में परिस्तिथि हमारे देश की तरह ही है। हर देश की सरकार एक दुविधा से गुज़र रही है। क्या हम लकडाउन को और मजबूती के साथ आगे बढ़ाए ताकि अधिक लोगों की जान बचे या लकडाउन को शिथिल करके वाणिज्यिक और अर्थनैतिक कार्यक्रम की शुरुआत करे ताकि अर्थव्यवस्ता बेहतर बने और लोगों को काम और आय करने का मौका मिले। दोनों निर्णय के लिए कुछ वजह अनुकुल हैं और कुछ विपक्ष में। क्या करना चाहिए इस स्थिति में ? यही आज के लेख का विषय है।
ग्रीस में इस असमंजस को Protagoras Paradox के नाम से परिचित है। करीब २००० साल पहले प्रोटागोरस नामक एक वकील के दुविधा से इस प्रोटागोरस पैराडॉक्स का जन्म हुआ था। कहानी कुछ ऐसी है। प्रोटागोरस एक मशहूर वकील था। वकालत सीखने वाला एक विद्यार्थी प्रोटागोरस के साथ काम सीखने की उम्मीद से उसके साथ जुड़ना चाहता था। परन्तु उसके पास गुरु दक्षिणा देने के लिए कोई पैसे नहीं थे। दोनों ने मिलकर एक निर्णय लिया। जिस दिन यह विद्यार्थी अपना पहला केस जीत लेगा वकालती का ,वह गुरु दक्षिणा के पैसे प्रोटागोरस को देगा -अपनी पहली कमाई से। 
विद्यार्थी की ट्रेनिंग समाप्त हो जाने के बाद कई साल गुज़र गए परन्तु उसने प्रोटागोरस को एक भी पैसा नहीं दिया। प्रोटागोरस ने विद्यार्थी के खिलाफ न्यायालय में मुकदमा दाखिल कर दिया। उनका सोच था कि अगर मैं मुकदमा जीत जाऊँगा तो मुझे अपना गुरू दक्षिणा मिल जाएगा क्योंकि मुक़दमे का मूल विषय ही यही था। अगर प्रोटागोरस मुकदमा हार जाता है तो विद्यार्थी को जो पैसे मिलेंगे उसे प्रोटागोरस को वापस देना पड़ेगा क्योंकि यही बात तय हुई थी कि विद्यार्थी अपनी पहली जीत का पैसा गुरु दक्षिणा की खातिर प्रोटागोरस को देगा। 
यही Protagoras Paradox के नाम से मशहूर हुआ। दोनों पक्ष सही है। चिकित्सा में अक्सर यह दुविधा होती है -ऑपरेशन करे तो खतरा है ,ना ऑपरेशन करो तो मरीज़ के बचने की उम्मीद घट जाती है। बच्चों को घर के पास पढ़ने भेजा जाय ताकि उन पर नज़र बनी रहे ,या दूर के शहर भेजा जाय जहाँ नौकरी बेहतर मिल सकती है। 
अभी यही असमंजस के साथ पूरी दुनिया जूझ रही है। दोनों पक्ष सही हैं। समय ही बता सकता है कि क्या होगा आगे चल कर। इस सन्दर्भ में मैं येल विश्वविद्यालय के द्वारा प्रकाशित एक रिसर्च का ज़िक्र करूँगा। यह रिसर्च दो विषय पर आलोकपात करता है। पहली बात कि पूरी दुनिया में जिस रफतार से नए मरीज़ की संख्या बढ़ रही है , उसके कारण सोशल डिस्टैन्सिंग पर लोगों का विश्वास कमजोड़ होता जा रहा है। निराश मत हो जाईये। सोशल डिस्टैन्सिंग ही वायरस के फैलने को रोकने का प्रथम और प्रधान तरीका है। आँकड़े बता रहें हैं कि कुछ दिन बाद इन्फेक्शन का फैलना धीमा हो जाएगा अगर हम सोशल डिस्टैन्सिंग का पालन करते रहें। 
दूसरी बात इससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण है। हम सब एक छत के नीचे एक परिवार की तरह जी रहें हैं। इस को एक सोशल यूनिट का दर्जा दिया गया है। इसी तरह अलग -अलग परिवार अलग -अलग सोशल यूनिट है। लकडाउन शिथिल होने की वजह से अगर एक सोशल यूनिट का कोई सदस्य किसी दूसरे सोशल यूनिट के सदस्य के साथ अपना हाथ मिलाता है तब इन्फेक्शन एक सोशल यूनिट से दूसरे सोशल यूनिट में फैल कर हर सदस्य को वायरस दे सकता है। यह वायरस अदृष्य है जिसके कारण और भी खतरनाक है। इस सावधानी को बरतना बहुत जरूरी है। 
२०२० का छटा महीना आज शुरू हो गया। आधा साल गुजरने को चला। समय तेज रफतार के साथ भाग रहा है। परन्तु हमें धैर्य के साथ परिस्थिति का मुकाबला करना पड़ेगा। सोच समझ कर दिमाग से निर्णय लीजिए -अपने लिए और अपने सोशल यूनिट के लिए। इसी में सब का मंगल है। खुश रहिये। सही सलामत रहिए। यही मेरी दुआ है। मजे की बात यह है कि Protagoras Paradox का अभी भी समाधान नहीं मिला है और वकालती सिखाते वक़्त हर यूनिवर्सिटी में इसका केस लड़ा जाता है विद्यार्थी को सिखाने के लिए !

शुक्रवार, 1 मई 2020

नमस्कार। मैंने जब से आपके साथ संपर्क बनाया है इस लेख के माध्यम से मैंने नमस्कार के जरिये लेख शुरू की है। कोरोना ने नमस्कार को विश्व व्यापी सम्बोधन का तरीका बना दिया है। क्या यह कोरोना के बाद भारत का पूरे विश्व पर बढ़ते हुए प्रभाव का नमूना है ? शायद हम सही सोच रहें हैं।
आज सुबह ख़बरों में लकडाउन का दो हफ्तों के लिए बढ़ाये जाने का संदेश मिला। इस लकडाउन के दौरान कई मजेदार वीडियो व्हाट्स एप के माध्यम से मुझे मिले हैं। आज एक वीडियो में एक महिला ने बेहतरीन अंदाज़ में अपने बढ़ते हुए टेंशन का ज़िक्र किया है। किस बात का टेंशन। इतनी प्रतिभा जो उभर कर आ रही है। लोग गाना ,बजाना ,नृत्य, योगा और खाना बनाने का वीडियो बना रहे हैं। यह महिला किसी भी विषय में निपुण नहीं है। और यही कारण है उनके टेंशन का। वीडियो के अंत में उन्होंने अपने एक प्रतिभा का मजेदार अंदाज़ में ज़िक्र किया है -झगड़ने का। मजा आ गया यह वीडियो देख कर। मिजाज को हल्का कर दिया।
आप में भी कोई प्रतिभा जरूर होगी। अपने प्रतिभा को मुझ तक पहुंचाहिये फेसबुक के माध्यम से। मैं आपके प्रतिभा को और अधिक लोगों तक पहुँचाने का वादा करता हूँ।
मेरे पिछले महीने के लेख में मैंने आप से अनुरोध किया था , फेसबुक के माध्यम से मुझे आप क्या कर रहें हैं बताने के लिए। कानपुर शहर से वर्णिका ने अपने विषय में लिखा है कि उन्होंने लकडाउन के समय अपने दोस्तों के साथ फ़ोन पर काफी बातचीत की है जिनके कारण उनके दोस्त बहुत खुश हैं। और उन्होंने योगा के विषय में चर्चा किया है और उसके बाद कई लोगों ने उनसे योगा के विषय में सलाह माँगने लगे हैं। दूसरे सज्जन जिन्होंने मुझे अपने विषय लिख कर भेजा है गोरखपुर के निवासी हैं जो कि इस समय प्रयागराज में वक़ालती के पेशे से जुड़े हैं। उनका नाम है आनन्द स्वरुप गौतम। आनंद जी ने पढ़ने लिखने में अपनी दिलचस्पी का ज़िक्र किया है। संगीत का आनंद लेते हैं और सामयिक मुद्दों पर अपना विचार व्यक्त करतें हैं फेसबुक के माध्यम से। धन्यवाद आप दोनों को मेरे अनुरोध का सम्मान करने के लिए।
मैं भी काफी समय बिता रहा हूँ पढ़ने में। अधिकतर लेख कोरोना के बाद ज़िन्दगी कैसी हो सकती है उसके विषय में पूर्वाभास करने का प्रयत्न कर रही है। कल मैं एक वीडियो देख रहा था हार्वर्ड बिज़नेस रिविउ के यूटुब चैनल पर। थॉमस फ्रीडमन जो की न्यू यॉर्क टाइम्स से जुड़े एक विश्व प्रसिद्द संवादिक हैं ने इस वीडियो में एक महत्वपूर्ण सलाह दी है -कोरोना के बाद जो इंसान सफलता और आनंद के साथ ज़िन्दगी जियेगा वह सबसे स्ट्रॉन्गेस्ट या स्मार्ट इंसान नहीं होगा -वह सबसे adaptive यानि जो परिस्थितिओं के साथ अपने आप को परिवर्तन कर सकेगा ,वही मुक़द्दर का सिकंदर होगा।
इस सन्दर्भ में मेरा अपना सोच है कि हर इंसान को अपने विषय में एक महत्वपूर्ण निर्णय लेना पड़ेगा -मैं किस विषय में best हो सकता हूँ। क्यूंकि आगे दुनिया बेस्ट का ही कदर करेगी। कैसे आप बेस्ट हो सकते हैं ? इसके लिए अपने हातों के पाँच उँगलियों पर ध्यान दीजिये। पहली बात कोई भी एक ही विषय में बेस्ट हो सकता है। दूसरी बात आप किस विषय में बेस्ट बनना चाहते हैं ? तीसरी बात ऐसे विषय को बेस्ट बनने के लिए चुनिए जिसमें आपका सहजात प्रतिभा है और उसमें आप इस वक़्त अच्छे हैं। चौथी बात आपके लिए बेस्ट की परिभाषा क्या है ? उदाहरण स्वरुप -हमारे देश के क्रिकेट कपतान ने फिटनेस में बेस्ट होने के लिए क्रिकेट के बाहर के खिलाड़ियों को अपना परिभाषा बनाया क्यूंकि उनके फिटनेस का मापदंड क्रिकेट के फिटनेस से ऊपर है। पाँचवी बात है आपका मापदंड कौन है। जिसको आप बेस्ट समझते हो और अक्सर सोचते हो कि अगर मैं इस विषय में इनके तरह बन सकूँ तो खुद को सफल मान लूँगा। उनके विषय में अध्यन कीजिये। उनके ज़िन्दगी से सीखिए। उनका अनुकरण कीजिए। नक़ल नहीं। वह आपके इंस्पिरेशन हैं। कौन जाने आप अपने प्रयास से उनसे भी बेहतर हो जाओ।
मैंने एक और दिलचस्प लेख पढ़ी है -प्रोटागोरस पैराडॉक्स -जो कि इस हर राष्ट्र के लीडर को एक कठिन निर्णय लेने में मजबूर कर रहा है -लकडाउन या इकोनॉमी ? अगले लेख में इसके विषय में लिखूँगा। तब तक सावधानी के साथ रहिए और अपने प्रतिभा का प्रदर्शन फेसबुक के माध्यम से मुझ तक पहुँचा दीजिए। इंतज़ार करूँगा आपके प्रतिभा का और लकडाउन से निकल आने का। 

शुक्रवार, 28 फ़रवरी 2020

नमस्कार। कैसा रहा आपका वैलेंटाइन्स दिवस ? क्या आपको मेरे पिछले महीने के लेख से कुछ नई दिशा नज़र आई ?अपने ज़िन्दगी में आपने कोई बदलाव के विषय में सोचा है ? मार्च का महीना इस वित्तीय वर्ष का आखरी महीना है। खुद में बदलाव लाने के लिए यह महीना संकल्प बनाने के लिए आदर्श महीना है। ताकि अप्रैल में आप नई शुरुआत कर सकते हो।
पिछले महीने के लेख में मैंने अपनी ज़िन्दगी में चैन या सुकून का ज़िक्र किया था। मैं  जापान के लोगों से काफी सीखता हूँ। जापानी लोग अपनी ज़िन्दगी चैन से जीना चाहते हैं। मारी फुजिमोतो एक जापानी लेखक ने इस विषय पर कई सारी किताबेँ लिखी हैं जो कि कई भाषाओँ में अनुवाद किया गया है। बहुत सारे लोग उनकी लेख से प्रभावित हुए हैं। मैं भी काफी प्रभावित हूँ। पिछले महीने के लेख से मैं कुछ पंक्तियाँ दोहरा रहा हूँ। क्यूँकि वही मूल मंत्र है।
लेखक ने एक जापानी शब्द 'शिबूई 'का ज़िक्र किया है। यह जीवन का एक दर्शन है। अभिज्ञता और तजुर्बा हमें हर चीज़ को एक नए अंदाज़ में देखने और अनुभव करने में मदद करता है। वसंत ऋतु में पहली कलि या सुबह के चाय का रंग। हर चीज़ में चैन है अगर हम उसको ढूँढ निकाले। खुद के लिए समय निकालिए इस चैन को ढूँढने के लिए। लेखक का कहना है कि ज़िन्दगी में हम सब कोई ,हर वक़्त परफेक्ट होना चाहते हैं। क्या हम हो सकते हैं ? ना परफेक्ट होने का भी आनंद उठाना जरूरी है।
लेखक एक और जापानी शब्द का उल्लेख करती है -वाक़ेई सेजयकु -जो कि चार चिंताओं का मिश्रण है -वा यानि harmony यानि अनुरूपता या सामंजस्यता  ; केई यानि respect यानि इज़्ज़त ;सेई यानि  purity अर्थात शुद्धता ;जयकु यानि tranquility अर्थात शांति। ज़रा गौर फरमाईये  चार शब्दों पर - सामंजस्यता ; इज्जत , शुद्धता और शांति। ऐसा कोई है जो अपनी ज़िन्दगी में यह चार नहीं चाहता हो ? शायद अपने लिए नहीं। अपने स्वार्थ के लिए कभी -कभी इंसान दूसरों के ज़िन्दगी में इन चार में बेचैनी बढ़ाने का  कोशिश करते हैं। इतिहास , महाकाव्य ,कहानियाँ ,सिनेमा ,टीवी सीरियल -कहीं भी देखिए -ऐसी कहानियाँ हर जगह नज़र आएगी। जहाँ किसी इंसान ने अपने स्वार्थ के कारण किसी और इन्सान के इन चारों में किसी एक या अनेक चिंता पर बेचैनी पैदा की थी। रामायण में राजा दसरथ में बेचैनी कैकेयी ने किया था। जो कि रामायण का शुरुआत है।
जो पाठक मेरा यह लेख नियमित पढ़ते हैं ,उनको शायद याद होगा कि मैं एक विषय पर अत्याधिक ज़ोर देता हूँ -एक दूसरे का इज्जत करना। मेरा विचार है कि यही किसी भी रिश्ते का मूल आधार है। जरा सोचिए अगर हम हर एक इंसान के साथ इज्जत से वर्ताव करें तब क्या हमें भी इज्जत मिलेगा ? मुसीबत है कि हम अपने आप को किसी किसी इंसान से ऊँचा समझते हैं और इज्जत के साथ पेश नहीं आते हैं और इससे रिश्तों में दरार तैयार हो जाता है।
एक नई फिल्म इस विषय को बहुत ही सराहनीय ढंग से पेश किया है। एक व्यक्ति अपने बीवी को गुस्से में आकर एक थप्पड़ मार देता है। दोनों परिवार के बुजुर्ग का कहना है कि वैवाहिक जीवन का यह एक अभिन्न अंग है। औरत को इसे स्वीकार कर लेना चाहिए और ज़िन्दगी में आगे बढ़ना चाहिए। परंतु क्यों ? अगर औरत ने अपने पति पर हाथ उठाया होता तो क्या यही बात होती ?कभी नहीं ? क्योंकि मर्द पर औरत हात नहीं उठा सकता है। अगर आप सोचिए एक थप्पड़ ने -सामंजस्यता ; इज्जत , शुद्धता और शांति- चारों का उलँघन किया है। और यही रिश्ते को तोड़ देता है। क्या किसी को चैन मिलता है ? या बेचैनी लोगों को गिरफ़्त कर लेती है ?
ज़िन्दगी जीने के लिए है। चैन से जीने का कोशिश कीजिये। चैन हमारे खुद के हातों में है। किसी और के पास नहीं। ख्याल रखिएगा कि किसी और के बेचैनी को बढ़ा कर कोई भी चैन से नहीं जी सकता है। गुस्सा और प्रतिशोध के भावनाओं से प्रभावित हो कर हम अक्सर , अनजाने में ऐसे कदम उठा लेते हैं ,अपनों के साथ भी। इसमें किसी को फायदा नहीं होता।
नए साल में नए संकल्प के साथ ज़िन्दगी में चैन से जीने का प्रयास कीजिए। सबसे अधिक लाभ आप ही का होगा। खुश रहिए और हमारे साथ फेसबुक के माध्यम से जुड़े रहिए। आप सब को होली के त्यौहार के लिए अग्रिम बधाई। सावधानी से रंगो के त्यौहार का आनंद लीजिये।

बुधवार, 29 जनवरी 2020

नमस्कार। फरवरी का महीना। वैलेंटाइन्स दिवस का महिना। वैलेंटाइन्स , यानि प्यार। प्यार लोगों से ,चीज़ों से या ब्रैंड्स से होता है। मेरा प्यार एक जापानी गाड़ी के ब्रैंड के साथ है। कुछ दिन पहले मैंने उसी ब्रैंड का सातवाँ गाड़ी ख़रीदा गत १५ वर्षों में। मैंने अपने आप से प्रश्न किया -क्यों मैं वापस उसी ब्रैंड को खरीदता हूँ ?मुझे एक ही कारण दिखा -मैं इस गाड़ी को खरीद कर चैन से रह सकता हूँ। मैंने चैन के विषय में थोड़ी बहुत पढ़ाई लिखाई की जो इस और अगले दो महीनों के लेख का मूल विषय रहेगा।
जापानी लोग अपनी ज़िन्दगी चैन से जीना चाहते हैं। मारी फुजिमोतो एक जापानी लेखक ने इस विषय पर कई सारी किताबेँ लिखी हैं जो कि कई भाषाओँ में अनुवाद किया गया है। बहुत सारे लोग उनकी लेख से प्रभावित हुए हैं। मैं भी काफी प्रभावित हूँ।
लेखक दो साल के उम्र में अपने पिता -माता के साथ एक छोटे गांव में रहने के लिए चली जाती है। क्यों ?क्यूँकि उनके पिताजी अपने माता -पिता के साथ रहना चाहते थे क्यूंकि दोनों करीब -करीब सौ साल के उम्र के थे। उनको अपने बेटे और बहु की ज़रुरत थी। नतनी की भी। उनके साथ रहना लेखक पर एक गज़ब का प्रभाव करता है और बुढ़ापे को 'जी' कर बिताने के लिए प्रेरित करता है। बुढ़ापा ज़िन्दगी का एक अभिन्न हिस्सा है। उससे मायूस नहीं होना चाहिए। हम उदास हो जाते हैं। भूल जाते हैं कितने लोगों को बुढ़ापे का सौभाग्य प्राप्त नहीं होता है। जो सौभाग्यवान है बुढ़ापे का आनंद ना उठा कर यह सोचता रहता है कि मैं अपने युवा अवस्था के तुलना में क्या -क्या नहीं कर पाता हूँ। और इसी सोच के कारन मायूस हो जाता है। और बुढ़ापे के आनंद से वंचित हो जाता है।
जापान एक छोटा सा देश है। चारो ओर समुद्र से घिरा हुआ है। प्रकृति ने कई बार जापान को तहस -नहस कर दिया है अपने प्रकोप से। प्राक ऐतिहासिक दिनों में जापानी लोगों को कई ऐसे कठिन प्राकृतिक घटनाओ से जूझना परा है। ज़िन्दगी एकदम सहज नहीं हुआ करती थी। लेखक अपने जीवन में टाइफून और भयानक भूकंप का ज़िक्र करती है जिसकी वजह से उन्होंने लाखो लोगों को अपना प्राण गवांते हुए देखा है। जापानी शुरू में इस प्राकृतिक प्रकोप के कारण अपना हौसला खो बैठते थे और उनका मिजाज चिरचिराहट वाला होता था। समय के साथ जापानी लोगों ने यह समझा और निर्णय लिया कि प्रकृति के साथ जूझने के लिए प्रकृति के अच्छे और बुरे -दोनों को स्वीकार कर लेना जरूरी है। इसी में चैन है। और यही ज़िन्दगी है। इस एहसास ने जापानी लोगों को विनम्रता सिखाई है उनके बातचीत और शारीरिक भाषा में।
कभी आपने किसी तालाब के स्थिर पानी को देखकर आनंद लिया है ?गज़ब का चैन महसूस होता है। एक पत्थर फेक दीजिए उसी तालाब में। आपको बेचैनी दिखेगी। कुछ देर बाद फिर चैन। यही ज़िन्दगी है। पल -पल बदलती रहती है।
लेखक ने एक जापानी शब्द 'शिबूई 'का ज़िक्र किया है। यह जीवन का एक दर्शन है। अभिज्ञता और तजुर्बा हमें हर चीज़ को एक नए अंदाज़ में देखने और अनुभव करने में मदद करता है। वसंत ऋतु में पहली कलि या सुबह के चाय का रंग। हर चीज़ में चैन है अगर हम उसको ढूँढ निकाले। खुद के लिए समय निकालिए इस चैन को ढूँढने के लिए। लेखक का कहना है कि ज़िन्दगी में हम सब कोई ,हर वक़्त परफेक्ट होना चाहते हैं। क्या हम हो सकते हैं ? ना परफेक्ट होने का भी आनंद उठाना जरूरी है।
क्यूँकि -'हर पल जियो। कल हो ना हो'- खुश रहिए क्यूँकि ज़िन्दगी ही कभी ख़ुशी ,कभी गम। 

शुक्रवार, 3 जनवरी 2020

सादर प्रणाम २०२० का। आशा है शुरुआत अच्छी रही। एक नए दशक के शुरुआत में हर कोई अपने ख्वाबों को तराश रहा होगा। कैसा रहेगा यह २०२० का दशक ?मुझे इस दशक में निम्लिखित दस परिवर्तन नजर आ रहे हैं।
१ ) टी २० भी दर्शकों के लिए धीमा पर जायेगा। टी १० का जमाना शीघ्र आ रहा है। समय और ध्यैर्य दोनों पर प्रेशर बढ़ रहा है। इंस्टेंट फ़ूड की तरह इंस्टेंट एंटरटेनमेंट का जमाना आ रहा है।
२ ) समय का उपयोग और बदल जाएगा। आँकड़े कहते हैं कि स्मार्ट फ़ोन वाला इंसान औसत १८०० घंटा फ़ोन के साथ बिताता है ३६५ दिनों में। हम नत मस्तक रहेंगे शेष जीवन। स्पोंडिलोसिस का रोग और बढ़ेगा।
३ ) मोबाइल डाटा जितना सस्ता होगा उतने लोग अपने आप को गूगल के भरोसे एक्सपर्ट समझेंगे। विद्यार्थिओं को सुविधा होगी। जिनके पास जिज्ञासा है वह खो जाने का संभावना रखता है -गूगल सर्च में। फलस्वरुप कॉन्फिडेंस से ज्यादा कन्फूशन बढ़ेगा।
४ ) जितना हम गूगल के साथ समय बिताएंगे उतना हम अपना प्राइवेसी के साथ कोम्प्रोमाईज़ करेंगे। साइबर क्राइम सबसे ज्यादा हमें नुकसान पहुँचाएगा। सतर्क रहना बहुत जरूरी है।
५  ) टीवी अपने समय पर चलेगा। हम अपने समय पर अपना मनपसंद प्रोग्राम देखेंगे। ज्यादा लोग मोबाइल फ़ोन पर। कहीं कम लोग टीवी स्क्रीन पर। विज्ञापनदाताओं का इस वजह से काफी असुविधा होगी। मार्केटिंग का विज्ञान और बदल जाएगा।
६ ) ऑनलाइन रेपुटेशन मैनेजमेंट ब्रैंड्स के लिए सरदर्द बन जाएगा। इसका एक फायदा रहेगा। ब्रैंड्स को और ज़्यादा जिम्मेवार बनना पड़ेगा। आपको ख्याल रखना पड़ेगा कि पॉलिटिशंस को भी अपना ब्रैंड बनाना मजबूरी है।
७  ) नए कैरियर चॉइस उभर कर सामने आ रहे हैं। पॉलिटिक्स एक कैरियर चॉइस बन कर सामने आएगा। युवा पॉलिटिक्स में ज़्यादा दिमाग लगाएगा। जिओपॉलिटिक्स का प्रभाव हर देश पर पड़ेगा। इसके कई पहलु होंगे। हर देश का नेता अपने आप को दुसरे देश के नेता से बेहतर दिखाने का कोशिश करेगा। इस सिलसिले में छोटे देशों का भूमिका अहम् होगा।
८ ) एनवायरनमेंट और पॉलूशन पर चर्चा बढ़ेगा। साथ में वातावरण में दूषणता भी बढ़ेगा। शब्द और मोटर प्रदूषण और तेजी से बढ़ेंगे हमारे देश में।
९ ) एक तरफ कुछ लोग ज़्यादा सेहत का ख्याल ,और कुछ लोगों का सेहत पर खर्च बढ़ेगा। स्ट्रेस या मानसिक तनाव एक भयानक परिमाण में बढ़ेगा।
१० ) तनाव बढ़ने का एक कारण होगा खुद पर फोकस। सेल्फी ,फेसबुक लाइक्स ,अपने मुँह मिया मिट्ठू बनना हम सब में तनाव बनाएगा। इससे बचके रहना आवश्यक है।
मैंने क्या प्रतिज्ञा किया है अपने आप से ?
सुबह उठने के कम से कम दो घंटों के बाद ही मैं अपना मोबाइल फ़ोन देखूँगा। काम के वक़्त मोबाइल को साइलेंट कर के काम करूँगा।
फेसबुक के जरिए अब कई लोगों के जन्मदिन पर हमें अलर्ट मिल जाता है। लोगों के साथ फ़ोन पर बात करके जन्मदिन का बधाई बोलूँगा। हम एक दूसरे से दूर चले जा रहे हैं क्यूँकि हम बात नहीं कर रहे हैं एक दूसरे के साथ। रिश्ते कमजोर पर जा रहे हैं।
टेक्नोलॉजी हमारे लिए बना है। हम टेक्नोलॉजी के लिए नहीं। हमें टेक्नोलॉजी को प्रयोग करना है। उनका गुलाम नहीं बनना है। गूगल से जानकारी मिलती है। हमें वह जानकारी एक्सपर्ट नहीं बना सकती है।
चाहे दुनिया कितनी भी बदल जाए। २०२० से हम २०३० भी पहुँच जाएंगे। सब कुछ बदल सकता है। केवल एक चीज़ कभी नहीं बदलेगा किसी के लिए -दिन के २४ घण्टे। इसका सदुपयोग ही हर इंसान को आगे बढ़ाएगा। टेक्नोलॉजी का सहारा लीजिए। आगे बढ़ने के लिए। अपने लिए ,खुद के लिए समय निकालने के लिए। अपनों के साथ समय बिताइए। यही आनंदमय ज़िन्दगी का एक मात्र राज़ है।
खुश रहिए। और ज़िन्दगी अपने अंदाज़ में जीने का प्रयत्न कीजिए। इसी में हम सब का मंगल है।