शुक्रवार, 29 सितंबर 2023

 नमस्कार। अक्टूबर का महीना। बापू के जन्मदिन का महीना। राष्ट्रीय छुट्टी का दिन। कई नए कार्यक्रम का उद्घाटन। हर साल। बापू के विषय में इतने लेख मौजूद कि नए लेख को मेहनत करना पड़ता है पाठकों को आकर्षित करने के लिए। मेरा आज का लेख यही प्रयास करेगा। 

बापू को आर्टिस्ट लोगों ने तरह तरह से दर्शाया है। उन सब में आज मैं आप सब का ध्यान बापू के ऐनक पर आकर्षित करना चाहता हूँ। मेरे लिए बापू के ऐनक दूरदर्शिता का प्रतिनिधित्तव करते हैं। अंग्रेजी भाषा में जिसे हम विशन के नाम से जानते हैं। यह विशन हर किसी के लिए आवश्यक है। परन्तु अधिकतर लोग इस विषय पर उतना ध्यान नहीं देते हैं। चाहे आप विद्यार्थी हो ,व्यवसायी हो ,नौकरी में हो या अवसर प्राप्त हो ,सबको अपना विशन निर्धारित करना जरूरी है। जब तक आपके दिमाग में अपने लिए या अपने कैरियर के लिए या अपने व्यवसाय के लिए कम से कम आने वाले तीन साल का गंतव्य नहीं दिख रहा हो ,आप उस सफर के लिए प्रस्तुति नहीं ले सकते हैं। यह जरूरी है ताकि आपको अचानक ऐसे परिस्थितिओं का सामना ना करना पड़े जिसके लिए आप तैयार ना हो। 

आप अपना विशन कैसे निर्धारित करेंगे। आइये बापू से सीखते हैं। बापू ने अहिंसा को क्यों अपना हथियार बनाया अंग्रेज़ों को भगा कर हमारे देश को आजादी दिलवाने के लिए। उन्होंने अपने ताकत को अपनाया। स्वतंत्रता के पहले हमारे पास ना ही थे हथियार ना थी सेना अंग्रेज़ो का मुक़ाबला करने के लिए। हिंसा वाली लड़ाई में अंग्रेज़ों का पल्ला भारी था ,और हमारा कमजोर। परन्तु हमारी जनसँख्या हमारी ताकत थी। बापू को केवल अपने नेतृत्व से लोगों को ललकारना था उनसे जुड़ने के लिए। दांडी यात्रा नमक के लिए शुरू हुआ। नमक के बिना खाना नहीं बन सकता। यह बात लोगों दिल ,दिमाग और पेट से जुड़ गया। बापू को यह भी पता था कि अहिंसा के आधार पर यह लड़ाई लंबा चलेगा। सफलता मिलने में समय लगेगा और अंग्रेज़ लोगों का मनोबल तोड़ने के लिए कुछ भी करेगा। इसी लिए लोगों को साथ बनाये रखने के लिए बापू ने खादी बनाना और पहनना शुरू कर दिया। खादी बनाने का चक्र स्वाधीनता का एक चिन्ह बन गया। लोगों के  स्वाभिमान को एक जबरदस्त प्रोत्साहन मिला। अंग्रेजी कपड़ों को बहिष्कार करके लोगों को एक अलग किस्म के स्वाधीनता का एहसास हुआ। 

अगर आप अपने विशन को निर्धारित करना चाहते हैं तो पहले अपना गंतव्य तय कीजिये। यह निर्णय दो चीज़ पर निर्भर है -आपका स्ट्रेंथ और भविष्य की संभावना। एक उदाहरण स्वरुप समझिये आपका एक दुकान है किराणा दुकान। आप मालिक हो और आप अगले तीन साल में अवसर लेना चाहते हो। आपका वारिस आपकी इकलौती बेटी है जो कि इस वक़्त शादी शुदा है और आपके पड़ोस में रहती है। इस वक़्त वह निर्णय ले पा रही है कि वह आपके दुकान की जिम्मेवारी संभालेगी या नहीं। आप क्या करोगे इस स्थिति में। यह तय करेगा आपके गंत्वय का सफर। जहाँ आपको यह पता होगा कि आपके लड़की का विकल्प होगा अगर वह जिम्मेवारी लेने से इंकार कर दे। यह होता है विशन तय कर लेने का फायदा। 

उम्मीद करता हूँ कि बापू के जन्मदिन के अवसर पर आप अपने ज़िन्दगी को एक विशन दोगे और उस दिशा में कदम बढ़ाओगे। हमारी शुभकामनाएं आपके साथ है। फिर मिलेंगे अगले महीने दशहरे के बाद। नवरात्री और दूर्गा पूजा के आप सबको अग्रिम बधाई। त्योहारों का समय आपके लिए मंगलमय हो। 

नमस्कार। इस वित्तीय वर्ष के छटे महीनें में आप का स्वागत। सितम्बर का महीना। शिक्षक दिवस का महीना। हमारे देश के द्वितीय राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्ण के जन्मदिन के अवसर पर अपने  शिक्षक को प्रणाम। इस साल भारत के लिए शिक्षक वर्ग के लिए और भी खुश होने के कई कारण हैं। चंद्रयान की सफलता। भारत के युवा खिलाड़ी का शतरंज की दुनिया में अतुलनीय सफलता और विश्व एथलेटिक्स चम्पिओन्शिप्स में भारतीय प्रतियोगी का जेवलिन थ्रो में स्वर्ण पदक जीतना और रिले रेस में भारतीय टीम का फाइनल में हिस्सा लेना। इन सब सफलता के पीछे एक नहीं ,अनेक शिक्षक और गुरु का निस्वार्थ योगदान है। तो गुरु या शिक्षक कौन होता है और विद्यार्थी कौन है। इसी विषय पर आज का लेख है। 

खुद से प्रश्न कीजिये कि आपका गुरु कौन है। क्या जिन शिक्षक ने आपको स्कूल ,कॉलेज या किसी शिक्षा संस्थान में आपको पढ़ाया या सिखाया है केवल आपके शिक्षक हैं। शायद नहीं। उनके अलावा भी कुछ ऐसे इंसान होंगे जो शिक्षक नहीं होने के बावजूद आपको कुछ ना कुछ सिखाया है। यह इंसान कोई भी हो सकता है। परन्तु आपकी ज़िन्दगी में हर इंसान ऐसा नहीं हो सकता है। स्कूल या कॉलेज के मास्टरजी या अध्यापक से ऐसे लोग अलग कैसे हैं। फर्क है मजबूरी और स्वेच्छा के साथ स्वयं चुनने का। किसी भी मजबूरी के बिना। स्कूल में किसी भी विषय के अध्यापक को चुनने का विद्यार्थी का कोई हक़ नहीं होता है। नियुक्त किए हुए शिक्षक को स्वीकार कर लेना हम सब की मजबूरी है। परन्तु अध्यन के बाहर के गुरु का चयन हम खुद करते हैं बिना किसी मजबूरी का। 

हमारे इस गुरु के चयन में अपना स्वार्थ जुड़ा होता है। चाहे वह धार्मिक गुरु हो या काम के क्षेत्र का गुरु हो। हम उनको गुरु के दर्जे पे स्थापित करते हैं जिनसे हमें कोई फ़ायदा हो। यह किसी भी दृष्टिकोण से गलत नहीं है। किसी से सलाह लेना उस व्यक्ति को गुरु का दर्जा नहीं दिलवाता है। गुरु ऐसा इंसान होता है जिसके सन्दर्भ में आने से सुकून या मार्ग दर्शन मिलता है। मेरा मानना है कि गुरु शिष्य को नहीं ढूँढ़ता है। शिष्य गुरु को ढूंढ लेता है। 

गुरु और शिष्य का यह रिश्ता एक अंदरूनी विश्वास पर टिका होता है जिसका भीत है एक दूसरे के प्रति सम्मान। इसका तात्पर्य है कि गुरु को भी अपने शिष्य को और उनके भावनाओँ का सम्मान करना आवश्यक है। शिष्य उसी इंसान को गुरु का दर्जा देता है जिनसे वह लगातार सीख सकता है। अतः गुरु को अपने ज्ञान का सठीक प्रयोग करके शिष्य को उनके प्रश्नों के उत्तर ढूंढ़ने में मदत करना पड़ता है। 

एक प्रश्न का जवाब देना मेरे लिए आवश्यक है। शिक्षक और गुरु में फर्क क्या है। जिंदगी में कोई भी इंसान आपका शिक्षक बन सकता है। परन्तु हर शिक्षक गुरु नहीं बन सकता है। शिक्षक ऐसा इंसान जिससे हम कुछ भी सीख सकते हैं। उदाहरण स्वरुप हम परिवार के बच्चोँ से इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स के प्रयोग के विषय में काफी कुछ सीख सकते हैं। परन्तु उनको गुरु नहीं बनाते हैं। 

मूल विषय है सीखने का और मार्ग दर्शन का जरूरत। कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जिनका सोच होता है कि वह सब कुछ जानते हैं। और उन्हें किसी शिक्षक या गुरु से सीखने का कोई जरूरत नहीं है। यह सोच गलत और कुछ समय बाद उस इंसान के ज़िन्दगी के सफर में बाधा बन जाता है। हर किसी को गुरु का जरूरत नहीं पड़ सकता है परन्तु निरंतर शिक्षा और सीखने की आवश्यकता जरूर है। और इस सीखने में हम कहीं भी ,किसी से भी सीख सकते हैँ। केवल सीखने का जिज्ञासा जरूरत है। 

आज लेख के अंत में मैं अपने दोस्त के ९६ साल उम्र के माताजी का उल्लेख करना चाहता हूँ। छुटिओं में हम उनके कुछ दिनों के लिए ठहरे थे अपने परिवार के साथ। चूँकि वह दक्षिण भारत से है ,उन्होंने मेरी अर्धांग्नी को उत्तर भारत के पद्धति से दाल बनाने को कहा ताकि वह बनाने का तरीका देख सके और सीख सके। यह है सीखने का एक अनोखा मिसाल। सीखने में उम्र की कोई सीमा नहीं है। कोई लज्जा नहीं है। केवल किसी से भी सीखने का विनम्रता होना जरूरी है। 

शिक्षक दिवस के इस अवसर पर हर शिक्षक और गुरु को मेरा सादर प्रणाम। आप सब ने मुझको ज़िन्दगी में यहाँ तक पहुँचने में मदत किया है। मैं सदा आपका आभारी रहूँगा।