शुक्रवार, 30 अक्तूबर 2020

 नमस्कार। विजया दशमी और दूर्गा पूजा के लिए शुभकामनाएँ। उम्मीद करता हूँ कि आप सब ने सावधानी के साथ त्यौहार का आनंद लिया होगा। पूरे विश्व में वायरस का दूसरा उत्थान नज़र आ रहा है। हमारे देश में यही उम्मीद की जा रही है। सावधानी का कोई विकल्प नहीं है। अगले दिनों में दिवाली और छट पूजा का त्यौहार आने वाला है। उसके लिए अग्रिम शुभेच्छा। 

मैंने विजया दशमी के अवसर पर कई लोगों को मेसेज भेजा sms या whats app के माध्यम से। एक छवि उभर कर मेरे सामने आई है। इस विषय पर मैं थोड़ा चिंतित हूँ। मैंने महसूस किया है कि मैंने कुछ ऐसे लोगों को मेसेज भेजा है जिसके साथ मेरा कुछ स्वार्थ जुड़ा हुआ है। ऐसे कुछ लोग ने मुझे मेसेज भेजा है कई वर्षों के बाद क्यूँकि उनका स्वार्थ जुड़ा हुआ है। इतने सालों के बाद उनको मेरी  जरूरत है। क्या स्वार्थी होना गलत है ? 

नहीं। यह मेरा सोच है। परंतु अपने स्वार्थ के लिए हम कौन सा कदम उठाते हैं , वह मेरे लिए ज़्यादा महत्वपूर्ण है। मेरा सोच है कि इंसान जन्म से ही स्वार्थी होता है। एक नवजात शिशु भूख लगने पर रोता है। थोड़ी समझ हो जाने पर बच्चा यह समझ जाता है कि अपने स्वार्थ को पूरा करने के लिए उसके लिए रो पड़ना एक प्रभावशाली हथियार है। फर्क बच्चों के साथ वयस्कों के साथ केवल एक है -नादानी और मतलब का। जैसे हमारी उम्र बढ़ती जाती है ,हम मतलबी हो जाते हैं और हम स्वार्थ भावनाओं के साथ कई ऐसे कदम उठाते हैं , जो अनुचित या अनैतिक होता है। 

कुछ दिनों पहले एक लोकप्रिय सीरीज का दूसरा सीजन शुरू हुआ है। यह काल्पनिक कहानी उत्तर प्रदेश के एक शहर के बेताज बादशाह और बाहुबली के विषय में है। उनके परिवार , उनके प्रतिद्वंदी , राजनीती , पुलिस और उस शहर के लोगों पर उनके प्रभाव को बाखूबी दर्शाया गया है। शायद आपने  अंदाज लगा लिया है मैं किस सीरीज के विषय में टिप्पणी कर रहा हूँ। अभिनेता ,निर्देशक एवं अन्य सब लोगों को , जिन्होंने इतना वास्तविक ढंग से कहानी को पेश किया है , उनको मैं मुबारकबाद करता हूँ उनकी मेहनत , प्रतिभा और निष्ठा के लिए। इस सीरीज का मूल भावना है ,स्वार्थ। हर किरदार ने स्वार्थ के लिए क्या नहीं किया है इस सीरीज में। पूरी कहानी स्वार्थ और उसके कारण किये गए  घिनौने करतूतो की कहानी है। अंत में कोई नहीं जीत पाता है। परन्तु कुछ न कुछ गवांता जरूर है। लेकिन यही कहानी है इस दुनिया की। 

अगर हम रामायण या महाभारत का जिक्र करें तब भी स्वार्थ , ईर्ष्या , लालच , अहंकार , छल कपट यही पट भूमिका है इन महाकाव्यों का। कैसे कई चरित्रों ने दूसरों के भावनाओं के साथ छेड़खानी की और लोगों को हेरफेर किया अपने स्वार्थ की वजह से इसका ज्ञान हम सब को है। इसके ऊपर मंतव्य करने का मेरा कोई हक़ या ज्ञान नहीं है। परन्तु यह स्वीकार कर लेना की दुनिया और हर इंसान स्वार्थी है और इसी कारण मैं भी अपने स्वार्थ को सर्वोच्च प्राथमिकता दूँगा सही नहीं है। एक वास्तविक उदाहरण देता हूँ। जो कि मैंने अक्सर देखा है। पति और पत्नी  दोनों नौकरी करते हैं। पति का स्थानांतरण हो जाता है अपने नौकरी में। पत्नी को भी पति के साथ जाना पड़ेगा चाहे उसके कारण पत्नी के कैरियर में क्योँ ना हानि हो। पत्नी के कारण मैंने शायद ही किसी पति को ऐसा कदम उठाते देखा है। अगर पति का कैरियर इम्पोर्टेन्ट है , तो पत्नी का भी कैरियर उतना ही महत्वपूर्ण है। शादी में बंधने के वक़्त अगर कोई पति यह त्याग करने के लिए तैयार नहीं है , तो उसे कोई हक़ नहीं है किसी ऐसे इंसान से शादी करने का जिनके लिए उनका कैरियर अपने पारिवारिक जीवन के तरह महत्वपूर्ण है। 

मैं अगर किसी के साथ अपने स्वार्थ के कारण बहुत अर्सों के बाद मिल रहा हूँ , मैं यह बात शुरू में ही स्पष्ट बता देता हूँ। ताकि उनको ऐसा ना महसूस हो कि मुँह पर कुछ बोल रहा हूँ , परन्तु मकसद कुछ और है। इस वजह से गलतफहमी की कोई गुंजाइश नहीं बनती है। दूसरी बात जो भी निर्णय मैं अपने स्वार्थ के लिए ले रहा हूँ , उस वक़्त केवल इतना ख्याल रखता हूँ कि मेरा  निर्णय किसी के दुःख या हानि का कारण ना बन जाए। इसमें किसी का मंगल नहीं है। लेकिन कम्बख्त यह दुनिया और ज़िन्दगी हमें निरपेक्ष ना रहने पर सदा मजबूर करती है। या कि ललकारती है ? हम क्या करेंगे अपने और अपनों के स्वार्थ के लिए यह आखिर हमारा खुद का निर्णय है। 

फिलहाल अपने और अपनों के स्वार्थ के लिए सावधानी के साथ पेश आईये। यह वायरस किसी के हित के लिए नहीं है।  खुद को और अपनों को सुरक्षित रखने के स्वार्थ में अगर किसी का दिल दुखाना परे तो दुखा दीजिए। यही इस वक़्त की माँग है। दिवाली में सावधानी के साथ आतिशबाजी और प्रदीप जलाएं। मुलाकात होगी फिर २०२० के आखरी महीने में। 

शुक्रवार, 2 अक्तूबर 2020

 नमस्कार। इस साल के अंतिम तीन महीने में हम पहुँच गए हैं। यह वर्ष हर कोई के लिए एक अनोखा अनुभव रहा है। पूरे विश्व में ऐसा कोई नहीं है जो कि इस वायरस के प्रकोप से प्रभावित नहीं हुआ है। इस वायरस ने बिना किसी भेद भाव के हम सब को झंझोड़ के रख दिया है। इंसान का जीवन कितना असुरक्षित है ,इसका एहसास हम सभी को हो गया है। शायद हम सब को धर्म ,जात -पात ,ऊंच -नीच ,गरीब -अमिर से हट कर इंसानियत पर ध्यान देना चाहिए जिस तरह से हमारे राष्ट्र पिता ने कोशिश की थी। 

इस महीने बापूजी के जन्मदिन के अवसर पर मुझे  i next पत्रिका से एक सन्देश मिला। हमारे राष्ट्र पिता के एक प्रवचन की यादें उन्होंने ताज़ा कर दी - Be the change you wish to see in the world - अर्थात जो भी परिवर्तन हम दुनिया में देखना चाहते हैं ,वह खुद से शुरू होता है। यह सन्देश आज के सन्दर्भ में और ज़्यादा महत्व रखता है। क्यों ? आज का लेख इसी विषय पर है। 

पहली बात हमे अपने आप को संक्रमित होने से बचने के लिए मास्क पहनना , कम से कम एक मीटर की दूरी बरक़रार रखना , भीड़ से दूर रहना ,बिना प्रयोजन के घर के बाहर ना निकलना -इन सब नियमों को खुद और अपनों के लिए पालन करना जरूरी है। कुछ पल के लिए सोचिए -अगर हर इंसान इन नियमों का उलंघन ना करे तब क्या वायरस का फैलने में रुकावट आएगा या नहीं ? मेरा पड़ोसी तो कुछ नियम नहीं मान रहा है और उसको कुछ नहीं हुआ है तो मैं क्यों नियम मानू , यह सही सोच नहीं है। दुनिया चाहे कुछ भी करे , मैं नियम नहीं तोड़ूंगा यह एक कठिन निर्णय है। अकसर रात में सुनसान रास्तो पर लोग ट्रैफिक सिगनल का उलंघन करते हैं। गिने चुने लोग उस वक़्त भी सिगनल पर रुकते हैं। ऐसे लोग इस दुनिया में अलग मिसाल कायम करते हैं। 

दूसरी बात यह है कि हमारे हर किसी के पेशे पर इस वायरस का प्रभाव जरूर हुआ है। चाहे वह स्कूल या कॉलेज का विद्यार्थी हो , गृहबधु हो , नौकरी या बिज़नेस हो , या रिटायर किया हुआ इंसान हो, पेशेदार स्पोर्ट्समैन हो  -हर किसी का चौबीस घंटा , दिन का बदल चुका है। घर से काम करना , बच्चों का ऑनलाइन क्लास , बाहर ना निकलने का मौका -ऐसे कई परिवर्तन ने ज़िन्दगी पर एक नया तनाव और चुनौती खड़ा कर दिया है। इस वक़्त अगर बुजुर्ग या बच्चे अपने में परिवर्तन किए बिना दुसरे परिवार वाले से परिवर्तन की उम्मीद लेकर बैठे रहेंगे , तो गाँधी जी का सन्देश कामयाब नहीं होगा। 

तीसरी महत्वपूर्ण परिवर्तन है काम के सिलसिले में -चाहे आप नौकरी कर रहे हो या बिजनेस। ग्राहक का व्यवहार बदल चुका है। कोरोना से पूर्व की स्थिति , अभी की स्थिति और कोरोना पर विजय हासिल करने के बाद की स्थिति , एक ही तरफ हमें ले जा रही है -परिवर्तन खुद में -एकदम मजबूरी है। अगर हम खुद को नही बदल सकेंगे तब हम अपना अस्तित्व खो देंगे। हमने अब तक जो सफलता पाई है , वह आगे बरक़रार रहेगा , इसका कोई गारंटी नही दे सकता है।  और परिवर्तन खुद से शुरू होता है। आपकी कंपनी आपको परिवर्तन करने में सहायता नही भी कर सकती है। परन्तु आप को बदलना पड़ेगा। नहीं तो दुनिया बदल जाएगी और आप देखते रह जायेंगे। 

हमारे भूतपूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादूर शास्त्री जी का जन्मदिन भी २ अक्टूबर को है। लेकिन हर कोई उस दिन को गाँधी जयंती के नाम से जानते और याद करते हैं। ऐसा ज़िन्दगी में होता है। जहाँ आपको उतनी पब्लिसिटी नहीं मिलती है जितना वाजिफ है। निराश मत हो जाइएगा। अनगिनत लोग इस वक़्त कोरोना से पीड़ित मरीजों का सेवा कर रहें है जिनका परिचय हमारे पास नही है। लेकिन गाँधी जी के सन्देश के अनुसार हर व्यक्ति ने अपने में बदलाव लाया है कोरोना से लड़ने के लिए। उन सब को मेरा प्रणाम। 

नवरात्री और दशहरा के लिए अग्रिम शुभेच्छा आप सब के लिए। खुद क्या और क्यों बदलेंगे थोड़ा सोच लीजिये और परिवर्तन शुरू कीजिए। सावधान रहिए। स्वस्थ रहिए।