शुक्रवार, 29 मार्च 2019

नमस्कार। २०१९ का तीसरा महीना। वित्तीय साल का पहला दिन। समय कैसे गुज़र जाता है। पता ही नही चलता। आप के साथ इस लेख के माध्यम से मिलने का सिलसिला अपने चौथे साल में कदम रख रहा है। इस वक़्त भी आप मेरा लेख पढ़ रहें हैं ,मैं इस लिए आपका आभारी हूँ और रहूँगा। मैं इस पत्रिका के एडिटर का भी आभारी हूँ जिन्होंने मुझे आपके लायक समझा। और परमात्मा को धन्यवाद करता हूँ कि उन्होंने हम सबको एक नए वित्तीय वर्ष में कदम रखने के लिए आशिर्वाद किया।
नया साल। नई उम्मीदें। नौकरी करने वाले को इन्क्रीमेंट और प्रोमोशन की चिंता। छात्रों को नए क्लास की उत्सुकता। व्यवसायी लोगों को व्यवसाय बढ़ाने का सोच। गृहबधु को परिवार के खर्चों को कम करने की सोच या बढ़ते हुए खर्चे को जुगाड़ करने की रणनीति। हम इतना चिंतित रहते हैं आगे की सोच कर कि वर्तमान का आनंद उठाना भूल जाते हैं। चैन से ज़िन्दगी के अब तक के सफर के लिए किस किस के आभारी हैं उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने में शायद चूक जाते हैं। और ऐसे लोग कई लोग होते हैं।
आपने कभी रोहन भसीन का नाम सुना है। मैंने भी नहीं सुना था। परन्तु किसी अख़बार में उनका एक फोटो ने मेरा दिल छू लिया। इस फोटो में रोहन एक बुजुर्ग महिला को आलिंगन में पकड़ कर रखा है। और दोनों के आँखों में भरपुर आँसू। आनंद का। कृतज्ञता का। यह फोटो एक हवाई जहाज के अन्दर लिया गया है। रोहन उस हवाई जहाज का कमाण्डर और उनके आलिंगन में उनके नर्सरी स्कूल की टीचर। और हवाई जहाज आसमान में भारत से अमरिका की ओर। और रोहन का एलान -'आज मैं इस हवाई जहाज का कमाण्डर ने सीखने का पहला कदम इनके साथ लिया था। 'और उनके टीचर ने क्या बताया। पहले दिन नर्सरी स्कूल में जब उन्होंने पूछा -बेटा तुम्हारा नाम क्या है ? पायलट रोहन भसीन। कौन कृतज्ञ था किसके प्रति ? दोनों एक दूसरे के प्रति। अक्सर हम अनेक रिश्ते में इस कृतज्ञता को भूल जाते हैं। नहीं भूल जाते हैं शायद , पर जाहिर नहीं करते हैं। और यही रिश्ता और मजबूत करने का मौका खो देते हैं। जरा याद कीजिए कब आपने रिक्शा चलाने वाले को धन्यवाद बोला है।
मैं कृतज्ञता या gratitude के विषय में काफी अध्यन कर रहा हूँ। मेरा दृढ़ विश्वास है कि कृतज्ञता हमें बेहतर ज़िन्दगी जीने में मदत करता है।

“Be thankful for what you have; you’ll end up having more. If you concentrate on what you don’t have, you will never, ever have enough.” —Oprah Winfrey

Oprah Winfrey के इस विचार ने मुझे जबरदस्त प्रभावित किया है। बचपन की याद आ जाती है। कॉन्वेंट स्कूल में दोपहर के भोजन के ब्रेक के पहले प्रार्थना -ऊपर वाले को धन्यवाद कहना रोटी के लिए। उस वक्त इसका महत्व नहीं समझता था। आज बात समझ में आती है। 
पूरी दुनिया में काफी अध्यन और रिसर्च चल रहा है कृतज्ञता पर। अमेरिका के एक प्रसिद्द यूनिवर्सिटी का अध्यन एक गज़ब निष्कर्ष पर पहुँचा है। जो इंसान में कृतज्ञता बोध है और जो उसको व्यक्त करने में नहीं हिचकिचाता है ,वह ज़िन्दगी में ज़्यादा सुखी है। क्यूँकि अभी तक ज़िन्दगी से वह खुश और संतुष्ट है। इसका तात्पर्य हरगिज़ यह नहीं है कि आप भविष्य में और तरक्की करने का प्रयास ना करो। जरूर करो। परन्तु अब तक के सफर के लिए मन ही मन सही ;किसी को तो धन्यवाद तो बोलो। ज़िन्दगी में हम हर किसी ने जब शुरुआत की थी ,अकेले नहीं की थी। कुछ हमसे आगे निकल गए ,कुछ पीछे रह गए। इसके लिए तो thank you बनता है। है ना। 
थोड़ा सोचिए और कोशिश कीजिए अपने आप को और अपनों को धन्यवाद बोलने का। सकून मिलेगा। मेरी बात मानिए। और यही सकून आपको इस नए वित्तीय वर्ष में नई उचाईओं को हासिल करने में मदत और प्रोत्साहित कीजिएगा। 
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शुक्रवार, 1 मार्च 2019

नमस्कार। पलक झपकने के पहले ही हम इस वर्ष के तृतीय महीने में पहुँच गए हैं। अगले महीने वित्तीय साल का पहला महीना होगा। नई शुरुआत होगी व्यावसायिक वर्ष का। और स्कूल में नए क्लास का। स्कूल की बात छेड़ने पर पहली बात जो दिमाग में आती है- अनुशाषन यानि डिसिप्लिन। क्या अनुशाषन केवल बच्चों के लिए है ? आज चर्चा करेंगे अनुशाषन के विषय में।
आगे चर्चा बढ़ाने से पहले हमे नियम और अनुशाषन के बीच फर्क को समझना पड़ेगा। सूरज  सुबह पूर्व से ही उदय होगा और पश्चिम में अस्त होगा। यह प्रकृति का नियम है। इसमें कुछ नहीं बदलेगा कभी भी। परन्तु हम इन्सान ज़िन्दगी में कई नियम बनाते हैं और उस नियम को नहीं मानते हैं। बनाये हुए नियम को मानना और नहीं तोड़ना  अनुशाषन कहलाता है। उस वक़्त जब कोई आपको देख नहीं रहा है और आप फिर भी आप कानून नहीं तोड़ते हो ,स्वशाशन या सेल्फ डिसिप्लिन कहलाता है।
एक छोटा उदाहरण लीजिए। अगर पुलिस ने स्कूटर या मोटरसाइकिल सवारी के लिए हेलमेट पहनने का नियम बनाया है तो अधिकतर लोग तब तक हेलमेट का प्रयोग तब तक नहीं करते हैं जब तक पुलिस पकड़ कर जुर्माना नहीं करती है। पड़ोस में जब हम स्कूटर चला कर जाते हैं ,हम हेलमेट नहीं पहनते हैं क्योंकि हम 'नजदीक ' जा रहे हैं। दुर्घटना को क्या यह पता है कि आपकी सवारी नज़दीक की थी या मीलों की। अनुशाषन होना चाहिए कि मुझे अपने सर को किसी दुर्घटना से बचाने के लिए स्कूटर या मोटरसाइकिल का सवारी करते वक़्त हेलमेट जरूर पहनना चाहिए चाहे हम ५० मीटर का सवारी करें या ५०० मीलों का। पुलिस नियम जारी करने या ना करने पर हमारा निर्णय और वर्ताव एक ही रहेगा।
अकसर हमने ऐसे लोगों को अनुशाषन भंग करते हुए देखा है जो की दूसरे से सीनियर या पावरफुल समझता है अपने आपको। पुलिस की गाड़ी कई बार मुझे रास्ते में उलटी दिशा में आती हुई मिली है। ऑफिस में बॉस देर से आते हैं। छोटे मोटे वी आई पी अकसर किसी सेवा के लिए अन्य लोगों के साथ पंक्ति में खड़े नहीं होते हैं। बुजुर्ग बच्चों को ज्ञान देते हैं कि 'हमने बचपन में ऐसा किया या नहीं किया है ' आपने बचपन में क्या किया या नहीं किया उससे आपके बच्चे को कोई फ़र्क नहीं पड़ता है क्योंकि वह इस वक़्त जो आपको करते हुए देखता है उसे सीख उसी से मिलती है।
मैं अनुशाषन का भक्त हूँ और उसके महत्व को समझता हूँ। ऐसा नहीं है कि मैं अनुशाषन को नहीं तोड़ता हूँ। परन्तु कुछ विषय और मामले में मैं कभी अनुशाषन को कभी नहीं तोड़ने की कोशिश करता हूँ। जैसे सफर के समय सावधानी बरतना। मैं गाड़ी के पिछले सीट पर बैठने के वक़्त सीट बेल्ट जरूर बांधता हूँ हाईवे के सफर के दौरान। ऑफिस में पहुँचने अगर किसी कारण देर हो जाए तो मैं अपने टीम के सदस्यों को पहले से ही इतिल्ला कर देता हूँ। इस सन्दर्भ में यह बताना जरूरी है कि समय पर ऑफिस पहुँचना अनुशाषन है। किसी कारण वश देरी हो जाने पर आगाम बतला देना भी एक अनुशाषन है। किस जगह मैं अनुशाषन तोड़ता हूँ ? खाने के विषय में। ऐसा खाना खा लेता हूँ जो कि सेहत के लिए सही नहीं है या खाना ठीक है तो जरूरत से ज़्यादा खा लेता हूँ।
पिछले हफ्ते मैं जयपुर में राजस्थान का नंबर एक पोजीशन प्राप्त प्राइवेट एम् बी ए कॉलेज के बच्चोँ को ज़िन्दगी में सफलता पाने के फार्मूला के विषय में समझा रहा था। मैं उनके अनुशाषन से मुग्ध हो गया और उन्हें यह समझाया कि अगर वो इस अनुशाषन को बरक़रार रखे तो उनको अपने मंजिल तक पहुँचने से कोई नहीं रोक पायेगा। इरादें और अनुशाषन दोनों जरूरत है सफलता के लिए। एक इंजन है तो दूसरा इंधन। एक दूसरे के बिना असम्पूर्ण हैं। सबसे चमकता उदाहरण हमारे भारतीय क्रिकेट टीम का वर्तमान कप्तान। क्यों ये बच्चे इतने अनुशाषित हैं जो कि आज अधिकतर कॉलेजों में नहीं देखा जाता है ? पूरा श्रेय कॉलेज के प्रिंसिपल डॉ मंजु नायर और उनकी टीम को जाता है। इस टीम के अनुशाषन से हम सब प्रेरणा ले सकते हैं और सीख सखते हैं।
ज़िन्दगी में अनुशाषन लाना चाहते हैं ? छोटी -छोटी चीजों से शुरू कीजिये। अपनी और परिवार की सावधानी के लिए जो अनुशाषन जरूरत है , उसी से शुरू कीजिए। उम्मीद करता इसका महत्व आप समझते हैं। अगली बार जब मिलूंगा वित्तीय या पढ़ाई के नए साल में।  जहाँ आप अपने दिन का सबसे ज़्यादा समय बिताते हैं ,वहाँ तो अनुशाषन को अपना अभिन्न अंग जरूर बनाइये। सफलता आपकी होगी। यही दुआ करता हूँ। स्वस्थ रहिये और सावधानी के साथ ज़िन्दगी गुज़ारिए। इसी में हम सबका मंगल है।