शुक्रवार, 30 अगस्त 2019

नमस्कार। मँगल कामना करता हूँ हम सब के लिए गणेश चतुर्थी के पवित्र अवसर पर। गणेश भगवान का आशिर्वाद जरूरत है हम सब को मंगलमय ज़िन्दगी के लिए। आज शुरू से मंगल की बात क्यों कर रहा हूँ ?दरअसल मैं बहुत प्रभावित हुआ हूँ फिल्म मिशन मंगल से। बॉलीवुड से प्रभावित हूँ क्यूँकि मैं उनसे सीखता हूँ। आज का लेख समर्पित करता हूँ ISRO के उन वैज्ञानिक को जिन्होंने हमारे देश को मंगल ग्रह तक पहुँचने में सफलता अर्जन की थी।
कहानी के दो मुख्य किरदार हैं -राकेश धवन और तारा शिंदे। एक बैचेलर तो दूसरी पति और दो बच्चों के साथ एक अद्भुत माहोल के साथ घर चलाने वाली। सब कुछ करती है तारा शिंदे -खाना बनाना ;पूजा करना ; बगीचे का ख्याल रखना और विज्ञान और home science का समिश्रण करना। तारा शिंदे का किरदार मुझे पहली सीख देती है। हम अक्सर वर्क-लाइफ बैलेंस के विषय में चर्चा करते हैं। और निराश हो जाते हैं कि हम बैलेंस बरक़रार नहीं रख पाते हैं। मुख्यत अपने पारिवारिक जीवन में जितना समय देने के विषय में सोचते हैं ,नहीं दे पाते हैं। अपने में एक अपराध बोध होता है। यहीं पर हमें तारा सिखाती है कि हमें बैलेंस नहीं पैशन का सहारा लेना चाहिए। बैलेंस में कोम्प्रोमाईज़ होता है ;पैशन में कमिटमेंट और आनंद। जो भी कीजिये ;जितने समय के लिए कीजिये ;पैशन के साथ कीजिये ;और करने का आनंद लीजिये।;कभी भी थकान नहीं महसूस कीजियेगा।
तारा के परिवार से दूसरी सीख जो मिलती है एक परिवार में एक दूसरे को जगह देना और हर किसी को अपनी ज़िन्दगी अपनी तरह से जीने का स्वाधीनता देना चाहिए। तारा के पति अपने बच्चों को शुरू में अपने विचारों और भावनाओं के अनुसार चलाने का प्रयत्न करता है। तारा की वजह से एक घटना के माध्यम से खुद महसूस करता है कि वह अपनी ज़िन्दगी अपनी तरह नहीं जी रहा है। उसके लिए यह एहसास और ज़िन्दगी को अपनी अंदाज़ से देखने के साथ ही बच्चों को पिता के करीब आने में मदत करता है। जिओ अपनी तरह से ;जीने दो परिवार के अन्य सदस्यों को उनके अंदाज़ से। यही है एक ख़ुशी परिवार का नीव।
"किसी ने कभी कहा है कि लड्डू केवल ख़ुशी के अवसर पर ही खाया जा सकता है ?" यही प्रश्न मुस्कुराते हुए राकेश धवन ने मीडिया के प्रतिनिधियों को किया था लड्डू खाते हुए जब उन्होंने एलान किया कि प्रथम प्रयास असफल रहा। असफलता को मुस्कुराते हुए स्वीकार करना एक प्रतिभा है। जो कि कुछ लोगों के लिए संभव है। यही लोग असफलता को सफल होने का ज़िद बना लेते हैं।
राकेश फिल्म में तारा का बॉस है। पहले असफल प्रयास का एक कारण तारा का एक गलत निर्णय होता है। दुनिया की आँखों में यह निर्णय राकेश ने लिया था। तारा ने नहीं। टीम तभी बनता है जब सदस्यों को निर्णय लेने का अधिकार देता है बॉस। निडरता के साथ निर्णय लेने का। सफलता टीम का। असफलता के लिए जिम्मेवार ,बॉस।
बहुत सारी सीख अर्जन किया है मैंने इस फिल्म से। आज का लेख समाप्त करना चाहता हूँ एक लाजवाब सीख के साथ। मैनेजमेंट की भाषा में हम इसे connecting the dots कहते हैं। dots यानि बिंदु। अर्थात बिंदु अपने आप में कुछ कहता है। सही तरह से जुड़ जाने पर कुछ और कहता है। तारा पूरी तलने के वक़्त यह समझती है कि उबलता हुआ तेल एक तापमात्रा पर पहुँच जाने के बाद गैस का चुल्हा बंद कर देने के बाद भी कई और पूरी तली जा सकती है। यही concept का प्रयोग उसने अन्तरिक्ष यान के लिए सोचा। यान का वजन कम इंधन के कारण कम हो जाएगा जिसके कई फायदे हैं। गृह विज्ञान से अंतरिक्ष यान। यह एक मिसाल है हम सबके लिए। छोटी -छोटी अवलोकन हमें बहुत सिखाती है अगर हम जो देख या महसूस करते हैं उसके विषय में अगर हम सोचते हैं और अलग अलग बिंदु को कनेक्ट कर दें ,तो ज़िन्दगी बदल सकती है। यही पूरी के तलने से सीख मिशन मंगल का भीत बन जाता है।
अपनी ज़िन्दगी में dots कनेक्ट कीजिए और ज़िन्दगी से ज़्यादा आनंद लीजिए। मुझे फेसबुक के माध्यम से बताइये। अगले महीने के लेख में बाकी सीख को पेश करूँगा। मंगल। मंगल। 

शुक्रवार, 2 अगस्त 2019

नमस्कार। पिछले महीने के लेख में हमने क्रिकेट विश्व कप का जिक्र किया था। हमारी टीम का सेमि फ़ाइनल में जिस टीम ने पराजित किया ,वह टीम फ़ाइनल में हार कर भी जीत गई। उस टीम के कप्तान के प्रति पुरे विश्व क्रिकेट का श्रद्धा जरूर बढ़ गया होगा। उन्होंने केवल एक ही बात कही -उन्हें नियम पता था परन्तु किसी ने कभी सपने में भी सोचा था कि उस नियम को प्रयोग करना पड़ेगा ,विजेता को चुनने के लिए !कभी आपने सोचा है कि क्या होता अगर यह हार भारतीय क्रिकेट टीम को मिलती विश्व कप के फाइनल में ?मैं सोचने का प्रयास भी नहीं कर रहा हूँ।
आज मैं नियम प्रयोग नहीं। तोड़ने के विषय में चर्चा करूँगा। चर्चा करूँगा बचपन में स्कूल में सिखाया गया एक विषय पर -moral science- क्या आपने भी पढ़ा यह विषय स्कूल में। इस विषय में जो मैंने पढ़ा था , उसमे तीन बातें हमें याद है -परमात्मा (चाहे आप किसी भी रूप में उन्हें स्मरण करो )को दो वक़्त की रोटी के लिए धन्यवाद कहो ; ज़िन्दगी में सुख और दुःख एक ही सिक्के के दो पहलु हैं -परमात्मा को याद धन्यवाद देने के लिए कीजिये ज़्यादा ना कि दुःख के समय केवल मदत माँगने के समय ; किसी भी इन्सान का असली परिचय मिलता है जब उसका पीठ कठिनाईयों के कारण दीवार के साथ सट जाता है या ऐसा कोई मौका सामने आता है जो कि लोभ और लालसा बढ़ा देता है। छोटे दो उदाहरण -सड़क पर आपको काफी सारे रुपए गिरे हुए मिलते हैं। आप क्या करोगे आप का परिचय है। आपने एक ऐसी गलती की है जिसे स्वीकार करने पर आपकी बेइज्जती होगी। क्या आप इंकार करोगे ?
मूल बात यह है कि moral science हमें बताता है क्या गलत है और क्या सही। मालूम हर किसी को है। इसके बावजूद परिस्थितिओं का सामना करते वक़्त हम क्या निर्णय लेते हैं ,हमारा परिचय बन जाता है।
कुछ दिन पहले एक मशहूर कॉफ़ी चेन के प्रतिष्ठाता ने आत्महत्या कर लिया। हमारे कॉलेज के व्हाट्स ऑप ग्रुप में हम लोग विभाजित हैं -कुछ उन्हें ऊँचे कदर का व्यपसायी मानता है ; कुछ लोग उनके व्यवसाय को बढ़ाने के तरीके को धिक्कार रहा है। कई सीख छुपे हुए हैं इस उदाहरण में। मैं अपने जीवन कुछ नियम कभी नही तोड़ता हूँ। अभी तक मुझे इन नियमों के कारण फायदा मिला है जिस वजह आपके लिए पेश कर रहा हूँ। ये नियम मेरे लिए moral science है।
१) ज़िन्दगी में रिस्क लेना जरूरी है। परन्तु अपने रिस्क लेने की क्षमता को ख्याल रखना महत्वपूर्ण है। लक्ष्मण रेखा का होना आवश्यक है। नहीं तो हम लोभ के दलदल में फँस जायेंगे।
२) कभी ऐसा कुछ मत करो जिससे किसी को मानसिक चोट पहुँचे। ज़रा मेरे शब्दों के चयन पर गौर कीजिए। कभी कभी ज़िन्दगी में आपको किसी की तरक्की या किसी को सही मार्ग दिखाने के लिए कठिन होना पड़ता है जिसके कारण उस व्यक्ति को दुःख होता है -इसमें कोई असुविधा नहीं है। क्यूँकि यह उसके हित के लिए है। मूल बात यह है कि आपके आनंद का कारण किसी के लिए दुःख का कारण नहीं बन सकता है।
३) कभी ऐसा कभी मत करो ,किसीके साथ भी ,जो आप नहीं चाहते हो कभी भी ,कोई भी, आपके साथ करे।
४) झूठ हम सब कोई बोलते हैं। परन्तु कभी ऐसे झूठ का सहारा ना लीजिये जो कि आप नहीं चाहते हो कि सच हो जाए। देर से पहुँचने का बहाना कभी भी अपने वाहन का पहिए का पंक्चर मत बनाइये अगर वह सच नहीं हो।
५) कभी भी किसी के कमजोड़ी या बुरे वक़्त का फायदा मत उठाइये। हम सभी को यह ख्याल रखना चाहिए की हमारी भी कमजोड़ियाँ हैं और बुड़ा वक़्त हर किसी के जीवन में आता ही है। हमारे बॉलीवुड के शहेंशाह को भी बूड़े समय से गुजरना पड़ा था।
अंत में यही कहना चाहूँगा कि दिल और दिमाग ,दोनों की सुनिए। हम सबके लिए वही moral science है। अगर आपका दिल और दिमाग दोनों ने चाहा तो मुझे फेसबुक के माध्यम से आपके विचार ,इस लेख के विषय में जरूर बताइए। इंतेज़ार करूँगा। खुश रहिए।