शुक्रवार, 29 नवंबर 2024

नमस्कार। २०२४ के आखरी महीने में आपका स्वागत है। दिसंबर का महीना अगले साल के लिए तैयारी का महीना। नए साल में नए संकल्प के विषय में सोचना। २०२४ के लिए आपने जो संकल्प किया था उसमे आप सफल रहे या नहीं। मैं भी आंशिक रूप से सफल रहा। मैंने तीन संकल्प किये थे। दो संकल्प में मैं सफल रहा। एक संकल्प में मैंने आंशिक सफलता हासिल की। यह संकल्प था अपने स्कूल के मित्रों के साथ फिर से संपर्क स्थापित करना। 

आज मैंने पहले मित्र के साथ संपर्क स्थापित की। हम फेसबुक के माध्यम से जुड़े हुए थे कई सालों से। परन्तु इस साल मैंने उनके जन्मदिन के अलर्ट मिलने पर उनसे संपर्क किया और उसके फ़ोन नंबर मिलने के बाद बातचीत की। करीब चालीस सालों के बाद हमारी बातचीत हुई। हम स्कूल में सातवीं से दसवीं क्लास एक साथ पढ़ाई की थी। उसके बाद हमारे माता पिता के ट्रांसफर हो जाने के कारण हम दूसरे शहर चले गए। उसके चालीस साल बाद फिर बातचीत हुई हमारी। 

दोस्ती एक अद्भुत रिश्ता है। समय इसे कमजोर नहीं कर सकता है। मेरा तजुर्बा यही कहता है। इतनी याददाश्त बिना किसी प्रयास के वापस आ जाती है। कितने और दोस्तों के विषय में अपडेट मिला। कुछ गुज़र गएँ हैं। थोड़ा मन ख़राब हो गया यह जान कर। और हमने नए साल का संकल्प ले लिया। अगले साल हम अपने इस स्कूल का एक रीयूनियन करेंगे। हम अपने स्कूल जायेंगे और बीते हुए दिनों में खो जायेंगे। 

दोस्ती का रिश्ता ऐसा क्यों होता है कि समय उसको भूलने नहीं देता है। आपने कभी सोचा है इस विषय पर। मुझे लगता है कि दोस्ती का रिश्ता ऐसा तब ही होता है जब वह निःस्वार्थ होता है। जिसमे एक दूसरे से दोस्ती के अलावा और किसी स्वार्थ की उम्मीद नहीं होती है। 

एक और प्रश्न मुझे सोचने पर मजबूर कर रहा है। क्या बचपन की दोस्ती ही ऐसी होती है। वयस्क जीवन में हुई दोस्ती क्या इतनी ही निःस्वार्थ होती है। स्कूल के बाद कॉलेज और उसके बाद जो दोस्त बने हैं उनके साथ रिश्ता कैसा होता है। मैं पिछले हफ्ते कॉलेज के एक मित्र के साथ मिला था। उससे बातचीत हो रही थी। इस दोस्त का विश्वास है कि हम हॉस्टेल में अगर कॉलेज के समय एक साथ रहते हैं तो दोस्ती और ज़्यादा गहरी और टिकाऊ होती है। यह दोस्त और हम एक साथ पोस्ट ग्रेजुएशन करते वक़्त दो साल हॉस्टेल में रहते थे। यह दोस्त ग्रेजुएशन के समय हॉस्टेल में नहीं रहता था। इसीलिए शायद उसका सोच ऐसा है। 

मैं इस निष्कर्ष पर पहुँचा हूँ कि सच्चे दोस्तों और दोस्ती का कोई विकल्प नहीं है। जितना आनंद दोस्तों से मिलने पर मिलता है उसका तुलना करना मुश्किल है। मैंने तय कर लिया है कि अगले साल जितने दोस्तों से मैं मिलना चाहता हूँ और जिनके साथ कई वर्षों से बातचीत या मुलाकात नहीं हुई है ,उनसे मिलने की कोशिश करूँगा। ऐसा भी हो सकता है कि कुछ पुराने मित्र बदल चुके हों।  मुझे इससे कोई इतराज नहीं है। यह जानना भी एक अविष्कार होगा। मेरी सोच यह बताती है कि अपना समय ऐसे निवेश करो जहाँ आनंद मिलने का संभावना अधिक है। क्योंकि किसे पता कल हो ना हो। 

शुक्रवार, 1 नवंबर 2024

नमस्कार। दिवाली की शुभकामनाएँ। उम्मीद करता हूँ कि आप सब का त्यौहार का समय अच्छा गुजरा है। छट पूजा के लिए भी आपको बधाई। इन त्यौहार के दिनों में हर कोई अपने तरीके से आनंद उठाता है। अक्सर इस सन्दर्भ में दूसरों के असुविधा को नज़र अंदाज़ करता है। इस साल अख़बारों कई खबरें प्रकाशित हुई हैं जिसमें रास्ते के कुत्तों को अस्पताल में दाखिल करना पड़ा क्यूँकि पठाकों के आवाज़ से उनकी तबियत ख़राब हो गयी थी। और यही हमारे लिए एक अहम् सीख है। 

१३ नवंबर पूरी दुनिया में world kindness day के हैसियत से मनाया जाता है। 1998 से यह मनाया जाता है। इस दिन समाज में हुए अच्छे काम को प्रदर्शित किया जाता है और लोग बिना किसी भेद भाव के मिलते हैं और दया और दूसरों के प्रति समानुभूति जिसे अंग्रेजी भाषा में empathy कहते हैं ,उसके महत्व पर आलोचना करते हैं ताकि इंसान एक दूसरे के भावनाओं का सम्मान करें और एक दूसरे के साथ सहानुभूति के साथ ज़िन्दगी बिताए। 

भावनाओं को समझ कर किसी के साथ पेश आना अभी इस वर्त्तमान समय के लिए सबसे बड़ी जरूरत है। कॉरपोरेट दुनिया में अभी मैनेजर पद के चयन के लिए EQ यानि Emotional Quotient को IQ यानि Intelligence Quotient से ज़्यादा महत्व दिया जाता है। कोई भी मैनेजर अगर औरों के भावनाओं को ना समझ सके उन्हें अपनी टीम से काम में स्वामित्व या ownership लाने में असुविधा होगी। 

हम अपनी भावनाओँ से वाक़िफ़ हैं। हमें पता है कि हमें क्या चाहिए या ना चाहिए। हमें क्या पसंद या नापसंद है। हमें ख़ुशी और गम के वजह पता है। परन्तु क्या हम दूसरों के लिए यह समझने की कोशिश भी करते हैं ? शायद जितनी जरूरत है उतनी नहीं। और इसी वज़ह से हम एक बुद्धिमत्ता से वंचित रह जाते हैं। अंग्रेजी में इसे emotional intelligence कहते हैं। आपको यह  बुद्धिमत्ता रिश्तों को सवारने में मदत करता है। कुछ लोग इस समझ का गलत प्रयोग भी करते हैं। manipulate या चालाकी से अपने हित में भावनाओँ का इस्तेमाल करना। जैसे राजा दशरथ को राम जी को बनवास के लिए भेजना पड़ा। 

हमारा सबसे कठिन बाधा जिसे हमें उपक्रम करना है कि हर इंसान को एक दर्जे का नहीं मानते हैं। अमीर ,गरीब ,मर्द ,औरत ,बच्चे ,बुजुर्ग ,धर्म ,जाती ,पेशा ,समाज में स्थान -इन  सब के आधार पर हम उनके साथ कैसा व्यव्हार करेंगे या किस तरह से पेश आएंगे , इसका निर्णय हम अपने दिमाग में कर लेते हैं। एक संरचना या structure बन जाता है हमारे मस्तिष्क में। जो इस संरचना में हमसे ऊपर है उनको समझने का प्रयास करते हैं। और जो हमसे नीचे है उनके भावनाओं को समझने का उतना प्रयास भी नहीं करते हैं। 

हमने अधिकतर परिवारों में मर्दों का अधिपत्य देखा है। घर के औरतों को मर्दों की जरूरतों को समझना और निभाना एक कर्त्तव्य का दर्जा प्राप्त कर चुका है। एक और पहलु होता है जब बहु सास बन जाती है। इसी कारन सास भी कभी बहु थी इतना मशहूर टी वी सीरियल बन गया था। 

अगर आप अपना emotional intelligence का प्रयोग करना चाहते हैं अपने रिश्तों को और मजबूत बनाने के लिए , तब आपकी शुरुआत होनी चाहिए हर इंसान को बिना किसी संरचना के साथ , अपने समान देखिये। उनको भी अपनी ज़िन्दगी और भावनाओं पर उतना ही अधिकार जितना कि आपका अपनों पर। भावनाओं को समझ कर उनके साथ पेश आईये और देखिए उनकी ओर से कैसा प्रतिक्रिया मिलता है। आप शायद उम्मीद भी नहीं कर पाएँगे। यही है emotional intelligence का सही प्रयोग। एक बार इसका चसका लग जायेगा तो आपकी ज़िन्दगी बदल जाएगी। यह मेरा दावा है। असंभव संभव हो जायेगा। आपको अपनी ज़िन्दगी से कई गुना आनंद मिलेगा जो शायद आप सोच भी नहीं सकते हो। करोगे या नहीं इसका निर्णय इस प्रश्न के जवाब के आधार पर लो। क्या आप चाहते हो कि लोग आपकी भावनाओं को समझकर आपके साथ पेश आए ?