नमस्कार। २०२४ के आखरी महीने में आपका स्वागत है। दिसंबर का महीना अगले साल के लिए तैयारी का महीना। नए साल में नए संकल्प के विषय में सोचना। २०२४ के लिए आपने जो संकल्प किया था उसमे आप सफल रहे या नहीं। मैं भी आंशिक रूप से सफल रहा। मैंने तीन संकल्प किये थे। दो संकल्प में मैं सफल रहा। एक संकल्प में मैंने आंशिक सफलता हासिल की। यह संकल्प था अपने स्कूल के मित्रों के साथ फिर से संपर्क स्थापित करना।
आज मैंने पहले मित्र के साथ संपर्क स्थापित की। हम फेसबुक के माध्यम से जुड़े हुए थे कई सालों से। परन्तु इस साल मैंने उनके जन्मदिन के अलर्ट मिलने पर उनसे संपर्क किया और उसके फ़ोन नंबर मिलने के बाद बातचीत की। करीब चालीस सालों के बाद हमारी बातचीत हुई। हम स्कूल में सातवीं से दसवीं क्लास एक साथ पढ़ाई की थी। उसके बाद हमारे माता पिता के ट्रांसफर हो जाने के कारण हम दूसरे शहर चले गए। उसके चालीस साल बाद फिर बातचीत हुई हमारी।
दोस्ती एक अद्भुत रिश्ता है। समय इसे कमजोर नहीं कर सकता है। मेरा तजुर्बा यही कहता है। इतनी याददाश्त बिना किसी प्रयास के वापस आ जाती है। कितने और दोस्तों के विषय में अपडेट मिला। कुछ गुज़र गएँ हैं। थोड़ा मन ख़राब हो गया यह जान कर। और हमने नए साल का संकल्प ले लिया। अगले साल हम अपने इस स्कूल का एक रीयूनियन करेंगे। हम अपने स्कूल जायेंगे और बीते हुए दिनों में खो जायेंगे।
दोस्ती का रिश्ता ऐसा क्यों होता है कि समय उसको भूलने नहीं देता है। आपने कभी सोचा है इस विषय पर। मुझे लगता है कि दोस्ती का रिश्ता ऐसा तब ही होता है जब वह निःस्वार्थ होता है। जिसमे एक दूसरे से दोस्ती के अलावा और किसी स्वार्थ की उम्मीद नहीं होती है।
एक और प्रश्न मुझे सोचने पर मजबूर कर रहा है। क्या बचपन की दोस्ती ही ऐसी होती है। वयस्क जीवन में हुई दोस्ती क्या इतनी ही निःस्वार्थ होती है। स्कूल के बाद कॉलेज और उसके बाद जो दोस्त बने हैं उनके साथ रिश्ता कैसा होता है। मैं पिछले हफ्ते कॉलेज के एक मित्र के साथ मिला था। उससे बातचीत हो रही थी। इस दोस्त का विश्वास है कि हम हॉस्टेल में अगर कॉलेज के समय एक साथ रहते हैं तो दोस्ती और ज़्यादा गहरी और टिकाऊ होती है। यह दोस्त और हम एक साथ पोस्ट ग्रेजुएशन करते वक़्त दो साल हॉस्टेल में रहते थे। यह दोस्त ग्रेजुएशन के समय हॉस्टेल में नहीं रहता था। इसीलिए शायद उसका सोच ऐसा है।
मैं इस निष्कर्ष पर पहुँचा हूँ कि सच्चे दोस्तों और दोस्ती का कोई विकल्प नहीं है। जितना आनंद दोस्तों से मिलने पर मिलता है उसका तुलना करना मुश्किल है। मैंने तय कर लिया है कि अगले साल जितने दोस्तों से मैं मिलना चाहता हूँ और जिनके साथ कई वर्षों से बातचीत या मुलाकात नहीं हुई है ,उनसे मिलने की कोशिश करूँगा। ऐसा भी हो सकता है कि कुछ पुराने मित्र बदल चुके हों। मुझे इससे कोई इतराज नहीं है। यह जानना भी एक अविष्कार होगा। मेरी सोच यह बताती है कि अपना समय ऐसे निवेश करो जहाँ आनंद मिलने का संभावना अधिक है। क्योंकि किसे पता कल हो ना हो।