गुरुवार, 29 मई 2025

नमस्कार। बारिश का मौसम इस बार जल्दी आ गया है। यह एक अच्छी खबर है। बारिश का आनंद ही कुछ अलग होता है। परन्तु बारिश के कारण यातायात में कभी -कभी असुविधा होती है। खास कर रास्ते में पानी जम जाने पर। मोटर गाड़ियां अक्सर ठप पर जाती है जिसके कारण वाहन चलाचल में बाधा पहुँचती है। इस समय साइकिल एक असरदार सवारी है। 

३  जून वर्ल्ड बाइसिकल दिवस के हैसियत से मनाया जाता है। संयुक्त राष्ट्र संस्था ने मई २०२२ में इसका एलान किया।   बाइसिकल एक सस्ता ,टिकाऊ ,मजबूत और वातावरण सहायक सफर साथी है जिसका प्रयोग और बढ़ना चाहिए। पश्चिमी देशों में इसका प्रयोग और बढ़ रहा है। बाइसिकल एक लिए अलग ट्रैक बना रहता है। लोग बाइसिकल का प्रयोग स्वास्थ्य चर्चा के लिए भी प्रयोग करते हैं। 

आप क्या बाइसिकल चला सकते हैं ? यह एक ऐसा सीख है जो कि हम कभी नहीं भूलते हैं। परन्तु आप को बाइसिकल सीखने का प्रयास याद है ? निर्भर करता है कि आपने किस उम्र में सीखा है। हम उस सीखने के सफर का चर्चा करेंगे। क्योंकि उस सफर से भी हम कुछ सीख सकते हैं। 

बचपन में अगर आपने बाइसिकल चलाना सीखा होगा तो शायद आपने छोटे बाइसिकल पर सीखा होगा। छोटे बाइसिकल में दो पहिए पीछे के चक्के के साथ लगे रहते थे ताकि बैलेंस बरक़रार रहे। पहली सीख होती है पडेल चलाने की सीख ,बिना बैलेंस के परवाह किये और बिना गिरने के डर के साथ। यह पहला कदम का चयन ज़िन्दगी में कुछ भी सीखने के लिए अति आवश्यक है। चोट लगने का डर दिमाग से ना निकलने से कोई भी पडेल करना नहीं सीख सकता है। 

दूसरी बात है प्रोत्साहन। सीखने वाले को प्रोत्साहित करना सीखाने वाले की जिम्मेवारी बनती है। प्रोत्साहन जरूरी होता सीखने वाले को सीखने का प्रयास बढ़ाने के लिए। कोरोना के कारण लॉकडाउन के समय हमारे जैसे कई लोगों ने पहली बार खाना बनाने का प्रयास किया। परिवार वालों ने खाने का सराहना करके हमें प्रोत्साहित किया। कुछ फीडबैक भी मिला -टेस्ट बढ़िया है ,नमक थोड़ा ज़्यादा है। अगली बार ख्याल रखना। ऐसा फीडबैक भी आवश्यक है सीखने के लिए। इसे हम constructive फीडबैक कहते हैं। जो कि आगे बढ़ने के लिए सुझाव देता है ,बिना डर पैदा किये हुए। 

कुछ समय के प्रयास और प्रैक्टिस के बाद पेडल चलाना स्वाभाविक हो जाता है। पेडल करने का आनंद मिलने लगता है और पेडल करने के लिए सोचना नहीं पड़ता है। यह अभ्यास का नतीजा है। इसके बाद बैलेंस के लिए पहिए निकाल दिए जाते हैं। बैलेंस बनाए रखने के लिए कोई पीछे से बाइसिकल को पकड़ता है। फिर एक समय पर अचानक यह वक़्ति बाइसिकल को छोड़ देता। कुछ दूर तक सीखने वाला बाइसिकल चला लेता है। थोड़ा वक़्त लगता है यह महसूस करने में हम बिना सहारा बाइसिकल चला पा रहें हैं। यह अनुभूति एक विजय का एहसास देता है। इस ख़ुशी में हम कभी लड़खड़ा कर गिर भी जाते हैं। परन्तु हम तुरंत उठ जाते हैं और फिर बाइसिकल चलाने लगते हैं। 

ज़िन्दगी में कुछ भी सीखने के लिए प्रयास ,धैर्य और मार्ग दर्शन का कोई विकल्प नहीं होता है। सीखने का प्रोसेस समझना और फॉलो करना जरूरी है। गिरने का डर या असफलता का चिंता सीखने के लिए दिमाग में बाधा सृष्टि करता है। बैलेंस हो जाने पर सीखना बरक़रार रखना जरूरी है। किसी भी सीख को आदत में बदलने का एकमात्र उपाय है निरंतर प्रयोग सीख का। 

बाइसिकल चलाना सीख जाने पर अपना खुद पर विश्वास बढ़ जाता है। इसे हम ज़िन्दगी का आवश्यक कौशल मानते हैं। इस कौशल को सीखने के लिए कोई उम्र का सीमा नहीं होता है। अगर आप बाइसिकल चलाना नहीं जानते हैं तो सीख लीजिये। अपने ज़िन्दगी से और आनंद लीजिये। स्वस्थ और सावधान रहिये क्योंकि कोरोना फिर खबर में है। बाइसिकल कोरोना के समय सबसे सुरक्षित वाहन था। 

शुक्रवार, 2 मई 2025

नमस्कार। इस महीने का लेख शुरू कर रहा हूँ एक प्रश्न के साथ। २९ मई क्यों हमारे सब के लिए एक महत्वपूर्ण दिन है ? उस दिन इन्सान ने इस दुनिया के सबसे ऊँचे पर्वत पर अपना कदम रखा था। जी हाँ। माउंट एवेरेस्ट पर एडमंड हिलरी और तेनज़िंग नोरगे ने इस शिखर पर पहुँचने में सफलता हासिल की थी। १९५३ साल की बात है यह। सुबह सारे इग्यारह बजे इतिहास रचा गया। २९०३५ फ़ीट ऊँचा शिखर कोई मामूली लक्ष्य नहीं है। 

क्या किसी को याद है कि एवेरेस्ट के शिखर पर पहुँचने वाला दूसरा इन्सान या टीम कौन सा था ? शायद नहीं। यही है पहला हासिल करने वाले का फायदा। लोग याद रखते हैं। क्विज और GK के लिए प्रश्न बन जाते हैं। परन्तु पहला बनना उतना आसान नहीं होता। क्योंकि हमारे सामने कोई मिसाल नहीं होता। अनजाने का डर भी होता है -fear of the unknown - काफी लोगों का स्ट्रेस बढ़ा देता है। 

पहली बार एवेरेस्ट पर विजय करना कैसे संभव हुआ। १९२१ में अंग्रेजो ने पहली बार कोशिश की थी। १० टीम और दो अकेला पर्वतारोही असफल रहे १९५० तक जब कि सफलता हासिल करने की पहली संभावना दिखी। नेपाल से  एवेरेस्ट के दक्षिण दिशा से एक उपाय दिखा। १९५२ में स्विट्ज़रलैंड के मशहूर पर्वतारोही रेमंड लैम्बर्ट के नेतृत्व में एक टीम २८२१० फीट की ऊंचाई तक पहुँचकर वापस आ गई। तेनज़िंग इस टीम के भी सदस्य थे। इतने करीब ,परन्तु शिखर तक नहीं। पर तेनज़िंग का हौसला बरक़रार रहा चोटी तक पहुँचने के लिए। 

१९५३ में अंग्रेज़ो ने सर जॉन हंट के नेतृत्व में १० पर्वतारोही का टीम बनाया। इनको सपोर्ट करने के लिए ३५० कुली और २० शेरपा को चुना गया। तेनज़िंग का यह चौथा प्रयास था शिखर तक पहुँचने के लिए। ३८ साल के उम्र वाले तेनज़िंग को लीड शेरपा का दर्जा दिया गया। सर हंट का मिलिटरी स्टाइल का नेतृत्व डिसिप्लिन और टीम वर्क पर अधिक फोकस दिया करता था। इसके साथ साथ उन्होंने हर किसी का बेस्ट परफॉरमेंस को प्रोत्साहित करने के लिए उन्होंने एक इंटरनल कम्पटीशन का एलान किया। चोटी पर दो लोगों का टीम क्या होगा इसका निर्णय आखरी पड़ाव पर लिया जायेगा। हर दिन का मिलिट्री स्टाइल प्लानिंग और एक्सेक्यूशन का ब्लूप्रिंट बना। यह तय किया गया था कि शिखर के लिए अधिक से अधिक तीन प्रयास किये जाएंगे। पर्वतारोहण के पंडित केन विल्सन ने सर हंट के इस प्लानिंग की व्याख्या में बताया "You get there fastest with the mostest". सबसे तेज ,सबके साथ। 

पहले १२ दिन बहुत कठिन रहे। एक्सपीडिशन लरखरा रही थी और सही मार्ग ना दिख रहा था और ना ही कब्ज़े में आ रहा था। टीम का मनोवल कमजोर हो रहा था परन्तु सर हंट के अलग -अलग प्लान और प्रयत्न आखिर काम आ गया। २६ मई को टॉम बोरडालियन और चार्ल्स एवन्स को पहला मौका दिया गया शिखर पर विजय हासिल करने का। २८७०० फ़ीट की ऊंचाई पर पहुँचने के बाद  -जो कि शिखर से मात्र ३३० फ़ीट दूर था -टॉम और एवंस को वापस लौटना पड़ा थकान और ऑक्सीजन के कमी के कारण। जरा सोचिए टॉम और एवंस के विषय में दुनिया को शायद ही पता होगा। सफलता आपको प्रसिद्ध बनाती है। 

जो कि तेनज़िंग और हिलरी को प्राप्त हुआ जब २९ मई -ठीक टॉम और एवंस के प्रयास के तीन दिन बाद -को उन्होंने एवेरेस्ट पर कदम रखा। किसने पहला कदम रखा -तेनज़िंग या हिलरी ने ? दोनों ने कदम रखने से पहले यह तय किया था कि यह बात दुनिया के पास एक राज़ बन कर रह जायेगा। और यह राज बरक़रार रहा कई सालों तक। अपने जीवन गाथा - Tiger of the snows -में कई सालों बाद तेनज़िंग ने खुलासा किया कि हिलरी ने पहला कदम रखा था। दोनों ने कभी नहीं सोचा था कि उनके बाद और कितने लोग शिखर तक पहुँचने में कामयाब होंगे। दोनों गलत थे। 

क्या सीख है हमारे लिए। बहादूरी के साथ प्लानिंग जरूरी है। सपोर्ट का महत्व आवश्यक है। कठिन मार्ग या कठिनाई को जिगर ,दिमाग और प्रयास के साथ काबू पाना पड़ेगा। कठिन काम के लिए कठिन लीडरशिप जरूरी है। और टीम वर्क ,मेहनत और जूनून के साथ भाग्य का भी सहारा जरूरी है। केवल टॉम और एवंस के विषय में सोचिये। अगर उनकी किसमत अगर उनको साथ देती तब इस लेख के मुख्य चरित्र वही होते। 

इंसान का प्रकृति पर यह विजय ने इतिहास को नया मोर दिया है। हम उसके गवाह हैं।  हम किसमत वाले हैं। इसका आनंद लीजिए।