सोमवार, 3 सितंबर 2018

नमस्कार। इस वक़्त अख़बारों में चर्चा हो रही है हमारे देश की सफलता एशियाई खेलों में जो कि इंडोनेशिया में संपन्न हुआ। इतिहास में इस साल भारत ने अपने लिए सर्वाधिक पदक जीता। बेहद निराशा हुई जब पुरुषों और महिलाओं की हॉकी टीम पराजित हो गई। जब कि उन्हें मालूम था कि एशियाई खेल में स्वर्ण पदक हासिल करने पर ओलिंपिक खेलों में स्थान सुनिश्चित था। यह क्या भाग्य का विषय है। या नहीं।
इस सन्दर्भ में मैं आज थोड़ा चर्चा करना चाहता हूँ। इसी एशियाई खेलों में पहली बार ताश का खेल 'ब्रिज ' को अन्तर्युक्त किया गया। भारत के पुरुष और मिक्स्ड टीम्स ने ब्रिज में कांस्य पदक हासिल किया।  हमारे माननीय प्रधान मंत्री ने भी ट्विटर के माध्यम से टीम को मुबारकबाद किया। मैं भी ब्रिज में बेहद दिलचस्पी रखता हूँ। मेरे ब्रिज के कोच श्री सुमन सेनगुप्ता जी ने भाग्य के विषय में उम्दा एक बात कही है जो की मैं आपके लिए पेश करना चाहता हूँ। उनका कहना है कि भाग्य या किस्मत का साथ निभाना या ना निभाना हमेशा 50 -50 होता है। दरअसल जब किस्मत साथ होता है तब हम दूसरी संभावना (किस्मत साथ नहीं भी दे सकता था ) को नज़रअंदाज़ कर देते हैं। परन्तु जब भाग्य साथ नहीं देता है तो हम अपने भाग्य को कोसते हैं और दूसरों के अच्छे भाग्य को ईर्ष्या करते हैं। मुझे यह अंदाज़ भाग्य का ,बेहतरीन लगा है और मैंने उस वक़्त से इसको अपना लिया है। इस दृष्टिकोण का सबसे महत्वपूर्ण विषय है ५०-५० का एहसास जो कि 'सहायक ' भाग्य के समय याद दिलाता है कि भाग्य सहायक नहीं भी हो सकता है। और भाग्य सहायक नहीं तो कभी भी सहायक हो सकता है। एक ही सिक्के के दो पहलु। अगर शोले फिल्म का खोटा सिक्का (याद है आपको ) ना हो तो सम्भावना वही ५० -५० होता है।
इस संदर्भ में एक छोटी सी कहानी आपके लिए पेश कर रहा हूँ जो कि मुझे व्हाट्स अप के माध्यम से मिला है। एक व्यक्ति एक फ्रीजर प्लांट में नौकरी करता था। दिन के अंत में वह एक तकनिकी  खराबी को ठीक करने के लिए फैक्ट्री के अंदर जाता है। काम में मग्न हो जाने के कारण समय का अंदाज़ खो बैठता है। उनके अन्य सहकर्मी काम ख़त्म होने पर घर के लिए रवाना हो जाते हैं। इस व्यक्ति को यह बात तब महसूस होता है जब अंदर की बत्ती बुझ जाती है और दरवाज़ा बाहर से बंद हो जाता है। फ्रीजर प्लांट के अंदर उसके लिए बर्फ का एक कब्र बन चुका था। सुबह तक जीवित रहने की सम्भावना ना के बराबर थी। ना के बराबर ना कि ५० -५० ? भाग्य उसका साथ देगा या नहीं ? दो -तीन घंटों के बाद उसे किसीके चलने का आवाज़ सुनाई पड़ा। उसे कुछ उम्मीद नज़र आई। कौन आ रहा था इस वक़्त ? चंद मिनटों के बाद प्लांट का गार्ड उसके सामने खड़ा था उसको बहार ले जाने के लिए ! ५० -५० प्रमाणित हो गया। इस व्यक्ति ने पहले ऊपर वाले को याद किया ,धन्यवाद कहा और फिर इस गार्ड से पूछा -"तुम्हे कैसे पता चला की मैं अंदर हूँ ?किसने तुम्हे मेरे विषय में बताया ?" गार्ड ने जवाब दिया -"किसी ने नहीं बताया। इस प्लांट में करीब पचास लोग काम करते हैं। केवल आप ही एकमात्र ऐसे हो जो कि सुबह मुझे गुड मॉर्निंग हो और निकलते वक़्त गुड बाई बोलते हो। आज सुबह आपने गुड मॉर्निंग तो बोला था परन्तु मैंने गुड बाई तो नहीं सुना था। जिसके कारण मुझे संदेह हुआ और मैं आपको ढूंढने निकला। " जैसे बादशाह ने अपनी किसी फिल्म कहा था -ऐसी बड़े -बड़े शहरों ऐसी छोटी -छोटी बातें होती रहती हैं। ज़िन्दगी में दरअसल ऐसी छोटी -छोटी बातें ही बड़ी -बड़ी घटना को प्रभावित करती हैं !
आपको यह लेख पसंद आयेगा या नहीं ५० -५० चांस है मेरे लिए। आप मेरे साथ फेसबुक के माध्यम से मिलेंगे या नहीं ; वह भी ५० -५० है। आज नहीं तो कल आप मिलेंगे यही ५० -५० का मजा है। खुश रहिए और ५० -५० को अपना लीजिए। जीने का अंदाज़ बदल जाएगा। मेरा बदल गया है। 

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