बुधवार, 29 जनवरी 2020

नमस्कार। फरवरी का महीना। वैलेंटाइन्स दिवस का महिना। वैलेंटाइन्स , यानि प्यार। प्यार लोगों से ,चीज़ों से या ब्रैंड्स से होता है। मेरा प्यार एक जापानी गाड़ी के ब्रैंड के साथ है। कुछ दिन पहले मैंने उसी ब्रैंड का सातवाँ गाड़ी ख़रीदा गत १५ वर्षों में। मैंने अपने आप से प्रश्न किया -क्यों मैं वापस उसी ब्रैंड को खरीदता हूँ ?मुझे एक ही कारण दिखा -मैं इस गाड़ी को खरीद कर चैन से रह सकता हूँ। मैंने चैन के विषय में थोड़ी बहुत पढ़ाई लिखाई की जो इस और अगले दो महीनों के लेख का मूल विषय रहेगा।
जापानी लोग अपनी ज़िन्दगी चैन से जीना चाहते हैं। मारी फुजिमोतो एक जापानी लेखक ने इस विषय पर कई सारी किताबेँ लिखी हैं जो कि कई भाषाओँ में अनुवाद किया गया है। बहुत सारे लोग उनकी लेख से प्रभावित हुए हैं। मैं भी काफी प्रभावित हूँ।
लेखक दो साल के उम्र में अपने पिता -माता के साथ एक छोटे गांव में रहने के लिए चली जाती है। क्यों ?क्यूँकि उनके पिताजी अपने माता -पिता के साथ रहना चाहते थे क्यूंकि दोनों करीब -करीब सौ साल के उम्र के थे। उनको अपने बेटे और बहु की ज़रुरत थी। नतनी की भी। उनके साथ रहना लेखक पर एक गज़ब का प्रभाव करता है और बुढ़ापे को 'जी' कर बिताने के लिए प्रेरित करता है। बुढ़ापा ज़िन्दगी का एक अभिन्न हिस्सा है। उससे मायूस नहीं होना चाहिए। हम उदास हो जाते हैं। भूल जाते हैं कितने लोगों को बुढ़ापे का सौभाग्य प्राप्त नहीं होता है। जो सौभाग्यवान है बुढ़ापे का आनंद ना उठा कर यह सोचता रहता है कि मैं अपने युवा अवस्था के तुलना में क्या -क्या नहीं कर पाता हूँ। और इसी सोच के कारन मायूस हो जाता है। और बुढ़ापे के आनंद से वंचित हो जाता है।
जापान एक छोटा सा देश है। चारो ओर समुद्र से घिरा हुआ है। प्रकृति ने कई बार जापान को तहस -नहस कर दिया है अपने प्रकोप से। प्राक ऐतिहासिक दिनों में जापानी लोगों को कई ऐसे कठिन प्राकृतिक घटनाओ से जूझना परा है। ज़िन्दगी एकदम सहज नहीं हुआ करती थी। लेखक अपने जीवन में टाइफून और भयानक भूकंप का ज़िक्र करती है जिसकी वजह से उन्होंने लाखो लोगों को अपना प्राण गवांते हुए देखा है। जापानी शुरू में इस प्राकृतिक प्रकोप के कारण अपना हौसला खो बैठते थे और उनका मिजाज चिरचिराहट वाला होता था। समय के साथ जापानी लोगों ने यह समझा और निर्णय लिया कि प्रकृति के साथ जूझने के लिए प्रकृति के अच्छे और बुरे -दोनों को स्वीकार कर लेना जरूरी है। इसी में चैन है। और यही ज़िन्दगी है। इस एहसास ने जापानी लोगों को विनम्रता सिखाई है उनके बातचीत और शारीरिक भाषा में।
कभी आपने किसी तालाब के स्थिर पानी को देखकर आनंद लिया है ?गज़ब का चैन महसूस होता है। एक पत्थर फेक दीजिए उसी तालाब में। आपको बेचैनी दिखेगी। कुछ देर बाद फिर चैन। यही ज़िन्दगी है। पल -पल बदलती रहती है।
लेखक ने एक जापानी शब्द 'शिबूई 'का ज़िक्र किया है। यह जीवन का एक दर्शन है। अभिज्ञता और तजुर्बा हमें हर चीज़ को एक नए अंदाज़ में देखने और अनुभव करने में मदद करता है। वसंत ऋतु में पहली कलि या सुबह के चाय का रंग। हर चीज़ में चैन है अगर हम उसको ढूँढ निकाले। खुद के लिए समय निकालिए इस चैन को ढूँढने के लिए। लेखक का कहना है कि ज़िन्दगी में हम सब कोई ,हर वक़्त परफेक्ट होना चाहते हैं। क्या हम हो सकते हैं ? ना परफेक्ट होने का भी आनंद उठाना जरूरी है।
क्यूँकि -'हर पल जियो। कल हो ना हो'- खुश रहिए क्यूँकि ज़िन्दगी ही कभी ख़ुशी ,कभी गम। 

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