शुक्रवार, 30 सितंबर 2022

आज गाँधी जयंती के पावन अवसर पर आप सब को सादर प्रणाम। हमारे राष्ट्रपिता के विषय में हम सब को काफी सारी जानकारी प्राप्त है। बापू के ज़िन्दगी और दर्शन से हम सब को इतनी सीख मिलती है कई किताबेँ कम होगी सब सीख को इखट्टे करने में। मुझे एक प्रश्न कुछ समय से परेशान कर रहा था। बापू जैसे इन्सान जिनसे हर कोई प्रेरित होता है और सीखता है , वह खुद कैसे सीखते हैं ? उनका दर्शन क्या होता है खुद नई चीज़ें सीखने के विषय में। मैंने कुछ रिसर्च किया इस विषय में और मुझे गाँधी जी के सीखने का दर्शन उनकी इस  बात से स्पष्ट हो जाता है।   Live as if you were to die tomorrow; learn as if you were to live forever. ऐसे जिओ कि कल ज़िन्दगी का आखरी दिन हो सकता है ,परन्तु सीखो इस जोश के साथ और यह सोच कर की आप चिरंजीवी हो। सीखने का कोई अंत नहीं होता है। जीना है तो सीखना है। अगर यह सच है और हम इस बात से सहमत हैं ,तब हम सीखने का प्रयास क्यों नहीं करते हैं ? काफी अध्यन करते वक़्त मुझे एक मजेदार चिंतन के विषय में जानकारी प्राप्त हुई। The Illusion of Explanatory Depth यह कहता है कि हम अपने इर्द गिर्द या प्रतिदिन प्रयोग करने वाले वस्तुओं के विषय में यह धारणा के साथ जीते हैं कि हमारी समझ काफी है। सच कुछ और होता है। आज से करीब 20 साल पहले अमेरिका के एक प्रसिद्ध विश्वविद्यालय के दो गवेषकों ने अपने कक्षा में मौजूद 200 से अधिक विद्यार्थिओं को पूछा कि उनको जिपर (zipper) के काम करने के  विषय में कितनी जानकारी है। अधिकतर विद्यार्थिओं ने अपनी जानकारी को एक से सात के मापदंड में ऊँचा दर्जा दिया। गवेषकों ने तब उनसे दूसरा सवाल पूछा -आप किसी और को ज़िप्पर कैसे काम करता है आपको समझाना पड़ेगा। अब आप बताईये आप खुद को कितना नंबर दीजिएगा। छात्रों ने अपने आप को पहली बार से काफी कम नंबर दिया। हम अपनी समझ को ऊँचा रेटिंग देते हैं ,यह सोच कर कि हमें मालूम है। यही हमारे निरंतर सीखने में सबसे बड़ा बाधा है। 

मैं एक आसान सत्य पर निर्भर हूँ। मैं क्या जानता हूँ मुझे पता है। मैं क्या नहीं जानता हूँ मुझे पता है। मुझे यह नहीं पता है कि मुझे क्या पता नही है। और इस दुनिया में जितना ज्ञान मौजूद है ,उसका ९९ प्रतिशत से ज्यादा ज्ञान तीसरे खाँचे में पड़ता है। जो मैं जानता हूँ ,किस हद तक जानता हूँ। काम चलाने जैसा या दूसरों को समझाने लायक। फर्क नहीं पड़ता अगर आप यह निर्णय कर लो कि आपको और अधिक जानना है। अपने कर्मक्षेत्र के लिए तो यह कहा जाता है कि जिस दिन आपने यह सोच लिया कि आपको सब मालूम है ,आपका पतन निश्चित है। 

जिज्ञासा सीखने का ईंधन है। बचपन में हम किसी भी नई वस्तु के प्रति आकर्षित बधाई होते थे अपनी उत्सुकता के कारन। नए प्रयास में कोई झिझक नहीं होता क्योंकि हमें असफल होने का डर नहीं होता था। उम्र और तजुर्बा के बढ़ने के साथ साथ हमारे अंदर 'असफल होने पर लोग क्या कहेंगे' के डर से हम प्रयोग करना और नए प्रयास करने से इतराते हैं। यह हमारे सीखने में बाधा साबित होती है। 

हम किससे क्या सीख सकते हैं सोच कर निर्णय ले लेते हैं कि किससे हम सीख नहीं पाएँगे। और यहीं पर एक बड़ी गलती कर बैठते हैं। हम अगर किसी से भी ,कहीं पर ,किसी भी वक़्त पर सीखने के लिए अपने आप को तैयार कर लें,हमें  सीखने से कोई रोक नहीं सकता। बच्चा , बूढ़ा ,सीनियर ,जूनियर , अपना, पराया , दोस्त या दुष्मन एक दूसरे से कुछ न कुछ ज़रूर सीख सकता है। 

दशहरा ,विजया दशमी और धनतेरस के लिए अग्रिम शुभकामनाएँ। आपका जीवन मंगलमय हो ,इसी का प्रार्थना करूँगा। सीखते रहिए। लगातार। क्योंकि वही भरोसा देता है ज़िन्दगी भर का। मैं गांधीजी का कहना है। 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें