नमस्कार। मई महीने के भीषण गर्मी में आपका स्वागत। पूरी देश में ऐसी गर्मी बहुत सालों के बाद हम सबको सावधान रहने का आह्वान कर रही है। थोड़ी सी चूक के कारण हम बीमार पर सकते हैं। असल में किसी भी चीज़ का अत्याधिक परिमाण हानिकारक होता है।
इस सन्दर्भ में अंतर्राष्ट्रीय लेबर दिवस का , जो कि हर साल मई महीने के पहले दिन पर पूरी दुनिया में मनाया जाता है, जिक्र करना आवश्यक है। इतिहास बताता है कि १ मई १८८६ में अमेरिका में फैक्ट्री के लेबर ने दिन में आठ घंटे के काम के माँग में हड़ताल किया था। तब से पहले मई के दिन को अंतर्राष्ट्रीय लेबर दिवस के हैसियत से मनाया जाता है। इन कर्मचारियों ने शोषण के विरुद्ध और अपने अधिकार के लिए यह आंदोलन किया था।
यही शोषण और अधिकार के विषय में आज का लेख आपके लिए। आपके घर में अगर कोई नौकर काम करता है ,आप उनके अधिकार और कितने घंटे काम करते हैं उसके विषय में कितना ख्याल रखते हैं। मैंने ऐसे परिवार देखें हैं जहाँ घर का नौकर सुबह पाँच बजे से रात के बारह बजे तक ,बिना किसी विश्राम के काम करता है। ऐसे के परिवार को मैंने पूछा था कि ऐसा क्यों होता है। जवाब में मुझे दो बातें बताई गई। छोटू (नौकर का नाम ) एकदम बचपन में अनाथ हो गया था। इस परिवार ने उसे रहने का जगह दिया। और जब से वह काम करने लायक हो गया , नौकर बन गया। अभी सुबह दादी माँ की सेवा और मदत करता है और रात बारह बजे तक बड़े भैया के घर आने का इंतेज़ार करता है। मजे की बात यह है कि छोटू खुश है। वह इस बात का आभारी है कि इस परिवार ने उसको रोटी ,कपड़ा और छत दिया जब उसे ज़रुरत थी। चूँकि उसका कोई परिवार और रिश्तेदार नहीं है , वह घर जाने के लिए छुट्टी भी नहीं लेता है। वह इस परिवार के प्रति वफादार है। और इसी कारण वह शोषित है। यह परिवार उसको करीब १९ घंटे हर दिन काम करवाती है और यह नहीं महसूस करती है कि वह छोटू का शोषण कर रही है। यह उनका अधिकार बनता है क्यूँकि छोटू को ऐसे काम करने में कोई आपत्ति नहीं है। मुझे इस विषय में इससे अधिक पूछताछ करने से साफ मना कर दिया गया।
दूसरी बात मुझे याद है जिस दिन मैं शादी करने जा रहा था। बारात निकलने वाली थी और मैंने देखा कि मेरी माँ और मेरी एक चाची गभीर वार्तालाप में जूझे हुए थे। रूम के बाहर से यह समझ में आ रहा था कि माँ को चाची के साथ किसी विषय पर मतभेद हो रहा था। बारात को देर ना हो जाय यह सोच कर दोनों रूम से बाहर आए और हमने उनके पैर छूकर आशीर्वाद लिया और शादी करने के लिए रवाना हो गए। शादी के कई दिनों बाद मैंने माँ से उस दिन का जिक्र किया और पूछा कि क्या हो रहा था। माँ ने कहा वह एक परंपरा के ख़िलाफ़ प्रतिवाद कर रही थी। प्रथा के अनुसार बारात के साथ निकलने के पहले मुझे माँ के गोद में बैठना था और माँ मुझे बोलेगी "जा बेटा शादी करके मेरे लिए दासी ले कर आ "-मेरी माँ ने इस प्रथा को करने से इंकार किया जिसके कारण वह चाची के साथ बहस कर रही थी। कहीं हमारे रीती ,रिवाज़ और परंपरा प्राचीन ख्यालों में पराधीन है जिसके कारण ऐसे शोषण को एक सामाजिक प्रोत्साहन मिल जाता है। और इसी के कारण साँस भी कभी बहु थी इतना चर्चित और पॉपुलर सीरियल हुआ करती थी।
आपसे हमारी एक ही विनती है। दिल पर हाथ रख कर पूछिए। क्या आप जाने या अनजाने में किसी का शोषण कर रहे हैं ? शोषण शारीरिक या मानसिक या दोनों हो सकता है। अगर ऐसा लगे तो ऐसा मत कीजिए। हमारे वीर स्वाधीनता संग्रामी ने हमें अंग्रेज़ो के शोषण से आज़ादी दिलवाई है। उसका सम्मान कीजिये। क्योंकि कोई भी इंसान शोषण पसंद नहीं करता है। आप भी नहीं।
सावधान रहिए और गर्मी से जूझने की सतर्कता आजमाइए। फिर मिलेंगे।
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