शुक्रवार, 31 जनवरी 2025

नमस्कार। २०२५ के एक महीना समाप्त हुआ। फ़रवरी का महीना सबसे ज़्यादा वैलेंटाइन्स डे के लिए विश्व भर में प्रसिद्ध है। यह दिन अपने प्यार को स्वीकार करने और अभिव्यक्त करने के लिए जाना जाता है। मेरा आज का लेख एक दूसरे किस्म के प्यार का विषय है। 

हर साल हम २८ फ़रवरी को National Science Day के हैसियत से मनाते हैं। आपको पता है क्यों ? इस दिन 1928 साल में भारतीय भौतिक विज्ञान (फिजिक्स )के वैज्ञानिक सी वी रमन ने रमन एफेक्ट का खोज किया जिसके कारन उन्हे 1930 में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। सी वी रमन की ज़िन्दगी हमारे लिए एक प्रेरणा है। उनकी कहानी इसलिए दिलचस्प है क्योंकि उन्होंने अपने कैरियर में शुरू से ही वैज्ञानिक बनने के लिए अध्यन नहीं किया। फिर विज्ञान के जगत में कैसे आ गए ? चलिए शुरू करते हैं उनके स्कूल की पढ़ाई से। 

केवल १३ साल के उम्र में उन्होंने स्कूल की पढ़ाई समाप्त करके मद्रास यूनिवर्सिटी के तहत प्रेसीडेंसी कॉलेज से १६ साल के उम्र में अपना ग्रेजुएशन किया। उनका विषय था फिजिक्स और प्रेसीडेंसी कॉलेज के टोपर थे सी वी रमन। ग्रेजुएशन के दौरान उनका प्रथम रिसर्च पेपर छपा। विषय था diffraction ऑफ़ लाइट  (प्रकाश का विवर्तन ) 

एक साल के अंदर उन्होंने अपनी मास्टर्स की पढ़ाई ख़त्म की और कलकत्ता में इंडियन फिनांसियल सर्विस के दरमियान असिस्टेंट अकाउंटेंट जेनेरल की नौकरी शुरू किया १९ साल के उम्र में। वहाँ भारत के प्रथम रिसर्च इंस्टिट्यूट - इंडियन एसोसिएशन फॉर द कल्टीवेशन ऑफ़ साइंस -में उन्होंने अकॉउस्टिक्स और ऑप्टिक्स पर रिसर्च किया। १९१७ में आशुतोष मुख़र्जी ने उन्हें पहला पालित प्रोफेसर ऑफ़ फिजिक्स नियुक्त किया राजाबाजार साइंस कॉलेज में जो कि कलकत्ता विश्वविद्यालय के अधीन था। 

अपने पहले यूरोप सफर के दौरान उन्होंने भूमध्य (Mediterranean) समुद्र के नीले रंग को देख कर Rayleigh इफ़ेक्ट ऑफ़ scattered लाइट को गलत सावित किया। १९२६ में उन्होंने इंडियन जर्नल ऑफ़ फिजिक्स की स्थापना की। १९३३ में सी वी रमन इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ साइंस के पहले डायरेक्टर बने। उसी साल उन्होंने इंडियन अकडेमी ऑफ़ साइंस की स्थापना किया।  १९४८ में रमन रिसर्च इंस्टिट्यूट की प्रतिष्ठा किया जहाँ वह अंत तक उन्होंने अनुसन्धान किया।  

सी वी रमन बचपन से ही दुबले पतले और शारीरिक क्षमता में कमजोर दिखते थे। परन्तु उनके मेधा का कोई सीमा नहीं था। उन्होंने अपने ग्रेजुएशन परीक्षा में ना ही प्रथम स्थान अर्जन किया , फिजिक्स और अंग्रेजी में यूनिवर्सिटी में सर्वोच्च नंबर पाया। मास्टर्स परीक्षा और अकाउंटेंट जनरल के लिए लिखे परीक्षा में भी उन्होंने प्रथम स्थान पाया। किसी भी किए हुए रिसर्च का असम्मान ना करते हुए , रमन रिसर्च के विषय पर औरअध्ध्यन करके उसको और बेहतर बनाना उनका प्रयास हुआ करता था। इसलिए Rayleigh इफ़ेक्ट को अध्ययन करके उन्होंने उस पर और रिसर्च किया और उसको आगे बढ़ाया। 

सी वी रमन का विश्वास था कि स्वर्ग ,नरक या पुनर्जन्म जैसा कुछ नहीं है। इंसान को एक ही ज़िन्दगी मिलती है और उसी में उसको सब कुछ हासिल करना है। मैं भी उनके विचारों से सहमत हूँ। आपके विचार क्या हैं ?

बुधवार, 1 जनवरी 2025

हैप्पी न्यू ईयर। 2025 हम सब के लिए मंगलमय हो ,यही प्रार्थना है ईश्वर से। १२ जनवरी स्वामी विवेकानंद जी का जन्मदिन है। 1863 साल में उनका जन्म हुआ था। स्वामी जी युवा पर भरोसा रखते थे और उनका विश्वास था कि युवा ही किसी भी देश का भविष्यत होता है। इसी लिए १२ जनवरी विश्व युवा दिवस के नाम से मनाया जाता है। आज का लेख स्वामी जी का युवा पीढ़ी को दिया हुआ सन्देश पर है। १६२ साल के बाद भी उनका सोच अभी भी उपयुक्त हैं। 

उनका विश्वास था कि किसी भी देश के भविष्यत को उज्जवल बनाने के लिए युवा ताकत प्रमुख ईंधन है। धर्मो के विश्व संसद में 1893 में उन्होंने शिकागो में अपने भाषण में इस बात को दावे के साथ कहा था। उनका कहा हुआ एक पंक्ति युवा  पीढ़ी को ललकार रहा था -"Arise, awake, and stop not till the goal is reached."-जागिए ,उठिये और तब तक ना रुकिए जब तक आप मंज़िल ना हासिल कर लीजिए। 

स्वामी जी ने युवा पीढ़ी को साहस , ना हार मानने की मानसिकता , सच्चाई और अखंडता , और अपने आप पर संयम बढ़ाने की अपील की। उनका मानना था कि चारित्रिक अखंडता और संयम शिक्षा और materialistic उपलब्धिओं से कहीं ज़्यादा महत्वपूर्ण है। खुद पर भरोसा और विश्वास ही ज़िन्दगी का मूल मंत्र है। 

स्वामी जी का अध्यन और शिक्षा पर सबसे अधिक भरोसा था। परन्तु उनके लिए शिक्षा रट के परीक्षा में नंबर लाने वाला विद्या नहीं था। उनके लिए शिक्षा संपूर्ण होना चाहिए जो कि दिमाग और आत्मा दोनों का सिंचन करती है। उनका मानना था कि शिक्षा का एक मात्र उद्देश्य है इंसान का आत्मसम्मान ,आत्मनिर्भरता और अंदरूनी शक्ति को बढ़ाना। रट कर याद रखना इसका मूल उद्देश्य नहीं है। "Education is the manifestation of the perfection already in man." उनका दृढ़ विश्वास था कि युवा को सही शिक्षा प्राप्त होने पर वह खुद के लिए ,देश के लिए ,और इस दुनिया के लिए ऊचीं मंज़िलें हासिल कर सकता है। 

स्वामी जी युवा पीढ़ी को आत्मनिर्भर बनने का आह्वान करते थे। उनके लिए हर युवा को निजी सोच पर भरोसा करना चाहिए। बाहरी चिंताओं और प्रलोभन से प्रभावित ना हो कर ,अपनी बुद्धि और अपने जजमेंट के आधार पर निर्णय लेना चाहिए। उनके लिए युवा ही भविष्य में देश का लीडर बनेंगे जिसके लिए उन्हें स्वाधीन तरीके से और जरूरत पड़ने पर कठिन निर्णय लेने का क्षमता होनी चाहिए। 

स्वामी जी का विश्वास था कि ज़िन्दगी में सफल होने के लिए निडर होना आवश्यक है। ज़िन्दगी के सफर में कठिनाईओं, समस्यायों  और बाधाओं से जूझने के लिए साहस जरूरी है। ज्ञान अर्जन ,सामाजिक बाधाओं और आत्मनिर्भर बनने के लिए युवा पीढ़ी को निडर होना जरूरी है। "Be fearless, be brave, and you will succeed." डर किसी भी इंसान को अपने असली पोटेंशियल के उपलब्धि से रोकता है। असफल होने के डर से नए एक्सपेरिमेंट या प्रयोग का प्रयास ही नहीं करते हैं। बिना नए प्रयोग के ज़िन्दगी ही रुक जायेगी। यह उनका मानना था। 

इस नए वर्ष में क्या आप निडरता का साथ लेंगे ? मेरी शुभकामनाएं आपके साथ है।