बुधवार, 1 अक्टूबर 2025


नमस्कार! साल दर साल, 10 अक्टूबर को हम विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस मनाते हैं। यह सिर्फ कैलेंडर की एक तारीख नहीं, बल्कि एक महत्वपूर्ण मौका है जब हम अपने शरीर के सबसे महत्वपूर्ण लेकिन अक्सर अनदेखे हिस्से—मन—पर ध्यान दें। यह मन ही है जो हमारे हर निर्णय, हर रिश्ते और जीवन की गुणवत्ता को निर्धारित करता है। अगर मन स्वस्थ है, तो जीवन की सबसे बड़ी चुनौतियाँ भी छोटी लगने लगती हैं। आज हम मानसिक स्वास्थ्य के दो सबसे मजबूत स्तम्भों पर बात करेंगे: विपरीत हालातों में भी धैर्य बनाए रखना, और सामाजिक अपेक्षाओं के जाल से निकलकर खुद के लिए जीना

जब राहों पर रोड़े पड़ें: हार नहीं माननी ज़िंदगी किसी सीधी सड़क जैसी नहीं होती; यह उतार-चढ़ाव, तूफ़ान और शांत किनारों का एक मिश्रण है। जब परिस्थितियाँ हमारे प्रतिकूल हो जाती हैं—नौकरी में असफलता, रिश्ते में तनाव, या कोई अप्रत्याशित संकट—तो हमारा मन सबसे पहले आत्मसमर्पण की मुद्रा में आता है। यही वह क्षण होता है जब हम 'प्लॉट खोने' (Losing the plot) के सबसे करीब होते हैं।

मानसिक मजबूती का मतलब यह नहीं है कि आपको कभी दुख या निराशा महसूस नहीं होगी। इसका अर्थ है कि दुख के क्षणों में भी आप अपनी 'इच्छाशक्ति' को ज़िंदा रखते हैं। कल्पना कीजिए कि आप तूफ़ान में फंसी एक नाव के कप्तान हैं। आप लहरों को नियंत्रित नहीं कर सकते, लेकिन अपनी नाव की पतवार को तो संभाल सकते हैं। मुश्किल हालात से निकलने का यही मंत्र है। बड़ी समस्या को देखकर घबराइए मत, बल्कि उसे छोटे, प्रबंधनीय भागों में बाँटिए।

मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि असफलता कोई गंतव्य नहीं, बल्कि एक प्रतिक्रिया है। अपनी प्रतिक्रियाओं पर काम करें, घटनाओं पर नहीं। अपनी आशा और विश्वास को अपना सबसे बड़ा कवच बनाइए। जब सब कुछ बिखर रहा हो, तब भी एक चीज़ याद रखिए: यह समय भी गुज़र जाएगा। आपका धैर्य ही आपकी सबसे बड़ी शक्ति है।


किसी और के लिए नहीं: अपना 'असली मैं' जिएँ मानसिक स्वास्थ्य का दूसरा मूल मंत्र है 'स्वयं की प्रामाणिकता'। हम अक्सर समाज, परिवार या दोस्तों की अपेक्षाओं का एक भारी बोझ अपने कंधों पर लेकर चलते हैं। हम दूसरों को खुश करने, उनकी तारीफ पाने या उनके द्वारा स्वीकार किए जाने के लिए अपनी असली पहचान पर एक मुखौटा ओढ़ लेते हैं।

जब हम लगातार दूसरों की लिखी कहानी के अनुसार जीने की कोशिश करते हैं, तो हम भीतर ही भीतर खालीपन महसूस करने लगते हैं। यह एक ऐसी मानसिक थकान है, जो हमें अवसाद (Depression) और चिंता (Anxiety) की ओर धकेलती है। मानसिक शांति तभी मिलती है जब हमारे विचार, शब्द और कर्म एक-दूसरे के साथ तालमेल में हों।

यह समझना आवश्यक है कि 'खुद की देखभाल' (Self-care) स्वार्थ नहीं, बल्कि एक अनिवार्य ज़िम्मेदारी है। आप तब तक किसी और की मदद या ख़ुशी में योगदान नहीं दे सकते, जब तक आप खुद अंदर से मज़बूत और संतुष्ट न हों। अपनी पसंद, नापसंद और अपनी मूल्य-प्रणाली के प्रति सच्चे रहें। अगर आपको किसी काम के लिए 'ना' कहना है, तो बिना अपराधबोध (Guilt) के कहें। जब आप 'असली मैं' (The Real Me) बनकर जीते हैं, तो आपकी ऊर्जा बचती है और आपका मन स्वतंत्र महसूस करता है। इस स्वतंत्रता से ही आत्म-प्रेम और आत्म-सम्मान जन्म लेता है।

खुद से करें यह वादा विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस के मौके पर, हम सभी को अपने मन को सर्वोपरि रखने का संकल्प लेना चाहिए। याद रखें, आपका मन एक कीमती खजाना है। विपरीत हवाओं में भी अपनी पतवार थामे रखें, और सबसे महत्वपूर्ण—दूसरों की अपेक्षाओं को दरकिनार करते हुए, अपनी शर्तों पर जीवन जिएँ। अपने मानसिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता देना ही जीवन की सबसे बड़ी सफलता है। और अगर आपको ऐसा महसूस हो कि आपको विशेषज्ञ का सहायता जरूरत हो उनसे जरूर संपर्क करें और उनके दिए हुए सलाह का पालन करें। इसमें शर्माने की कोई बात नहीं है। क्योंकि यह आपके ज़िन्दगी का प्रश्न है। हमेशा याद रखियेगा -स्वस्थ मन, स्वस्थ जीवन!

 

शनिवार, 6 सितंबर 2025

#unfiltered -यह है मेरी नई सीख। नमस्कार। सितम्बर के महीने में आपका स्वागत। त्योहारों  का समय आ रहा है और नई फिल्मों का भी। ऐसे एक हिंदी फिल्म में एक छोटी बहन ने अपनी बड़ी बहन को यह सलाह दी। मुझे लगा कि उस बच्ची ने एक महत्वपूर्ण सीख दी है। 

हमने बहुत इंसान को अपने लिए नहीं ,दूसरों के लिए जीते देखा है। जिसके कारन ये इंसान अपनी भावनाओं को  फ़िल्टर लगाकर व्यक्त करते हैं। औरों की ख़ुशी इनके लिए अपनी ख़ुशी से ज़्यादा महत्वपूर्ण है। इसी वजह से अपने मन की बात और इच्छा को दबा देते हैं। 

आपने कई फिल्मों में देखा होगा कि हीरोइन चाहती किसी को है परन्तु शादी अपने घर वालों को खुश करने के लिए किसी और से शादी करती है। फिर क्या। लाखों कोशिश के बावजूद ना खुद खुश हो पाती और ना ही दूसरों को उतना खुश कर सकती है जितना कि चाहती है। 

हर इंसान का एक मौलिक अधिकार होता है अपने अधिकारों का रक्षा करना और रक्षा करने के दौरान जहाँ जरूरत पड़े 'ना' बोलने का अधिकार को प्रयोग करना जरूरी है। जो लोग 'ना ' नहीं बोल सकते हैं ,जब जरूरत है , यह भूल जाते हैं कि अगर वह खुद खुश नहीं रहेंगे , वह दूसरों को खुश नहीं कर पाएंगे। आखिर उसी कारन उन्होंने 'हाँ ' बोला था जब उनको 'ना ' बोलना था। 

जरूरत पड़ने पर ना बोलना कोई गलती नहीं है। ना सुनने वाले को ना सुनते वक़्त बुरा लग सकता है। परन्तु ना बोलने वाले का अपने दिल और दिमाग से बोझ कम हो जाता है क्योंकि वह अपनी दिल की बात को सुन कर दिमाग से काम ले रहा है। यही ज़िन्दगी से अधिक आनंद पाने के लिए अति आवश्यक है। 

फिल्म के अंत में यह छोटी बच्ची अपनी बड़ी बहन को अपनी दिल की बात को सुन कर निर्णय लेने के लिए प्रोत्साहित और मदत करती है जिसका मूल सन्देश है -यह ज़िन्दगी नहीं मिलेगी दुबारा -जो कि आज के युवा पीढ़ी का बोलने का तरीका है -YOLO -You Only Live Once !

हमें कितनी नई लिंगो सीखनी पड़ेगी। शायद त्योहार के समय और कुछ नया सीख सकूँ। आप सब को त्यौहार के लिए अग्रिम शुभेच्छा। खुश रहिये।   

गुरुवार, 31 जुलाई 2025

नमस्कार। स्वतंत्रता दिवस के लिए आपको अग्रिम बधाई। ७८ साल पेहले १५ अगस्त १९४७ के दिन के विषय में जब मैं सोचने का प्रयास करता हूँ तब एक ही एहसास अपने आप को पेश करता है -आज़ादी का। अचानक एक सुबह उठ कर हम अपने आप को गुलामी के बेड़िओं से मुक्त महसूस करते हैं। कैसा रहा होगा उन लोगों का अनुभव जिन्होंने १९४७ का वह सुबह देखा होगा। परिस्थिति बिलकुल बदल गई रातों रात। 

हम कॉलेज के तीन दोस्त अपनी धर्मपत्निओं के साथ पिछले महीने विदेश भ्रमण पर गए थे। हमारी दोस्ती चालीस साल पुरानी है। करीब तीन हफ्ते हमने साथ गुज़ारी। इस सफर ने मुझे एक बहुत ही सच का एहसास दिलवाया। मैं इस निष्कर्ष पर पहुँचा हूँ कि हर किसी के लिए ज़िन्दगी  एक परिस्थितिओं का सफर है। हम तरह -तरह के परिस्थितिओं से गुज़रते हैं और उनका आनंद लेते हैं या जूझते हैं। कुछ परिस्थितिओं के लिए हम तैयार होते हैं क्योंकि हमने प्लान किया है ;कुछ परिस्थितयां प्लान के मुताबिक नहीं होती है ;कुछ हम सोच भी नहीं सकते हैं। एक और बात हमने महसूस किया कि परिस्थितीआं मिक्स्ड होती हैं -अच्छे ,बुरे ,आनंदमय ,दुःखदायक ,अकस्मात्। क्या परिस्थिति हमारे लिए पेश होगा हमारे कण्ट्रोल में नहीं है। परन्तु हम उनके साथ कैसे जुझते हैं निर्भर करता है हमारे अंदर के सोच पर।

आज का लेख है इन परिस्थितिओं से जुझने ,आनंद लेने या सामना करने के उपायों पर। इस सफर के दौरान हमने एक गाड़ी भाड़े पर ली थी जिसे मैं और एक दोस्त चला रहे थे। मेरी गलती के कारण गाड़ी पर एक हल्का खँरोच आ गया। मैं बहुत दुःखी हो गया। दो वजह से -एक पैसे देने पड़ेंगे मरम्मत के लिए और अपने खुद के ड्राइविंग क्षमता पर एक धब्बा लग गया। अपने आप पर गुस्सा आ रहा अपनी गलती पर -मुझे और ज़्यादा सावधानी बरतनी थी। मैं एक दम चुपचाप हो गया अपने अपराध बोझ के कारन। मैं इस ना चाहने वाले परिस्थिति से अपनी तरह से जुझ रहा था। मेरा दोस्त जो कि मेरे साथ ड्राइविंग का जिम्मेवारी बाँट रहा था मेरे कंधे पर हाथ रख कर कहा -उदास हो ? मैं भी तुम्हारी जगह होता मुझे भी उतनी ही उदासी होती। परन्तु अगर हम इसको अगर इस अंदाज़ से सोचे की शायद ऊपर वाले ने हमें किसी भयंकर दुर्घटना से बचा दिया इस खँरोच के माध्यम से ,तब हमें उतना बुरा नहीं लगना चाहिए। बाकी लोगों ने भी इस बात का समर्थन किया। मुझे थोड़ा बेहतर लगा। इन बातों में अगर आप देखें तो कोई लॉजिक या साइंस नहीं है , यह इमोशंस का मायाजाल है। यह उम्मीद और हौसला बढ़ाता है।   मेरी सीख है भावनाओं का परिस्थितिओं से जूझने में एक अहम् भूमिका होता है। भावनाओं को दिमाग और दिल ,दोनों से समझना पड़ेगा। इसे इमोशनल इंटेलिजेंस का प्रयोग कहते हैं। 

मेरा एक दोस्त और उसकी धर्मपत्नी शुद्ध शाकाहारी भोजन के अलावा कुछ और नहीं खा सकते हैं। जो कि विदेश में हर जगह उपलब्ध नहीं होता है। इस परिस्थिति को सँभालने के लिए यह तय किया गया कि हम लोग उसी रेस्टोरेंट में जहाँ कुछ शाकाहारी भोजन उपलब्ध हैं। परिस्थिति के अनुसार त्याग या एडजस्टमेंट करना जरूरी होता है। और वह भी निःस्वार्थ। सफर के अंत में एक रेस्टोरेंट में दाल ,चावल ,सब्जी का एक डिश मिला। उनको रूचि के साथ संतुष्ट हो कर , खाने का आनंद लेते देख हमें अधिक आनंद मिला। दूसरों के संतुष्टि से आनंद मिलना भी परिस्थिति का भेंट है। 

सारांश में हमारी सीख परिस्थितिओं से जूझने का यह रहा -

  • अगर आप उस परिस्थिति को बनाने का निर्णय लिया है तो आपको उस परिस्थिति से जूझने का तरकीब भी सोच लेना पड़ेगा 
  • ऐसी परिस्थितियाँ आएगी जिसका आपको कोई पूर्व आभास नहीं मिलेगा। उससे आपको जूझना पड़ेगा 
  • दूसरों के भावनाओं का कदर करना और इमोशनल इंटेलिजेंस का सठिक प्रयोग परिस्थितिओं से जूझने में मदत करता है 
ज़िन्दगी अनुकूल और प्रतिकुल परिस्थितिओं का मिश्रण होता है। यही ज़िन्दगी को इतना दिलचस्प बनाता है। हम एक स्वाधीन देश के नागरिक हैं। ज़िन्दगी खुल कर जीने का आनंद लीजिए। 


शुक्रवार, 4 जुलाई 2025

 नमस्कार। जुलाई का महीना। यह महीना शुरू होता है डॉक्टर्स डे के साथ। हम जब भी किसी डॉक्टर के पास सलाह और चिकित्सा के लिए जाते हैं तो हम उनके ज्ञान और क्षमता का मूल्याङ्कन करते हैं। हम उन डॉक्टर के पास जाते हैं जिनके क्षमता पर हमें भरोसा होता है। जुलाई के महीने में इस क्षमता के सिलसिले में वर्ल्ड युथ स्किल्स डे -यानि युवा के लिए क्षमता -१५ जुलाई को मनाया जाता है। इस लेख का विषय है -आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस यानी ए आई के ज़माने में कैसी क्षमता जरूरी है इन परिस्थितिओं में सफलता के साथ आगे बढ़ने के लिए। 

इंटरनेट पर काफी चर्चा चल रही है कि ए आई के ज़माने में कई लोगों की नौकरी चली जाएगी। यह बात कुछ हद तक सही है। कोई भी काम जहाँ एक ही प्रक्रिया दोहराई जा सकती है , ए आई का प्रयोग संभव है। इसका कारण समझने के लिए आपको ए आई के काम करणे के पद्धति को समझना पड़ेगा। ए आई एक उभरता हुआ विषय है जिस तरह तरह के प्रयोग हो रहें हैं। सहज भाषा में यह समझिये कि मशीन एक पैटर्न के आधार पर अपना इंटेलिजेंस जुगाड़ करता है और उसके बाद खुद को उस प्रक्रिया को दोहराने के काबिल बन जाता है। यही ए आई का मूल क्षमता है। कंप्यूटर में कोड लिखना ए आई आसानी से सीख जाता है। अभी कंप्यूटर का प्रोसेसिंग इतना कम समय में हो सकता है -नए टेक्नोलॉजी के कारन -जिसके कारन कंप्यूटर इंसान के ब्रेन के तरह तेज़ चलने लगा है। इस अनुभव को ए आई का दर्ज़ा दिया गया है। 

क्या यह चिंता का विषय है। हाँ और ना। हाँ तब प्रयोग होगा जब आप खुद के तरक्की इस ए आई के दुनिया से जूझने के लिए नहीं करेंगे। और ना जब आप ए आई के वजह से बने नए संभावनाओं का फायदा उठाएंगे। एक बात शुरू में समझ लीजिये। इंसान का इंटेलिजेंस के साथ भावनाओ यानि इमोशंस का मिश्रण, इंसान को ए आई से अलग करता है। हम ए आई से अधिक इंटेलीजेंट हैं। ए आई वही निर्णय ले सकता है जो कि पैटर्न और प्रोग्रामिंग पर निर्भर है। हर किसी परिस्थिति से मुक़ाबला करने का क्षमता ए आई के वश की बात नहीं है। 

ए आई के दुनिया में आगे बढ़ने के लिए आप यह समझने का कोशिश कीजिये कि आपके कर्म क्षेत्र में ए आई का प्रभाव हो सकता है। इसके बाद यह समझिये कि आपके काम में ए आई क्या नहीं कर सकता है जिसके लिए इंसान का कोई विकल्प नहीं है। एक उदाहरण स्वरुप मैं अकाउंटेंट की नौकरी के विषय में चर्चा करना चाहता हूँ। अकाउंटेंट का मुख्य जिम्मेवारी -एकाउंटिंग नियम के अनुसार अकॉऊंटिंग करना -ए आई आसानी से कर लेगा। इसका एनालिसिस भी कर लेगा। परन्तु इसके बेसिस पर सही निर्णय लेने के लिए इंसान का दिमाग जरूरत है। एकाउंट्स में काम करने वाले एग्जीक्यूटिव को दूसरे एम्प्लॉई के साथ कोआर्डिनेशन और टीम वर्क ए आई कभी नहीं कर सकता है। 

इस लेख को समाप्त करने के लिए मैं आपके सोच विचार के लिए कुछ सलाह पेश कर रहा हूँ। ए आई को नज़र अंदाज़ मत कीजिये। यह समझने का कोशिश कीजिये कि ए आई के वजह से आपके कर्म जीवन में क्या खतरा है और क्या सम्भावनायें हैं। जहाँ भी इंसानी भावनाओं का जरूरत है , वहाँ ए आई के प्रयोग का सम्भावना कम है। आप दो विषय पर खुद के तरक्की पर ध्यान दे। सॉफ्ट स्किल्स और इमोशनल इंटेलिजेंस। दोनों जरूरत है इंसान के साथ रिश्ता बढ़ाने के लिए। आपके अगर रिश्ते मजबूत हैं तो ए आई के लिए आपको रिप्लेस करना कठिन ही नहीं ,असंभव है। 

गुरुवार, 29 मई 2025

नमस्कार। बारिश का मौसम इस बार जल्दी आ गया है। यह एक अच्छी खबर है। बारिश का आनंद ही कुछ अलग होता है। परन्तु बारिश के कारण यातायात में कभी -कभी असुविधा होती है। खास कर रास्ते में पानी जम जाने पर। मोटर गाड़ियां अक्सर ठप पर जाती है जिसके कारण वाहन चलाचल में बाधा पहुँचती है। इस समय साइकिल एक असरदार सवारी है। 

३  जून वर्ल्ड बाइसिकल दिवस के हैसियत से मनाया जाता है। संयुक्त राष्ट्र संस्था ने मई २०२२ में इसका एलान किया।   बाइसिकल एक सस्ता ,टिकाऊ ,मजबूत और वातावरण सहायक सफर साथी है जिसका प्रयोग और बढ़ना चाहिए। पश्चिमी देशों में इसका प्रयोग और बढ़ रहा है। बाइसिकल एक लिए अलग ट्रैक बना रहता है। लोग बाइसिकल का प्रयोग स्वास्थ्य चर्चा के लिए भी प्रयोग करते हैं। 

आप क्या बाइसिकल चला सकते हैं ? यह एक ऐसा सीख है जो कि हम कभी नहीं भूलते हैं। परन्तु आप को बाइसिकल सीखने का प्रयास याद है ? निर्भर करता है कि आपने किस उम्र में सीखा है। हम उस सीखने के सफर का चर्चा करेंगे। क्योंकि उस सफर से भी हम कुछ सीख सकते हैं। 

बचपन में अगर आपने बाइसिकल चलाना सीखा होगा तो शायद आपने छोटे बाइसिकल पर सीखा होगा। छोटे बाइसिकल में दो पहिए पीछे के चक्के के साथ लगे रहते थे ताकि बैलेंस बरक़रार रहे। पहली सीख होती है पडेल चलाने की सीख ,बिना बैलेंस के परवाह किये और बिना गिरने के डर के साथ। यह पहला कदम का चयन ज़िन्दगी में कुछ भी सीखने के लिए अति आवश्यक है। चोट लगने का डर दिमाग से ना निकलने से कोई भी पडेल करना नहीं सीख सकता है। 

दूसरी बात है प्रोत्साहन। सीखने वाले को प्रोत्साहित करना सीखाने वाले की जिम्मेवारी बनती है। प्रोत्साहन जरूरी होता सीखने वाले को सीखने का प्रयास बढ़ाने के लिए। कोरोना के कारण लॉकडाउन के समय हमारे जैसे कई लोगों ने पहली बार खाना बनाने का प्रयास किया। परिवार वालों ने खाने का सराहना करके हमें प्रोत्साहित किया। कुछ फीडबैक भी मिला -टेस्ट बढ़िया है ,नमक थोड़ा ज़्यादा है। अगली बार ख्याल रखना। ऐसा फीडबैक भी आवश्यक है सीखने के लिए। इसे हम constructive फीडबैक कहते हैं। जो कि आगे बढ़ने के लिए सुझाव देता है ,बिना डर पैदा किये हुए। 

कुछ समय के प्रयास और प्रैक्टिस के बाद पेडल चलाना स्वाभाविक हो जाता है। पेडल करने का आनंद मिलने लगता है और पेडल करने के लिए सोचना नहीं पड़ता है। यह अभ्यास का नतीजा है। इसके बाद बैलेंस के लिए पहिए निकाल दिए जाते हैं। बैलेंस बनाए रखने के लिए कोई पीछे से बाइसिकल को पकड़ता है। फिर एक समय पर अचानक यह वक़्ति बाइसिकल को छोड़ देता। कुछ दूर तक सीखने वाला बाइसिकल चला लेता है। थोड़ा वक़्त लगता है यह महसूस करने में हम बिना सहारा बाइसिकल चला पा रहें हैं। यह अनुभूति एक विजय का एहसास देता है। इस ख़ुशी में हम कभी लड़खड़ा कर गिर भी जाते हैं। परन्तु हम तुरंत उठ जाते हैं और फिर बाइसिकल चलाने लगते हैं। 

ज़िन्दगी में कुछ भी सीखने के लिए प्रयास ,धैर्य और मार्ग दर्शन का कोई विकल्प नहीं होता है। सीखने का प्रोसेस समझना और फॉलो करना जरूरी है। गिरने का डर या असफलता का चिंता सीखने के लिए दिमाग में बाधा सृष्टि करता है। बैलेंस हो जाने पर सीखना बरक़रार रखना जरूरी है। किसी भी सीख को आदत में बदलने का एकमात्र उपाय है निरंतर प्रयोग सीख का। 

बाइसिकल चलाना सीख जाने पर अपना खुद पर विश्वास बढ़ जाता है। इसे हम ज़िन्दगी का आवश्यक कौशल मानते हैं। इस कौशल को सीखने के लिए कोई उम्र का सीमा नहीं होता है। अगर आप बाइसिकल चलाना नहीं जानते हैं तो सीख लीजिये। अपने ज़िन्दगी से और आनंद लीजिये। स्वस्थ और सावधान रहिये क्योंकि कोरोना फिर खबर में है। बाइसिकल कोरोना के समय सबसे सुरक्षित वाहन था। 

शुक्रवार, 2 मई 2025

नमस्कार। इस महीने का लेख शुरू कर रहा हूँ एक प्रश्न के साथ। २९ मई क्यों हमारे सब के लिए एक महत्वपूर्ण दिन है ? उस दिन इन्सान ने इस दुनिया के सबसे ऊँचे पर्वत पर अपना कदम रखा था। जी हाँ। माउंट एवेरेस्ट पर एडमंड हिलरी और तेनज़िंग नोरगे ने इस शिखर पर पहुँचने में सफलता हासिल की थी। १९५३ साल की बात है यह। सुबह सारे इग्यारह बजे इतिहास रचा गया। २९०३५ फ़ीट ऊँचा शिखर कोई मामूली लक्ष्य नहीं है। 

क्या किसी को याद है कि एवेरेस्ट के शिखर पर पहुँचने वाला दूसरा इन्सान या टीम कौन सा था ? शायद नहीं। यही है पहला हासिल करने वाले का फायदा। लोग याद रखते हैं। क्विज और GK के लिए प्रश्न बन जाते हैं। परन्तु पहला बनना उतना आसान नहीं होता। क्योंकि हमारे सामने कोई मिसाल नहीं होता। अनजाने का डर भी होता है -fear of the unknown - काफी लोगों का स्ट्रेस बढ़ा देता है। 

पहली बार एवेरेस्ट पर विजय करना कैसे संभव हुआ। १९२१ में अंग्रेजो ने पहली बार कोशिश की थी। १० टीम और दो अकेला पर्वतारोही असफल रहे १९५० तक जब कि सफलता हासिल करने की पहली संभावना दिखी। नेपाल से  एवेरेस्ट के दक्षिण दिशा से एक उपाय दिखा। १९५२ में स्विट्ज़रलैंड के मशहूर पर्वतारोही रेमंड लैम्बर्ट के नेतृत्व में एक टीम २८२१० फीट की ऊंचाई तक पहुँचकर वापस आ गई। तेनज़िंग इस टीम के भी सदस्य थे। इतने करीब ,परन्तु शिखर तक नहीं। पर तेनज़िंग का हौसला बरक़रार रहा चोटी तक पहुँचने के लिए। 

१९५३ में अंग्रेज़ो ने सर जॉन हंट के नेतृत्व में १० पर्वतारोही का टीम बनाया। इनको सपोर्ट करने के लिए ३५० कुली और २० शेरपा को चुना गया। तेनज़िंग का यह चौथा प्रयास था शिखर तक पहुँचने के लिए। ३८ साल के उम्र वाले तेनज़िंग को लीड शेरपा का दर्जा दिया गया। सर हंट का मिलिटरी स्टाइल का नेतृत्व डिसिप्लिन और टीम वर्क पर अधिक फोकस दिया करता था। इसके साथ साथ उन्होंने हर किसी का बेस्ट परफॉरमेंस को प्रोत्साहित करने के लिए उन्होंने एक इंटरनल कम्पटीशन का एलान किया। चोटी पर दो लोगों का टीम क्या होगा इसका निर्णय आखरी पड़ाव पर लिया जायेगा। हर दिन का मिलिट्री स्टाइल प्लानिंग और एक्सेक्यूशन का ब्लूप्रिंट बना। यह तय किया गया था कि शिखर के लिए अधिक से अधिक तीन प्रयास किये जाएंगे। पर्वतारोहण के पंडित केन विल्सन ने सर हंट के इस प्लानिंग की व्याख्या में बताया "You get there fastest with the mostest". सबसे तेज ,सबके साथ। 

पहले १२ दिन बहुत कठिन रहे। एक्सपीडिशन लरखरा रही थी और सही मार्ग ना दिख रहा था और ना ही कब्ज़े में आ रहा था। टीम का मनोवल कमजोर हो रहा था परन्तु सर हंट के अलग -अलग प्लान और प्रयत्न आखिर काम आ गया। २६ मई को टॉम बोरडालियन और चार्ल्स एवन्स को पहला मौका दिया गया शिखर पर विजय हासिल करने का। २८७०० फ़ीट की ऊंचाई पर पहुँचने के बाद  -जो कि शिखर से मात्र ३३० फ़ीट दूर था -टॉम और एवंस को वापस लौटना पड़ा थकान और ऑक्सीजन के कमी के कारण। जरा सोचिए टॉम और एवंस के विषय में दुनिया को शायद ही पता होगा। सफलता आपको प्रसिद्ध बनाती है। 

जो कि तेनज़िंग और हिलरी को प्राप्त हुआ जब २९ मई -ठीक टॉम और एवंस के प्रयास के तीन दिन बाद -को उन्होंने एवेरेस्ट पर कदम रखा। किसने पहला कदम रखा -तेनज़िंग या हिलरी ने ? दोनों ने कदम रखने से पहले यह तय किया था कि यह बात दुनिया के पास एक राज़ बन कर रह जायेगा। और यह राज बरक़रार रहा कई सालों तक। अपने जीवन गाथा - Tiger of the snows -में कई सालों बाद तेनज़िंग ने खुलासा किया कि हिलरी ने पहला कदम रखा था। दोनों ने कभी नहीं सोचा था कि उनके बाद और कितने लोग शिखर तक पहुँचने में कामयाब होंगे। दोनों गलत थे। 

क्या सीख है हमारे लिए। बहादूरी के साथ प्लानिंग जरूरी है। सपोर्ट का महत्व आवश्यक है। कठिन मार्ग या कठिनाई को जिगर ,दिमाग और प्रयास के साथ काबू पाना पड़ेगा। कठिन काम के लिए कठिन लीडरशिप जरूरी है। और टीम वर्क ,मेहनत और जूनून के साथ भाग्य का भी सहारा जरूरी है। केवल टॉम और एवंस के विषय में सोचिये। अगर उनकी किसमत अगर उनको साथ देती तब इस लेख के मुख्य चरित्र वही होते। 

इंसान का प्रकृति पर यह विजय ने इतिहास को नया मोर दिया है। हम उसके गवाह हैं।  हम किसमत वाले हैं। इसका आनंद लीजिए। 

गुरुवार, 3 अप्रैल 2025

नमस्कार। अप्रैल के महीनें में आपका स्वागत। कई प्रदेश के लिए इस महीनें में नए साल का शुभारम्भ होगा ,उसके  लिए बधाई। व्यवसाय के लिए नए वित्तीय वर्ष की शुरुआत में नए टार्गेट्स और संभावनाओं के साथ प्लानिंग और जोश के साथ आगे बढ़ने का हौसला और विश्वास। 

ऐसी ही एक शुरुआत हुई थी १४ अप्रैल १९१२। टाइटैनिक जहाज़ का सफर। इतिहास कहता है कि टाइटैनिक इंजीनियरिंग का एक अजूबा था। विशेषज्ञों के अनुसार ऐसा जहाज़ ना इसके पहले बना था और भविष्य में भी ऐसा जहाज बनाना कठिन होगा। फिर क्या हुआ। टाइटैनिक पर बनी फिल्म करोड़ो का मुनाफ़ा कमा कर प्रसिद्ध हो गई। आप और हमने भी इस फिल्म को देखा होगा। फिल्म लव स्टोरी का एक मिसाल बन गई। परन्तु टाइटैनिक तो अपने पहले सफर में ही डूब गया। कुछ लोगों का सोच है कि टाइटैनिक डूब जाने के कारन और प्रसिद्ध हो गया। 

पर टाइटैनिक डूबा क्यों। एक मात्र वजह है अहँकार। यह सोचना कि हम अजेय हैं ,हमारा कुछ नहीं हो सकता है ,कोई हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकता है। यही अहंकार हम सब का सबसे निजी दुश्मन है। हिंदी फिल्मों में विलन इसी कारन हीरो से पराजित हो जाता है। 

व्यवसाय कि दुनिया में ऐसे कई मिसाल है। अपने पड़ोस के मार्केट में आपको कई ऐसे दुकान मिलेंगे जो कि दो-तीन पीढ़ियों के बाद बंद हो जाते हैं। इसी दुकान पर एक समय ग्राहक कतार में खड़े होकर खरीदारी करते थे। बाजार और दुकानदार उनसे और उनकी कमाई पर ईर्ष्या करते थे। मैंने अपने रिश्तेदारों में ऐसा होते हुए देखा है। उनके पतन का मुझे तीन कारन दिखे हैं। पहला -अच्छा चल रहा है चलता रहेगा हमेशा। दूसरा -हमारे ग्राहक हमारे अलावा किसी और के पास नहीं जा सकता है। तीसरा -पहली पीढ़ी अपने मेहनत से व्यवसाय शुरू करती है, दूसरी पीढ़ी उसको और आगे बढ़ाकर मजबूत बनाती है ,तीसरी और उसके बाद आने वाली पीढ़ी व्यवसाय के विषय में आलसी और मस्ती करने में ज़्यादा मेहनत करती है। 

समय के साथ बदलते रहना व्यवसाय में टिके रहने के लिए अति आवश्यक है। और यहीं पर अपने आपको अजेय समझने वाले व्यवसाय गलती कर बैठते हैं। आपने तो नोकिआ मोबाइल फ़ोन के विषय में जरूर सुना होगा। शायद आपका शुरू के दिनों का मोबाइल फ़ोन भी नोकिआ ही रहा होगा। शुरू के दिनों में हमारे देश में दस में से सात लोग नोकिआ इस्तेमाल करते थे। परन्तु नोकिआ ने android के परिवर्तन को नज़र अंदाज़ किया। परिणाम क्या हुआ ? नोकिआ मार्केट के राजा से रंक बन गया। 

इसी महीने अमीरीकी राष्ट्रपति ने आयात -निर्यात के टैरिफ पर कई सारे निर्णय लिए हैं जिसके कारन सारे मुल्कों के अर्थनीति पर गंभीर प्रभाव पर सकता है। क्या यह कुछ देशों के लिए टाइटैनिक क्षण होगा। समय ही इसका जवाब देगा। अगर आप व्यवसाय में हो या नौकरी में हो ,आगे का समय कठिन ,परन्तु रोमांचकार होगा। टिके रहने के लिए बदलना और बदलाव दोनों आवश्यक है। यही ,इस वित्तीय साल का खासियत रहेगा।