नमस्कार! साल दर साल, 10 अक्टूबर को हम विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस मनाते हैं। यह सिर्फ कैलेंडर की एक तारीख नहीं, बल्कि एक महत्वपूर्ण मौका है जब हम अपने शरीर के सबसे महत्वपूर्ण लेकिन अक्सर अनदेखे हिस्से—मन—पर ध्यान दें। यह मन ही है जो हमारे हर निर्णय, हर रिश्ते और जीवन की गुणवत्ता को निर्धारित करता है। अगर मन स्वस्थ है, तो जीवन की सबसे बड़ी चुनौतियाँ भी छोटी लगने लगती हैं। आज हम मानसिक स्वास्थ्य के दो सबसे मजबूत स्तम्भों पर बात करेंगे: विपरीत हालातों में भी धैर्य बनाए रखना, और सामाजिक अपेक्षाओं के जाल से निकलकर खुद के लिए जीना।
जब राहों पर रोड़े पड़ें: हार नहीं माननी ज़िंदगी किसी सीधी सड़क जैसी नहीं होती; यह उतार-चढ़ाव, तूफ़ान और शांत किनारों का एक मिश्रण है। जब परिस्थितियाँ हमारे प्रतिकूल हो जाती हैं—नौकरी में असफलता, रिश्ते में तनाव, या कोई अप्रत्याशित संकट—तो हमारा मन सबसे पहले आत्मसमर्पण की मुद्रा में आता है। यही वह क्षण होता है जब हम 'प्लॉट खोने' (Losing the plot) के सबसे करीब होते हैं।
मानसिक मजबूती का मतलब यह नहीं है कि आपको कभी दुख या निराशा महसूस नहीं होगी। इसका अर्थ है कि दुख के क्षणों में भी आप अपनी 'इच्छाशक्ति' को ज़िंदा रखते हैं। कल्पना कीजिए कि आप तूफ़ान में फंसी एक नाव के कप्तान हैं। आप लहरों को नियंत्रित नहीं कर सकते, लेकिन अपनी नाव की पतवार को तो संभाल सकते हैं। मुश्किल हालात से निकलने का यही मंत्र है। बड़ी समस्या को देखकर घबराइए मत, बल्कि उसे छोटे, प्रबंधनीय भागों में बाँटिए।
मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि असफलता कोई गंतव्य नहीं, बल्कि एक प्रतिक्रिया है। अपनी प्रतिक्रियाओं पर काम करें, घटनाओं पर नहीं। अपनी आशा और विश्वास को अपना सबसे बड़ा कवच बनाइए। जब सब कुछ बिखर रहा हो, तब भी एक चीज़ याद रखिए: यह समय भी गुज़र जाएगा। आपका धैर्य ही आपकी सबसे बड़ी शक्ति है।
किसी और के लिए नहीं: अपना 'असली मैं' जिएँ मानसिक स्वास्थ्य का दूसरा मूल मंत्र है 'स्वयं की प्रामाणिकता'। हम अक्सर समाज, परिवार या दोस्तों की अपेक्षाओं का एक भारी बोझ अपने कंधों पर लेकर चलते हैं। हम दूसरों को खुश करने, उनकी तारीफ पाने या उनके द्वारा स्वीकार किए जाने के लिए अपनी असली पहचान पर एक मुखौटा ओढ़ लेते हैं।
जब हम लगातार दूसरों की लिखी कहानी के अनुसार जीने की कोशिश करते हैं, तो हम भीतर ही भीतर खालीपन महसूस करने लगते हैं। यह एक ऐसी मानसिक थकान है, जो हमें अवसाद (Depression) और चिंता (Anxiety) की ओर धकेलती है। मानसिक शांति तभी मिलती है जब हमारे विचार, शब्द और कर्म एक-दूसरे के साथ तालमेल में हों।
यह समझना आवश्यक है कि 'खुद की देखभाल' (Self-care) स्वार्थ नहीं, बल्कि एक अनिवार्य ज़िम्मेदारी है। आप तब तक किसी और की मदद या ख़ुशी में योगदान नहीं दे सकते, जब तक आप खुद अंदर से मज़बूत और संतुष्ट न हों। अपनी पसंद, नापसंद और अपनी मूल्य-प्रणाली के प्रति सच्चे रहें। अगर आपको किसी काम के लिए 'ना' कहना है, तो बिना अपराधबोध (Guilt) के कहें। जब आप 'असली मैं' (The Real Me) बनकर जीते हैं, तो आपकी ऊर्जा बचती है और आपका मन स्वतंत्र महसूस करता है। इस स्वतंत्रता से ही आत्म-प्रेम और आत्म-सम्मान जन्म लेता है।
खुद से करें यह वादा विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस के मौके पर, हम सभी को अपने मन को सर्वोपरि रखने का संकल्प लेना चाहिए। याद रखें, आपका मन एक कीमती खजाना है। विपरीत हवाओं में भी अपनी पतवार थामे रखें, और सबसे महत्वपूर्ण—दूसरों की अपेक्षाओं को दरकिनार करते हुए, अपनी शर्तों पर जीवन जिएँ। अपने मानसिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता देना ही जीवन की सबसे बड़ी सफलता है। और अगर आपको ऐसा महसूस हो कि आपको विशेषज्ञ का सहायता जरूरत हो उनसे जरूर संपर्क करें और उनके दिए हुए सलाह का पालन करें। इसमें शर्माने की कोई बात नहीं है। क्योंकि यह आपके ज़िन्दगी का प्रश्न है। हमेशा याद रखियेगा -स्वस्थ मन, स्वस्थ जीवन!
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