सोमवार, 3 अक्तूबर 2016

कल आपने राष्ट्र पिता के जन्मदिन पर क्या किया ? शायद ज्यादा कुछ नहीं। हर साल २ अक्टूबर को छुट्टी होने के कारण हम बापूजी को याद करतें हैं।  इस साल रविवार होने की वजह से शायद कई लोगों को २ अक्टूबर पर बापूजी के जन्मदिन का एहसास भी ना हुआ हो। आज हम स्वाधीन भारत में जिंदगी गुज़ार रहें हैं। इसके लिए हमें बापूजी के साथ कई और महान स्वाधीनता संग्रामीयों का आभारी होना चाहिए।  हर संग्रामी का अपना अलग विश्वास था और अपना संग्राम का तरीका था। बापूजी ने अहिंसा का पथ चुना। कई लोगों ने उनका साथ निभाया। कई लोगों ने अलग मार्ग का चयन किया। एक ही गंतव्य के लिए। भारत माता की आज़ादी। एक ही मंज़िल तक पहुँचने के लिए अलग -अलग राहें।
अगर हम अपनी ज़िन्दगी को देखें तो यही अभी भी सत्य है। किसी का मंज़िल है अमीर बनना ; किसी का खिलाड़ी ; किसी का पैसा कमाना या प्रसिद्द होना। लोग अनेक , रास्ते अनेक। लेकिन सफलता पाने के लिए खुद पर और खुद के तरीके पर विश्वास का कोई विकल्प नहीं। चाहे वह तरीका गलत ही क्यों ना हो। एक जेब कतरे को पैसा बनाने का एक ही रास्ता दिखता है। दूसरों का जेब काटना। और खुद पर विश्वास ना पकड़े जाने का। चाहे आपका रास्ता सही हो या गलत ; आपको अपने आप पर और अपने काबिलियत पर भरोसा रखना पड़ेगा।
बापूजी ने अपने अहिंसा के मार्ग को और भी मजबूत बनाया सत्य का साथ लेकर। एक प्रसिद्द अंग्रेजी साहित्यिक ने बखूबी लिखा था -मैं सच बोलता हूँ ,ताकि मुझे यह याद ना रखना पड़े कि मैंने क्या बोला था -ज़रा ध्यान से सोचिये। झूठ को याद रखना सच बोलने से कहीं अधिक कठिन है। कहा जाता है कि एक झूठ के लिए हमें कई झूठ और बोलने परते हैं। फिर हम झूठ बोलते क्यों हैं ?क्योंकि हम सच का साथ नहीं निभा सकते हैं। क्या मैं कभी झूठ नहीं बोलता हूँ ?मैं बापूजी नहीं हूँ।  मैं झूठ बोलता हूँ। केवल दो चीजों का ख्याल रखता हूँ। ऐसा कोई झूठ का सहारा नहीं लेता हूँ जो कि मैं चाहता हूँ कभी सच ना बने। मीटिंग में देर से पहुँचने का बहाना कभी भी अपनी गाड़ी का टायर पंक्चर नहीं होगा। क्योंकि मैं कभी यह नहीं चाहता हूँ कि मेरी गाड़ी का टायर पंक्चर हो जिसके कारण मुझे असुविधा हो।  आपने जरूर उस राखाल बालक का कहानी सुना होगा जो कि शेर आने का एलान करता था। लोग मदत के लिए आते थे और राखाल उनको बेवकूफ बनाकर आनंद लेता था। एक दिन सच में शेर आ गया। राखाल मदत के लिए लोगों को पुकारा। कोई नहीं आया। उसका झूठ सच बन गया था।
दूसरी बात का जो मैं ख्याल रखता हूँ वह है कि मेरे झूठ बोलने के वज़ह किसी का नुकसान नहीं होना चाहिए। इस कारण मुझे कई बार अप्रिय होना पड़ा है। कई समय आपका जिससे करीब का रिश्ता है उम्मीद करता है कि आप उनका समर्थन करें। परन्तु ऐसा करने के लिए आपको अगर सच का साथ छोड़ना पड़े तो हर्गिज़ ना करें। कुछ दिन पहले इसी कॉलम के एक पाठक ने मेरे साथ फेसबुक के माध्यम से मुझसे बात करने का ईरादा व्यक्त किया। बात करने पर झारखंड के एक मशहूर कॉलेज के इस छात्रा ने मुझे अपना समस्या बताया। कॉलेज के किसी घटना की वह साक्षी थी। उनकी गवाही के कारण कुछ अन्य छात्राओं को सजा हुई।इनमे से कुछ उनके मित्र थे। एक शिक्षक को भी सजा सुनाया गया। बेचारी डर गई और प्रतिशोध के भय से कॉलेज जाना बंद कर दी। और डिप्रेशन में चली गई। उन्होंने उस कॉलेज को छोड़ने का निर्णय भी कर लिया था। उनके पिताजी भी मेरा यह कॉलम पढ़ते हैं। उन्होंने अपनी बेटी को मुझसे बात करने की सलाह दी। मैंने केवल एक ही प्रश्न किया। क्या वह सच बोल रही थी ? चूँकि वह सच बोल रही थी , उसका कॉलेज ना जाना या कॉलेज को छोड़कर चले जाना उसी के सच को झूठ साबित कर देता। अगर कोई इंसान यह समझ जाए कि आप उनसे डरते हो , तो वह आपके भावनाओं के साथ खिलवाड़ करेगा। आपके ज़िन्दगी का रिमोट उनके हातों में चला जाएगा और आप उसके हात का कठपुतली बन जाओगे। मैंने उस छात्रा को निडरता के साथ वापस कॉलेज जाने को कहा। अगर उनके दोस्त उनके सच बोलने के कारण नाराज़ हैं और दोस्ती बरक़रार नहीं रखना चाहते हैं तो वह दोस्त बनने लायक ही नहीं हैं।  दो दिन बाद उस छात्रा और उनके परिवार ने मुझे अपना हार्दिक धन्यवाद भेजा क्योंकि ना ही वह कॉलेज वापस गई है ; उनका कॉन्फिडेंस में भी बढ़ोतरी हुई है।
इससे बेहतर क्या तोहफा हो सकता है मेरे लिए , इस त्योहार के मौसम में। देवी के आगमन के साथ कई सारी घटनाएं जुड़ी हुई हैं। अंत में सत्य की जीत होती है। अमेरिका के एक राष्ट्रपति ने अपने बच्चे के स्कूल शिक्षक को एक बेहतरीन अनुरोध किया था। उन्होंने कहा था -'मेरे बच्चे में यह विश्वास जगाओ ताकि उसमे यह क्षमता हो कि सच के समर्थन में वह अकेला खड़ा हो सके चाहे पूरी दुनिया क्यों ना उनके विरुद्ध हो।'
सच -सच बोलिए क्या आप में यह विश्वास है ? फेसबुक पर आपके जवाब का इंतज़ार करूँगा। दशहरा ,धनतेरस और दिवाली के बाद फिर मिलेंगे। तब तक आनंद लीजिये त्योहारों का। केवल इतना ख्याल रखिएगा कि आपका आनंद किसी और के दुख का कारण ना बन जाए।

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