गुरुवार, 3 अगस्त 2017

नमस्कार। पिछले महीने के लेख में मैंने चैंपियंस ट्रॉफी के विषय में जिक्र किया था। आपने फाइनल मैच देखा ?भारतीय टीम मैच हार गई। बूरी तरह से। हमारे कप्तान ने विपक्ष के विजयी टीम को सराहा। स्वीकार किया कि उन्होंने फाइनल में बेहतर खेला। इसके कुछ दिन बाद भारत के क्रिकेट टीम के कोच ने इस्तफ़ा दे दिया। ख़बरों के अनुसार उन्होंने भारतीय खिलाड़ी के पास फाइनल के बुरे परफॉरमेंस पर जवाब माँगा। हमारे कोच भी भारत के सफल खिलाडी रह चुके हैं और उन्होंने काफी लंबे समय के लिए भारत के टीम का अभिन्न हिस्सा रह चुके हैं। आज मैं क्रिकेट के विषय में नहीं ,रिश्तों के विषय में लिखूँगा।
कप्तान और कोच क्योँ अलग हो गए ? साथ में उनका प्रदर्शन क्रिकेट की दुनिया में सर्वश्रेष्ठ रहा। आँकड़े बताते हैं कि भारतीय टीम का विजय प्रतिशत शायद इतना अच्छा कभी नहीं रहा। तो फिर क्योँ अलग हो गए दोनों ? असल बात मुझे पता नहीं है। मैंने केवल संबाद माध्यम के जरिए सुना और समझा है ,उसके आधार पर रिश्तों के जुड़ने और टूटने पर टिप्पणी करूँगा।
कहा जाता है एक म्यान में आप दो तलवार नहीँ रख सकते हैं। शायद यही हुआ है भारतीय टीम के लिए। दो दिग्गज ,बेहतरीन खिलाड़ी। दोनों के स्वाधीन विचार। मत विरोध। एक दूसरे को जगह नहीं छोड़ना। नतीजा -म्यान में एक ही तलवार। कौन सही ,कौन गलत। पता नहीं। लेकिन पहली सीख किसी भी रिश्ते में एक दूसरे को पर्याप्त स्वाधीनता देना रिश्ते के लिए महत्वपूर्ण है।
घर में सोचिए -पति -पत्नी का रिश्ता। बच्चो का माता -पिता के साथ रिश्ता। दोस्ती में रिश्ता। क्या हम एक दूसरे को उतना जगह और स्वाधीनता देतें हैं जितना कि उस रिश्ते को जरूरत है ? मेरा तजुर्बा यह कहता है कि बुजुर्ग अक्सर बच्चोँ को उतनी स्वाधीनता नहीं देतें हैं जितना कि बढ़ते हुए बच्चोँ की जरूरत है। बच्चे बुजुर्गों के नज़र में बच्चे ही रह जाते चाहे उनकी उम्र कॉलेज के लायक क्यूँ न हो जाए।
इस वजह से काफी अभिभावक अपने बच्चो पर अपने निर्धारित किये हुए कैरियर थोप देतें हैं। उनका सोचना है कि उनकी जानकारी और निर्णय करने की क्षमता उनके बच्चोँ से बेहतर है चूकि उन्होंने जिंदगी को ज्यादा देखा है।
क्यों हम स्वाधीनता नहीं देते हैं ? क्योंकि हम दूसरे को रिश्ते में अपने बरोबर का नहीं समझते हैं। अभी भी कई पति अपने आप को अपनी पत्नी से ऊपर समझता है। पति जो बोलेगा पत्नी को सुनना पड़ेगा। यह ठीक नहीं है। एक पति -पत्नी के रिश्ते में दोनों का समान हक़ और जिम्मेवारी है। आश्चर्य वाली बात यह है कि जिनकी पत्नी काम करती है ,उनके पति भी उतना ही अपने आप को ऊँचा समझता है जितना कि ना काम करने वाली पत्नी का।
यही 'मैं उनसे बेहतर 'विश्वास के कारण हम दूसरों से अपने प्रति ज़्यादा श्रद्धा की उम्मीद करते हैं। शिक्षा प्रदान करने वाले अक्सर इस तरह से सोचते हैं। जैसे कि ऑफिस में बॉस अपने टीम के लोगों से उसी तरह का उम्मीद रखता है। और यही कारण बन जाता है रिश्तों में दरार का। किसी भी रिश्ते का नीव है पारस्परिक श्रद्धा। अगर आप श्रद्धा नहीं करोगे। आपको श्रद्धा नहीं मिलेगा। परंतु लोग इस बात को अक्सर नज़र अंदाज़ कर देते हैं।
किसी भी रिश्ते में मत विरोध होना कोई अस्वाभाविक बात नहीं है। ऐसे समय पर आपस में बात-चीत करके समस्या का समाधान ढूंढ लेना ही समझदारी वाली बात होती है। मुश्किल है कि कौन पहले बात को छेड़ेगा। यहाँ फिर कौन छोटा या कौन बड़ा का प्रश्न आ जाता है। किसी भी समस्या या मत -विरोध का अगर जल्दी समाधान ना ढूंढा जाए तो बात और बिगड़ जाती है।
दूसरों की इज्जत कीजिए , दूसरों को रिश्ते में जगह दीजिए देखिएगा आपके रिश्ते कितने मजबूत बनते जाते हैं। इस लेख के जरिए मैं भी आप लोगों से रिश्ता जोड़ने की कोशिश कर रहा हूँ। आपकी मैं इज्जत करता हूँ और अहम् दिल से विश्वास करता हूँ कि मैं आप सभी से मैं सीख सकता हूँ। आइए फेसबुक के माध्यम से मिलते हैं अपने रिश्ते को और मजबूत बनाने के लिए। इंतज़ार करूँगा। 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें