शुक्रवार, 31 मई 2019

नमस्कार। गर्मी का मौसम हमारी एनर्जी को घटा देता है। एनर्जी घट जाने के कारण हमारा प्रयास कमजोर बन जा सकता है। और यही हमारी असफलता का वजह हो सकता है। पिछले महीने से मैंने असफलता या फेलियर के विषय पर चर्चा शुरू किया है। जिन्होंने पिछले महीने का लेख नहीं पढ़ा है उनके लिए मैंने दो सीख के विषय में अवगत कराना चाहता हूँ. पहली सीख थी कि असफलता की परिभाषा आपके लिए क्या है ? दूसरी सलाह यह थी कि हमें अपने काबिलियत के 'अंदर 'रहते हुए अपने  कम्फर्ट जोन के 'बहार 'निकलने का प्रयास करना पड़ेगा।
मेरे पिछले महीने के लेख को पढ़कर एक पाठक ने फेसबुक के माध्यम से एक दिलचस्प प्रश्न किया है -"जब हम अपने से बेहतर और काबिल किसी भी इंसान से मिलते हैं ,तब हमें मोटिवेशन तो मिलता है परन्तु उनकी तुलना में अपने आप को छोटा लगता है जिसके कारण अपना कॉन्फिडेंस घट जाता है और हम फेलियर की ओर कदम रखते हैं। " धन्यवाद आपको इस प्रश्न के लिए। आपके प्रश्न से तीन बातें उभर कर आती हैं। पहली आप अपने से बेहतर और काबिल इंसान से मिलते हो ,तो आपको मोटिवेशन मिलता है। दूसरी बात -जब आप खुद को उनसे तुलना करते हो ,तो आपको ऐसा लगता है कि आप कुछ भी नहीं हो। और तीसरी बात -आपका कॉन्फिडेंस कम हो जाता है और फेलियर की ओर अग्रसर हो जाते हो। मूल कारण है अपने को किसी और से तुलना करना। अगर तुलना ही करना हो , तो तुलना कीजिए अपनी मेहनत का /प्रयास का उस कामयाब इंसान के प्रयत्न के साथ। फर्क इसी जगह पर होता है। उनकी कामयाबी के पीछे मेहनत का एक अहम भूमिका जरूर रहेगा। आपको अगर तुलना करना है ;खुद के साथ कीजिये। मैं जिनसे बहुत ही ज़्यादा प्रभावित हूँ ,राहुल द्राविड़ ,ने एक चर्चा के दौरान कहा था कि हर सुबह उनका एक ही प्रश्न रहता है खुद से -क्या मैं आज कल के तुलना में एक बेहतर इंसान बन पाया हूँ ? उनका कहना है कि इंसान केवल अपना बेहतर अवतार बनने की प्रयास कर सकता है। कोई और इंसान नहीं बन सकता। दूसरों के साथ तुलना एक खुद को कमजोर करने का तरीका है। इस आदत को त्याग कीजिये जिंदगी बदल जाएगी। आपकी।
मैंने चर्चा की थी कि आपके लिए असफलता की परिभाषा क्या है और आप उसे किस अंदाज़ से देखते हैं। एक बेहतरीन उदाहरण पेश कर रहा हूँ आपके लिए। आप सब लोगों ने तो थॉमस अलवा एडिसन का नाम जरूर सुना होगा। उन्होंने हमारे ज़िन्दगी में रौशनी दी है ,इलेक्ट्रिक बल्ब के आविष्कार के जरिये। हम लोग क्या इस बल्ब के बिना ज़िन्दगी सोच भी सकते हैं ? जब एडिसन आविष्कार का प्रयास कर रहे थे तब उनके पास केवल एक विश्वास था। क्यूंकि दुनिया ने उनके  पहले कभी बल्ब नामक वस्तु के विषय में ना सोचा था और ना ही किसी को इसका कोई अनुभव था। इतिहास गवाह है कि एडिसन को इलेक्ट्रिक बल्ब के आविष्कार करने में हज़ार बार कोशिश करनी पड़ी थी। पत्रकार ने उन्हें पूछा था एडिसन को -"आपको हज़ार बार असफल होने पर क्या महसूस हुआ ?" एडिसन का जवाब लाजवाब था -" हमने हज़ार बार असफलता नहीं पाई। इलेक्ट्रिक बल्ब के आविष्कार के लिए मुझे हज़ार कदम चलने पड़े !" उनके पास एक ही परिभाषा थी -खुद पर विश्वास और अपना जूनून। 
Albert Einstein ने इसी तरह की सोच पेश की थी। "Success is failure in progress ." इसी सन्दर्भ में मुझे प्रसिद्ध पेंटर Vincent Van Gogh , जिनको इतिहास सबसे ऊँचे दर्जे के पेंटर की हैसीयत से देखती है , उनकी ज़िन्दगी के एक विचार को याद दिलाती है -"If you hear a voice within you say ‘you cannot paint,’ then by all means paint, and that voice will be silenced." सफलता और असफलता का संघर्ष हमें अपने मन के अंदर जितना पड़ेगा क्यूँकि जब हम अपने आप से बात करते हैं तब हम खुद तय कर लेते हैं कि हम सफल हो पाएँगे या नहीं। सफल होने का ज़िद हमें अपनी पहली कदम को लेने में  हमारी मदत  करता है। 
क्या आप Van Gogh की तरह अपने अंदर  पल रहे उस आवाज़ को हमेशा के लिए चुप करा सकते हैं जो कि आपको  कह रहा है कि आप नहीं कर पाओगे। आप जरूर कर पाओगे। मेरी दुआ आपके साथ है। यही अपनी ख़ुशी का पहला कदम है। खुश रहिए। 

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