शुक्रवार, 3 मई 2019

नमस्कार। इस लेख के शुरू में मैं उन लोगों को सलाम करता हूँ जिन्होंने सम्मिलित चेष्टा के जरिए भयंकर 'फनी ' नामक तूफान के क्षति को कम से कम रखने में सफलता पाई। धन्यवाद आप सब को। आपकी सफलता के वजह से कई लोग निरापद स्थान में पहुँच कर तूफान के प्रकोप से खुद को बचाया। आँकड़े बताते हैं की पूर्व अभिज्ञता से सीख कर हम लोगों ने यह सफलता अर्जन किया है। यही मेरे लेख का विषय रहेगा कुछ महीनों के लिए। असफलता को कैसे हम सफलता में बदल सकते हैं। इस सन्दर्भ में मैं अपने आत्म जीवनी का जिक्र कर सकता था क्यूँकि मैंने अपनी ज़िन्दगी में अनगिनत असफलता का सामना किया है। परन्तु हार नहीं माना है। आपके लिए मैंने अपनी कहानी का सहारा ना लेने का तय किया है। क्यूँकि आपके के साथ मेरा रिश्ता इस लेख के माध्यम से है। मैं प्रसिद्द नहीं हूँ कि आपको इंस्पायर करूँ अपने जीवनी से। मैंने इस लिए काफी रिसर्च किया गूगल पर। सफल इंसानो के विषय में। और सफलता एवं असफलता के विषय। इस कारण मैंने भी नई बातें सीखी। उनका समिश्रण आपके पेश कर रहा हूँ। धन्यवाद उन लोगों को जिन्होंने गूगल के माध्यम से अपना ज्ञान और अनुभव शेयर किया जिससे यह लेख और आगे के लेख भी प्रेरित होंगे।
शुरू करता हूँ एक व्यक्तिगत अनुभव के जरिए। साल १९९२ । मैं एक फार्मास्यूटिकल कम्पनी में काम कर रहा था। काम के सिलसिले में  अहमदाबाद टूर पर गया हूँ। दिन के अंत में अहमदाबाद के डिस्ट्रिक्ट मैनेजर सिंह साहब के घर गया हूँ उनसे मिलने। एक एक्सीडेंट के कारण उनकी टाँग टूट गई थी। जिस कारण वह ऑफिस नहीं आ पा रहे थे। मैं उनसे पहली बार जिंदगी में मिल रहा था। सुना था बहुत ही मजेदार इंसान हैं। इस बात का प्रमाण मुझे उस दिन प्राप्त हुआ। उनके घर पहुँचने पर उनकी बीवी ,जिनको हम भाभी जी कह कर संबोधन कर रहे थे ,हमें मिठाई खिलाया इस ख़ुशी में कि उनके बेटे ने दसवीं क्लास के बोर्ड परीक्षा में ८९ प्रतिशत नंबर हासिल किया है। शायद आज ज़माने के पाठकों को यह बताना जरूरी कि उन दिनों ८९ प्रतिशत नंबर बहुत कम बच्चों को मिलते थे। हमने उनके को शाबाशी दी और ज़िन्दगी में और सफलता हासिल करने की दुआ माँगी। हम सिंह साहब से बातचीत में मशगुल हो गए लेकिन भाभी जी का असंतोष दूर नहीं हो रहा था। उनका बार बार यही कहना था कि अगर उनके बेटे को संस्कृत में ९५ प्रतिशत के जगह अगर ९८ प्रतिशत मिल जाता तो उसका परसेंटेज ८९ से बढ़कर ९० प्रतिशत हो जाता। उनके बेटे ने परीक्षा लिखने के बाद ९८ प्रतिशत की उम्मीद की थी संस्कृत में। बार बार भाभी जी यही एक बात दोहराये जा रही थी। अचानक सिंह साहब ने एक मजेदार टिप्पणी की। "अरे जाने भी इस बात को ,नहीं तो लोग सरदार का नहीं पंडित का बेटा समझेंगे " इस उदाहरण से यह बात उभर कर आती है कि असफलता की परिभाषा क्या है आपके लिए ? इस असंतोष आपको प्रोत्साहित कर सकती है अपने आप को और कोशिश करने के लिए।
रैल्फ हीथ जिन्होंने एक बेहतरीन किताब लिखी है - Celebrating Failure: The Power of Taking Risks, Making Mistakes and Thinking Big.- ने एक जबरदस्त बात कही है जो कि मैं मानता हूँ हर किसी के लिए मायने रखता है - “One of the biggest secrets to success is operating inside your strength zone but outside of your comfort zone.”
मुश्किल इस बात का है कि हम अक्सर अपने स्ट्रेंथ पर फोकस ना करके दूसरों के स्ट्रेंथ पर ईर्ष्या करते हैं। हमें अगर अपने कंफर्ट से बाहर निकलना है तब पहली चीज़ हमें जो ज़रुरत है वह है खुद पर भरोसा। इसके बिना हम रिस्क नहीं ले सकते हैं। 
आप सब लोगों ने तो थॉमस अलवा एडिसन का नाम जरूर सुना होगा। उन्होंने हमारे ज़िन्दगी में रौशनी दी है ,इलेक्ट्रिक बल्ब के आविष्कार के जरिये। हम लोग क्या इस बल्ब के बिना ज़िन्दगी सोच भी सकते हैं ? जब एडिसन आविष्कार का प्रयास कर रहे थे तब उनके पास केवल एक विश्वास था। क्यूंकि दुनिया ने उनके  पहले कभी बल्ब नामक वस्तु के विषय में ना सोचा था और ना ही किसी को इसका कोई अनुभव था। इतिहास गवाह है कि एडिसन को इलेक्ट्रिक बल्ब के आविष्कार करने में हज़ार बार कोशिश करनी पड़ी थी। पत्रकार ने उन्हें पूछा था एडिसन को -"आपको हज़ार बार असफल होने पर क्या महसूस हुआ ?" एडिसन का जवाब लाजवाब था -" हमने हज़ार बार असफलता नहीं पाई। इलेक्ट्रिक बल्ब के आविष्कार के लिए मुझे हज़ार कदम चलने पड़े !"
कुछ अंदाज़ मिल रहा है सफलता और असफलता के विषय में ? मैं अध्धयन कर रहा हूँ आपके यह सीखने के लिए कि हम सब असफलता से कैसे जूझें और ज़िन्दगी से अधिक आनंद प्राप्त करें। अगले महीने इसी विषय की अगली किश्त पेश करूँगा। क्या मैनेआपको सोचने परसफलता हासिल की है ?जरूर बताईए फेसबुक के माध्यम से। इंतेज़ार करूँगा आपके विचारों का। धन्यवाद धैर्य के साथ पढ़ने के लिए. 


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