गुरुवार, 31 अक्तूबर 2019

नमस्कार। आप सब को दिवाली की शुभकामनायें। उम्मीद करता हूँ कि आपने दिवाली सावधानी और प्रदुषण का ख्याल रख कर मनाया होगा। बधाई छट पूजा के लिए। छट पूजा में हम सूर्य भगवान की पूजा करते हैं। और सूर्य स्वास्थ का प्रतिक है।
एक नियमित पाठक ने मुझे स्वास्थ्य के महत्व के विषय पर लिखने का अनुरोध किया है। आज का लेख स्वास्थय पर है। मेरे अपने अंदाज में।
हम सब को गर्व होनी चाहिए कि हमारे प्राचीन रीति रिवाज़ से  स्वास्थ का गहरा संबंध है। शुरू करते हैं सूर्य भगवान के आशीर्वाद से। बचपन से मैंने देखा है माँ को नवजात शिशु का तेल मालिश कर के धूप में रख देना। एकदम प्राकृतिक उपाय विटामिन डी के लिए। इससे हमारी पहली सीख। हम कितना समय धुप का आनंद लेते हैं ? मुझे तो लगता है कि हम 'वातानुकूल ' से गिरफ़्तार हो गए हैं। धुप में निकलने से डरते हैं। और देखिये विदेशी पर्यटक को। भारत का सफर करते हैं धुप सेकने के लिए।
दूसरी सीख के लिए मैं उदाहरण लूँगा हाल में रिलीज़ हुई एक हिंदी फिल्म से। यह इस फिल्म के टाइटल का चौथा संस्करण है। कॉमेडी का आनंद के लिए फिल्म देखने गया। वातानुकूल सिनेमा हॉल में सोने का आनंद लिया। क्यों फिल्म अच्छी नहीं लगी। एक कारण। सब तरह के मसाले डाल देने पर खाना स्वादिष्ट नहीं बनता है। दरअसल खाने लायक नहीं रहता है। यही होता कई लोगों के लिए उनके स्वास्थ्य चर्चा के लिए। बहुत करना चाहते हैं। कुछ नहीं कर पाते हैं। एक दो चीज़ करने का प्रयास कीजिए। आदत बना लीजिये। फिर आगे बढ़िए।
तीसरी सीख है संयम। खानाहै हम पहले आँखों से खाते हैं। फिर मुँह से। आपने शायद अनुभव किया होगा कि जो खाना आपके सेहत के लिए मना है ; उस खाने को देखकर लालच ज़्यादा बनता है। मुँह में पानी आ जाता है। और हम कोई ना कोई बहाना ढूंढ लेते हैं 'इस बार खा लेने का '; अगली बार कतई नहीं। हमारे भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान ने कई सालों से मिठाई का एक भी टुकड़ा अपने मुँह में नहीं डाला। जितना शारीरिक परिश्रम वो करते हैं ; एक आध टुकड़ा मिठाई से कुछ फर्क नहीं पड़ेगा। परन्तु , नहीं।  यही होता है संयम।
चौथी सीख तीसरे सीख से जुड़ी हुई है। अनुशाषन या डिसिप्लिन। संयम उन चीज़ों पर रखना है जो कि नहीं करना चाहिए। अनुशाषन उन विषय पर होना चाहिए जो कि करना है। उदाहरण के तौर पर आप दिन में कितना कदम चलते हैं। कुछ लोग तो अपने दिन भर के चलने का हिसाब रखते हैं अपनी घड़ी या फिटबिट के माध्यम से। हिसाब रखना तब ही मतलब रखता है जब कि उस पर अमल करें और अनुशाषन के साथ उसका प्रयोग करें। एक दूसरे तरह का अनुशाषण भी महत्वपूर्ण है। मैं अपने एक अनुभव के जरिए समझाता हूँ। मैंने समय पर अपने ऑफिस का एक काम नहीं किया। महीनों तक टालता रहा। अचानक उस काम को सबमिट करने का दिन आ गया। दो दिन मुझे केवल उस काम के लिए देना पड़ा। दरअसल अगर मैं अनुशाषन के जरिए अपना काम हर महीने करता रहता , तो मुझे काफी कम समय लगता। इसके अलावा मुझमें जो मानसिक तनाव बना , उसका एक अलग प्रभाव बना मेरे स्वास्थ पर। और यही मुझे अपने आज के लेख के अंतिम सीख पर ले जाता है।
मानसिक स्वास्थ। यह सबसे ज़्यादा हानिकारक है हमारे लिए। इसका कारण अकसर हम खुद हैं। जैसा मैंने अभी आपको समझाया है। पिछले दशक में इंटरनेट ने हमारी ज़िन्दगी बदल डाली है। काफी फायदे हुए हैं। नुकसान भी। सबसे ज़्यादा नुकसान का वजह है बिना किसी वजह का कम्पीटीशन। फेसबुक में मेरे सेल्फी को कितने लाइक या कमेंट्स मिले मेरे लिए महत्वपूर्ण है। उससे भी ज़्यादा महत्वपूर्ण है मेरे 'प्रतिद्वंदी ' को कितना मिला है। इससे हमें मानसिक अशांति होती है। एक और प्रचलित वजह मानसिक तनाव का है -परीक्षा का रिजल्ट्स। अभिवावक खुद टेंशन करते हैं और अपने बच्चों का टेंशन बढ़ाते हैं। प्रथम स्थान प्राप्त करने वाला विद्यार्थी ज़िन्दगी में हमेशा सफल नहीं होता है। ना ही कम नंबर प्राप्त करने वाला , असफल। हमें अपनी ज़िन्दगी जिनी चाहिए और उसका आनंद लेना चाहिए। ऐसा करने से खुद पर मानसिक तनाव कम होता है। छोटी -छोटी बातों का आनंद लीजिए। ज़िन्दगी भरपूर जीने का प्रयास कीजिये। यही स्वास्थ का राज है।
आनंद लीजिए और मुझे जरूर लिखिए इस लेख के विषय में ,फेसबुक के माध्यम से। 

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