गुरुवार, 28 मई 2020

नमस्कार। उम्मीद करता हूँ कि आप हर कोई स्वस्थ और सुरक्षित हैं। कठिन समय पीछा छोड़ने का नाम ही नहीं ले रही है। हमारे देश में कॅरोना वायरस से संक्रमित लोगों की सँख्या बढ़ती ही जा रही है। पूरी दुनिया में परिस्तिथि हमारे देश की तरह ही है। हर देश की सरकार एक दुविधा से गुज़र रही है। क्या हम लकडाउन को और मजबूती के साथ आगे बढ़ाए ताकि अधिक लोगों की जान बचे या लकडाउन को शिथिल करके वाणिज्यिक और अर्थनैतिक कार्यक्रम की शुरुआत करे ताकि अर्थव्यवस्ता बेहतर बने और लोगों को काम और आय करने का मौका मिले। दोनों निर्णय के लिए कुछ वजह अनुकुल हैं और कुछ विपक्ष में। क्या करना चाहिए इस स्थिति में ? यही आज के लेख का विषय है।
ग्रीस में इस असमंजस को Protagoras Paradox के नाम से परिचित है। करीब २००० साल पहले प्रोटागोरस नामक एक वकील के दुविधा से इस प्रोटागोरस पैराडॉक्स का जन्म हुआ था। कहानी कुछ ऐसी है। प्रोटागोरस एक मशहूर वकील था। वकालत सीखने वाला एक विद्यार्थी प्रोटागोरस के साथ काम सीखने की उम्मीद से उसके साथ जुड़ना चाहता था। परन्तु उसके पास गुरु दक्षिणा देने के लिए कोई पैसे नहीं थे। दोनों ने मिलकर एक निर्णय लिया। जिस दिन यह विद्यार्थी अपना पहला केस जीत लेगा वकालती का ,वह गुरु दक्षिणा के पैसे प्रोटागोरस को देगा -अपनी पहली कमाई से। 
विद्यार्थी की ट्रेनिंग समाप्त हो जाने के बाद कई साल गुज़र गए परन्तु उसने प्रोटागोरस को एक भी पैसा नहीं दिया। प्रोटागोरस ने विद्यार्थी के खिलाफ न्यायालय में मुकदमा दाखिल कर दिया। उनका सोच था कि अगर मैं मुकदमा जीत जाऊँगा तो मुझे अपना गुरू दक्षिणा मिल जाएगा क्योंकि मुक़दमे का मूल विषय ही यही था। अगर प्रोटागोरस मुकदमा हार जाता है तो विद्यार्थी को जो पैसे मिलेंगे उसे प्रोटागोरस को वापस देना पड़ेगा क्योंकि यही बात तय हुई थी कि विद्यार्थी अपनी पहली जीत का पैसा गुरु दक्षिणा की खातिर प्रोटागोरस को देगा। 
यही Protagoras Paradox के नाम से मशहूर हुआ। दोनों पक्ष सही है। चिकित्सा में अक्सर यह दुविधा होती है -ऑपरेशन करे तो खतरा है ,ना ऑपरेशन करो तो मरीज़ के बचने की उम्मीद घट जाती है। बच्चों को घर के पास पढ़ने भेजा जाय ताकि उन पर नज़र बनी रहे ,या दूर के शहर भेजा जाय जहाँ नौकरी बेहतर मिल सकती है। 
अभी यही असमंजस के साथ पूरी दुनिया जूझ रही है। दोनों पक्ष सही हैं। समय ही बता सकता है कि क्या होगा आगे चल कर। इस सन्दर्भ में मैं येल विश्वविद्यालय के द्वारा प्रकाशित एक रिसर्च का ज़िक्र करूँगा। यह रिसर्च दो विषय पर आलोकपात करता है। पहली बात कि पूरी दुनिया में जिस रफतार से नए मरीज़ की संख्या बढ़ रही है , उसके कारण सोशल डिस्टैन्सिंग पर लोगों का विश्वास कमजोड़ होता जा रहा है। निराश मत हो जाईये। सोशल डिस्टैन्सिंग ही वायरस के फैलने को रोकने का प्रथम और प्रधान तरीका है। आँकड़े बता रहें हैं कि कुछ दिन बाद इन्फेक्शन का फैलना धीमा हो जाएगा अगर हम सोशल डिस्टैन्सिंग का पालन करते रहें। 
दूसरी बात इससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण है। हम सब एक छत के नीचे एक परिवार की तरह जी रहें हैं। इस को एक सोशल यूनिट का दर्जा दिया गया है। इसी तरह अलग -अलग परिवार अलग -अलग सोशल यूनिट है। लकडाउन शिथिल होने की वजह से अगर एक सोशल यूनिट का कोई सदस्य किसी दूसरे सोशल यूनिट के सदस्य के साथ अपना हाथ मिलाता है तब इन्फेक्शन एक सोशल यूनिट से दूसरे सोशल यूनिट में फैल कर हर सदस्य को वायरस दे सकता है। यह वायरस अदृष्य है जिसके कारण और भी खतरनाक है। इस सावधानी को बरतना बहुत जरूरी है। 
२०२० का छटा महीना आज शुरू हो गया। आधा साल गुजरने को चला। समय तेज रफतार के साथ भाग रहा है। परन्तु हमें धैर्य के साथ परिस्थिति का मुकाबला करना पड़ेगा। सोच समझ कर दिमाग से निर्णय लीजिए -अपने लिए और अपने सोशल यूनिट के लिए। इसी में सब का मंगल है। खुश रहिये। सही सलामत रहिए। यही मेरी दुआ है। मजे की बात यह है कि Protagoras Paradox का अभी भी समाधान नहीं मिला है और वकालती सिखाते वक़्त हर यूनिवर्सिटी में इसका केस लड़ा जाता है विद्यार्थी को सिखाने के लिए !

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