नमस्कार। स्वतंत्रता दिवस के लिए आपको अग्रिम बधाई। ७८ साल पेहले १५ अगस्त १९४७ के दिन के विषय में जब मैं सोचने का प्रयास करता हूँ तब एक ही एहसास अपने आप को पेश करता है -आज़ादी का। अचानक एक सुबह उठ कर हम अपने आप को गुलामी के बेड़िओं से मुक्त महसूस करते हैं। कैसा रहा होगा उन लोगों का अनुभव जिन्होंने १९४७ का वह सुबह देखा होगा। परिस्थिति बिलकुल बदल गई रातों रात।
हम कॉलेज के तीन दोस्त अपनी धर्मपत्निओं के साथ पिछले महीने विदेश भ्रमण पर गए थे। हमारी दोस्ती चालीस साल पुरानी है। करीब तीन हफ्ते हमने साथ गुज़ारी। इस सफर ने मुझे एक बहुत ही सच का एहसास दिलवाया। मैं इस निष्कर्ष पर पहुँचा हूँ कि हर किसी के लिए ज़िन्दगी एक परिस्थितिओं का सफर है। हम तरह -तरह के परिस्थितिओं से गुज़रते हैं और उनका आनंद लेते हैं या जूझते हैं। कुछ परिस्थितिओं के लिए हम तैयार होते हैं क्योंकि हमने प्लान किया है ;कुछ परिस्थितयां प्लान के मुताबिक नहीं होती है ;कुछ हम सोच भी नहीं सकते हैं। एक और बात हमने महसूस किया कि परिस्थितीआं मिक्स्ड होती हैं -अच्छे ,बुरे ,आनंदमय ,दुःखदायक ,अकस्मात्। क्या परिस्थिति हमारे लिए पेश होगा हमारे कण्ट्रोल में नहीं है। परन्तु हम उनके साथ कैसे जुझते हैं निर्भर करता है हमारे अंदर के सोच पर।
आज का लेख है इन परिस्थितिओं से जुझने ,आनंद लेने या सामना करने के उपायों पर। इस सफर के दौरान हमने एक गाड़ी भाड़े पर ली थी जिसे मैं और एक दोस्त चला रहे थे। मेरी गलती के कारण गाड़ी पर एक हल्का खँरोच आ गया। मैं बहुत दुःखी हो गया। दो वजह से -एक पैसे देने पड़ेंगे मरम्मत के लिए और अपने खुद के ड्राइविंग क्षमता पर एक धब्बा लग गया। अपने आप पर गुस्सा आ रहा अपनी गलती पर -मुझे और ज़्यादा सावधानी बरतनी थी। मैं एक दम चुपचाप हो गया अपने अपराध बोझ के कारन। मैं इस ना चाहने वाले परिस्थिति से अपनी तरह से जुझ रहा था। मेरा दोस्त जो कि मेरे साथ ड्राइविंग का जिम्मेवारी बाँट रहा था मेरे कंधे पर हाथ रख कर कहा -उदास हो ? मैं भी तुम्हारी जगह होता मुझे भी उतनी ही उदासी होती। परन्तु अगर हम इसको अगर इस अंदाज़ से सोचे की शायद ऊपर वाले ने हमें किसी भयंकर दुर्घटना से बचा दिया इस खँरोच के माध्यम से ,तब हमें उतना बुरा नहीं लगना चाहिए। बाकी लोगों ने भी इस बात का समर्थन किया। मुझे थोड़ा बेहतर लगा। इन बातों में अगर आप देखें तो कोई लॉजिक या साइंस नहीं है , यह इमोशंस का मायाजाल है। यह उम्मीद और हौसला बढ़ाता है। मेरी सीख है भावनाओं का परिस्थितिओं से जूझने में एक अहम् भूमिका होता है। भावनाओं को दिमाग और दिल ,दोनों से समझना पड़ेगा। इसे इमोशनल इंटेलिजेंस का प्रयोग कहते हैं।
मेरा एक दोस्त और उसकी धर्मपत्नी शुद्ध शाकाहारी भोजन के अलावा कुछ और नहीं खा सकते हैं। जो कि विदेश में हर जगह उपलब्ध नहीं होता है। इस परिस्थिति को सँभालने के लिए यह तय किया गया कि हम लोग उसी रेस्टोरेंट में जहाँ कुछ शाकाहारी भोजन उपलब्ध हैं। परिस्थिति के अनुसार त्याग या एडजस्टमेंट करना जरूरी होता है। और वह भी निःस्वार्थ। सफर के अंत में एक रेस्टोरेंट में दाल ,चावल ,सब्जी का एक डिश मिला। उनको रूचि के साथ संतुष्ट हो कर , खाने का आनंद लेते देख हमें अधिक आनंद मिला। दूसरों के संतुष्टि से आनंद मिलना भी परिस्थिति का भेंट है।
सारांश में हमारी सीख परिस्थितिओं से जूझने का यह रहा -
- अगर आप उस परिस्थिति को बनाने का निर्णय लिया है तो आपको उस परिस्थिति से जूझने का तरकीब भी सोच लेना पड़ेगा
- ऐसी परिस्थितियाँ आएगी जिसका आपको कोई पूर्व आभास नहीं मिलेगा। उससे आपको जूझना पड़ेगा
- दूसरों के भावनाओं का कदर करना और इमोशनल इंटेलिजेंस का सठिक प्रयोग परिस्थितिओं से जूझने में मदत करता है