गुरुवार, 29 मई 2025

नमस्कार। बारिश का मौसम इस बार जल्दी आ गया है। यह एक अच्छी खबर है। बारिश का आनंद ही कुछ अलग होता है। परन्तु बारिश के कारण यातायात में कभी -कभी असुविधा होती है। खास कर रास्ते में पानी जम जाने पर। मोटर गाड़ियां अक्सर ठप पर जाती है जिसके कारण वाहन चलाचल में बाधा पहुँचती है। इस समय साइकिल एक असरदार सवारी है। 

३  जून वर्ल्ड बाइसिकल दिवस के हैसियत से मनाया जाता है। संयुक्त राष्ट्र संस्था ने मई २०२२ में इसका एलान किया।   बाइसिकल एक सस्ता ,टिकाऊ ,मजबूत और वातावरण सहायक सफर साथी है जिसका प्रयोग और बढ़ना चाहिए। पश्चिमी देशों में इसका प्रयोग और बढ़ रहा है। बाइसिकल एक लिए अलग ट्रैक बना रहता है। लोग बाइसिकल का प्रयोग स्वास्थ्य चर्चा के लिए भी प्रयोग करते हैं। 

आप क्या बाइसिकल चला सकते हैं ? यह एक ऐसा सीख है जो कि हम कभी नहीं भूलते हैं। परन्तु आप को बाइसिकल सीखने का प्रयास याद है ? निर्भर करता है कि आपने किस उम्र में सीखा है। हम उस सीखने के सफर का चर्चा करेंगे। क्योंकि उस सफर से भी हम कुछ सीख सकते हैं। 

बचपन में अगर आपने बाइसिकल चलाना सीखा होगा तो शायद आपने छोटे बाइसिकल पर सीखा होगा। छोटे बाइसिकल में दो पहिए पीछे के चक्के के साथ लगे रहते थे ताकि बैलेंस बरक़रार रहे। पहली सीख होती है पडेल चलाने की सीख ,बिना बैलेंस के परवाह किये और बिना गिरने के डर के साथ। यह पहला कदम का चयन ज़िन्दगी में कुछ भी सीखने के लिए अति आवश्यक है। चोट लगने का डर दिमाग से ना निकलने से कोई भी पडेल करना नहीं सीख सकता है। 

दूसरी बात है प्रोत्साहन। सीखने वाले को प्रोत्साहित करना सीखाने वाले की जिम्मेवारी बनती है। प्रोत्साहन जरूरी होता सीखने वाले को सीखने का प्रयास बढ़ाने के लिए। कोरोना के कारण लॉकडाउन के समय हमारे जैसे कई लोगों ने पहली बार खाना बनाने का प्रयास किया। परिवार वालों ने खाने का सराहना करके हमें प्रोत्साहित किया। कुछ फीडबैक भी मिला -टेस्ट बढ़िया है ,नमक थोड़ा ज़्यादा है। अगली बार ख्याल रखना। ऐसा फीडबैक भी आवश्यक है सीखने के लिए। इसे हम constructive फीडबैक कहते हैं। जो कि आगे बढ़ने के लिए सुझाव देता है ,बिना डर पैदा किये हुए। 

कुछ समय के प्रयास और प्रैक्टिस के बाद पेडल चलाना स्वाभाविक हो जाता है। पेडल करने का आनंद मिलने लगता है और पेडल करने के लिए सोचना नहीं पड़ता है। यह अभ्यास का नतीजा है। इसके बाद बैलेंस के लिए पहिए निकाल दिए जाते हैं। बैलेंस बनाए रखने के लिए कोई पीछे से बाइसिकल को पकड़ता है। फिर एक समय पर अचानक यह वक़्ति बाइसिकल को छोड़ देता। कुछ दूर तक सीखने वाला बाइसिकल चला लेता है। थोड़ा वक़्त लगता है यह महसूस करने में हम बिना सहारा बाइसिकल चला पा रहें हैं। यह अनुभूति एक विजय का एहसास देता है। इस ख़ुशी में हम कभी लड़खड़ा कर गिर भी जाते हैं। परन्तु हम तुरंत उठ जाते हैं और फिर बाइसिकल चलाने लगते हैं। 

ज़िन्दगी में कुछ भी सीखने के लिए प्रयास ,धैर्य और मार्ग दर्शन का कोई विकल्प नहीं होता है। सीखने का प्रोसेस समझना और फॉलो करना जरूरी है। गिरने का डर या असफलता का चिंता सीखने के लिए दिमाग में बाधा सृष्टि करता है। बैलेंस हो जाने पर सीखना बरक़रार रखना जरूरी है। किसी भी सीख को आदत में बदलने का एकमात्र उपाय है निरंतर प्रयोग सीख का। 

बाइसिकल चलाना सीख जाने पर अपना खुद पर विश्वास बढ़ जाता है। इसे हम ज़िन्दगी का आवश्यक कौशल मानते हैं। इस कौशल को सीखने के लिए कोई उम्र का सीमा नहीं होता है। अगर आप बाइसिकल चलाना नहीं जानते हैं तो सीख लीजिये। अपने ज़िन्दगी से और आनंद लीजिये। स्वस्थ और सावधान रहिये क्योंकि कोरोना फिर खबर में है। बाइसिकल कोरोना के समय सबसे सुरक्षित वाहन था। 

शुक्रवार, 2 मई 2025

नमस्कार। इस महीने का लेख शुरू कर रहा हूँ एक प्रश्न के साथ। २९ मई क्यों हमारे सब के लिए एक महत्वपूर्ण दिन है ? उस दिन इन्सान ने इस दुनिया के सबसे ऊँचे पर्वत पर अपना कदम रखा था। जी हाँ। माउंट एवेरेस्ट पर एडमंड हिलरी और तेनज़िंग नोरगे ने इस शिखर पर पहुँचने में सफलता हासिल की थी। १९५३ साल की बात है यह। सुबह सारे इग्यारह बजे इतिहास रचा गया। २९०३५ फ़ीट ऊँचा शिखर कोई मामूली लक्ष्य नहीं है। 

क्या किसी को याद है कि एवेरेस्ट के शिखर पर पहुँचने वाला दूसरा इन्सान या टीम कौन सा था ? शायद नहीं। यही है पहला हासिल करने वाले का फायदा। लोग याद रखते हैं। क्विज और GK के लिए प्रश्न बन जाते हैं। परन्तु पहला बनना उतना आसान नहीं होता। क्योंकि हमारे सामने कोई मिसाल नहीं होता। अनजाने का डर भी होता है -fear of the unknown - काफी लोगों का स्ट्रेस बढ़ा देता है। 

पहली बार एवेरेस्ट पर विजय करना कैसे संभव हुआ। १९२१ में अंग्रेजो ने पहली बार कोशिश की थी। १० टीम और दो अकेला पर्वतारोही असफल रहे १९५० तक जब कि सफलता हासिल करने की पहली संभावना दिखी। नेपाल से  एवेरेस्ट के दक्षिण दिशा से एक उपाय दिखा। १९५२ में स्विट्ज़रलैंड के मशहूर पर्वतारोही रेमंड लैम्बर्ट के नेतृत्व में एक टीम २८२१० फीट की ऊंचाई तक पहुँचकर वापस आ गई। तेनज़िंग इस टीम के भी सदस्य थे। इतने करीब ,परन्तु शिखर तक नहीं। पर तेनज़िंग का हौसला बरक़रार रहा चोटी तक पहुँचने के लिए। 

१९५३ में अंग्रेज़ो ने सर जॉन हंट के नेतृत्व में १० पर्वतारोही का टीम बनाया। इनको सपोर्ट करने के लिए ३५० कुली और २० शेरपा को चुना गया। तेनज़िंग का यह चौथा प्रयास था शिखर तक पहुँचने के लिए। ३८ साल के उम्र वाले तेनज़िंग को लीड शेरपा का दर्जा दिया गया। सर हंट का मिलिटरी स्टाइल का नेतृत्व डिसिप्लिन और टीम वर्क पर अधिक फोकस दिया करता था। इसके साथ साथ उन्होंने हर किसी का बेस्ट परफॉरमेंस को प्रोत्साहित करने के लिए उन्होंने एक इंटरनल कम्पटीशन का एलान किया। चोटी पर दो लोगों का टीम क्या होगा इसका निर्णय आखरी पड़ाव पर लिया जायेगा। हर दिन का मिलिट्री स्टाइल प्लानिंग और एक्सेक्यूशन का ब्लूप्रिंट बना। यह तय किया गया था कि शिखर के लिए अधिक से अधिक तीन प्रयास किये जाएंगे। पर्वतारोहण के पंडित केन विल्सन ने सर हंट के इस प्लानिंग की व्याख्या में बताया "You get there fastest with the mostest". सबसे तेज ,सबके साथ। 

पहले १२ दिन बहुत कठिन रहे। एक्सपीडिशन लरखरा रही थी और सही मार्ग ना दिख रहा था और ना ही कब्ज़े में आ रहा था। टीम का मनोवल कमजोर हो रहा था परन्तु सर हंट के अलग -अलग प्लान और प्रयत्न आखिर काम आ गया। २६ मई को टॉम बोरडालियन और चार्ल्स एवन्स को पहला मौका दिया गया शिखर पर विजय हासिल करने का। २८७०० फ़ीट की ऊंचाई पर पहुँचने के बाद  -जो कि शिखर से मात्र ३३० फ़ीट दूर था -टॉम और एवंस को वापस लौटना पड़ा थकान और ऑक्सीजन के कमी के कारण। जरा सोचिए टॉम और एवंस के विषय में दुनिया को शायद ही पता होगा। सफलता आपको प्रसिद्ध बनाती है। 

जो कि तेनज़िंग और हिलरी को प्राप्त हुआ जब २९ मई -ठीक टॉम और एवंस के प्रयास के तीन दिन बाद -को उन्होंने एवेरेस्ट पर कदम रखा। किसने पहला कदम रखा -तेनज़िंग या हिलरी ने ? दोनों ने कदम रखने से पहले यह तय किया था कि यह बात दुनिया के पास एक राज़ बन कर रह जायेगा। और यह राज बरक़रार रहा कई सालों तक। अपने जीवन गाथा - Tiger of the snows -में कई सालों बाद तेनज़िंग ने खुलासा किया कि हिलरी ने पहला कदम रखा था। दोनों ने कभी नहीं सोचा था कि उनके बाद और कितने लोग शिखर तक पहुँचने में कामयाब होंगे। दोनों गलत थे। 

क्या सीख है हमारे लिए। बहादूरी के साथ प्लानिंग जरूरी है। सपोर्ट का महत्व आवश्यक है। कठिन मार्ग या कठिनाई को जिगर ,दिमाग और प्रयास के साथ काबू पाना पड़ेगा। कठिन काम के लिए कठिन लीडरशिप जरूरी है। और टीम वर्क ,मेहनत और जूनून के साथ भाग्य का भी सहारा जरूरी है। केवल टॉम और एवंस के विषय में सोचिये। अगर उनकी किसमत अगर उनको साथ देती तब इस लेख के मुख्य चरित्र वही होते। 

इंसान का प्रकृति पर यह विजय ने इतिहास को नया मोर दिया है। हम उसके गवाह हैं।  हम किसमत वाले हैं। इसका आनंद लीजिए। 

गुरुवार, 3 अप्रैल 2025

नमस्कार। अप्रैल के महीनें में आपका स्वागत। कई प्रदेश के लिए इस महीनें में नए साल का शुभारम्भ होगा ,उसके  लिए बधाई। व्यवसाय के लिए नए वित्तीय वर्ष की शुरुआत में नए टार्गेट्स और संभावनाओं के साथ प्लानिंग और जोश के साथ आगे बढ़ने का हौसला और विश्वास। 

ऐसी ही एक शुरुआत हुई थी १४ अप्रैल १९१२। टाइटैनिक जहाज़ का सफर। इतिहास कहता है कि टाइटैनिक इंजीनियरिंग का एक अजूबा था। विशेषज्ञों के अनुसार ऐसा जहाज़ ना इसके पहले बना था और भविष्य में भी ऐसा जहाज बनाना कठिन होगा। फिर क्या हुआ। टाइटैनिक पर बनी फिल्म करोड़ो का मुनाफ़ा कमा कर प्रसिद्ध हो गई। आप और हमने भी इस फिल्म को देखा होगा। फिल्म लव स्टोरी का एक मिसाल बन गई। परन्तु टाइटैनिक तो अपने पहले सफर में ही डूब गया। कुछ लोगों का सोच है कि टाइटैनिक डूब जाने के कारन और प्रसिद्ध हो गया। 

पर टाइटैनिक डूबा क्यों। एक मात्र वजह है अहँकार। यह सोचना कि हम अजेय हैं ,हमारा कुछ नहीं हो सकता है ,कोई हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकता है। यही अहंकार हम सब का सबसे निजी दुश्मन है। हिंदी फिल्मों में विलन इसी कारन हीरो से पराजित हो जाता है। 

व्यवसाय कि दुनिया में ऐसे कई मिसाल है। अपने पड़ोस के मार्केट में आपको कई ऐसे दुकान मिलेंगे जो कि दो-तीन पीढ़ियों के बाद बंद हो जाते हैं। इसी दुकान पर एक समय ग्राहक कतार में खड़े होकर खरीदारी करते थे। बाजार और दुकानदार उनसे और उनकी कमाई पर ईर्ष्या करते थे। मैंने अपने रिश्तेदारों में ऐसा होते हुए देखा है। उनके पतन का मुझे तीन कारन दिखे हैं। पहला -अच्छा चल रहा है चलता रहेगा हमेशा। दूसरा -हमारे ग्राहक हमारे अलावा किसी और के पास नहीं जा सकता है। तीसरा -पहली पीढ़ी अपने मेहनत से व्यवसाय शुरू करती है, दूसरी पीढ़ी उसको और आगे बढ़ाकर मजबूत बनाती है ,तीसरी और उसके बाद आने वाली पीढ़ी व्यवसाय के विषय में आलसी और मस्ती करने में ज़्यादा मेहनत करती है। 

समय के साथ बदलते रहना व्यवसाय में टिके रहने के लिए अति आवश्यक है। और यहीं पर अपने आपको अजेय समझने वाले व्यवसाय गलती कर बैठते हैं। आपने तो नोकिआ मोबाइल फ़ोन के विषय में जरूर सुना होगा। शायद आपका शुरू के दिनों का मोबाइल फ़ोन भी नोकिआ ही रहा होगा। शुरू के दिनों में हमारे देश में दस में से सात लोग नोकिआ इस्तेमाल करते थे। परन्तु नोकिआ ने android के परिवर्तन को नज़र अंदाज़ किया। परिणाम क्या हुआ ? नोकिआ मार्केट के राजा से रंक बन गया। 

इसी महीने अमीरीकी राष्ट्रपति ने आयात -निर्यात के टैरिफ पर कई सारे निर्णय लिए हैं जिसके कारन सारे मुल्कों के अर्थनीति पर गंभीर प्रभाव पर सकता है। क्या यह कुछ देशों के लिए टाइटैनिक क्षण होगा। समय ही इसका जवाब देगा। अगर आप व्यवसाय में हो या नौकरी में हो ,आगे का समय कठिन ,परन्तु रोमांचकार होगा। टिके रहने के लिए बदलना और बदलाव दोनों आवश्यक है। यही ,इस वित्तीय साल का खासियत रहेगा। 

गुरुवार, 27 फ़रवरी 2025

नमस्कार। वित्तीय साल का आखिरी महीना। मार्च का महीना। अगले महीने से नयी साल की शुरुआत। आप में से कई लोगों ने फरमाईश की है कि खुद में बदलाव लाने का सबसे प्रमाणित तरीका क्या है। इस सिलसिले में आज का लेख है। उम्मीद करता हूँ कि आपको नए वर्ष में बदलाव लाने में यह मदत करेगा। 

इस सन्दर्भ में पहले यह बताना चाहता हूँ कि मैं जो तरीका बताने वाला हूँ वही एकमात्र तरीका नहीं है। यह तरीका मैंने खुद अपनाकर सफलता पाई है। इस तरीके की शुरुआत होती है अपने गोल को निर्धारित कर लेने के बाद। यही गोल किसी भी क्षेत्र में हो सकता है। जैसे पढ़ाई -लिखाई , कैरियर , स्वास्थ , निवेश , खेल-कूद , संपर्क -कुछ भी।  गोल निर्धारित करने के बाद हमें यह तय करना पड़ेगा की हम अपने प्रयासों के आधार पर आए हुए प्रगति का आकलन कैसे करेंगे। यह अति आवश्यक है। मैनेजमेंट के गुरु पीटर ड्रकर ने एक सहज बात हमें समझायी है -if you cannot measure , you cannot progress- अगर आप माप नहीं सकते हो तो आप अपनी तरक्की को कैसे समझोगे। 

गोल और प्रगति के मापदंड को निर्धारित करने के बाद आपको चार निर्णय लेने पड़ेंगे -continue -modify -include -discontinue -करते रहेंगे -करेंगे ,परंतु कुछ बदलाव के साथ ,शुरू करेंगे जो कि नहीं कर रहें हैं और त्याग देंगे उस आदत को जो कि जरूरी है। मैं एक उदाहरण के माध्यम से इसे समझाता हूँ। मान लीजिए आपको वज़न घटा कर और फिट बनना है। आपका गोल हो सकता कि तीन महीने के प्रयास के माध्यम से आप पाँच किलो वज़न कम कीजिएगा और अपने कमर का माप एक इंच से घटाइएगा। आपका प्रयास कुछ ऐसा हो सकता है। 

आप सुबह नाशते और डिनर में तीन-तीन रोटियां और सब्जी खाते हैं जो कि आप उसी प्रकार बरक़रार रखेंगे। दोपहर में ,ऑफिस के दौरान आप बाहर से खरीद कर कुछ चटपटा नाश्ता करते हैं जिसको आप थोड़ा बदल कर थोड़ा स्वास्थपूर्वक नाश्ता करने का निर्णय करते हैं। यह है आपका बदलाव के साथ आदत बरक़रार रखना। 

हर रात डिजर्ट के तौर पर आप एक मीठा खाते हो। आप इस मिठाई को तीन महीनों के लिए त्याग करने का संकल्प बनाते हो। और इस प्रयास में आप सफल होते हो। यह रहा आपका discontinue प्रयास। 

और हफ्ते में पाँच दिन आप 45 मिनटों में दो किलोमीटर पैदल चलोगे जो कि आप नहीं करते हो। यह बन जाता है आपका include प्रयास। इसके बाद आपकी सबसे बड़ी परीक्षा है आपका धैर्य। तुरंत आपको परिणाम नहीं मिलेंगे। परन्तु आपको निराशा को उत्तीर्ण करके लगे रहना पड़ेगा। इस विश्वास के साथ आपके निरंतर प्रयास से उम्मीद से बेहतर परिणाम मिलेगा। 

कोशिश कीजिए मेरे सुझाए गए फार्मूला को किसी भी क्षेत्र में। और मुझे लिख कर बताईये आपके सफल प्रयास के विषय में। होली के त्यौहार के लिए अग्रिम शुभकामनाएं। सावधानी के साथ आनंद लीजिए। बच्चों और बुजुर्गों का ख्याल रखिये। फिर मिलेंगे आपसे नए वित्तीय साल में। 


शुक्रवार, 31 जनवरी 2025

नमस्कार। २०२५ के एक महीना समाप्त हुआ। फ़रवरी का महीना सबसे ज़्यादा वैलेंटाइन्स डे के लिए विश्व भर में प्रसिद्ध है। यह दिन अपने प्यार को स्वीकार करने और अभिव्यक्त करने के लिए जाना जाता है। मेरा आज का लेख एक दूसरे किस्म के प्यार का विषय है। 

हर साल हम २८ फ़रवरी को National Science Day के हैसियत से मनाते हैं। आपको पता है क्यों ? इस दिन 1928 साल में भारतीय भौतिक विज्ञान (फिजिक्स )के वैज्ञानिक सी वी रमन ने रमन एफेक्ट का खोज किया जिसके कारन उन्हे 1930 में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। सी वी रमन की ज़िन्दगी हमारे लिए एक प्रेरणा है। उनकी कहानी इसलिए दिलचस्प है क्योंकि उन्होंने अपने कैरियर में शुरू से ही वैज्ञानिक बनने के लिए अध्यन नहीं किया। फिर विज्ञान के जगत में कैसे आ गए ? चलिए शुरू करते हैं उनके स्कूल की पढ़ाई से। 

केवल १३ साल के उम्र में उन्होंने स्कूल की पढ़ाई समाप्त करके मद्रास यूनिवर्सिटी के तहत प्रेसीडेंसी कॉलेज से १६ साल के उम्र में अपना ग्रेजुएशन किया। उनका विषय था फिजिक्स और प्रेसीडेंसी कॉलेज के टोपर थे सी वी रमन। ग्रेजुएशन के दौरान उनका प्रथम रिसर्च पेपर छपा। विषय था diffraction ऑफ़ लाइट  (प्रकाश का विवर्तन ) 

एक साल के अंदर उन्होंने अपनी मास्टर्स की पढ़ाई ख़त्म की और कलकत्ता में इंडियन फिनांसियल सर्विस के दरमियान असिस्टेंट अकाउंटेंट जेनेरल की नौकरी शुरू किया १९ साल के उम्र में। वहाँ भारत के प्रथम रिसर्च इंस्टिट्यूट - इंडियन एसोसिएशन फॉर द कल्टीवेशन ऑफ़ साइंस -में उन्होंने अकॉउस्टिक्स और ऑप्टिक्स पर रिसर्च किया। १९१७ में आशुतोष मुख़र्जी ने उन्हें पहला पालित प्रोफेसर ऑफ़ फिजिक्स नियुक्त किया राजाबाजार साइंस कॉलेज में जो कि कलकत्ता विश्वविद्यालय के अधीन था। 

अपने पहले यूरोप सफर के दौरान उन्होंने भूमध्य (Mediterranean) समुद्र के नीले रंग को देख कर Rayleigh इफ़ेक्ट ऑफ़ scattered लाइट को गलत सावित किया। १९२६ में उन्होंने इंडियन जर्नल ऑफ़ फिजिक्स की स्थापना की। १९३३ में सी वी रमन इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ साइंस के पहले डायरेक्टर बने। उसी साल उन्होंने इंडियन अकडेमी ऑफ़ साइंस की स्थापना किया।  १९४८ में रमन रिसर्च इंस्टिट्यूट की प्रतिष्ठा किया जहाँ वह अंत तक उन्होंने अनुसन्धान किया।  

सी वी रमन बचपन से ही दुबले पतले और शारीरिक क्षमता में कमजोर दिखते थे। परन्तु उनके मेधा का कोई सीमा नहीं था। उन्होंने अपने ग्रेजुएशन परीक्षा में ना ही प्रथम स्थान अर्जन किया , फिजिक्स और अंग्रेजी में यूनिवर्सिटी में सर्वोच्च नंबर पाया। मास्टर्स परीक्षा और अकाउंटेंट जनरल के लिए लिखे परीक्षा में भी उन्होंने प्रथम स्थान पाया। किसी भी किए हुए रिसर्च का असम्मान ना करते हुए , रमन रिसर्च के विषय पर औरअध्ध्यन करके उसको और बेहतर बनाना उनका प्रयास हुआ करता था। इसलिए Rayleigh इफ़ेक्ट को अध्ययन करके उन्होंने उस पर और रिसर्च किया और उसको आगे बढ़ाया। 

सी वी रमन का विश्वास था कि स्वर्ग ,नरक या पुनर्जन्म जैसा कुछ नहीं है। इंसान को एक ही ज़िन्दगी मिलती है और उसी में उसको सब कुछ हासिल करना है। मैं भी उनके विचारों से सहमत हूँ। आपके विचार क्या हैं ?

बुधवार, 1 जनवरी 2025

हैप्पी न्यू ईयर। 2025 हम सब के लिए मंगलमय हो ,यही प्रार्थना है ईश्वर से। १२ जनवरी स्वामी विवेकानंद जी का जन्मदिन है। 1863 साल में उनका जन्म हुआ था। स्वामी जी युवा पर भरोसा रखते थे और उनका विश्वास था कि युवा ही किसी भी देश का भविष्यत होता है। इसी लिए १२ जनवरी विश्व युवा दिवस के नाम से मनाया जाता है। आज का लेख स्वामी जी का युवा पीढ़ी को दिया हुआ सन्देश पर है। १६२ साल के बाद भी उनका सोच अभी भी उपयुक्त हैं। 

उनका विश्वास था कि किसी भी देश के भविष्यत को उज्जवल बनाने के लिए युवा ताकत प्रमुख ईंधन है। धर्मो के विश्व संसद में 1893 में उन्होंने शिकागो में अपने भाषण में इस बात को दावे के साथ कहा था। उनका कहा हुआ एक पंक्ति युवा  पीढ़ी को ललकार रहा था -"Arise, awake, and stop not till the goal is reached."-जागिए ,उठिये और तब तक ना रुकिए जब तक आप मंज़िल ना हासिल कर लीजिए। 

स्वामी जी ने युवा पीढ़ी को साहस , ना हार मानने की मानसिकता , सच्चाई और अखंडता , और अपने आप पर संयम बढ़ाने की अपील की। उनका मानना था कि चारित्रिक अखंडता और संयम शिक्षा और materialistic उपलब्धिओं से कहीं ज़्यादा महत्वपूर्ण है। खुद पर भरोसा और विश्वास ही ज़िन्दगी का मूल मंत्र है। 

स्वामी जी का अध्यन और शिक्षा पर सबसे अधिक भरोसा था। परन्तु उनके लिए शिक्षा रट के परीक्षा में नंबर लाने वाला विद्या नहीं था। उनके लिए शिक्षा संपूर्ण होना चाहिए जो कि दिमाग और आत्मा दोनों का सिंचन करती है। उनका मानना था कि शिक्षा का एक मात्र उद्देश्य है इंसान का आत्मसम्मान ,आत्मनिर्भरता और अंदरूनी शक्ति को बढ़ाना। रट कर याद रखना इसका मूल उद्देश्य नहीं है। "Education is the manifestation of the perfection already in man." उनका दृढ़ विश्वास था कि युवा को सही शिक्षा प्राप्त होने पर वह खुद के लिए ,देश के लिए ,और इस दुनिया के लिए ऊचीं मंज़िलें हासिल कर सकता है। 

स्वामी जी युवा पीढ़ी को आत्मनिर्भर बनने का आह्वान करते थे। उनके लिए हर युवा को निजी सोच पर भरोसा करना चाहिए। बाहरी चिंताओं और प्रलोभन से प्रभावित ना हो कर ,अपनी बुद्धि और अपने जजमेंट के आधार पर निर्णय लेना चाहिए। उनके लिए युवा ही भविष्य में देश का लीडर बनेंगे जिसके लिए उन्हें स्वाधीन तरीके से और जरूरत पड़ने पर कठिन निर्णय लेने का क्षमता होनी चाहिए। 

स्वामी जी का विश्वास था कि ज़िन्दगी में सफल होने के लिए निडर होना आवश्यक है। ज़िन्दगी के सफर में कठिनाईओं, समस्यायों  और बाधाओं से जूझने के लिए साहस जरूरी है। ज्ञान अर्जन ,सामाजिक बाधाओं और आत्मनिर्भर बनने के लिए युवा पीढ़ी को निडर होना जरूरी है। "Be fearless, be brave, and you will succeed." डर किसी भी इंसान को अपने असली पोटेंशियल के उपलब्धि से रोकता है। असफल होने के डर से नए एक्सपेरिमेंट या प्रयोग का प्रयास ही नहीं करते हैं। बिना नए प्रयोग के ज़िन्दगी ही रुक जायेगी। यह उनका मानना था। 

इस नए वर्ष में क्या आप निडरता का साथ लेंगे ? मेरी शुभकामनाएं आपके साथ है।