मंगलवार, 3 अक्तूबर 2017

नमस्कार। आप सभी को विजया दशमी की शुभकामनाएँ। आशा रखता हूँ कि त्यौहारों का यह मौसम आपका अच्छा बीत रहा है। विजया दशमी बुरे पर अच्छे के जीत को दर्शाता है। मेरा विश्वास है कि अंत में अच्छाई की जीत होती है। पिछले महीने हमने हार्वर्ड के  प्रोफेसर बेन -शहर के पाँच मंत्रों का जिक्र किया था जो कि इंसान को और ज्यादा खुशियाँ दे सकता है। जिन्होंने पिछला लेख नहीं पढ़ा होगा उनके लिए एक बार फिर पाँच सन्देश, प्रोफेसर का -आपके पास जो भी है उसके लिए ईश्वर का शुक्रगुज़ार रहो। शारीरिक एक्सरसाइज रोज जरूरी है। दिन का सबसे महत्वपूर्ण है ब्रेकफास्ट। assertive बनना सीखें। अभिज्ञता अर्जन करने के लिए पैसे निवेश करना आवश्यक है।  इस लेख में और पाँच सुझाव का ज़िक्र करूँगा जो मैंने प्रोफेसर के विषय में लिखे एक व्हाटस एप्प मैसेज से सीखा है। यह लेख उस व्हाट्स एप्प मैसेज से अनुप्राणित है। मूल विचार जो प्रोफेसर बेन -शहर का है उस पर मैंने अपनी ज़िन्दगी के सीख से भी सवाँरा है।
ज़िन्दगी में कठिनाई आएँगी। उनका जल्द सामना करना जरूरी है। जितना आप कठिनाई से जूझने में देरी करोगे उतना ज्यादा दर्द आपको सहना पड़ेगा। रिसर्च यही बोलता है। जितना विलम्ब उतना टेँशन। हर हफ्ते के लिए छोटे टास्क लिस्ट्स बनाए और उसे ख़त्म कीजिए। इसी में मंगल है।
आपके चारो ओर ख़ुशी के याददाश्त से भर दें। अपने चाहने वालों की तसवीरें , पुरस्कार जो आपने जीते होंगे , खुशियों वाली उपहार। क्यों ऐसा करना जरूरी है ? किसी के भी ज़िन्दगी में गम से ज़्यादा खुशियाँ हैं। परन्तु हम अपना चिंता ज़्यादा गम पर करते हैं। खुशियों का आनंद नहीं ले पाते हैं। मन खुशियों से और खुश होता है। केवल गम के विषय में सोचकर नहीं।
हमेशा दूसरों के साथ अच्छा व्यवहार करें। पहली बार दिन में मिलते वक़्त विश करें। आपके मुस्कुराहट का जवाब मुस्कुराहट से मिलेगा। मुस्कुराने से एनर्जी बढ़ती है। और एनर्जी ही ज़िन्दगी का सबसे बड़ा सम्पद है। अक्सर हम किसके साथ मुस्कुरा कर बात करेंगे इसका एक मन ही मन चयन कर लेते हैं। इसके फलस्वरूप हम कम लोगों के साथ मुस्कुराते हैं। और यहीं खुद का एनर्जी कम कर लेते हैं।
डॉ वापनेर जो कि अमेरिकन ऑर्थोपेडिक्स एसोसिएशन  के प्रेसिडेंट हैं कहते हैं की हमारे मूड का निर्धारण करने का एक महत्वपूर्ण वजह है हमारे जूते। जूते पहनकर अगर कोई दर्द महसूस करें या हमारे चलने में कोई असुविधा हो तो हमारा मूड ख़राब हो जाता है। मैंने कभी भी इस विषय में इस तरह से नहीं सोचा था। लेकिन जब मैं अपनी ज़िन्दगी के सफर के साथ इस टिप्पणी को जोड़ूँ तो यह एकदम सही नज़र आता है। नए जूतें जब तक अपने पाँवों पर सेट नहीं हो जाते हैं ,मूड नहीं बनता है।
मुंशी प्रेमचंद का एक बेहतरीन लेख था -रीढ़ की हड्डी। अगर हम अपने रीढ़ की हड्डी को सीधा नहीं रख सकते हैं तो ज़िन्दगी में कॉन्फिडेंस का अभाव रहेगा और कॉन्फिडेंस के बिना मूड नहीं बनता। ज़िन्दगी का आधा से ज़्यादा मजा तो सेल्फ कॉन्फिडेंस देता है। इसके बिना जीना ही बेकार है। आपके चाल से अक्सर लोग आपके बारे में अपना धारणा बनाते हैं। अगर आप कॉंफिडेंट दिखें तो आपके आस पास के लोग भी आपको उसी तरीके और अंदाज़ से पेश आएँगे।
अगले महीने अंतिम चार टिप्पणियाँ प्रोफेसर के। तब तक खुश रहिए और दिवाली खुशियों के साथ बिताइए। ख्याल रखिए ज़िन्दगी से और बहुत कुछ  पाना है। ख़ुशियाँ हम सबके हातों में है। केवल उसे समझना पड़ेगा और प्रोफेसर के दिए गए टिप्पणियों को प्रयोग कर के और बढ़ाना है।





कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें