शुक्रवार, 23 दिसंबर 2022

नमस्कार। २०२३ के लिए बधाई और शुभकामनाएँ। हर किसी का मंगल हो इसी का प्रार्थना है ऊपर वाले के पास। सब अच्छा चल रहा था। परन्तु पिछले वर्ष के अंत में फिर कोरोना का वापस आना हमें सतर्क रहने का आह्वान कर रहा है। मेरे लिए इस नए साल का सबसे महत्वपूर्ण संकल्प या रेसोलुशन है कि मैं घर से बाहर मास्क पहनूँगा और भीड़ से दूर रहूँगा। सैनिटाइज़र वापस जेब में और निरंतर हातों की सफाई। आप से भी अनुरोध करूँगा कि घर से बाहर मास्क का प्रयोग अवश्य कीजिये। 

संकल्प या रेसोलुशन से एक ख्याल आता है। हम पहले जनवरी को ही क्यों संकल्प लेते हैं। और हम उस संकल्प पर कितने दिन डटे रहते हैं। क्यों हमारा संकल्प टूट जाता है। कभी आपने इन मुद्दों पर विचार किया है। आज इन विषयों पर कुछ सोच पेश करूँगा। 

हम पहले जनवरी के दिन ही क्यों अपना संकल्प बनाते हैं। मेरा सोच है कि हम एक नई शुरुआत करते हैं। परन्तु हर नया दिन हम सब के लिए हुए अवशिष्ट बचे हुए ज़िन्दगी का पहला दिन होता है। कल क्या होगा किसी को नहीं पता। अगर आप इस नजरिये से ज़िन्दगी को देखो तब हर रोज़ आप नए संकल्प कर सकते हो। 

मेरा तजुर्बा कहता है कि शुरू के कुछ दिन हम संकल्प पर डटे रहते हैं। फिर धीरे धीरे हम ढील देना शुरू करते हैं। और कुछ दिनों बाद हम अपने संकल्प से दूर चले जाते हैं। ऐसा आप के साथ होता है। इसका मूल वजह क्या होता है। शुरुआत से शुरू करते हैं। जरा सोचिए हम किस विषय पर संकल्प बनाते हैं। जो हम आसानी से हासिल कर सकते हैं उस पर हम संकल्प नहीं बनाते हैं। हम संकल्प या प्रतिज्ञा उन विषयों पर करते हैं जो हम करना चाहते हैं परन्तु कर नहीं पाते हैं। जो कि आसान नहीं होता है। जिसको हासिल करने के लिए एक मानसिक दृढ़ता आवश्यक होता है। एक फोकस जरूरत होता है। संकल्प हमारे लिए फायदेमंद है। यह हम जानते हैं। परन्तु फिर भी हमें जो करना चाहिए या ना चाहिए ,हम कर नहीं पाते हैं। उदाहरण स्वरुप जो लोग धूम्रपान करते हैं उनको पता होता है कि धूम्रपान कितना हानिकारक होता है स्वास्थ के लिए। ऐसे लोग धूम्रपान को त्याग करना चाहते हैं परन्तु अनेक चेष्टा के बावजूद असफल होते हैं। मैंने अपने जीवन कई ऐसे लोगों को देखा है जिन्होंने कुछ दिनों के लिए या कुछ वर्षों के लिए धूम्रपान छोड़ दिया है। और अचानक वापस धूम्रपान करने लगते हैं। ऐसा हमारे मानसिक ढील देने के कारन होता है। एक आध सिगरेट कभी कभी वापस आदत बन जाता है। 

मैंने एक उपाय निकाला है अपने संकल्प पर डटे रहने के लिए। साधारण उपाय है। हर रोज सुबह तय कर लो कि आज क्या करना या ना करना है अपने संकल्प को बरक़रार रखने के लिए। तब तक करते रहना है जब तक आदत ना बन जाए। इसी प्रयास ने मुझे धूम्रपान रोकने में सहायता किया है। तीस साल पहले मुझे बारह महीनों तक इस दैनिक संकल्प ने मुझे हर सुबह यह बताया है कि आज सिगरेट नहीं पीना है। और हर रात सोने के पहले मैं खुद को शाबाशी देता था कि आज मैं अपने संकल्प को बरक़रार रखने में सफलता पाई है। तब से अब तक मैंने एक भी सिगरेट नहीं पी है। क्यूंकि मुझे पता है कि एक कश भी मुझे वापस इस खतरनाक नशे के पास पहुँचा देगा। यह हुई संकल्प की बात। 

कैसा लगा आज का लेख। क्या आपको संकल्प करने और उसे निभाने में सहायता मिलेगा। क्या होगा संकल्प इस साल। मुझे जरूर बताएं फेसबुक के माध्यम से। आपका सफर स्वास्थ्पूर्ण और मंगलमय हो इसी के लिए दुआ है मेरी। मिलते रहेंगे हर महीने आपके साथ इस नए साल में। 

शुक्रवार, 2 दिसंबर 2022

नमस्कार। अगले महीने हम २०२३ में पहुँच जाएँगे। इस शताब्दी में हमने बाइस वर्षों का सफर तय कर लिया। मुझे अभी भी याद है y2k का समय जब हम १९९९ से २००० में दाखिल हुए। सब कुछ बदल गया। तारीख लिखने का बदलाव आई टी संस्था को वाणिज्य का एक विशाल मौका प्रस्तुत कर दिया था। आई टी में नौकरी ज्यादा और सही ज्ञान और तजुर्बे वाला कैंडिडेट कम। 

इन २२ सालों में बहुत कुछ बदल गया है। और बदलेगा। काफी तेज़ बदलाव आएगा। इस निरंतर और द्रुत बदलाव से जूझने के लिए हमें तीन  तरकीबों  का प्रयोग करना पड़ेगा। 

पहला तरकीब है निराशा से जूझने का साहस और उपाय। भारतीय क्रिकेट टीम का टी २० विश्व कप से लेकर फुटबॉल वर्ल्ड कप में कई देश के नागरिक अपने देश के परिणाम से निराश हुए हैं। मेरा दृढ़ विश्वास है कि कोई भी टीम किसी भी खेल में वर्ल्ड कप में अपने देश के प्रतिनिधि बन कर हारना नहीं चाहता है। देश के लिए खेलने का गर्व ही ऐसा होता है। इन परिणामों का विश्लेषण करते वक़्त हम केवल जीत या हार से मतलब रखते हैं। फैन की हैसियत से हमारा सोच भी एकदम सही है। परन्तु हम किस्मत का पचास प्रतिशत के प्रभाव को नज़र अंदाज़ कर देते हैं। हम भूल जाते हैं कि पचास प्रतिशत का हिस्सा हमारे जीत में उतना ही शामिल है जितना कि हार के समय। नोबेल पुरस्कार से सम्मानित व्यवहारिक अर्थनीति के पिता ,डेनियल कहनेमान ने अपनी किताब thinking fast and slow में इस मुद्दे पर काफी चर्चा किया है। उन्होंने प्रमाणित किया है कि success = skills + luck और great success = skills + lots of luck . इस रिसर्च को दुनिया में विज्ञान के क्षेत्र में सबसे श्रद्धेय मैगज़ीन Science में जिक्र किया गया है। डेनियल कहनेमान का लॉजिक एकदम सहज है -कोई भी चैंपियन एक बार हार जाने से बुरा खिलाड़ी नहीं बन जाता है। चैंपियन वही कहलाता है जो कि अपने कैरियर में अधिकतर जीता है। कभी कभार उसे हार का सामना भी करना पड़ा है। हमें भी इस सोच के साथ ज़िन्दगी जीना चाहिए। इस बदलते हुए समय में हार या असफलता हमारे सफर का अभिन्न साथी रहेगा। चैंपियन की तरह हमें ज़्यादा समय सफल होना पड़ेगा। और इसके लिए प्रयास और खुद को निरंतर डेवेलप करते रहना अब मजबूरी बन गया है। पचास प्रतिशत हार -जीत का संभावना हमारे कंट्रोल में नहीं है। भगवद गीता का सबसे महत्वपूर्ण सीख इसी कारण मेरे लिए है -कर्म किए जा फल की इच्छा मत कर इंसान।

दूसरा तरकीब है नई चुनौतिओं का निडरता के साथ मुक़ाबला करना। परिस्थितियाँ बदलती रहेगी कई कारण से। विश्व का राजनितिक पटचित्र पर हर वक़्त कोई ना कोई नया चित्र उभर रहा है। ग्लोबलाइजेशन की वजह से हमारे देश पर  इसका असर महसूस हो रहा है। हमारा देश भी इस उभरते हुए नई दूनिया में एक अहम् भूमिका निभा रहा है। इस परिस्थितिओं से जूझने के लिए हमें अपने सेल्फ कॉन्फिडेंस को बढ़ाने पर ध्यान देना पड़ेगा। इस सेल्फ कॉन्फिडेंस को बढ़ाने के प्रयास को सठीक तरीके से करने के लिए हमें एक ऐसे आदर्श को सामने रखना पड़ेगा जो कि हमें प्रोत्साहित करे। उनका नक़ल नहीं करना है। उनको अनुकरण करना पड़ेगा। उन पर नहीं उनकी काबिलियत और गुणों को समझ कर खुद को संवारना पड़ेगा। 

तीसरा तरकीब  है  अपने टेम्परामेंट  को इस बदलते हुए दुनिया से जूझने के लिए स्टेबल करना पड़ेगा।  जो कि सेल्फ कॉन्फिडेंस पर अधिक निर्भर है। अनिश्चियता भरी दुनिया में उतार चढ़ाव भरा सफर हर किसी को तय करना पड़ेगा। चलते वक़्त गिर कर जल्दी उठने वाले मुसाफिर का ही जीत का संभावना अधिक होगा। हार कर जीतने वाला ही बाज़ीगर कहलायेगा। 

आशा ,उम्मीद और प्रार्थना करता हूँ कि २०२३ में हम सब के लिए इस लेख में जिक्र किया हुआ पचास प्रतिशत का संभावना अधिक बार जीत या सफलता का हो। इसके लिए भाग्य के भरोसे रहना बिलकुल गलत होगा। निरंतर सेल्फ डेवेलपमेंट ही एक मात्र उपाय आगे की ज़िन्दगी आनंदमय बनने के लिए। 

दुआ करता हूँ इस साल के बाकी दिन मंगलमय हो। और नया साल हम सब के किये अब तक के ज़िन्दगी का सबसे बेहतरीन हो। खुश रहिएगा। 

गुरुवार, 3 नवंबर 2022

नमस्कार। पिछले महीने हमने बापू की चर्चा की और यह समझने का प्रयत्न किया कि बापू का सीखने के प्रति क्या अंदाज़ हुआ करता था। यह महीना है बच्चों के विषय में चर्चा करने का। आखिर १४ नवंबर बाल दिवस के तौर पर मनाया जाता है। आज हमारी चर्चा बच्चों पर होंगी। बच्चों के सीखने पर होंगी। 

कुछ वक़्त के लिए हम फ्लैशबैक  में चलते हैं अपने बचपन के दिनों को याद करते हैं। आपको कितने बचपन के विषय में याद है। मुझे पाँच  साल के उम्र वाली एक घटना याद है। जिस दिन मेरा स्कूल का सफर शुरू हुआ था। इतना रोया था मैंने कि मैं स्कूल में नहीं रहूँगा। घर वापस चला जाऊँगा। मुझे स्पष्ट याद है कि "सिस्टर" (हम मिशनरी स्कूल में टीचर को ऐसे सम्बोधन करते थे) ने मुझे गोद में उठा लिया और मेरे माँ को आश्वत किया कि आप घर चले जाईये ,चिंता मत कीजिये। तीन घंटो के बाद वापस ले जाईयेगा। 

मैं क्यों रो रहा था। अनजान जगह और अनजान लोगों से मैं डर गया था। मैं अपने कम्फर्ट ज़ोन के बाहर कम्फ़र्टेबल नहीं था। और हमने अपने भावनाओं को बिना किसी झिझक के ज़ाहिर किया। सिस्टर ने क्या किया ? उन्होंने ऐसा कुछ नहीं किया जो कि उचित नहीं है। जैसा की हम घर में करते हैं रोते हुए बच्चों को फुसलाने के लिए। चॉक्लेट का प्रलोभन के साथ बच्चे को चुप कराने का सहारा लेते हैं। बच्चे को पता चल जाता है और वह रो कर चॉकलेट की माँग करता है। सिस्टर मुझे प्ले रूम ले गई। तरह तरह के 'नए 'खिलौने जो मैंने कभी नहीं देखा था। रंग बिरंगे खिलौने। कोई भी खिलौने को छूने में कोई बाधा नहीं थी। कुछ और बच्चे भी मेरी तरह रोने से मुस्कुराहट की ओर सफर कर रहे थे। मेरा दिल लग गया। आज जब सोचता हूँ यह समझ में आता है कि वह प्ले रूम सीखने का एक तरीका और माध्यम था। 

आज एडल्ट बन जाने के बाद यह महसूस होता है कि हम कई बार अपने कम्फर्ट ज़ोन से बाहर नहीं निकल पाते हैं क्योंकि हमारे पास कोई सिस्टर नहीं है जो कि जबरदस्ती हमें उठा कर प्ले रूम में ले जाता है क्योंकि उस कम्फर्ट ज़ोन से निकलना हमारे फायदे के लिए है। हम सब को अपनी ज़िन्दगी में एक ऐसे 'सिस्टर 'की जरूरत है जो कि हमें कम्फर्ट जोन से निकलने में मदत करता है अपना सहारा दे कर। यह इंसान कोई भी हो सकता है -दोस्त , भाई ,बहन , माता , पिता ,बुजुर्ग , ऑफिस कॉलीग। 

पहले दिन स्कूल के छुट्टी होने के बाद जब मुझे वापस पिताजी और माँ के हाथ में सौंप दिया गया तब मुझे एक अद्भुत एहसास हुआ - मुझे लगा कि स्कूल का समय बहुत जल्दी समाप्त हो गया -और कुछ समय स्कूल में बिताने के लिए मैं तैयार था। समय होता ही ऐसा है -कभी हिलता नहीं है और कभी पता भी नहीं चलता कि कब ख़त्म हो गया है। एक उदाहरण स्वरुप आप सहमत होंगे कि जो सिनेमा दिलचस्प होती है 'तुरंत' ख़त्म हो जाती है और कुछ में हम सो जाते हैं। जिसमें हमें आनंद मिलता है ,समय यूँ बीत जाता है। अन्यथा घड़ी का काँटा हिलता ही नहीं है। 

दूसरे दिन क्या हुआ ? हमारे घर में एक 'मौसी 'काम करती थी जो कि मेरा देख भाल करती थी क्योंकि मेरे माता पिता दोनों नौकरी करते थे। यह मौसी मुझे स्कूल के लिए तैयार कर रही थी। और मैं अस्थिर हो रहा था क्योंकि मुझे लग रहा था कि मौसी कुछ ज़्यादा ही समय ले रही थी मुझे तैयार करने में। अगर मैं समय पर स्कूल ना पहुँच पाया तो क्या होगा ? दिल लग जाने पर हम वापस जाने के लिए आग्रही हो जाते हैं। क्या हम इस वक़्त अपने कर्मस्थान के विषय में उतना ही आग्रही हैं ? खुद को पूछिए। शायद नहीं। 

बचपन का एक और खासियत था निडरता -असफलता के प्रति। इसका सीधा प्रभाव था नए प्रयत्न करने में कोई हिचकिचाहट नहीं। लोग क्या कहेंगे इसका कोई डर नहीं था। जो अब बहुत अधिक मात्रा में दिमाग को नई ,अनजानी अनुभवों को प्रयास करने में बाधा पहुँचाता है। परन्तु हम सब के अन्दर वह बच्चा मौजूद है। उसको थोड़ा प्रोत्साहन दीजिए। अपनी निडरता के लिए। 

बचपन का एक और खासियत है उत्सुकता। किसी भी चीज़ के प्रति। और यही उत्सुकता हमें प्रोत्साहित करती है हमारी जिज्ञासा को। हम जानने की कोशिश करते थे। उम्र और जिंदगी के तजुर्बे की बढ़त के कारण हम या तो यह सोच लेते हैं कि हमें पता है या अधिक जानने की जरूरत नहीं है। यही चिंतन हमारे सीखने में बाधा बन जाता है। इसी कारण हमारे अंदर के बच्चे को मौका देना चाहिए ताकि हमारी उत्सुकता बरक़रार रहे और सीखना जारी रहे। 

कैसा लगा हमारा यह लेख वयस्क लोगों के बचपन के विषय में ? अगर आपके घर में बच्चे हों तो उनको प्रोत्साहित कीजिए नई चेष्टा के लिए। अपना निर्णय उन पर मत डाल दीजिये। दुनिया बदल रही है। परन्तु मन और दिल को बचपन का साथ निभाने दीजिये। आपको ज़िन्दगी से ज्यादा आनंद मिलेगा। जो कि हम सब चाहते हैं। सर्दी का मौसम का आनंद लीजिए और स्वास्थ का ख्याल रखिये। अगले महीने फिर मुलाकात होगी इस साल के अंतिम महीने में। 

शुक्रवार, 30 सितंबर 2022

आज गाँधी जयंती के पावन अवसर पर आप सब को सादर प्रणाम। हमारे राष्ट्रपिता के विषय में हम सब को काफी सारी जानकारी प्राप्त है। बापू के ज़िन्दगी और दर्शन से हम सब को इतनी सीख मिलती है कई किताबेँ कम होगी सब सीख को इखट्टे करने में। मुझे एक प्रश्न कुछ समय से परेशान कर रहा था। बापू जैसे इन्सान जिनसे हर कोई प्रेरित होता है और सीखता है , वह खुद कैसे सीखते हैं ? उनका दर्शन क्या होता है खुद नई चीज़ें सीखने के विषय में। मैंने कुछ रिसर्च किया इस विषय में और मुझे गाँधी जी के सीखने का दर्शन उनकी इस  बात से स्पष्ट हो जाता है।   Live as if you were to die tomorrow; learn as if you were to live forever. ऐसे जिओ कि कल ज़िन्दगी का आखरी दिन हो सकता है ,परन्तु सीखो इस जोश के साथ और यह सोच कर की आप चिरंजीवी हो। सीखने का कोई अंत नहीं होता है। जीना है तो सीखना है। अगर यह सच है और हम इस बात से सहमत हैं ,तब हम सीखने का प्रयास क्यों नहीं करते हैं ? काफी अध्यन करते वक़्त मुझे एक मजेदार चिंतन के विषय में जानकारी प्राप्त हुई। The Illusion of Explanatory Depth यह कहता है कि हम अपने इर्द गिर्द या प्रतिदिन प्रयोग करने वाले वस्तुओं के विषय में यह धारणा के साथ जीते हैं कि हमारी समझ काफी है। सच कुछ और होता है। आज से करीब 20 साल पहले अमेरिका के एक प्रसिद्ध विश्वविद्यालय के दो गवेषकों ने अपने कक्षा में मौजूद 200 से अधिक विद्यार्थिओं को पूछा कि उनको जिपर (zipper) के काम करने के  विषय में कितनी जानकारी है। अधिकतर विद्यार्थिओं ने अपनी जानकारी को एक से सात के मापदंड में ऊँचा दर्जा दिया। गवेषकों ने तब उनसे दूसरा सवाल पूछा -आप किसी और को ज़िप्पर कैसे काम करता है आपको समझाना पड़ेगा। अब आप बताईये आप खुद को कितना नंबर दीजिएगा। छात्रों ने अपने आप को पहली बार से काफी कम नंबर दिया। हम अपनी समझ को ऊँचा रेटिंग देते हैं ,यह सोच कर कि हमें मालूम है। यही हमारे निरंतर सीखने में सबसे बड़ा बाधा है। 

मैं एक आसान सत्य पर निर्भर हूँ। मैं क्या जानता हूँ मुझे पता है। मैं क्या नहीं जानता हूँ मुझे पता है। मुझे यह नहीं पता है कि मुझे क्या पता नही है। और इस दुनिया में जितना ज्ञान मौजूद है ,उसका ९९ प्रतिशत से ज्यादा ज्ञान तीसरे खाँचे में पड़ता है। जो मैं जानता हूँ ,किस हद तक जानता हूँ। काम चलाने जैसा या दूसरों को समझाने लायक। फर्क नहीं पड़ता अगर आप यह निर्णय कर लो कि आपको और अधिक जानना है। अपने कर्मक्षेत्र के लिए तो यह कहा जाता है कि जिस दिन आपने यह सोच लिया कि आपको सब मालूम है ,आपका पतन निश्चित है। 

जिज्ञासा सीखने का ईंधन है। बचपन में हम किसी भी नई वस्तु के प्रति आकर्षित बधाई होते थे अपनी उत्सुकता के कारन। नए प्रयास में कोई झिझक नहीं होता क्योंकि हमें असफल होने का डर नहीं होता था। उम्र और तजुर्बा के बढ़ने के साथ साथ हमारे अंदर 'असफल होने पर लोग क्या कहेंगे' के डर से हम प्रयोग करना और नए प्रयास करने से इतराते हैं। यह हमारे सीखने में बाधा साबित होती है। 

हम किससे क्या सीख सकते हैं सोच कर निर्णय ले लेते हैं कि किससे हम सीख नहीं पाएँगे। और यहीं पर एक बड़ी गलती कर बैठते हैं। हम अगर किसी से भी ,कहीं पर ,किसी भी वक़्त पर सीखने के लिए अपने आप को तैयार कर लें,हमें  सीखने से कोई रोक नहीं सकता। बच्चा , बूढ़ा ,सीनियर ,जूनियर , अपना, पराया , दोस्त या दुष्मन एक दूसरे से कुछ न कुछ ज़रूर सीख सकता है। 

दशहरा ,विजया दशमी और धनतेरस के लिए अग्रिम शुभकामनाएँ। आपका जीवन मंगलमय हो ,इसी का प्रार्थना करूँगा। सीखते रहिए। लगातार। क्योंकि वही भरोसा देता है ज़िन्दगी भर का। मैं गांधीजी का कहना है। 

गुरुवार, 1 सितंबर 2022

Next 25 years is going to be the best for India

नमस्कार।  कल शिक्षक दिवस है। उसके लिए अग्रिम शुभकामनाएँ। हम हर एक के जीवन में किसी न किसी शिक्षक का प्रभाव तो जरूर रहा होगा। मैं केवल स्कूल के शिक्षक या कॉलेज के प्रोफेसर का ज़िक्र नहीं कर रहा हूँ। कुछ शिक्षक,शिक्षक की हैसियत से पेश आते हैं ,और कुछ लोग बिना शिक्षक होते हुए भी हम पर गंभीर प्रभाव रखते हैं। हमारे माता -पिता ,अभिभावक, दोस्त ,पड़ोसी ,घर में काम करने वाले रामू काका , या घर का ड्राइवर -हम हर किसी से कुछ न कुछ सीखते हैं। मजे वाली बात यह होती है कि कुछ चीज़ों को सीखने के लिए हम मेहनत करते हैं क्योंकि वह सीखना हमारे लिए मजबूरी है -जैसा कि स्कूल में जो पढ़ाया जाता है -और कुछ चीज़ें हम इस लिए सीखते हैं क्योंकि हमें उन चीज़ों में दिलचस्पी होती है और हमें सीखने में आनंद अनुभव होता है। 

हमारा आज का लेख आनंद के साथ सीखने के विषय पर है। जैसा मैंने अपने पिछले महीने के लेख में लिखा था कि हमारा देश का सबसे बेहतरीन समय अगला 25 वर्ष होगा -यह मेरा दृढ़ विश्वास है। अगर मेरा भविष्यवाणी सफल हो गया तो भारत की ओर पूरी दुनिया आकृष्ट होगी। इसका फायदा भी है। चैलेंज भी है। और इस मौके का फायदा उठाने का एक मात्र उपाय है खुद को बेहतर बनाना। इसके लिए हमें यह निर्णय लेना पड़ेगा कि किस विषय में हमारी सबसे ज़्यादा दिलचस्पी है सीखने में और उस विषय में हमें लगातार सीखना है और तरक्की करना है। इस सन्दर्भ मैं पहली टिप्पणी करूँगा उन विद्यार्थिओं के लिए जो कि इंजीनियरिंग के कोर्स में दाखिल हो रहें हैं केवल कंप्यूटर साइंस या आई टी का चयन कर रहें हैं क्योंकि उसमें नौकरियाँ ज़्यादा मिलती हैं। जो की सही है। परन्तु कंप्यूटर और आई टी के क्षेत्र में बदलाव बहुत जल्द और कठिन हो रहा है। अगर नौकरी मिलने के बाद निरंतर सीखना ना बना रहे तो कैरियर पर रुकावट और बाधा आ जाएगा। ऐसा समय भी आ सकता है कि आपका सीखा हुआ कंप्यूटर और आई टी का ज्ञान किसी काम का न रहे। 

आज इस लेख के माध्यम से मैं कुछ महत्वपूर्ण संदेश देना चाहता हूँ। पहला सन्देश है उन अभिवावकों के लिए जिनके बच्चे अभी भी स्कूल में पढ़ रहें हैं। ज़्यादा तर अभिवावकों का पूछना है बच्चों से कि कितना नंबर मिला ? इसको बदल डालिये और पूछिए आज क्या सीखा है स्कूल में ? नंबर क्षणिक है ,समझ ज़िन्दगी भर के लिए। स्कूल के बाद क्या पढ़ना है ,यह बच्चे पर छोड़ दीजिये। उनको उस विषय पर अध्य्यन करने दीजिये जिसमें उनकी दिलचस्पी हो। अभिवावक जो अपनी जिंदगी में हासिल नहीं कर पाए हैं , उसको अपने बच्चों के माध्यम से पूरी करने की कोशिश करें। पड़ोसी का बच्चा क्या पढ़के अच्छी नौकरी कर रहा है , वही मेरे बच्चे को पढ़ना है , गलत सोच है। बच्चे पर भरोसा कीजिए। अगर किसी को अपने पढ़ाई या काम में दिलचस्पी ना हो ,तो कभी भी वह इंसान इस कॉम्पिटिटिव दुनिया में टिक नहीं पाएगा। 

दूसरा सन्देश उन पाठकों के लिए है जो की इस वक़्त कॉलेज में पढ़ रहें हैं, उनसे मैं विनती करता हूँ कि पढ़ाई के अलावा अपने व्यक्तित्व को बनाने का निरंतर प्रयत्न कीजिए। हम हर कोई अलग हैं और हमें रोज खुद को बेहतर खुद बनाने का प्रयत्न करना पड़ेगा। हम किसी दुसरे से अनुप्राणित हो सकते हैं। उनको नक़ल करना और उन्ही के तरह नहीं बनना है। क्योंकि मैं कभी आप नहीं बन सकता हूँ। अगर आपमें मुझे कुछ खूबियाँ हो जो मुझे अच्छा लगता है ,तो वह खूबियाँ हमें अपने आप में बढ़ाना पड़ेगा। नक़ल करना विकल्प नहीं है। 

तीसरा सन्देश उन पाठकों के लिए है , जिनको पढ़ाई लिखाई में ज़्यादा दिलचस्पी नहीं है। उनका भविष्य कैसा है हमारे देश में ? अगर आप कुछ भी मेहनत नहीं करना चाहोगे तो ऊपर वाला भी आपके लिए कुछ नहीं कर पायेगा। आपको कोई ऐसा रास्ता ढूढ़ना पड़ेगा जिसमे आपकी दिलचस्पी हो। एक रियलिटी शो के विजेता ने एक इंटरव्यू में सच कहा -मुझे म्यूजिक के अलावा कुछ नहीं आता है ,मैं और कुछ कर ही नहीं सकता हूँ। आपको केवल अपने चुने हुए काम में दिलचस्पी होनी चाहिए। अभी इंटरनेट के ज़माने में आप कहाँ रहते हो ,कई काम के लिए फर्क नहीं पड़ता है। आप इंटरनेट पर निर्भर कई सारे काम को अपने क्षेत्र में कर सकते हो। एक छोटा सा उदाहरण है स्टॉक पॉइंट जिसके माध्यम से ऑनलाइन में आर्डर किये हुए सामान का लोकल मार्केट में डिलीवर कर सकते हैं। अगर आप म्यूजिक एडिटिंग में दिलचस्पी है तो उत्तर प्रदेश या बिहार या किसी भी जगह से भारत या दुनिया के किसी भी देश के साथ इसका बिज़नेस कर सकते हैं। 

चौथा सन्देश उन पाठकों के लिए जो कि इस वक्त नौकरी कर रहें हैं। आपको आपके काम के अलावा अपने सॉफ्ट स्किल्स को बढ़ाना पड़ेगा। सॉफ्ट स्किल्स आपको रिश्ते बनाने के लिए अति आवश्यक है। अगर आप रिश्ते को बना कर मजबूत करने के लिए और आगे बढ़ाना चाहते हैं ,तो आप को अपना सॉफ्ट स्किल्स बढ़ाना पड़ेगा। काम में काबिल और रिश्ते बनाने में सफल इंसान ही मुक़द्दर का सिकंदर कहलाएगा। 

पांचवां सन्देश उन लोगों के लिए है जो कि नौकरी में हैं और उनकी उम्र पचास के आस पास या उससे अधिक है। आपको होशियार रहना पड़ेगा। बदलते हुए समय को अगर आप स्वीकार नहीं करोगे तो आपकी नौकरी खतरे में पर सकती है। इस कोरोना ने हर व्यवसाय के नियम और तरीके बदल दिए हैं। आप यह नहीं सोच सकते हो कि आपने इतने दिनों से इस संस्थान से जुड़े हो इसलिए आप जो करते थे ,वही करते रहोगे तो गाड़ी चलती रहेगी ,गलत सोचना होगा। 

मैं आज केवल एक ही सन्देश देना चाहता हूँ -अगर हम सीखना बंद कर दें ,तो हम आगे के मौके का फायदा नहीं उठा सकते हैं। हमें निरंतर सीखते रहना पड़ेगा , किसी से भी ,कहीं भी। केवल सीखने की इच्छा होनी चाहिए। हमारे अध्यापक ,गुरुजन ,दोस्त ,रिश्तेदार ,हमारे बच्चे -सब हमको कुछ ना कुछ सीखाते हैं। आज उन सबको मेरा धन्यवाद। 

शुक्रवार, 5 अगस्त 2022

नमस्कार। आज़ादी के अमृत महोत्सव के लिए आप सब को बधाई।  ७५ साल का सफर काफी लंबा और महत्वपूर्ण सफर है। आज़ादी मिलने से अब तक ,हमारे देश ने ,और हम सबने एक स्वाधीन ज़िन्दगी बिताई है। और इसका प्रभाव केवल भारत में ही नहीं , पूरे विश्व पर है और रहेगा। हमने इन ७५ सालों में क्या हासिल किया है इसके विषय में अनेक चर्चा हम देख और सुन रहें हैं। मेरे लेख का विषय है कि हमने क्या सही किया है इस दौरान जो की आज हमारे देश को और हम सब को पूरे विश्व में एक मजबूत स्तिथि में पहुँचा दिया है। और इससे हम अपने निजी जीवन के लिए क्या सीख ले सकते हैं। 

पहली बात है देश को चलाने के लिए संविधान का लिखा जाना और उसका प्रयोग में लाना। यह अति आवश्यक है किसी भी संगठन को सुचारु रूप से चलाने के लिए। जितना बड़ा संगठन ,उतनी इसकी जरूरत। ताकि किसी एक इंसान के मन मर्जी पर संगठन का कार्य कलाप ना निर्भर करे। 

दूसरी बात है आज के हालात को समझ कर निर्णय लेना - जब ब्रिटिश हम को आज़ाद करके चले गए , उन्होंने हमें दुनिया की तुलना में पीछे छोड़ दिया। कृषि उद्योग हमारा सबसे बड़ा जीने के साधन बन के रह गया। अधिकतर लोग पढ़ने लिखने से वंचित रह गए थे। १९६६ में कृषि उद्योग को बढ़ावा देने के लिए ग्रीन रेवोलुशन का सहायता लिया जिसके वनिस्पत अच्छे बीज , खाद और फसल उगाने और काटने के नई तकनीकों को अपनाया गया। 

तीसरी बात शिक्षा पर  जोड़ का प्रयत्न। अशिक्षित को शिक्षित करने के अलावा उच्च शिक्षा के कॉलेज और यूनिवर्सिटी बनाना। एक विश्वास था हमारी अपनी काबिलियत पर। प्राथमिक शिक्षा पर ध्यान देने की वजह से आज गाओं के बच्चे भी शहर के बच्चों के पढ़ाई लिखाई में आगे बढ़ रहें हैं। 

चौथी बात है पंच वर्षीय योजना। जब हमारा साधन सीमित है हमें छोटे छोटे समय में हासिल करने वाले पड़ाव लेना ही उचित होता है। एक उभरते देश के लिए पाँच साल के दरम्यान काफी बदलाव आ जाते हैं। ये पंच वर्षीय योजना हमें आत्म निर्भर बनने के पहले कदम थे। 

पांचवी बात है अपने औकात का परिचय पूरे विश्व को देना। १९५१ में ही हमने एशियाई गेम्स का आयोजन किया। १९७४ में हमने पोखरण में परमाणु शक्ति का प्रमाण दिया। इसके पहले हमने १९७१ में बंगलादेश को उनकी स्वाधीनता प्राप्त करने में मदत की। 

छठी बात बॉलीवुड और क्रिकेट के माध्यम से हमने पुरे देश को एक कर दिया। लोग सपने देखने लगे। दूरदर्शन पर रामायण , महाभारत ,बुनियाद, हमलोग जैसे कंटेंट ने हम सब को एक कर दिया। 

सातवीं बात यह है कि हमने कई सारे साहसी निर्णय लिया और कदम उठाया। १९९१ में हमने ग्लोबलाइजेशन की ओर सबसे निर्णायक और महत्वपूर्ण कदम उठाया। आज पूरे विश्व में भारत का स्थान इतना मजबूत होने का यह पहला कदम था। 

आठवाँ हमने मौके का फायदा उठाया। IT का सुनहरा मौका किसको याद नहीं है। मौका देखकर प्राइवेट इंजीनियरिंग कॉलेज बनाने के कारन इस दुनिया के हर कोने पर भारतीय IT प्रोफेशनल का बोलबाला है। 

हमारे देश के परिवहन ,सड़कें ,विमान सेवा ,रेल सेवा के बेहतर बन जाना हमारे देश के अग्रति में एक अहम् भूमिका रहा है। आज हम कितने माध्यम के जरिए एक जगह से दूसरी जगह जा सकते हैं। इनके साथ टेलीफोन और इंटरनेट सेवा में बड़ोतरी के कारन हमारा ज़िन्दगी आसान हो गया है। 

और हाल में कोरोना का मुक़ाबला। कितना डट के किया हमने। वैक्सीन के उत्पादन और लोगों को वैक्सीन देने में हमारा देश का स्थान सबसे ऊपर है। और अर्थनीति को वापस चँगा करने में भी हम अन्य देशों से आगे निकल चुके हैं। 

हम आज जहाँ पहुँच गए हैं , मेरा विश्वास है कि हमारे देश का सबसे सुनहरे दिन अभी आने वाले हैं। दुनिया वालों पिक्चर अभी बाकी है। हम १०० साल जब महोत्सव का आनंद उठाएंगे भारत हर अच्छे विषय में दुनिया का एक नंबर देश होगा। यह हमारा संकल्प है। जय हिंद। वंदे मातरम। 


शुक्रवार, 1 जुलाई 2022

नमस्कार। इस वित्तीय वर्ष का तीन महीना गुज़र चुका है। स्कूल कॉलेज में नए साल की शुरुआत हो चूकि है। जैसा कि मैने वादा किया था मैं आज गृहबधु के कैरियर के विषय में और एकाउंट्स और फिनांस के कैरियर के विषय में चर्चा करूँगा। और चर्चा करूँगा एक इंसान के विषय में जिनसे मेरी मुलाकात हुई है और जो की छोटे शहरों के साधारण ग्रेजुएट के लिए अपने शहर में रहते हुए विश्व प्रसिद्ध संस्थाओं के लिए काम करने का मौका देते हैं। उनके किये जा रहे काम को हम सोशल एंटरप्राइज कहते हैं -यानि कि जिसका समाज पर अच्छा प्रभाव होता है।  

गृहबधु का सबसे बड़ा जरूरत है घर में रह कर काम करना। उसमे भी अगर समय का पाबंदी ना हो तो और भी बेहतर है। कॅरोना के फलस्वरूप घर से काम करने का एक रिवाज़ बन गया है। गृहबधु को इस का फायदा उठाना चाहिए। फिनान्सिअल कौन्सेल्लिंग , रियल एस्टेट सेल्स एडवाइजर , डिजिटल मार्केटिंग का कंटेंट राइटर , डिजिटल मीडिया एक्सपर्ट, फोटोशॉप आर्टिस्ट , वीडियो मेकर , वीडियो गेम्स सपोर्ट टीम, क्लाउड किचन , प्राइवेट टुइशनस , ट्रेनर , ट्रेनिंग कंटेंट क्रिएटर के अलावा कई भी करियर ऑप्शंस हैं और नए उभर कर सामने आ रहें हैं। अपनी दिलचस्पी और सुविधा अनुसार अपने कैरियर का चयन कीजिए। 

अब आते हैं एकाउंट्स और फाइनेंस के कैरियर पर। पहली बात हर कोई चार्टर्ड अकाउंटेंट नहीं बन सकता है। कोशिश कीजिए लेकिन असफल होने पर मायूस मत हो जाईयेगा। कॉस्ट अकाउंटेंट का कैरियर भी काफी अच्छा है। SAP का तजुर्बा हो तोह और भी अच्छा है। कंपनी सेक्रेटरी का महत्व ज़्यादा बढ़ रहा है। परन्तु सबसे ज़्यादा कैरियर एकदम नीचे के पादान पर है -अकाउंटेंट का नौकरी। जहाँ व्यवसाय है वहाँ एकाउंट्स है। परन्तु ढंग का अकाउंटेंट बनने के लिए टैली , एक्सेल , जी एस टी का प्रैक्टिकल ज्ञान की आवश्यकता है। ऐसे एक ट्रेनिंग प्रदान करने वाले चैयरमैन Dr नरेंद्र श्यामसुखा जी जो की एक पेशेवर चार्टर्ड अकाउंटेंट भी है उनका कहना है एक निजी प्रैक्टिस करने वाले सी ए को कम से दस ऐसे बच्चोँ की जरूरत है। संस्थानों में ऐसे अकाउंटेंट की जरूरत लाखों में हैं। परन्तु बी कॉम करते वक़्त या करने के बात प्रैक्टिकल ट्रेनिंग और तजुर्बे के बिना नौकरी मिलना कठिन है। इस तरह के कैरियर में तजुर्बा अर्जन करने के बाद जल्दी बारोहतरी भी होती है। स्टॉक मार्केट से जुड़े हुए कैरियर के लिए भी सही प्रशिक्षण जरूरी है। 

अब मैं बात करने वाला हूँ श्रीमती मैथली रमेश के विषय में। आई आई एम अहमेदाबाद से पढ़ी हुई , मैथली ने काफी समय भारत एक टॉप आई टी संस्था के साथ नौकरी की। दस साल पहले उन्हें एहसास हुआ कि छोटे शहरों के बच्चों को उनकी ही शहर में नौकरी करने का सुयोग देना चाहिए। उन्होंने अपनी  कंपनी बनाई और  ख़ास कर उन बच्चों को चुना जिनके परिवार में वही पहला ग्रेजुएट बन पाया है। छह छोटे शहरों में करीबन चार हज़ार ऐसे ग्रेजुएट बच्चे वालमार्ट , अमेज़ॉन , यूनिलीवर जैसे संस्थाओं के बैक ऑफिस में ए आई , एम् एल जैसे नई टेक्नोलॉजी के सहारे से काम कर रहें हैं।  मैथली जी ने तीन बातों का ज़िक्र किया -उनकी कंपनी इन बच्चों को ट्रेनिंग देकर काम सीखा लेती हैं। चूँकि बच्चे अपने शहर में रहते हैं , उनकी बचत ज़्यादा होती है। लड़किओं को अपने शहर में रह कर काम करने में परिवार का कोई आपत्ति नहीं होता है। करीब दो हज़ार लड़कियां उनकी कंपनी में काम करती हैं। इसके कारन लड़किओं को कम उम्र में शादी नहीं करनी पर रही है और इन लड़किओं के परिवार ने दहेज़ देने के प्रथा को रोक दिया है। यह फायदा होता है सोशल एंटरप्राइज का -समाज पर उनका प्रभाव। उम्मीद करता हूँ की मैथली जी की कंपनी और छोटे शहरों में लोकल बच्चों को नौकरी करने का मौका दिलाएगी। 

अंत में यही कहना चाहता हूँ कि जिस विषय में आपकी दिलचस्पी है , उस विषय पर सही प्रशिक्षण लीजिये और दिल और दिमाग को अपने काम में प्रयोग कीजिए।  कोई आपको अपने चुने हुए कैरियर पर अग्रसर होने से रोक नहीं सकेगा। केवल अपने काबिलियत को समझिए और अपने कैरियर का चयन कीजिए। स्वतंत्रता दिवस के महीने में फिर मुलाकात होगी। मास्क का वयवहार जरूर कीजिए। हम अभी भी कॅरोना से स्वतंत्र नहीं हो सके हैं। 

गुरुवार, 2 जून 2022

नमस्कार। गर्मी का मौसम कैसा लग रहा है आप लोगों को। इस लेख को लिखने तक बारिश कदम नहीं रखा है। हम सब के लिए उम्मीद करता हूँ कि बारिश सही सलामत हो ताकि हमारे देश के कृषि उत्पादन में कोई कठिनाई ना हो। कृषि के विषय में चर्चा  करते हुए ख्याल आ गया कि कृषि से सम्बंधित कौन से कैरियर बन सकते हैं। हमारे देश में कृषि का भविष्य है वैज्ञानिक साधनों के माध्यम से उत्पादन बढ़ाना और खेत से ग्राहक तक उपज को सर्वनिम्न खर्चे तक पहुँचाना। कृषि उद्योग के इर्द गिर्द कई कैरियर चॉईस उभर रहें हैं। ड्रोन , मशीन ,इरीगेशन के नए तरीके स्कूल में आठवीं से बारह क्लास तक पढ़े हुए बच्चोँ को सही टेक्निकल ट्रेनिंग के बाद अपने इलाके में कैरियर और सेल्फ एम्प्लॉयमेंट का मौका देता है। कृषि विज्ञान ,केमिस्ट्री , बॉटनी ,भूगोल (वेदर स्टडी ), जमीन के रिकार्ड्स के लिए आई टी ,ग्रामीण बैंक और माइक्रो फिनांस कम्पनिओं  में कई नौकरियाँ उपलब्ध होगी। नई मशीनो के प्रयोग की वजह से मेकानिकल और इलेक्ट्रिकल मेकानिक की जरूरत बढ़ेगी। वेयरहाउस ,कोल्ड चैन ,ट्रांसपोर्ट ,लोजिस्टिक्स में कैरियर बनाने के लिए किसी को भी पढ़ाई लिखाई में बहुत तेज होने की जरूरत नहीं है। केवल सठिक ट्रेनिंग और मानसिकता जरूरत है। लड़के -लड़कियाँ दोनों कृषि उद्योग में अपना कैरियर बना सकते हैं। सेल्फ एम्प्लॉयमेंट के भी कई उपाय हैं। सबसे अच्छी बात है कि अगर आप घर से दूर न जाना चाहो तो आपको घर के पास कई संभावनायें मिल सकती हैं। 

अब मैं बात करूँगा इंजीनियरिंग पढ़ने में उत्सुक विद्यार्थिओं से। अधिकतर स्टूडेंट्स कम्प्यूटर साइंस , आई टी या इलेक्ट्रॉनिक्स पढ़ना चाहते हैं। इसमें कोई गलती नहीं है। अभी भी काफी नौकरी उपलब्ध है। परन्तु मेकानिकल ,इलेक्ट्रिकल ,केमिकल , सिविल , आर्किटेक्चर , इंस्ट्रूमेंटेशन में इंजिनियर की कमी खल रही है। अगले बीस वर्षों में इनकी माँग और बढ़ने वाली है। वजह दिख रहा है। अपने चारो ओर देखिए। कितने रियल एस्टेट प्रोजेक्ट्स हर शहर में नजर आ रहें हैं। टू व्हीलर ,गाड़ी रेफ्रीजिरेटर, माइक्रोवेव -हर किस्म के गैजेट का प्रयोग बढ़ रहा है। इनका प्रोडक्शन कैसे होगा बिना इंजीनियर के ? कितने हाईवे बन रहे हैं ? कितने विमान बंदर बन रहें हैं। अंतर देशीय उड़ान की सँख्या द्रुत गति से बढ़ रही है। एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग के साथ साथ ग्राउंड स्टाफ का डिमांड बढ़ेगा। सही प्रशिक्षण की जरूरत है केवल। 

कोरोना ने पूरे विश्व के स्वास्थ्य सेवा को हिला कर रख दिया है। स्वास्थ्य सेवा में परिवर्तन और तरक्की दोनों दिख रहें हैं। किसी भी अस्पताल में अगर १० डॉक्टर जुड़े हैं ,तो बाकि कर्मचारी कम से कम दस गुना होंगे। तरह तरह के कैरियर बन सकते हैं एक अस्पताल में -नर्स ,तकनीशियन ,ग्राहक सेवा ,मार्केटिंग ,आई टी ,आया ,वार्डबॉय ,पैरामेडिक, एकाउंट्स ,क्वालिटी कण्ट्रोल और बहुत सारे। अस्पताल में काम करने के लिए दिमाग के साथ दिल का ताल मेल अति आवश्यक है। आर्ट्स ,साइंस और कॉमर्स के विद्यार्थी सब के लिए अस्पताल में कैरियर बनाने का मौका है। दोहरा रहा हूँ एक ही बात -सही प्रशिक्षण जरूरी है इन सब कैरियर के लिए। 

आप को शायद अंदाज़ मिल रहा है कि कितने तरह के और कितने किस्म के कैरियर हैं और नए कैरियर उभर कर सामने आ रहें हैं। मुझे तो केवल एक सुनहरा भविष्य दिख रहा है , उन सब के लिए , जो अपने दिमाग में स्पष्ट हैं कि उनकी दिलचस्पी ,काबिलियत, मेहनत करने की क्षमता और नई चीजों को सीखने की इच्छा कितनी है ,उनके लिए कैरियर चुनना और सफल होना संभव है। हर इंसान डॉक्टर ,इंजीनियर या चार्टर्ड अकाउंटेंट नहीं बन सकता। लेकिन ये ऐसे ही कम लोग हैं। कैरियर इनके बिना अनेक हैं। खुद के लिए कैरियर का सही चयन और निर्णय आवश्यक है। 

अगले लेख में मैं  गृह बधु के कैरियर और एकाउंट्स और फिनान्स के कैरियर के विषय में चर्चा करूँगा। इस दर्मयान अगर आपके दिमाग में कोई प्रश्न आता है ,मुझे बताइयेगा जरूर ,फेसबुक के माध्यम से। शायद आपके प्रश्न का जवाब से कई लोगों का फायदा हो जाए। कैसा लग रहा है कैरियर के विषय में हमारी चर्चा। अच्छा लगे तो फेसबुक के माध्यम से प्रोत्साहित करें। कुछ सुझाव देना चाहे तो जरूर बताएं। इंतज़ार करूँगा आपके विचारों के लिए। स्वस्थ रहिए और सावधान रहिये। इसी में हम सब का मंगल है। 

बुधवार, 27 अप्रैल 2022

नमस्कार। मई महीना यानि वित्तीय साल का दूसरा महीना। जो नौकरी में हैं ,इन्क्रीमेंट ,प्रोमोशन और नए इरादों के साथ इस साल और बेहतर करने का संकल्प। जो व्यवसाय में हैं ,उनके लिए भी नई शुरुआत। खास कर इस वर्ष जब हम  सब कोरोना के प्रकोप को पीछे छोड़ कर नई उम्मीदों के साथ आगे बढ़ रहें हैं यही सोचते हुए कि दो सालों का व्यावसायिक नुकसान को इस साल जरूर रिकवर करना पड़ेगा। जो कि पहली नौकरी ढूंढ रहें हैं उनकी भी उम्मीदें स्वाभाविक जीवन वापस आने की आशा पर टिकी हुई है। 

मेरा आज का लेख एक कदम पीछे हट कर भविष्य की ओर देखने का प्रयास है। कई अभिभावकों ने मुझे अनुरोध किया है उनके बच्चों के कैरियर चयन में उनकी मदत करने के लिए। मेरा प्रयास होगा कि मेरे इस लेख के माध्यम से उन बच्चों और उनके अभिभावकों का हौसला बढ़ा सकूँ जो पढ़ाई लिखाई में उतने तेज नहीं हैं या दिलचस्पी कम रखते हैं। मेरा तजुर्बा बोलता है कि ऐसे बच्चोँ की संख्या , पढ़ाई में अच्छे और दिलचस्पी रखने वाले बच्चों की तुलना में कई गुण ज़्यादा है। 

पहली बात जो हमें समझना पड़ेगा कि नौकरी और कैरियर में फर्क क्या है। साधारण भाषा में यह समझिए कि नौकरी में आपका वर्तमान आय मिलता है जब कि कैरियर में वर्तमान आय के अलावा भविष्य का रास्ता और अधिक जिम्मेवारी और अधिक आय का रास्ता भी सामने नज़र आता है। एक उदाहरण देता हूँ। कई युवा फूड डेलिवेरी का काम कर रहें हैं। यह एक नौकरी है। कैरियर नहीं है। इस सन्दर्भ में यह समझना जरूरी है कि किस इंडस्ट्री में कैरियर बन सकता है ,यह साधारण लोग कैसे समझें। इस को समझने का सर्वोत्तम उपाय है सरकार के प्रयासों और फोकस को समझना ,विश्लेषण करना और कौन सा कैरियर आते हुए  समय की जरूरतों से नाता या रिश्ता रखता है। एक और उपाय है हमारे खुद के जीवन यापन में परिवर्तन और नई दिशा को समझना। मैं इस दोनों उपायों पर आधारित तीन कैरियर चयन का ज़िक्र करूँगा। 

सरकार ने नई एडुकेशन पोलिसी का ऐलान किया है। इस पोलिसी का मूल उद्देश्य है कि शिक्षा के माध्यम से लोगों का ज़िन्दगी सुधारना है। और हर किस्म के नौकरी के लिए कोई ना कोई कौशल जरूरत है। स्कूल से उत्तीर्ण होने के बाद अगर कोई किसी कारण आगे पढ़ाई नहीं कर पाएगा उसको भी अपने काबिलियत के अनुसार कौशल सिखाया जायेगा जिसकी वजह से उसे नौकरी मिल सकती है और वह उस क्षेत्र में आगे कैरियर भी बना सकता है। अब सोचिए इस सन्दर्भ में कितने शिक्षक (वह भी तरह तरह के विषय के ) जरूरी होंगे जिनको नौकरी मिल सकती है। क्या ग्रेजुएशन करके कोई स्कूल मेंअध्यापक बन सकता है। शायद नहीं। शिक्षक बनने का तालीम लेना पड़ेगा। 

अब एक उदाहरण दूँगा हमारे ज़िन्दगी में आए बदलाव के सिलसिले में। कोरोना का सबसे बड़ा प्रभाव रहा है हमारे डिजिटल व्यवहार पर। हम ऑनलाइन काफी कुछ करने लगें हैं जो हम नहीं करते थे। इसका एक परिणाम है साइबर फ्रॉड। साइबर सिक्यूरिटी एक जबरदस्त कैरियर का संभावना प्रदान करता है। इसके कई सर्टिफिकेट प्रोग्राम को करने के बाद अच्छी नौकरी जरूर लग सकती है। डिजिटल मार्केटिंग का कैरियर एक और ऐसा कैरियर है। मजेदार बात यह है कि इन कैरियर के लिए अब तक आप क्या पढ़े हैं उतना मायने नहीं रखता है। 

पिछले कई सालों से इंजीनियरिंग कॉलेज में काफी सीट खाली जा रही हैं और इंजीनियरिंग करने के बाद भी सही नौकरी नहीं मिल रही है। ऐसा क्यों हो रहा है ? इंजीनियरिंग का कैरियर का भविष्य क्या नाजुक है ? कहाँ गलती हो रही है और कौन गलती कर रहा है ? इंजीनियरिंग तो हर किसी के बस की बात नहीं होती. बी ए बी Sc या बी com करने के बाद क्या कैरियर चॉइस है। १२ क्लास के बाद पढ़ाई छोड़ने वाले का कैरियर चॉइस क्या हो सकता है ? बिना स्कूल उत्तीर्ण करने वाले का क्या कोई कैरियर चॉइस है ? या नहीं ? इन सब विषयों पर अग्रिम कुछ महीनों में चर्चा होगी। 

अगर आपका कोई प्रश्न है किसी भी कैरियर के विषय में , मुझे फेसबुक के माध्यम से बताइए। जरूर जवाब दूंगा। इतना समझ लीजिए कि हमारे देश में अगले पाँच वर्षों में कैरियर चॉइस की कोई कमी नहीं होगी।  हमे केवल सही कैरियर का चयन और उसकी तैयारी करनी पड़ेगी। 

सावधान रहिए। कोरोना का संक्रमण फिर बढ़ रहा है। फिर मिलेंगे अगले महीने आपके साथ। 

गुरुवार, 31 मार्च 2022

नमस्कार। नए वित्तीय साल मुबारक आप सब को। मेरा विश्वास है कि यह वित्तीय वर्ष व्यावसाय और अर्थनीति के लिए बेहतरीन होगा। शायद ऐसा कभी नहीं हुआ है। हमारे देश के लिए।  मेरा अनुमान है कि २०२५ तक हमारे देश का सबसे सुनहरा समय आने वाला है। इसका फायदा हर किसी को मिल सकता है। परन्तु इस मौके का इस्तेमाल करने के लिए हम सब को तैयारी करनी पड़ेगी। चाहे हम नौकरी कर रहें हों ,व्यवसाय में हो या विद्यार्थी हो , हमें बदलना पड़ेगा और अन्तर्जातिक स्टैण्डर्ड को हासिल करना होगा ,अपने कर्म क्षेत्र में। ऐसा सुयोग क्यों हमें प्राप्त हुआ है ? एक विलन के कारण। किसी भी हीरो को हीरोपंती के लिए विलन जरूरी है। जितना तगड़ा विलन उतना ज़्यादा हीरोपंती की ज़रुरत। 

यह कोरोना पिछले दो सालों का सबसे अप्रत्याशित और ढीट विलन था पूरे विश्व के लिए। परन्तु क्या हीरोपंती दिखाई है हर किसीने। रेकॉर्ड समय में वैक्सीन का अविष्कार, प्रोडक्शन और करोड़ों को वैक्सीन लगाना। लोकडाउन , अर्थनीति का तहस नहस ,वर्क फ्रॉम होम , बर्बादी ,मृत्यु , क्या नहीं देखा हम सभी ने ? क्या परिणाम हुआ इन सब का। 

हमारे जीने का तरीका और मकसद बदल गया। हमने नए अंदाज़ में जीना सीख लिया है। मास्क और सैनिटाइज़र हमारा एक अभिन्न अंग बन गया है। कितनी कम्पनियाँ इस व्यावसाय से लाभ कमाई है। तो क्या सीख है इस विलन और हीरो की कहानी में ?

हर प्रतिकूल स्थिति को हमें विलन के तरह देखना होगा। और अपने आपको हीरो बनने का मौका दिखाना पड़ेगा। हीरो बनने के लिए क्या गुण चाहिए ? निडर होना पड़ेगा। दिल के बजाय दिमाग से निर्णय लेना पड़ेगा। जल्द निर्णय लेना पड़ेगा। गलती हो सकती है। गलत होने के डर से निर्णय ना लेना और भी खतरनाक होता है। सफलता मिलेगा , यह विश्वास करना पड़ेगा। 

हिंदी फिल्मों में हीरो चाहे कितना भी पिट जाए ,हमें पता है कि अंत में जीत उसी की होगी। ज्यादातर फिल्मों में। परन्तु वास्तविक जीवन में ऐसा कोई गारंटी नहीं है। हीरोपंती में सफलता ,असफलता और निराशा , कुछ भी हो सकता है। इसी लिए हिंदी फिल्मों के बादशाह का एक डायलॉग बहुत मशहूर हुआ था -जीत कर हारने वाले को बाज़ीगर कहते हैं। 

खेल के मैदान में या ज़िन्दगी के सफर में ,जो जितना प्रतिकूल परिस्थितिओं पर विजय पाता है ,वह उतना बड़ा हीरो बन जाता है। आप भारतीय क्रिकेट के कप्तान कूल का उदाहरण लीजिए। हम उनसे क्या सीख सकते हैं। कितनी भी बड़ी विपत्ति हो ,विचलित ना होना। दिमाग को ठंडा रखना। अपनी काबिलियत पर भरोसा रखना। इस काबिलियत को बनाने और बरक़रार रखने के लिए कठिन परिश्रम करना। बदलते हुए हालात के लिए रणनीति बदलना और अपनों पर भरोसा रख कर उनको अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास के लिए प्रोत्साहित करना। यही सफलता का मंत्र है जो कि हमें इस मौकों से भरी हुई भविष्य के लिए जरूरत है। 

नए वित्तीय वर्ष में आपको सफलता और कामयाबी मिले ,यही दुआ करूँगा ऊपर वाले के पास। अपने सेहत का ख्याल रखिए। सावधानी बरतिए। विलन अभी तक नाश नहीं हुआ है। हमें सुधरने का सलाह दीजिये ,फेसबुक के माध्यम से। इंतज़ार करूँगा। 

शुक्रवार, 4 मार्च 2022

नमस्कार। साल का सबसे रंगीन महीने में आप सब का स्वागत है। होली का त्यौहार। वित्तीय वर्ष का अंतिम महीना। स्कूल के बच्चों का परीक्षा के कारण टेंशन। बच्चोँ से ज़्यादा अभिवावक को चिंता। और पूरे विश्व में युद्ध पर चर्चा। यह युद्ध विश्व के अर्थनीति को फिर अस्त व्यस्त करने पर तुली है। इस वक़्त हर देश को संयम और धैर्य के साथ कदम उठाना पड़ेगा। 

युद्ध क्यों और कब होता है ? इतिहास के पन्नों से हम यह समझते हैं कि ताली एक हाथ से नहीं बजती है। दोनों पक्षों में कई कारण होते हैं जो किसी भी युद्ध का बीज  बन जाता है। जड़ के निकलने के तुरंत अगर उसको उखाड़ कर ना फेकने पर एक युद्ध को होने से रोकना मुश्किल हो जाता है। युद्ध में कभी किसी पक्ष को विजय प्राप्त होता है। परन्तु जीतता कोई नहीं।  यही युद्ध का सबसे खतरनाक परिणाम है। 

विश्व युद्ध से हट कर हम गृह युद्ध पर थोड़ा विचार करना चाहते हैं आज के इस लेख में। किसी भी युद्ध का बीज होता है ,मतभेद। और जिनके बीच मतभेद , उनमे से एक या दोनों का ज़िद। और एक दूसरे का अन्य पक्ष के विचार या भावनाओं का कदर ना करना। 

परिवार के अंदर आपने अकसर देखा होगा कि दो सदस्यों के बीच ठंडे युद्ध की शुरुआत होती है अधिकार की वजह से। किसका क्या अधिकार है ,इसके विषय में उलझन या कंफ्यूशन। कई परिवार में मैंने यह देखा है बेटे के शादी के बात बेटे पर किसका अधिकार ज़्यादा है , माँ का या नई नई शादी हुई बीवी का ,यह साँस और बहू के बीच तनाव का कारण बन जाता है। माँ को ज़्यादा अधिकार नज़र आता है। उन्होंने जन्म दिया है ,पाल पोस कर बड़ा किया है, विवाह योग बनाया है। यह अधिकार कोई नहीं छीन सकता है। इस लिए बेटे को माँ की बात और आदेश को ज़्यादा महत्व देनी चाहिए। बीवी का सोचना है कि शादी के बाद बेटे को सही आँचल का चयन करना पड़ेगा। युद्ध का एक जरूरी बीज होता है अधिकार। 

दूसरी बात जो मैंने किसी भी युद्ध में देखा है वह है दो पक्षों में एक का दूसरे से खुद को बेहतर या ज़्यादा ताकतवर समझना। यह किसी को जीतने का साहस देता है तो किसी को ज़्यादा अधिकार का हक। और यही हमला बोलने का मनोबल देता है। अगर आप दूसरे विश्व युद्ध के मूल वजह को समझे तब आप देखिये गा कि एक इंसान ने अपने देशवासिओं को दुनिया का सर्वश्रेष्ठ होने का विश्वास दिलाया और पूरे विश्व पर राज करने का सपना दिखाया। यह पावर या अपने शक्ति को बढ़ाने का एक नशा बन जाता है। सिकंदर या मुग़ल राजा का यही नशा था। अश्वमेध के घोड़े का कांसेप्ट ही यही था। 

तीसरी बात जो हमने युद्ध का कारण समझा है , वह है छल और कपट। रामायण या महाभारत की कहानिओं की शुरुआत होती है छल और कपट से। छल , एक दूसरे पर भरोसे के नींव को हिला देता है। एक बार भरोसा टूट जाता है तो युद्ध को रोकना कठिन हो जाता है। टेलीविज़न पर अधिकतर पारिवारिक ड्रामा में छल , कपट और चतुराई अत्यधिक मात्रा दिखने को मिलता है। 

किसी भी युद्ध को शुरू ना होने के लिए दोनों पक्षों के बीच समय पर ,सठिक वार्तालाप होना जरूरी है और इसका कोई विकल्प नहीं है। राजनीती और उसके साथ जुड़े हुए स्वार्थ अवष्य इस समझ बुझ को अक्सर ठेस पहुंचाते हैं। परन्तु हिँसा और शक्ति का प्रदर्शन किसी को मदत नहीं करता है। इस विषय कोई दो राय नहीं है। 

मैं केवल यही उम्मीद और प्रार्थना के साथ जी रहा हूँ कि इस वक़्त जो युद्ध हर किसी के चर्चे का विषय है , बातचीत और कूटनीति के जरिये जल्द समाप्त हो जाए। इसी में सब का मंगल है। कोरोना के साथ युद्ध भी अभी ख़तम नहीं हुआ है। ज़िन्दगी ही एक युद्ध है। हम सबको संभल कर चलते रहना है। 

शनिवार, 5 फ़रवरी 2022

नमस्कार। उम्मीद  करता हूँ कि नया साल आपके लिए ठीक चल रहा है। परिस्थिति इतनी जल्दी बदल जाती है कि खुद को सँभालने का मौका नहीं मिलता है कभी कभी। पिछले महीने मैंने भारतीय क्रिकेट टीम की प्रशंसा की थी उनके जीत पर। उसके बाद क्या हुआ ? हमारी टीम हर एक मैच हार गई। क्यों। हमारे विपक्ष की टीम ने हम से सीख कर बाज़ी मार ली। उन्होंने वही किया जिसने हमारी टीम को जीत दिलाई थी -अनुशाषन ,धैर्य और संकल्प। किसने जीत दिलाई ? खिलाड़िओं ने। उनमे एक मोटिवेशन आया जीतने का। और इसी मोटिवेशन ने उन्हें जीतने में सहायता की। मेरे ३५ साल के काम करने के तजुर्बे के बाद मैं इस निष्कर्ष पर पहुँचा हूँ कि मोटिवेशन या प्रेरणा ही इंसान को आगे बढ़ाने का एक मात्र ईंधन है। हमने कई ऐसी कहानियाँ सुनी है जहाँ प्रतिकूल परिस्थितिओं के बावजूद लोगों ने सफलता पाई है। इनका संकल्प और ज़िद इस सफलता का मूल कारण है। तो मोटिवेशन का परिभाषा क्या है ? अलग अलग लोग अपना परिभाषा देते हैं। 

मेरे लिए मोटिवेशन खुद को दिया हुआ कारण या वजह है जो कि हमारा व्यवहार या कार्य को तय करती है। परिवार का उदाहरण ले लीजिए। साँस भी कभी बहु थी मोटिवेशन का एक जबरदस्त मिसाल है। हम कुछ खरीदना चाहते हैं -उदाहरण स्वरुप एक मोबाइल फोन। हमारे पास काफी सारे विकल्प हैं। परन्तु हम किसी एक को खरीदते हैं। और हमने क्यों इसे चुना इसके लिए खुद को कारण देते हैं। और यही कारण है हमारा मोटिवेशन इस चयन का। 

अकसर माता -पिता अपने बच्चों के जरिये वह हासिल करना चाहते हैं जिनकी चाहत उनमे थी ,परन्तु किसी वजह से वह उस सपने को पूरा नहीं कर पाए। कोई पिता इंजीनियर बनने से वंचित रह गया इस लिए बच्चों को इंजीनियर बनने के लिए प्रोतसाहित करता है। सही है। परन्तु बच्चा क्या चाहता है यह इससे ज्यादा जरूरी है। पिता का मोटिवेशन उसका मोटिवेशन नहीं भी हो सकता है। और इसी विषय में कई अभिभावक गलती कर बैठते हैं। अपना मोटिवेशन जबरदस्ती बच्चों पर ठोप देते हैं। 

जिंदगी रिश्तों का सफर है। रिश्ते ज़िन्दगी को जीने लायक बनाते हैं। रिश्ते बनाना कठिन है। उसका परवरिष करना कहीं ज़्यादा कठिन होता है। और रिश्ते तोडना सबसे आसान। रिश्ते बनाने और आगे बढ़ाने में मोटिवेशन का अहम भूमिका है। अगर हम अपना मोटिवेशन और जिसके साथ हम रिश्ता आगे बढ़ाना चाहते हैं ,उनका मोटिवेशन समझ कर दोनों के मोटिवेशन को सवांरें तो रिश्ते मजबूत होते हैं और आगे बढ़ते हैं। आपने अगर थ्री इडियट्स फिल्म देखी हो तो शायद आप मेरी मेसेज को और समझ पायेंगे। 

कैसे हम किसी दूसरे को मोटीवेट कर सकते हैं ? सहज उपाय है उनके मोटिवेशन को समझ कर उनको प्रेरीत करना। आप ने शायद अपने ही परिवार में दो बच्चों में अलग मोटिवेशन देखा होगा। कोई बच्चा पढ़ाई में दिलचस्पी रखता है और दूसरा पढ़ाई से दूर रहना चाहता है। अधिकतर माता -पिता तुलना कर बैठते हैं अपने ही बच्चों में। जो नहीं पढ़ना चाहता है उसको हमेशा दूसरे का उदाहरण देते हैं। इससे कोई फायदा नहीं होता है। केवल नुकसान। जो बच्चा पढ़ने में दिलचस्पी नहीं रखता है उसके मोटिवेशन को समझने का प्रयत्न नहीं करते हैं। यह एक गलती है -माता -पिता का। 

फरवरी वैलेंटाइन का महीना है। आप लोग जो मेरे साथ हर महीने जुड़ते हो इस लेख के माध्यम से , उन सबको मेरा श्रद्धा भरा हुआ प्यार कहूँगा। आपका जीवन मंगलमय हो। इसी का कामना करते हुए आप सबको हैप्पी वैलेंटाइन डे के लिए अग्रिम शुभेच्छा। मुलाकात होगी अगले महीने इस वित्तीय वर्ष के आखरी महीने में। अपने सेहत क्या ख्याल रखिए। कोरोना अभी भी मौजूद है।